अनुपम मिश्र
अनुपम मिश्र
दुनिया का खेला
Posted on 06 Jan, 2017 04:53 PM
मैं उनसे कभी मिल नहीं पाया था। सभा गोष्ठियों में दूर से ही देखता था उन्हें। अपरिचय की एक दीवार थी। यह कोई ऊँची तो नहीं थी पर शायद मेरा अपना संकोच रोके रहा आगे बढ़कर मिलने से।
आज उनकी स्मृति में हम सब यहाँ एकत्र हुए हैं। उन्हें मैं प्रणाम करता हूँ।
साध्य, साधन और साधना
Posted on 06 Jan, 2017 03:12 PMअगर साध्य ऊँचा हो और उसके पीछे साधना हो, तो सब साधन जुट सकते हैं
कावेरी - बैर मिट पाएगा
Posted on 31 Dec, 2016 10:54 AMअनुपम मिश्र लेखक, सम्पादक, फोटोग्राफर। पर अनुपम जी को तो देश गाँधीवादी और पानी-पर्यावरण के जानकार के तौर पर ही पहचानता है। 1948 में महाराष्ट्र के वर्धा में प्रसिद्ध जनकवि भवानी प्रसाद मिश्र और सरला मिश्र के घर अनुपम जी का जन्म हुआ था। 1968 में गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली, के प्रकाशन विभाग में सामाजिक काम और पर्यावरण पर लेखन कार्य से जुड़े। तब से ही गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान की पत्रिका गाँधी मार्ग पत्रिका का सम्पादन करते रहे। कुछ जबरदस्त लेख, कई कालजयी किताबें, उनकी रचना संसार का हिस्सा बनीं। उनकी कालजयी पुस्तक 'आज भी खरे हैं तालाब' को खूब प्यार मिला, मेरी जानकारी में हिन्द स्वराज के बाद इसी पुस्तक ने कार्यकर्ताओं की रचना की, सैंकड़ों पानी के कार्यकर्ता। पानी-पर्यावरण के कार्यकर्ताओं ने अनुपम जी का लेखन और विचार का खूब उपयोग किया अपने काम के लिये। आज वो हमारे बीच नहीं हैं, पर उनके विचार हमारे बीच हैं, हम उनके सभी लेख धीरे-धीरे पोर्टल पर लाएँगे, ताकि विचार यात्रा निरन्तर जारी रहे। - कार्यकारी संपादक
कावेरी की गिनती हमारे देश की उन सात नदियों में की जाती है, जिनका नाम देश भर में सुबह स्नान के समय या किसी भी मांगलिक कार्य से पहले लिया जाता है। इस तरह पूरे देश में अपनी मानी गई यह नदी आज प्रमुख रूप से दो राज्यों के बीच में ‘मेरी है या तेरी’ जैसे विवाद में फँस गई है। इसमें दो प्रदेश- कर्नाटक और तमिलनाडु के अलावा थोड़ा विवाद केरल व पुदुचेरी का भी है। कुल मिलाकर नदी एक है। उसमें बहने वाला पानी सीमित है या असीमित है, यह लालच तो उसका है, जो इसमें से ज्यादा-से-ज्यादा पानी अपने खेतों में बहता देखना चाहता है।
