सीएसई

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‘आहार’ पाईन से खुशहाली
Posted on 31 Dec, 2009 05:37 PM

हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है। करीब 40 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद कृषि से उपजता है। अत: जब तक कि गांव की कृषि व्यवस्था में सुधार नहीं किया जाता है, तब तक देश की अर्थव्यवस्था में सुधार कर पाना असंभव होगा। अत: स्थानीय समुदायों को जोड़ते हुए जल पंढाल विकास और जल प्रबंधन करने से हमारी कृषि व्यवस्था टिकाऊ विकास की ओर अग्रसर होगी।

बर्फ के कुएं
Posted on 31 Dec, 2009 05:36 PM

हिमाचल प्रदेश के ऊँचाई पर स्थित शिमला जैसे शहरों में बर्फ के कुएं होना एक आम बात थी, जिसमें लोग बर्फ को जमा करते थे। आज इन ढांचों का कोई उपयोग नहीं होता है, जैसे: शिमला मेडिकल कॉलेज के समीप एक बेकार पड़ा हुआ बर्फ का कुआँ है जो कलई की हुई शीट की एक छतरी से ढका हुआ है, जिससे इस कुएं को गर्मी से बचाया जाता था। इसे एक सकरे रास्ते से सड़क के साथ जोड़ा गया था। इसकी गहराई 15 फीट के करीब थी और व्यास कर

शरगांव के सिंचाई टैंक
Posted on 31 Dec, 2009 05:33 PM
अभी तीन साल पहले तक यानी सन् 1999 तक हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले स्थित राजगढ़ से 30 किलोंमीटर की दूरी पर शरगांव अन्य गांवों की तरह पिछड़ा था, जहां के सरकारी नौकरी-पेशे वाले लोग ही चैन की नींद सोते थे। बाकी गांववालों के पास सिंचाई के लिए पानी का काफी अभाव बना रहता था। इसके फलस्वरूप यहां के लोग काम की तलाश में अन्य शहरों की ओर पलायन करने को बाध्य हुए। लेकिन, जब गांव वालों ने यहां पानी का काम किया,
रेन सेंटर
Posted on 31 Dec, 2009 05:28 PM
अनिल अग्रवाल, सेंटर फार साइंस एण्ड इन्वायरन्मेंट (सीएसई) के संस्थापक ने वर्षा जल संग्रहण के प्रचार प्रसार के लिए एक स्थानीय रेन सेंटर की जरूरत महसूस की, जहां जाकर लोग यह जान सकें कि वर्षा जल संग्रहण कैसे करें और इस क्षेत्र के जानकारों से सलाह प्राप्त कर सकें।
सिंचाई सहकारिताएं
Posted on 30 Dec, 2009 03:19 PM
पहले किसान सिंचाई व्यवस्था का बड़े सलीके से प्रबंधन किया करते थे, लेकिन जबसे सरकार सिंचाई विभाग के साथ इसमें शामिल हुई है तब से इसका प्रबंधन बिगड़ने लगा। बुनियादी ढांचे की बिगड़ी स्थिति को देखते हुए महाराष्ट्र के कुछेक गैर सरकारी संगठनों ने किसानों को सहकारिताओं के गठन के लिए प्रोत्साहित करने का निर्णय लिया। इन सहकारिताओं से सरकार भी काफी प्रेरित हुई है और अब तो यह किसानों को प्रबंधन की जिम्मेदारी
गरीब ही क्यों धकेले जाएं
Posted on 30 Dec, 2009 03:16 PM
माना की भारत सरकार ड्रिप सिंचाई व्यवस्था को आगे बढ़ा रही है, लेकिन हकीकत में तो इससे बड़े उद्योग ही फल-फूल रहे है। और छोटे किसान पीछे धकेल दिए गए हैं।
वर्षा जल संग्रहण से संकट टला
Posted on 28 Dec, 2009 01:03 PM
मध्य प्रदेश में उज्जैन से 70 किलोमीटर की दूरी पर बालोदा लाखा नामक एक गांव है, जहां के ग्रामवासियों ने अपने गांव में पानी की समस्या खुद दूर कर ली है। गांववालों ने इसके लिए सामुदायिक जल प्रबंधन के दृष्टिकोण से काम करना शुरु किया, जिससे इस गांव में रौनक छा गई है।
वर्षा जल का मोल समझाया
Posted on 28 Dec, 2009 12:56 PM
एक स्वस्थ समाज स्वस्थ जलग्रहण व्यवस्था के बिना लंबे अर्से तक नहीं टिक सकता है। इस साधारण सच को गोर्डम ब्राउन ने सन् 1964 में ही समझ लिया था। इन्होंने मोरल रियरमामेंट सेंटर के निर्माण के नक्शे में वर्षाजल संग्रहण की अवधारणा को शामिल किया। यह सेंटर महाराष्ट्र स्थित पुणे से 150 किलोमीटर की दूरी पर पंचगनी के क्षेत्र में बनाया गया है। यह राजमोहन गांधी और देश के अन्य भागों के व्यक्तियों द्वारा चलाए गए आ
खूनी भण्डारा का उद्धार हुआ
Posted on 28 Dec, 2009 12:49 PM
खूनी भण्डारा बुरहानपुर शहर की एक अनूठी भूजल प्रबंधन व्यवस्था है, जिसे मुगलों ने 17वीं शताब्दी में स्थापित किया था। आज मध्य प्रदेश के खण्डवा जिले का बुरहानपुर नगर निगम और खण्डवा जिला प्रशासन मिलकर इस व्यवस्था को फिर से ज़िंदा करने में जुटे हैं, जिससे इस पूरे शहर में सालों-साल स्वच्छ और पर्याप्त मात्रा में भूजल उपलब्ध होता रहे। इस पहल से इस क्षेत्र में पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। भूजल व्यवस्था का का
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