ये महिलाएं सीटी बजाकर लाईं स्वच्छता

उड़ीसा की सेल्फ हेल्प ग्रुप इन महिलाओं ने खुले में शौच की समस्या को बहुत रोचक ढंग से हल किया है। उन्होंने न सिर्फ सड़कों पर गश्त लगाना शुरू किया बल्कि लोगों को खुले में शौच करने से रोकने के लिए तुलसी का पवित्र पौधा लगाया। मिलिए इन विस्मयकारी सीटी बजाने वालों से और जानिए अपने खण्ड को `पूर्ण स्वच्छ’ बनाने की उनकी कहानी को।

आरती बेहरा, अनुसूइया साहू, राजलक्ष्मी सेठी और अम्बू बेहरा व्हिसिल वाहिनी समूह की सदस्य हैं। वे उड़ीसा के गंजम जिले के जगन्नाथ प्रसाद ब्लॉक के विभिन्न गाँवों के अलग-अलग सेल्फ हेल्प समूहों से जुड़ी है। उन्होंने खुले में शौच के खिलाफ एक खुले तौर पर अभियान छेड़ दिया है।

रोजाना सुबह चार बजे से छह बजे तक और फिर शाम चार बजे से आठ बजे के बीच निकलता है 30 महिलाओं का एक जत्था जो मानता है कि उनके आवश्यक और तात्कालिक लक्ष्य के लिए महत्त्वपूर्ण है। शुरू में तीन  के समूह में इन महिलाओं ने ब्लॉक मुख्यालय गाँव को जोड़ने वाली सड़क पर गश्त लगाना शुरू किया ताकि वहाँ कोई खुले में शौच न करे। सीटी लिए हुए यह महिलाएँ अपना काम गम्भीरता से करती हैं और उन लोगों को डांटती हैं जो उनकी बात नहीं सुनते। उनका दूसरा एजेंडा लोगों को अपने घरों में शौचालय बनाने और उनके बेहतर इस्तेमाल के लिए प्रेरित करना है।

लेकिन इस विशिष्ट किस्म के सफाई अभियान के लिए महिलाओं ने अपने को किस तरह एकजुट किया? और कैसे उनके भीतर गश्त लगाने और सीटी बजाने का विचार जगा? आरती बताती हैः-

“खुले में शौच करना हमारे इलाके की एक पुरानी समस्या रही है। ब्लॉक मुख्यालय को जाने वाली मुख्य सड़क जिस पर सरकारी दफ्तर और इलाके का इकलौता कॉलेज स्थित है, जो कि शौच करने वालों के कारण चलने लायक नहीं बचा था। इसलिए हमने यह मुद्दा अपने हाथ में लेने का फैसला किया। हमारे समूह में हर कोई इस बात के प्रति जागरूक है कि स्वच्छ और स्वास्थ्यकर वातावरण का अच्छे स्वास्थ्य के लिए क्या महत्त्व है।”

विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ के आँकड़ों के अनुसार डायरिया से होने वाली करीब 88 प्रतिशत मौतों के लिए असुरक्षित पानी, खराब सफाई और अस्वास्थ्यकर स्थितियों के कारण होती हैं। खुले में शौच और अस्वच्छ स्थितियाँ पोषण, विकास, अर्थव्यवस्था और स्त्रियों की गरिमा व सुरक्षा पर विपरीत प्रभाव डालती हैं।

