अमर उजाला

अमर उजाला
पांवधोई से मिली सहारनपुर को नई पहचान
Posted on 20 Sep, 2010 11:41 AM
सहारनपुर। यह खबर ३५ लाख सहारनपुरियों का सीना गर्व से चौड़ा कर देगी। चार महीनों तक दिन रात चले पांवधोई बचाओ के अनूठे अभियान से सहारनपुर प्रदेश भर के लिए अनुकरणीय बन गया है। शासन तक ने माना है कि दम तोड़ती नदी को नया जीवन देकर सहारनपुर ने शानदार मिसाल कायम की है। नगर विकास के प्रमुख सचिव ने तो २४ जिलों के डीएम को लिख भी दिया है कि वे अपने अपने यहां मिशन पांवधोई जैसा अभियान शुरु कराएं।
सहारनपुर की टेम्स
Posted on 20 Sep, 2010 10:12 AM

माना जाता है कि देश की राजधानी दिल्ली में समाज का जागरूक तबका रहता है। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने जब पहली बार दिल्ली की कमान संभाली थी, तो कहा था कि हम यमुना को टेम्स बना देंगे। मगर अपने तीसरे कार्यकाल में वे यमुना को टेम्स तो क्या, रजवाहे तक में परिणित नहीं करा सकीं। ऐसे में सहारनपुर की पांवधोई नदी दिल्ली ही नहीं पूरे देशवासियों केलिए नसीहत बनकर कल-कल बह रही है। डीएम आलोक कुमार की पहल पर म
क्यों फटते हैं बादल
Posted on 16 Aug, 2010 10:05 PM

लेह में हुई त्रासदी बादल फटने की कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले उत्तराखंड और हिमाचल में भी कई बार ऐसी घटना हो चुकी है। बादल आखिर फटते क्यों हैं?
ग्रीनपीस और पर्यावरण
Posted on 30 Jul, 2010 07:41 AM

ग्रीनपीस की सह संस्थापक डोरोथी स्टोव के निधन से पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रही इस संस्था का एक मजबूत स्तंभ ढह गया है। यह उन्हीं की पहल का नतीजा है कि आज यह संस्था अपने लगभग २० लाख ८० हजार सदस्यों के साथ दुनिया के ४० मुल्कों में पृथ्वी को बचाने के लिए प्रयासरत है।
सर्दी में गहराया सूखे का संकट
Posted on 14 Feb, 2010 09:55 PM

उधमपुर। गरज बरस प्यासी धरती पर फिर पानी दे मौला, जगजीत सिंह के स्वर से एक गजल के रूप में निकली इस फरियाद को पहाड़ी इलाके शिद्दत से महसूस कर रहे हैं। सर्दी के सीजन में सूखे का ऐसा संकट इससे पहले नहीं देखा गया। स्वच्छ पानी तो दूर अब बहती नदी और उससे निकलने वाले नालों से भी पानी मयस्सर नहीं हो रहा। देहाती अंचलों का जीवन सींचने वाले तालाब सूख गए हैं। बारह मास तक पानी देने वाली बावलियां अकाल सा एहसास दे रही हैं। ऐसे में सरकारी एजेंसियों से सप्लाई होने वाला पानी भी लुप्तप्राय हो चला है। हालात यहां तक हो गए हैं कि पहाड़ी इलाकों में प्यास के मारे मवेशियों की मौतें शुरू हो गई हैं। शहरी और कस्बाई इलाकों में भी पानी का संकट अपना एहसास करवा रहा है।

कुदरत बचाओ, कैरियर बनाओ
Posted on 14 Feb, 2010 09:51 PM
पर्यावरण सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन को लेकर जागरूकता बढ़ रही है। कुदरत को बचाने की इस मुहिम के परिणामस्वरूप ग्रीन जॉब्स का एक बड़ा मार्केट खड़ा हो रहा है, जहां पे-पैकेज भी अच्छा है। क्या हैं ग्रीन जॉब्स और कैसे पा सकते हैं आप यहां एंट्री, बता रही हैं, शाश्वती।

एक जमाना था जब छात्रों की प्राथमिकता की सूची में सबसे अंत में आता था पर्यावरण विज्ञान यानी इनवायर्नमेंटल साइंस। लेकिन अब इस सूची में यह ऊपर की ओर कदम बढ़ा रहा है। जलवायु परिवर्तन और उससे होने वाले खतरों के विषय में लगातार बढ़ रही जागरूकता और पार्यावरण को बचाने के लिए विश्व के विभिन्न हिस्सों में चल रहे आंदोलनों के कारण अब छात्रों के बीच विषय के रूप में पर्यावरण विज्ञान
राप्ती की सफाई को निकले अफसर और जनप्रतिनिधि
Posted on 19 Jan, 2010 08:09 AM

गोरखपुर। शासन के निर्देश पर राप्ती नदी की सफाई के लिए नगर निगम के अफसर और पार्षदों ने जन जागरूकता रैली निकाल कर नदी की सफाई की। नगर आयुक्त वीके दुबे ने आम लोगों से अनुरोध किया कि नदी को साफ रखने में वे नगर निगम का सहयोग करें। एनसीसी कैडेट्स ने नदी की सफाई भी की।

Rapti river
विकास का हिंद स्वराज मॉडल ही हमें बचाएगा
Posted on 09 Jan, 2010 10:38 AM जलवायु परिवर्तन पर कोपेनहेगन शिखर सम्मेलन शुरू होने के पहले ग्लोबल वार्मिंग से जुड़े सवाल पर एक नोबेल पुरस्कार सम्मानित अर्थशास्त्री ने कहा था कि आज अगर महात्मा गांधी जीवित होते, तो उनके पास भी इस संकट से निपटने का कोई नुस्खा न होता। लेकिन मेरी दृष्टि में उनका यह कहना ज्यादा सार्थक होता कि गांधी जी ने हिंद स्वराज में औद्योगिक सभ्यता के जिन संकटों को लेकर दुनिया को चेताया था, उन पर यदि अमल हुआ होता, तो ग्लोबल वार्मिंग की नौबत नहीं आती।

बहरहाल, एक अंतरराष्ट्रीय एजेंसी पीयू रिसर्च सेंटर ने अपने हालिया सर्वेक्षण में बताया है कि धरती के बढ़ते तापमान को लेकर 67 प्रतिशत भारतीय चिंतित हैं। चीन में यह महज 30 प्रतिशत
समय की मांग हैं जल प्रबंधक
Posted on 03 Feb, 2009 07:01 PM
पर्यावरण प्रदूषण आज एक ग्लोबल समस्या बन चुकी है। भारत भी इसका अपवाद नहीं है। इस क्रम में जल प्रदूषण को लेकर सबसे ज्यादा चिंता जताई जा रही है। आने वाले समय जहां स्वच्छ पेय जल की कमी को लेकर विश्वयुद्ध की संभावना जताई जा रही है, तो दूसरी ओर जो जल हमारे पास उपलब्ध है, उसे प्रदूषित किया जा रहा है। इस प्रदूषण से नदियों, कुंओं और तालाबों के जल के साथ ही भूमिगत जल स्त्रोत भी विषाक्त हो रहे हैं। ऐसे में ज
धरती के लिए आकाश को बचाएं
Posted on 03 Feb, 2009 09:41 AM

देवेंद्र मेवाड़ी

×