अमर उजाला
अमर उजाला फ़ाउंडेशन : राष्ट्रीय पत्रकारिता फ़ेलोशिप
Posted on 02 Jul, 2015 09:43 AMकिसी दैनिक अखबार का फाउंडेशन होने के नाते किया गया यह एक बेहतरीन काम है। अखबारों को रोजमर्रा की खबरों से ऊपर उठकर कभी-कभी किसी समस्या की गहराई तक जाते हुए ऐसे अध्ययन करने चाहिए। अमर उजाला फ़ाउंडेशन ने अपने से जुड़े व न जुड़े कुछ पत्रकारों को ऐसी जिम्मेदारी सौंपकर अच्छा काम किया। मुझे इस बात की भी प्रसन्नता है कि जिन अध्ययनकर्ताओं को यह जिम्मेदारी दी गई, उन्होंने क्षेत्र में जाकर, अनुभवी लोगों से बात करते हुए, तथ्यों के आधार पर अध्ययन को पूरा किया। अमर उजाला फ़ाउंडेशन हमेशा से सामाजिक मूल्यों से जुड़ी पत्रकारिता के लिये जाना-माना जाता रहा है। प्रतिष्ठान द्वारा गठित अमर उजाला फ़ाउंडेशन ने धुन के पक्के और दृष्टिवान, हिन्दी के युवा पत्रकारों को अपने सरोकारों और पेशेगत कुशलता को तराशने में मदद करने के उद्देश्य से एक मीडिया फेलोशिप कार्यक्रम शुरू करने का फैसला किया है। भारत के किसी भी मीडिया संस्थान में कार्यरत पत्रकार इसके लिये आवेदन कर सकते हैं।फ़ाउंडेशन का मानना है कि पत्रकारिता से जुड़े संवेदनशील और प्रतिभाशाली युवाओं को करियर के शुरुआती दौर में लीक से हटकर काम करने का मौका मिलना चाहिए, ताकि उनमें देश और समाज को गहराई से प्रभावित वाले मुद्दों पर सुलझे नज़रिए से काम करने का उत्साह कम न हो।
पांच संस्कृतियों का हो साथ तो गोमा रहेगी खास
Posted on 22 Mar, 2014 08:55 AMनए शोध का नतीजा, 750 नहीं 950 किमी. लंबी है गोमती नदी, खतरनाक स्तर तक प्रदूषण की चपेट मेंयमुना में गंदगी को लेकर सुप्रीम कोर्ट सख्त
Posted on 28 Feb, 2012 12:19 PMसुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा सरकार से यमुना नदी के जल की स्वच्छता और उसे प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए अब तक खर्च हुई रकम का ब्यौरा तलब किया है। शीर्ष अदालत ने तीनों प्रदेश सरकारों से यह भी पूछा है कि लंबे अरसे के बाद भी अभी तक सीवर ट्रीटमेंट प्लांट क्यों नहीं बनाए जा सके हैं।फीकी हो रही चमक
Posted on 31 Mar, 2011 08:49 AMब्लैक कार्बन श्वेत धवल हिमालय की चमक को भी धुंधला करने में लगा है। डीजल और लकड़ी जलाने से पैदा धुएं से निकला ब्लैक कार्बन हिमालयी ग्लेशियरों पर जमा होकर काले धब्बे बना रहा है। वायुमंडल में बनी ब्लैक कार्बन की परत जलवायु के लिए बड़ा खतरा साबित हो रही है।
चौंकिए मत! जल की रानी को भी होता है दर्द
Posted on 22 Nov, 2010 08:11 AMक्या मछलियों को दर्द भी होता है? क्या वह भी आम इंसानों की भांति दर्द होने पर कराहती और चिल्लाती है....इन उलझनों को सुलझाने का दावा किया है पेन स्टेट ने। प्रोफेसर और पर्यावरणविद पेन स्टेट की किताब ‘डू फिश फील पेन?’ के मुताबिक मछलियों में खास किस्म का स्नायु फाइबर्स होता है जो उकसाने वाली गतिविधियों, उत्तकों के नुकसान और दर्द का अहसास कराता है। चौंकाने वाली बात यह है कि ऐसा ही स्नायु फाइबर्स स्तनपायी जीवों और चिड़ियों में भी पाया जाता है।
स्टेट ने बताया कि 2030 तक इंसान मछलियों की अधिकांश जरूरत फिश फार्म से पूरा करेगा। इसलिए मछलियों के देखभाल और स्वास्थ्य के प्रति जानना बेहद जरूरी है। प्रयोगों से पता चला है कि मछलियां किसी भी प्रतिकूल व्यवहार के प्रति सतर्क रहती है। यदि हम उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं तो वह ही प्रतिक्रिया
सागर मंथन और जीवों की गणना
Posted on 13 Oct, 2010 03:07 PMइनसानों के लिए पहेली रही समुद्री दुनिया अब खंगाल ली गई है। पिछले एक दशक के दौरान उसमें रहने वाले जीवों की न सिर्फ गिनती पूरी की गई है, बल्कि उनकी गतिविधियां भी दर्ज कर ली गई हैं। द अलफ्रेड पी. स्लॉन संस्था के नेतृत्व में हुई इस गणना के दौरान वैज्ञानिकों ने इस बात का भी पता लगा लिया कि मानव जीवन किस तरह समुद्री जीवों पर आश्रित है।
बुंदेलखंड में भूगर्भ जलस्तर 3 मीटर तक खिसका
Posted on 23 Feb, 2010 02:33 PM
पांच स्थानों पर 2 मीटर, 18 स्थलों पर 1 मीटर गहराया, केंद्रीय भूमि जल बोर्ड ने बारिश के बाद की स्थिति बताई, गर्मी में और नीचे जाएगा।
नोबेल पचौरी
Posted on 06 Mar, 2009 08:04 AMमनोज तिवारी
वाराणसी में भारतीय रेलवे के डीजल लोकोमोटिव वर्क्स से प्रबंधकीय कार्य की शुरुआत करने वाले भारत के एक सपूत आरके पचौरी ने नोबल शांति पुरस्कार में भारत को हिस्सेदारी दिलाई है। नैनीताल में जन्मे इस देसी सपूत ने दुनिया के बड़े से बड़े मंच पर हिंदुस्तान का परचम लहराया है। नोबल पुरस्कार में हिस्सेदारी बांटने का यह गौरव पचौरी की अध्यक्षता वाली इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) संस्था को मिला है। पारिस्थितिकी परिवर्तन और उसमें बनने वाली नीतियों में भी पचौरी का अंतर्राष्ट्रीय दखल हमेशा रहा है। इस दखल ने ही देश के इस पर्यावरणविद को पारिस्थितिकी के क्षेत्र में विश्वव्यापी आयाम दिलवाया।
नैनीताल की सुरम्य वादियां श्री पचौरी को हमेशा पर्यावरण सुरक्षा के प्रति उनके दायित्व की याद दिलाती रहीं।