सन 2011 की जनगणना के अनुसार अगर राष्ट्रीय स्तर पर शौचालय विहीन घरों का औसत 69.3 प्रतिशत है तो ग्रामीण उड़ीसा में यह औसत 85.9 प्रतिशत है। ग्रामीण गंजम के छह लाख घरों में 80.9 प्रतिशत अभी भी खुले में शौच करते हैं जबकि जगन्नाथ प्रसाद ब्लॉक में महज 15 प्रतिशत घरों में शौचालय है। बाकी लोग ब्लॉक को गाँव से जोड़ने वाली तकरीबन डेढ़ किलोमीटर लम्बी सड़क का सहारा लेते हैं। इसी सड़क पर राजस्व कार्यालय, पंचायत कार्यालय, प्राइमरी स्कूल, गर्ल्स हाई स्कूल, कालेज, इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट सर्विस ऑफिस, ग्रामीण विकास कार्यालय, लघु सिंचाई कार्यालय और एक पेट्रोल पम्प स्थित है। इस वजह से इस सड़क पर रोजाना एक हजार से 500-600 लोग आते जाते हैं।

“लेकिन खुले में शौच के कारण सड़क की स्थिति इतनी पुरानी है कि नाक पर रुमाल रखे बिना कोई इस सड़क से गुजर ही नहीं सकता। मानसून के समय तो यहाँ बहुत ही बुरी स्थिति हो जाती है। इसलिए इस साल के शुरू में ब्लॉक डेवलपमेंट आफिसर (बीडीओ) ने ब्लाक संचयिका संघ (बीएमएएसएस) से कहा कि वे समस्या का स्थायी समाधान ढूँढें। हालांकि हम स्वास्थ्यकर और स्वच्छ स्थितियों के बारे में एक जागरूकता अभियान चला रहे थे लेकिन उससे रवैये में कोई बदलाव नहीं हुआ। इसलिए हमने सेल्फ हेल्प समूह की महिलाओं को इस अहम कार्य से जोड़ने का फैसला किया।” यह बात बताते हैं ब्लॉक के सेल्फ हेल्प समूह  के एक संघ बीएमएएसएस के प्रोजेक्ट आफीसर दशरथी त्रिपाठी।

सन 1998 में ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने और उनकी वित्तीय और सामाजिक स्थितियां सुधारने के प्रयास के तौर पर गंजम जिला प्रशासन ने महिला संचयिका संघ (मास) के झंडे तले एक ब्लाक स्तरीय संगठन बनाने का फैसला किया।

त्रिपाठी बताते हैं, ``हर जगह की तरह सम्पूर्ण सफाई हमारे ब्लाक में भी एक आवश्यकता है। पिछले कुछ सालों में हमने पाया कि तमाम ग्रामीण डायरिया और मलेरिया जैसी मौसमी बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं। हमारे स्वयं समूह की महिलाएं और अन्य लोग अपना अस्पताल का बिल भरने के लिए लगातार कर्ज ले रहे हैं। जितना धन वे इलाज पर खर्च कर रहे हैं उतने में एक शौचालय बनवा सकते हैं, एक मच्छरदानी खरीद सकते हैं और पीने के साफ पानी का इंतजाम कर सकते हैं। इसलिए हमने एक आंदोलन चलाने का फैसला किया । इसी के हिस्से के तौर पर हमने एसएचजी की सदस्यों में से समर्पित स्वयं सेवक के तौर पर एक `व्हिसिल वाहिनी’ समूह तैयार किया।’’

जगन्नाथ प्रसाद ब्लाक में 1,250 स्वयं सेवी समूह हैं जिनके 16000 सदस्य हैं। इस बड़े समूह में से एसएचजी समूह से महिलाओं को इस कार्य समूह के हिस्से के तौर पर चुना गया।

व्हिसिल वाहिनी की एक अन्य सदस्य सस्मिता सेठी बताती हैं ``अपने प्रयासों के पहले पांच दिन तक तो हमें लगा कि लोगों को खुले में शौच से रोकना इतना आसान काम नहीं है। सीटी बजाने के अलावा हमने घर-घर जाकर पानी के प्रदूषण और शौचालय प्रयोग के फायदे के बारे में जागरूकता अभियान चलाने का फैसला किया। लेकिन जब उन्होंने हमारी बात तब भी नहीं सुनी तो हमने सड़क के दोनों किनारों पर तुलसी का पौधा लगाने का फैसला किया। हमने तकरीबन 1000 तुलसी के पौधे यह सोच कर लगाए कि लोग तुलसी के पौधे को पूजते हैं इसलिए उसके करीब शौच करने नहीं जाएंगे।’’