सत्रह साल विवाद में फँसे रहने के बाद जब पंचाट का फैसला आया तो शायद ही कुछ क्षणों के लिये ऐसी स्थिति बनी होगी कि अब यह विवाद सुलझ गया है। घोषणा होते ही एक पक्ष का सन्तोष और दूसरे पक्ष का असन्तोष सड़कों पर आ गया।
नर्मदा घाटीः सचमुच कुछ घटिया विचार
Posted on 30 Dec, 2016 11:32 AMहत्या से कुछ दिन पहले नर्मदा सागर बाँध का शिलान्यास करते हुए श्रीमती इंदिरा गाँधी ने कहा था कि वे इन बड़े बाँधों के पक्ष में नहीं हैं, पर विशेषज्ञ उन्हें बताते हैं कि इनके बिना काम चलेगा नहीं। लेकिन अब कुछ विशेषज्ञ ही नेताओं, अखबारों और लोगों को बताने लगे हैं कि इन बड़े बाँधों के बिना काम ज्यादा अच्छा चलेगा। मध्य प्रदेश शासन में सिंचाई सचिव रह चुके एक
ਅੱਜ ਵੀ ਖਰੇ ਹਨ ਤਾਲਾਬ
Posted on 21 Jan, 2016 10:41 AMਮਾੜਾ ਸਮਾਂ ਆ ਗਿਆ ਸੀ।
ਭੋਪਾ ਹੁੰਦੇ ਤਾਂ ਜ਼ਰੂਰ ਦੱਸਦੇ ਕਿ ਤਾਲਾਬਾਂ ਲਈ ਮਾੜਾ ਸਮਾਂ ਆ ਗਿਆ ਹੈ। ਜਿਹੜੀਆਂ ਸਹਿਜ, ਸਰਲ, ਰਸਭਰੀਆਂ ਪ੍ਰੰਪਰਾਵਾਂ, ਮਾਨਤਾਵਾਂ ਤਾਲਾਬ ਬਣਾਉਂਦੀਆਂ ਸਨ, ਉਹ ਸਭ ਸੁੱਕਣ ਲੱਗ ਪਈਆਂ ਸਨ।
ਤਾਲਾਬ ਬੰਨ੍ਹਦਾ ਧਰਮ ਸੁਭਾਅ
Posted on 21 Jan, 2016 10:30 AMਸ਼ਾਇਦ ਅੱਜ ਜ਼ਿਆਦਾ ਪੜ੍ਹ ਲਿਖ ਗਏ ਲੋਕ ਆਪਣੇ ਸਮਾਜ ਤੋਂ ਕਟ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਪਰ ਉਦੋਂ ਵੱਡੇ ਵਿਦਿਆ ਕੇਂਦਰਾਂ ਵਿੱ
ਮ੍ਰਿਗ-ਤ੍ਰਿਸ਼ਣਾ ਝੁਠਲਾਉਂਦੇ ਤਾਲਾਬ
Posted on 19 Jan, 2016 02:02 PMਦੇਸ਼ ਭਰ ਵਿੱਚ ਪਾਣੀ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਇਹ ਮੱਥਾ ਰੇਗ਼ਿਸਤਾਨ ਵਿੱਚ ਮ੍ਰਿਗ-ਤ੍ਰਿਸ਼ਣਾ ਨਾਲ ਘਿਰ ਗਿਆ ਸੀ।ਇਹ ਖੇਤਰ ਸਭ ਤੋਂ ਸੁੱਕਾ ਅਤੇ ਸਭ ਤੋਂ ਗਰਮ ਹੈ। ਇੱਥੇ ਸਾਲ ਭਰ ਵਿੱਚ ਕੋਈ 3 ਇੰਚ ਤੋਂ 12 ਇੰਚ ਤੱਕ ਮੀਂਹ ਵਰ੍ਹਦਾ ਹੈ। ਜੈਸਲਮੇਰ, ਬਾੜਮੇਰ ਅਤੇ ਬੀਕਾਨੇਰ ਵਿੱਚ ਕਦੇ-ਕਦੇ ਪੂਰਾ ਸਾਲ ਸਿਰਫ਼ ਇੰਨਾ ਹੀ ਮੀਂਹ ਪੈਂਦਾ ਹੈ, ਜਿੰਨਾ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਬਾਕ ਹਿੱਸਿਆਂ ਵਿੱਚ ਸਿਰਫ਼ ਇੱਕ ਦਿਨ ਵਿੱਚ ਹੀ ਪੈ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਸੂਰਜ ਵੀ ਇੱਥੇ ਸਭ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਚਮਕਦਾ ਹੈ। ਗਰਮੀ ਦੀ ਰੁੱਤ ਵਿੱਚ ਲਗਦਾ ਹੈ ਕਿ ਗ
ਸੈਂਕੜੇ ਹਜ਼ਾਰ ਨਾਂ
Posted on 19 Jan, 2016 01:21 PMਰੱਖ-ਰਖਾਅ ਦੇ ਚੰਗੇ ਦੌਰ ਵਿੱਚ ਵੀ ਕਦੀ-ਕਦੀ ਤਾਲਾਬ ਸਮਾਜ ਲਈ ਗ਼ੈਰ-ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਸੀ। ਅਜਿਹੇ ਤਾਲਾਬਾਂ ਨੂ
ਸਾਫ਼ ਮੱਥੇ ਦਾ ਸਮਾਜ
Posted on 19 Jan, 2016 12:09 PMਪੁਰਾਣੇ ਤਾਲਾਬ ਸਾਫ਼ ਨਹੀਂ ਕਰਵਾਏ ਗਏ ਅਤੇ ਨਵੇਂ ਤਾਂ ਕਦੇ ਬਣੇ ਹੀ ਨਹੀਂ। ਗਾਰਾ ਤਾਲਾਬਾਂ ਵਿੱਚ ਨਹੀਂ, ਸਗੋਂ