admin
सिंधु नदी
Posted on 20 Sep, 2008 08:20 AMमैं सिंधु नदी हूँ, इतनी लम्बी-चौड़ी की लोगों को मेरे समुद्र होने का धोखा हो जाता है। बहुत पुराने काल में जब आर्य लोग इस प्रदेश में आए, तब उन्होंने ही मुझे समुद्र समझकर यह ‘सिंधु’ नाम दिया, और इसी नाम से मैं आज हज़ारों साल से पुकारी जाती रही हूँ। मानसरोवर के उत्तर में तिब्बती हिमालय से मेरा निकास है। ज़ोरकुल झील से-जहाँ से पूर्व में ब्रह्मपुत्र, उत्तर में यारकन्द (सीता) और पश्चिम में आमू नदी वक्
क्या मैदानी क्या रेतीली- सभी जगह पानी की कमी
Posted on 20 Sep, 2008 07:42 AMतलहटी में भी पेयजल की समस्या / भरावन (हरदोई)। ऐसा नहीं है कि पेयजल की समस्या केवल मैदानी क्षेत्र भरावन में ही बनी हुई है। तपती धूप और निरंतर नीचे गिरता सतर गोमती नदी तलहटी में बसें गांवों भटपुर, कटका, महीठा के डालखेड़ा, लालपुर खाले, जाजपुर, बेहड़ा, नई गढ़ी इत्यादि गांवों में भी पेयजल की समस्या से लोग जुझ रहे है। गोमती नदी के किनारे बसे भटपुर गांव व सड़क के चौराहे पर भी पेयजल की गम्भीर स
क्षमा करें, देवी यमुने
Posted on 19 Sep, 2008 08:37 PMउस दिन भी यमुना से गुजरा। पुल से ही यमुना पर नजर डाली और हल्की उदासी से घिर गया। दिल्ली में यमुना पार ही रहता हूं। रोज यमुना से ही गुजरता हूं। वहां से गुजरते हुए अक्सर सोचता हूं कि क्या यमुना को हम जीते हैं, यमुना तो बस शहर से गुजरती है। लेकिन हमें कहां एहसास होता है कि एक महान नदी हमारे बीच बहती है, यमुना से हम बस आर-पार ही होते हैं। कितनी अजीब बात है कि इस महानगर को --- फीसदी पानी देने वाली न
यमुना तो फिर भी मैली
Posted on 19 Sep, 2008 07:44 PMपांच दिन के सफाई अभियान में नदी से करीब 600 टन कचरा निकाला गया मगर यमुना जल को वाकई स्वच्छ बनाने के लिए बहुत कुछ करना जरूरी है
नेग में मिली हरियाली
Posted on 19 Sep, 2008 06:37 PMआप मानें या न मानें, उत्तराखंड की लड़कियों ने शादी के लिए आए दूल्हों के जूते चुरा कर उनसे नेग लेने के रिवाज को तिलांजलि दे दी हैं। वे अब दूल्हों के जूतें चुराकर रूढ़ि को आगे नहीं बढ़ातीं। बलकि उनसे अपने मैत (मायके) में पौधे लगवाती हैं। इस नई रस्म ने वन संरक्षण के साथ-साथ सामाजिक समरसता और एकता की एक ऐसी परंपरा को गति दी है जिसकी चर्चा अब उत्तराखंड तक सीमित नहीं रह गई है।भारत की नदियां
Posted on 19 Sep, 2008 06:18 PMभारत की नदियों को चार समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे, हिमाचल से निकलने वाली नदियाँ, डेक्कन से निकलने वाली नदियाँ, तटवर्ती नदियाँ ओर अंतर्देशीय नालों से द्रोणी क्षेत्र की नदियाँ। हिमालय से निकलने वाली नदियाँ बर्फ और ग्लेशियरों के पिघलने से बनी हैं अत: इनमें पूरे वर्ष के दौरान निरन्तर प्रवाह बना रहता है। मॉनसून माह के दौरान हिमालय क्षेत्र में बहुत अधिक वृष्टि होती है और नदियाँ बारिश
नई सोच से दूर होगा जलसंकट
Posted on 19 Sep, 2008 04:36 PMतीन सदी पहले एडम स्मिथ ने गैर-हस्तक्षेपकारी राह के जरिए दुनिया में सबके लिए असीम समृद्धि की सोच जाहिर की थी। इसके तुरंत बाद कुछ अर्थशास्त्री इसके रंग में भंग डालते नजर आए। उनका कहना था कि प्रकृति ने कंजूसी और सजगता से नेमत बख्शी है, संसाधन सीमित हैं। सीमित संसाधानों का मतलब है, लगातार घटता हुआ प्रतिफल। दूसरी ओर आबादी की जरूरतें दिनदूनी-रात चौगुनी बढ़ती रहीं। इसका अवश्यंभावी परिणाम अभाव, अकाल, ब
वर्षाजल संचयन केस स्टडी- थाने
Posted on 19 Sep, 2008 03:50 PM1990-2000 के थाने म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन की एक पर्यावरणीय स्थिति की रिपोर्ट में पता चला कि सभी के सभी भूमिगत जल पीने योग्य नहीं है।पर्यावरण सुरक्षा
Posted on 19 Sep, 2008 02:28 PMसहस्त्राब्दि विकास लक्ष्यों में संभवत: यह सबसे मुश्किल लक्ष्य है क्योंकि यह मुद्दा इतना सरल नहीं है, जितना दिखता है। टिकाऊ पर्यावरण के बारे में जिस अवधारणा के साथ लक्ष्य सुनिश्चित किया गया है, सिर्फ उस अवधारणा के अनुकूल परिस्थितियां ही तय सीमा में तैयार हो जाए, तो उपलब्धि ही मानी जाएगी।