अरुण तिवारी

अरुण तिवारी
तालाब जितने सुन्दर व श्रेष्ठ होंगे, अनुपम की आत्मा उतना सुख पाएगी - राजेन्द्र सिंह
Posted on 26 Dec, 2016 11:59 AM


हम सभी के अपने श्री अनुपम मिश्र नहीं रहे। इस समाचार ने पानी-पर्यावरण जगत से जुड़े लोगों को विशेष तौर पर आहत किया। अनुपम जी ने जीवन भर क्या किया; इसका एक अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अनुपम जी के प्रति श्रद्धांजलि सभाओं के आयोजन का दौर इस संवाद को लिखे जाने के वक्त भी देश भर में जारी है।

पंजाब-हरियाणा में आयोजित श्रद्धांजलि सभाओं से भाग लेकर दिल्ली पहुँचे पानी कार्यकर्ता राजेन्द्र सिंह ने खुद यह समाचार मुझे दिया। राजेन्द्र जी से इन सभाओं का वृतान्त जानने 23 दिसम्बर को गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान पहुँचा, तो सूरज काफी चढ़ चुका था; 10 बज चुके थे; बावजूद इसके राजेन्द्र जी बिस्तर की कैद में दिखे। कारण पूछता, इससे पहले उनकी आँखें भर आईं और आवाज भरभरा उठी।

अनुपम मिश्र
आइये! नदियों को मर जाने दें - अनुपम मिश्र
Posted on 19 Dec, 2016 12:13 PM
“नदियों को मर जाने दीजिए। एक दिन यह नदी नहीं, हमारे ही पुनर्जीवन का प्रश्न बन जायेगा।’’ – अनुपममिश्र
anupam mishra in vichar gosthi
इतनी बुरी भी नहीं बाढ़
Posted on 30 Aug, 2016 04:06 PM


बाढ़ के कारणों पर चर्चा के शुरू में ही एक बात साफ कर देनी जरूरी है कि बाढ़ बुरी नहीं होती; बुरी होती है एक सीमा से अधिक उसकी तीव्रता तथा उसका जरूरत से ज्यादा दिनों तक टिक जाना। बाढ़, नुकसान से ज्यादा नफा देती है। बाढ़ की एक सीमा से अधिक तीव्रता व टिकाऊपन, नफे से ज्यादा नुकसान देते हैं।

एक सीमा से अधिक वेग मिट्टी, पानी और खेती के लिहाज से बाढ़ वरदान होती हैै। प्राकृतिक बाढ़ अपने साथ उपजाऊ मिट्टी, मछलियाँ और अगली फसल में अधिक उत्पादन लाती है। यह बाढ़ ही होती है कि जो नदी और उसके बाढ़ क्षेत्र के जल व मिट्टी का शोधन करती है। बाढ़ ही भूजल भण्डारों को उपयोेगी जल से भर देती है। इस नाते बाढ़, जलचक्र के सन्तुलन की एक प्राकृतिक और जरूरी प्रक्रिया है। इसे आना ही चाहिए।

केन-बेतवा लिंक बुन्देलखण्ड को बाढ़-सुखाड़ में डुबोकर मारने का काम है- राजेन्द्र सिंह
Posted on 29 Aug, 2016 03:02 PM


अरुण तिवारी द्वारा जलपुरुष राजेन्द्र सिंह से बातचीत पर आधारित साक्षात्कार

राजेन्द्र सिंहराजेन्द्र सिंह सुना है कि पानी के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार आजकल आपके मार्गदर्शन में काम रही है?
मेरा सहयोग तो सिर्फ तकनीकी सलाहकार के रूप में है। वह भी मैं अपनी मर्जी से जाता हूँ।

उत्तर प्रदेश सरकार अपने विज्ञापनों में आपके फोटो का इस्तेमाल कर रही है। ऐसा लगता है कि आप अखिलेश सरकार से काफी करीबी से जुड़े हुए हैं। पानी प्रबन्धन के मामले में क्या आप सरकार के कामों से सन्तुष्ट हैं?

कुछ काम अच्छे जरूर हुए हैं। लेकिन सरकार के प्लान ऐसे नहीं दिखते कि वे राज्य को बाढ़-सुखाड़ मुक्त बनाने को लेकर बनाए व चलाए जा रहे हों। बाढ़-सुखाड़ तब तक आते रहेंगे, जब तक कि आप पानी को ठीक से पकड़ने के काम नहीं करेंगे।

आइये, पानी से रिश्ता बनाएँ
Posted on 11 Aug, 2016 02:48 PM


नदियों को जोड़ने, तोड़ने, मोड़ने अथवा बाँधने का काम बन्द करो। रिवर-सीवर को मत मिलने दो। ताजा पानी, नदी में बहने दो। उपयोग किया पानी, नहरों में बहाओ। जल बजट को जल निकासी में कम, वर्षाजल संचयन में ज्यादा लगाओ। नहर नहीं, ताल, पाइन, कूलम आदि को प्राथमिकता पर लाओ।

हरित न्याय का भारतीय नायक
Posted on 05 Aug, 2016 11:13 AM


मैंने उनका बैंक बैलेंस नहीं देखा। न मैंने उनकी बहस सुनी है और न अदालती मामलों में जीत-हार की सूची देखी है। मैंने सिर्फ उनकी सादगी और पर्यावरण के प्रति समर्पण देखा है। मैंने उन्हें कई सभाओं में आकर अक्सर पीछे की कुर्सियों में बैठते हुए देखा है।

