जनक सिंह, प्रमोद मक्कड़
इस अवसर पर मंचस्थ व्यक्ति थे-मुख्य अतिथि तथा भारत सरकार के पेय जल और स्वच्छता- मंत्रालय के माननीय सचिव श्री पंकज जैन, बिहार-सरकार के पूर्व-मुख्य सचिव एवं सुलभ के मुख्य संरक्षक, आई.ए.एस. (से.नि.) श्री अरूण पाठक, सुलभ संस्थापक डॉ. बिन्देश्वर पाठक और सुलभ महिला एवं बाल कल्याण संस्थान की अध्यक्ष श्रीमती अमोला पाठक, श्रीमती प्रियंका भारती (महाराजगंज), श्रीमती प्रियंका राय (कुशीनगर), श्रीमती शकुंतला शर्मा (हिरमथला गाँव, मेवात, हरियाणा)।
एक तरफ श्रीमती इन्दिरा गाँधी का आदमकद चित्र और उसके साथ में उनके उस पत्र की प्रतिलिपि, जिसमें उन्होंने 1973 ईस्वी में बिहार में स्वच्छता कार्यक्रम को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए लिखे पत्र के बारे में श्री भागदेव सिंह ‘योगी’ नामक एक विधायक को बताया गया था। फूलों से सजा हुआ मंच। बैंक ड्रॉप पर लिखा था, ‘खुले में शौच मत करें। शत प्रतिशत स्वच्छता की स्थिति बनाएँ, स्वच्छता हमारा धर्म है।’ सवा अरब से अधिक आबादी वाले भारतवर्ष में लगभग 63 करोड़, 80 लाख लोग खुले में शौच करते हैं। यह वाक्य मंच के शीर्ष पर अंकित था और यह इस तथ्य को बता रहा था कि दुनिया के 2 अरब 60 करोड़ लोगों को शौचालय-सम्बन्धी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है और वे खुले में शौच कर रहे हैं। उस रूप में वे बड़े पैमाने पर पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे हैं।
कार्यक्रम प्रातः 9.30 बजे पोस्टर बनाने की प्रतियोगिता की घोषणा के साथ शुरू हुआ। यह प्रतियोगिता उन बच्चों के लिए थी, जिनका नाम सुलभ सैनिटेशन क्लब में सूचीबद्ध है। बच्चों ने उत्साहपूर्वक उसमें भाग लिया। स्वच्छता पर आधारित चित्र-प्रदर्शनी एक तरफ देखी जा सकती थी। उन तस्वीरों में स्वच्छता के क्षेत्र में सुलभ संस्थापक डॉ. बिन्देश्वर पाठक-द्वारा किए गए अथक प्रयासों की झलकियाँ थीं।
इस अवसर पर सुलभ सैनिटेशन क्लब के बच्चों ने एक मानव-श्रृंखला बनाई, जिसका उद्देश्य था- लिखे स्लोगनों द्वारा अपनी आवाज बुलंद करना। मसलन ‘सब के लिए सुलभ शौचालय, पैसे की चिन्ता मत करें- सुलभ शौचालय का निर्माण कराएँ।’
स्वच्छता के क्षेत्र में एक बड़ा नाम ‘सुलभ’ निरन्तर अपनी तरफ से अच्छे-से-अच्छा प्रयास इस बात के लिए करता है कि स्वच्छता का संदेश अधिक-से-अधिक लोगों तक पहुँच सके। इसके लिए वह लगातार नए-से-नए रास्तों की तलाश करता रहता है। इस वर्ष के कार्यक्रम में फिल्म जगत की अभिनेत्री सुश्री विद्या मालवाड़े आकर्षण का केन्द्र थीं। सुश्री मालवाड़े ने प्रसिद्ध अभिनेता शाहरूख खान के साथ फिल्म ‘चक दे इण्डिया’ में अभिनय किया था, जिसमें वह हॉकी-टीम की कप्तान के रूप में भारत के लिए खेलती हैं।
इस कार्यक्रम का संयोजन करते हुए सुश्री विद्या मालवाड़े ने विश्व शौचालय दिवस पर उपस्थित सभी लोगों का अभिनंदन किया। उन्होंने कहा कि श्रीमती इन्दिरा गाँधी ‘स्वच्छता’ के प्रति अत्यंत संवेदनशील थीं। वह चाहती थीं कि भारत के हर घर में शौचालय हो। यही कारण है कि उनके जन्म-दिन को विश्व शौचालय दिवस के रूप में मनाया जाता है।