हमें इस कदम का अपेक्षित परिणाम प्राप्त हुआ। सितंबर 2014 में शुरू हुए इस आंदोलन के एक माह के भीतर ही मुख्य सड़क पर शौच करने आने वालों की संख्या में तेजी से कमी आई। लेकिन इससे एक गंभीर मुद्दा यह उठा कि अगर वे मुख्य मार्ग पर शौच करने नहीं जा सकते और उनक घरों में शौचालय नहीं है तो वे आखिर नित्यकर्म के लिए कहां जाएंगे? इस समस्या को दूर करने के लिए महिलाओं ने दूर के कुछ खेतों को चिह्नित किया है जहां पर लोग नित्यकर्म के लिए जा सकते हैं। उसी के साथ शौचालय बनाने के आवेदनों को बढ़ाने का काम युद्ध स्तर पर लिया गया।

त्रिपाठी बताते हैं,`` हमने इस मसले पर बीडीओ से चर्चा की और निर्मल भारत अभियान (एनबीए) के तहत गांव वालों की तरफ से व्यक्तिगत शौचालय बनाने के लिए आवेदन दाखिल किए। एनबीए के तहत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति, सीमांत और लघु किसान की श्रेणी में आने वालों को अतिरिक्त फायदा मिलेगा और दूसरे लोगों को सबसिडी मिलेगी या उन्हें शौचालय बनाने के लिए स्थानीय एसएचजी समूहों से कर्ज भी मिल जाएगा।’’  

वास्तव में व्हिसिल वाहिनी अभी तक अपना अभियान बन्द नहीं किया है। वास्तव में रात की कठिन ड्यूटी को अन्जाम देने के लिए उन्होंने स्थानीय पुलिस से अनुरोध किया कि उनके साथ कुछ सिपाही भी तैनात कर दें। ``हम अल सुबह और देर रात को गश्त लगाते हैं लेकिन ऐसे कुछ गाँव वाले हैं जो अभी भी वहीं जाने की कोशिश करते हैं। यहीं पर पुलिस को साथ लेने का सन्देश गया है।’’ कहती हैं व्हिसिल वाहिनी अनुसूइया साहू जो इस बात से खुश हैं कि उनके ब्लॉक की सड़क अब खुले में शौच से पूरी तरह मुक्त है।

हालांकि सेल्फ हेल्प समूह अपनी सामूहिक शक्ति के बूते पर आर्थिक समृद्धि बढ़ाने और शिक्षा व आजीविका के सन्दर्भ में अपनी सामाजिक प्राप्तियों को बढ़ाने के लिए जाने जाते हैं लेकिन बेहतर स्वच्छता के लिए उनकी एकजुटता से सकारात्मक परिणाम मिले हैं। व्हसिल वाहिनी समूह की एक मुखर सदस्य रंजू शेट्टी कहती हैं, ``हमने इलाके में एक नजीर कायम की है। पड़ोस के ब्लाक की महिलाएं इस मुद्दे पर अपने गांव में भी  जागरूकता फैलाने के लिए हमसे अनुरोध कर रही हैं। हम सभी जानती हैं कि अच्छे स्वास्थ्य सफाई और महिलाओं की सुरक्षा के लिए खुले में शौच से हम सभी को बचना चाहिए लेकिन यह हमारा नकारात्मक रवैया है जो कि हमें सही काम करने और घरों में शौचालय बनाने से रोक रहा है। फिर भी व्हिसल वाहिनी ने उन लोगों में वास्तव में बदलाव लाने में कामयाबी हासिल की है जो कि नए विचारों को स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। इस प्रगतिशील महिला समूह का हिस्सा होने में हमें गर्व है।’’

साभार : बेटर इण्डिया वेबसाइट

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