admin
पर्वतीय जल धाराओं का विकास
Posted on 08 Sep, 2008 02:45 PMपर्वतीय क्षेत्रों में प्रवाहरत धाराओं का निम्नलिखित उद्देश्यों हेतु सफल प्रयोग किया जा सकता है –
जलागम प्रबंधन
Posted on 08 Sep, 2008 12:51 PMजलागम एक ऐसा प्राकृतिक विभाजन है जो मेढ़ की तरह है तथा जिससे घिरे क्षेत्र से उत्पन्न होकर बहने वाला जल (अपवाह) एक ही निकास द्वार से होकर बहता है। एक जलागम के मुख्य प्राकृतिक स्रोत हैं भूमि, जल, एवं जैविक सम्पदा जिसमें मानव, पशु-पक्षी तथा वनस्पति शामिल हैं। ये स्रोत इस प्रकार आपस में जुड़े हैं कि एक में किए गये परिवर्तन का असर दूसरे पर भी पड़ता है। ये स्रोत सीमित हैं तथा एक संतुलित तरह से सहअस्त
वर्तमान सुवर्ण जल कार्यक्रम का अभ्यास
Posted on 08 Sep, 2008 10:15 AMआप देख सकते हैं कि इस अद्वितीय प्रारंभिक कार्यक्रम में पब्लिक-प्राइवेट साझेदार कितने बेहतर तरीके से कार्य कर रहे हैं। कर्नाटक के सभी जिलों के 23,000 पाठशालाओं में वर्षाजल संग्रहण! एनजीओ के साथ मिलकर 8 जिलों में किए गए मूलभूत सर्वेक्षण से प्राप्त डाटा। फोटो, आलेख, सर्वेक्षण अनुमान आदि सभी जानकारी एकत्रित करके आनलाइन उपलब्ध कराई गई है।
जल प्रदूषण के कारण और प्रभाव | Water Pollution in Hindi
Posted on 07 Sep, 2008 11:06 PMजल प्रदूषण : कारण, प्रभाव एवं निदान (Water Pollution: Causes, Effects and Solution)
‘जल प्रदूषण’ केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, 2011
खेत के अंदर तालाब
Posted on 07 Sep, 2008 10:37 PMउत्तर प्रदेश में सूखा प्रभावित क्षेत्रों में राहत पहुंचाने के हरसंभव उपाय किए ही जाने चाहिए। इन उपायों के तहत खेतों में तालाबों के निर्माण की तैयारी बेशक सही दिशा में उठाया गया कदम है। इस योजना के संदर्भ में महत्वपूर्ण यह है कि तालाबों का निर्माण राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना के तहत किया जाएगा। स्पष्ट है कि इस योजना से जहां एक ओर निर्धन आबादी को रोजगार का मौका मिलेगा वहीं सूखे की समस्या का दीर्घकपानी के मसले एक ही मंत्रालय के पास हो
Posted on 07 Sep, 2008 09:46 PMहर आम और खास की सबसे बड़ी जरूरत है पानी। बढ़ती आबादी व सीमित पानी को देखते हुए झगड़े भी बढ़ रहे हैं। देश में पानी राज्यों का विषय है और केंद्रीय स्तर पर भी पानी कई मंत्रालयों में बंटा है। इन हालात में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सैफुद्दीन सोज का आए दिन किसी न किसी नए विवाद से सामना होता रहता है। उनका स्पष्ट मानना है कि पानी के लिए तो एक ही मंत्रालय होना चाहिए। 'दैनिक जागरण' के विशेष संवाददात
नाला बंध निर्माण
Posted on 07 Sep, 2008 07:33 PMचिकनी मिट्टी द्वारा निर्मित यह संरचना नाला के ढलान को काटते हुए बनाई जाती है। यह संरचना अपवाह वेग को कम करने, भूमि में जल रिसाव के बढ़ाने तथा नमी को संरक्षित करने के उद्देश्य से बनाई जाती है। यह संरचना मृदा एंव जल संरक्षण के साथ साथ भूजल का स्तर बढ़ाती है एंव रबी की फसल के लिये सिंचाई का जल भी उपलब्ध करवाती है।छत के पानी का एकत्रीकरण (Roof Top Water Harvesting)
Posted on 06 Sep, 2008 11:45 AMवर्षाजल संग्रहण अथवा एकत्रीकरण की इस प्रणाली में घरों की छतों पर पड़ने वाले वर्षा जल को गैलवेनाईज्ड आयरन, एल्यूमिनियम, मिट्टी की टाइलें अथवा कंक्रीट की छत की सहायता से जल एकत्रीकरण के लिये बने टंकियों अथवा भूजल रिचार्ज संरचना से जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार एकत्रित जल का प्रयोग सामान्य घरेलू उपयोग के अलावा भूजल स्तर बढ़ाने में भी किया जाता है।समोच्च खत्तियां (Contour Trenching / basins)
Posted on 06 Sep, 2008 11:23 AMवृक्षारोपण एंव चरागाहों के विकास हेतु नमी सरंक्षण के लिये समोच्च खत्तियां, व्यापक रूप से प्रयोग की जाने वाली विधि है। ढालू भूमि पर समोच्च बिन्दुओं को जोड़ते हुए खत्तियों की पंक्तियों का निर्माण किया जाता है। खत्तियों से निकलने वाली मिट्टी को निचली तरफ मेंड के रूप में लगा दिया जाता है। समोच्च खत्तियां अपवाह वेग को तोड़ती है तथा अपवाह के सम्पूर्ण या कुछ भाग का भवानस्पतिक समोच्च अवरोध (Vegetative contour barriers)
Posted on 05 Sep, 2008 10:28 PMशुष्क क्षेत्रों में वर्षाजल से ही पैदा हो जाने वाली घासें मिट्टी और पानी के संरक्षण का कार्य करती हैं, निरंतर रहने वाली ये घासें और झाड़ियां मृदा अपरदन के अवरोधक का कार्य करती हैं, सेंट्रल एरिड जोन रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर ड्राइ लैंड एग्रीकल्चर, हैदराबाद द्वारा किये गए शोध द्वारा यह स्पष्ट हुआ है कि वानस्पतिक समोच्च अवरोध तकनीक द्वारा जल अपवाह 97 फीसदी से