पैंट से बाहर लटकती सादी कमीज, हल्की सफेद दाढ़ी, चेहरे पर शान्ति, बिन बिजली बैठकर बात करने में न कोई इनकार और न चेहरे पर खीझ। यूँ वह मितभाषी हैं, लेकिन पर्यावरण पर बात कीजिए, तो उनके पास शब्द-ही-शब्द हैं; चिन्ताएँ हैं; समाधान हैं। 69 की उम्र में भी पर्यावरण को बचाने के लिये कुछ कर गुजरने की बेचैनी है और जीत का भरोसा है। वह प्रतीक हैं कि कोई एक व्यक्ति भी चाहे, तो अपने आस-पास की दुनिया में बेहतरी पैदा कर सकता है।

सूखे के साथ जीना सीखना होगा
Posted on 31 Jul, 2016 10:02 AM

बिहार ने बाढ़ के साथ जीना सीख लिया है और राजस्थान व गुजरात ने सुखाड़ के साथ। अब हम भी सीखें तो बेहतर होगा। व्यापक स्तर पर यह सीखना और करना इसलिये भी जरूरी है; क्योंकि अब अन्य विकल्प शेष नहीं है। इसरो के आँकड़े हैं कि थार का रेगिस्तान आठ किलोमीटर प्रतिवर्ष की रफ्तार से आगे बढ़ रहा है। इस रफ्तार को थामना तो एक यक्ष प्रश्न जैसा है लेकिन इतना तो किया ही जा सकता है कि वर्तमान या आगामी समस्याओं
अपनी दुर्बलता और नमामि गंगे को कोसते निराश स्वामी सानंद
Posted on 26 Jul, 2016 03:20 PM

 

स्वामी सानंद उत्तर संवाद


21वें कथन के साथ ‘स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद शृंखला’ सम्पन्न हुई, तो अलग-अलग सवाल कई के मन में उठे; गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान के आदरणीय रमेश भाई, यमुना जिये अभियान के श्री मनोज मिश्र, नदियों के हालात से निराश डॉ. ओंकार मित्तल व कई अन्य समेत स्वयं मेरे मन में भी। यह स्पष्ट है कि स्वामी जी ने पुरी के शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी के आश्वासन पर अपना पूर्व अनशन सम्पन्न किया था।

स्वामी श्री निश्चलानंद जी ने स्वामी सानंद को आश्वस्त किया था कि यदि भाजपा सत्ता में आई, तो वह गंगा के पक्ष में निर्णय करेगी। अनशन सम्पन्न करते हुए स्वामी सानंद ने कहा था कि भाजपा के सत्ता में आने के बाद तीन महीने प्रतीक्षा करुँगा। यदि तीन महीने में प्रधानमंत्री ने अनुकूल घोषणा नहीं की, तो अपने निर्णय पर पुनः विचार करुँगा।

नर्मदा जल जमीन हक सत्याग्रह की तैयारी शुरू
Posted on 14 Jul, 2016 01:16 PM

50 हजार परिवारों के पुनर्वास का कार्य अभी भी अधूरा है। 14 हजार परिवारों को गुजरात और महाराष्ट्र में बसाया गया है, लेकिन मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात के पहाड़ी आदिवासी क्षेत्रों के करीब 1500 परिवार तथा मैदानी मध्य प्रदेश के करीब 45 हजार परिवारों को अभी बसाना बाकी है। सरदार सरोवर में जैसे ही गेट लगेगा, एक धर्मपुरी नगर, 244 गाँवों के बाशिन्दों के घर, खेत, खलिहान... सब डूब जाएँगे। उन्होंने 30 जुलाई से नर्मदा के जल और जमीन के हुकूक के लिये सत्याग्रह करना तय किया है। इसकी तैयारी के लिये वे 13 जुलाई से 15 जुलाई तक नर्मदा परिक्रमा भी कर रहे हैं और 21 से 23 जुलाई को नर्मदा किनारे वाहन यात्रा भी। 19 से 22 जुलाई के बीच का कार्यक्रम भी तैयार किया जा रहा है।

उनकी चिन्ता


नर्मदा घाटी दुनिया की सबसे पुरानी संस्कृति है। हरदूद जैसे शहर के उजड़ने से वे डर गए हैं। उन्हें चिन्ता है कि 30 बड़े और 135 छोटे मझोले बाँधों के कारण आगे चलकर नर्मदा नदी तालाबों में तब्दील हो जाएगी। इससे लोगों के साथ-साथ नर्मदा घाटी की उपजाऊ खेती, फलदाई वानिकी, मन्दिर, मस्जिद, पाठशाला, कारीगरी, व्यापार और नर्मदा की संस्कृति का नाश होगा।
पानी दूर हुआ या हम
Posted on 07 Jul, 2016 04:25 PM


ग्लेशियर पिघले। नदियाँ सिकुड़ी। आब के कटोरे सूखे। भूजल स्तर तल, वितल, सुतल से नीचे गिरकर पाताल तक पहुँच गया। मानसून बरसेगा ही बरसेगा; अब यह गारंटी भी मौसम के हाथ से निकल गई है।

इस बार अधिक वर्षा की सम्भावना बताई गई है; बावजूद इसके हमारे कई इलाके मानसून की पारम्परिक तिथि निकल जाने के बाद भी सूने पड़े आकाश की ओर निहार रहे हैं। हम क्या करें? वैश्विक तापमान वृद्धि को कोसें या सोचें कि दोष हमारे स्थानीय विचार-व्यवहार का भी है ? दृष्टि साफ करने के लिये यह पड़ताल भी जरूरी है कि पानी, हमसे दूर हुआ या फिर पानी से दूरी बनाने के हम खुद दोषी हैं?

×