सिंगापुर में आयोजित वर्ल्ड ट्वॉयलेट ऑर्गनाइजेशन के एक सम्मेलन के दौरान डॉक्टर पाठक के मन में विश्व-शौचालय-दिवस मनाने का विचार आया। उस सम्मेलन में उन्होंने श्रीमती इंदिरा गाँधी, जिन्हें स्वच्छता प्रिय थी और स्वच्छता के क्षेत्र में उनका अप्रतिम योगदान था, उनके जन्म-दिन अर्थात 19 नवंबर को विश्व-शौचालय-दिवस के रूप में मनाने का सुझाव प्रस्तुत किया। उनका यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया। सिंगापुर के राजदूत ने संयुक्त-राष्ट्र के महासचिव को पत्र लिखकर इस दिन को विश्व शौचालय दिवस के रूप में मनाने का आग्रह किया और संयुक्त राष्ट्र ने इसकी स्वीकृति देते हुए 19 नवंबर को विश्व शौचालय दिवस के रूप में घोषित कर दिया। अतः हम इस दिन श्रीमती गाँधी को याद करते हुए विश्व शौचालय दिवस मनाते हैं। आज के ही दिन सुलभ ने भारत में नई स्वच्छता क्रान्ति की शुरूआत करने का भी विचार किया है।
आज के आयोजन का उद्देश्य था विश्व के उन सभी 2 अरब, 60 करोड़ लोगों को यह संदेश देना कि जिनके पास शौचालय नहीं हैं, उन्हें स्वच्छ शौचालय उपलब्ध हो।
इस अवसर पर समागत अतिथियों का स्वागत करते हुए सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. बिन्देश्वर पाठक ने सर्वप्रथम इस आयोजन के मुख्य अतिथि तथा भारत-सरकार के पेयजल और स्वच्छता मन्त्रालय के माननीय सचिव श्री पंकज जैन के प्रति आभार प्रकट किया। तत्पश्चात् उन्होंने मंच पर विराजमान् अन्य गण्यमान्य व्यक्तियों का भी स्वागत किया।
अपने भाषण में डॉक्टर पाठक ने कहा, ‘जब मैंने शौचालय के लिए कार्य करना शुरू किया तो परिवार के सदस्यों के अलावा अनेक लोगों ने मुझसे पूछा कि जब काम के बहुत से विकल्प मौजूद हैं तो शौचालय के लिए कार्य क्यों कर रहे है, लेकिन मैंने उनपर ध्यान न देते हुए अपना कार्य जारी रखा। उसका परिणाम है कि आज हर कोई शौचालय और स्वच्छता की बात कर रहा है। कारण यह है कि बीमारियों को रोकने, स्वच्छता और एक शिष्ट दुनिया के लिए शौचालय आवश्यक है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘सुलभ एक ऐसा संगठन है, जहाँ समस्याओं के बारे में नहीं, समाधानों के बारे में बात की जाती है। आप समाज में जो परिवर्तन लाना चाहते हैं, वह परिवर्तन सबसे पहले स्वयं में लाएँ, समाज अपने-आप बदल जाएगा।’
डॉक्टर पाठक ने आगे कहा ‘हम सभी अच्छे लोग हैं, लेकिन हमने स्वच्छता की संस्कृति को अंगीकार नहीं किया है। जब-तक हम उस संस्कृति को स्वीकार नहीं करेंगे तब-तक एक नए समाज का निर्माण नहीं कर सकते। हर कोई जानता है कि सुलभ ने सरकार या किसी अन्य एजेंसी से अपने विस्तार के लिए कोई धन नहीं लिया है, लेकिन अभी करने को बहुत कार्य बाकी है। हमें अधिक-से-अधिक शौचालयों का निर्माण करना है, जिसके लिए धन की जरूरत है। सरकार उसके निर्माण के लिए लोगों को कर्ज दे रही है। लेकिन मेरा विचार है कि निजी उद्यमियों को भी इस कार्य में आगे आना चाहिए। हम सुलभ के लोग अरबपतियों के पास धन के लिए जाएँगे। न केवल भारत, बल्कि दूसरे देशों में भी। गाँधी जी ने स्वच्छ भारत का सपना देखा था। उन्होंने कहा था ‘मैं स्वच्छ भारत पहले चाहता हूँ, स्वतन्त्र भारत के बाद में।’ अपनी सफलता के बारे में उन्होंने कहा कि हमने सदैव सरकार की इच्छा के अनुकूल कार्य किया है। हर एन.जी.ओ. को सरकार का विश्वास में लेकर ही काम करना चाहिए।
श्री पंकज जैन के बारे में डॉक्टर पाठक ने कहा, ‘चार चीजें-धन, ज्ञान, ताकत और शक्ति ऐसी हैं, जो मनुष्य के व्यवहार में अशिष्टता लाती हैं, लेकिन पंकज जैन बहुत सीधे-सादे व्यक्ति हैं।’
शौचालय की प्रतिकृति के बारे में डॉक्टर पाठक ने कहा कि शौचालय का यह सबसे बड़ा डिजाइन बनाने, इसकी प्रस्तुति तथा प्रदर्शन लोगों को हास्यास्पद लग सकता है, लेकिन इसका उद्देश्य शौचालय-समस्या की तरफ समाज का ध्यान खींचना है। यहाँ तक कि जो केक मंच पर रखा गया है, वह भी शौचालय-मॉडल पर ही डिजाइन किया गया है, ताकि हमारे आयोजन का संदेश लोगों तक पहुँच सके।’
डॉक्टर पाठक ने कहा, ज्ञात हो कि हम आज भारत की पूर्व-प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी का जन्म-दिन-समारोह मना रहे हैं। उसे मनाते वक्त हम भारत में एक स्वच्छता-क्रांति की शुरूआत कर रहे हैं, जिसकी बहुत आवश्यकता है। श्रीमती गाँधी स्वच्छता को लेकर चिंतित थीं और उन्होंने कहा था भारत में स्वच्छता न केवल सफाई या निर्मलता है, बल्कि वह उन स्कैंवेजरों के दुःख और अपमान का अंत है, जो सिर पर मैला ढोते हैं। डॉक्टर पाठक ने याद किया कि जब वह बिहार में सुलभ स्वच्छता आन्दोलन को लेकर संघर्ष कर रहे थे तो किस प्रकार श्रीमती गाँधी ने उनकी मदद की थी।
डॉक्टर पाठक ने कहा, ‘आज हम इस विचार के साथ भी सामने आए हैं इस देश में स्वच्छता-क्रांति की शुरूआत करें। जिस तरह एक तरफ महात्मा गाँधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता-क्रान्ति के फलस्वरूप स्वतंत्रता आई, उसी तरह से स्वच्छता की यह क्रांति देश को कीचड़ और गंदगी से मुक्त करेगी।’
डॉक्टर पाठक ने जोर देकर कहा, ‘महात्मा गाँधी की इच्छा थी अछूतों को दासता की बेडि़यों से मुक्त करके उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाना। सन् 1968 में वही बात मेरे लिए जुनून बन गई। मैं तभी से अहर्निश भारत के स्वच्छता परिदृश्य को बदलने के लिए कार्य कर रहा हूँ। खुले में शौच की आदत को खत्म करने के लिए काम करता रहा और अछूतों की मान-मर्यादा को प्रतिष्ठित कर मुख्यधारा में लाना चाहता हूँ।’
डॉक्टर पाठक के स्वागत-वक्तव्य के पश्चात् सभी उपस्थित जन फिक्की-सभागार के बाहर उस स्थल पर पहुँचे, जहां 16 फीट लम्बे और 10 फीट चौड़े आकार की शौचालय की प्रतिकृति रखी गई थी। श्री पंकज जैन ने फीता काटा। इसके अतिरिक्त लोग यह देखकर चकित थे कि 250 किलोग्राम का केक शौचालय के आकार का बनाया गया था। उसे श्री पंकज जैन, डॉक्टर पाठक और श्रीमती अमोला पाठक के संग सुश्री विद्या मालवाड़े ने काटा। इसके अलावा वृंदावन की 97 वर्षीया श्रीमती मानू घोष भी अपनी शुभकामनाएँ देने के लिए उपस्थित थीं।
इस अवसर पर श्री पंकज जैन ने कहा कि स्वच्छता की दैत्याकर समस्या को देखते हुए सबसे पहल यह सर्वे होना चाहिए कि भारत में कितने करोड़ लोग खुले में शौच करते हैं और इस समस्या का क्या निदान हो सकता है। कॉरपोरेट घरानों को देश में स्वच्छता के लिए अनिवार्यतः सामने आना चाहिए। सुलभ संगठन ने इस क्षेत्र में एक मिसाल कायम की है। गैर-सरकारी संगठनों को निश्चित रूप से इसका अनुकरण करना चाहिए। यहाँ तक कि दीवारों के आगे, देश में व्यस्त सड़कों के किनारे खड़े होकर पेशाब करने के लिए सजा का प्रावधान होना चाहिए।
अपने भाषण में शौचालय-समस्या पर ध्यान केंद्रित करते हुए डॉक्टर पाठक ने कहा, बहुत धनी और अरबपति लोग भी शौचालय-समस्या का सामना कर रहे हैं। उन्होंने अभिनेता शाहरूख खान से जुड़ी एक घटना का स्मरण करते हुए बताया कि “एक बार वह ट्रैफिक जाम में फँसे हुए थे और उन्हें शौच जाने की आवश्यकता महसूस हुई।” यह तथ्य जनता की जानकारी में तब आया, जब हाल ही में हर बाजार और सड़क के किनारे शौचालय की जरूरत पर बल दिया जा रहा है।
पूर्व-स्कैवेंजर एवं सुलभ इंटरनेशनल की मानद अध्यक्ष श्रीमती उषा चौमड़ ने अपने भाषण में कहा कि यह पहला अवसर है जब वह एक शौचालय का जन्म-दिवस देख रही हैं। इसके पहले जब कभी वह शौचालय की सफाई करती थी, तब उन्हें सिर और पेट में दर्द हुआ करता था। उन्होंने कहा कि मुझे अक्सर बुखार हो जाता था। इसका कारण यह था कि मैं मानव-मल की सफाई कर रही थी। अब मैं कई देशों की यात्रा कर चुकी हूँ, उनमें से एक देश दक्षिण अफ्रीका भी गई, वहाँ डॉक्टर पाठक हमें टॉलस्टाय फार्म ले गए। वह भी एक गाँधीवादी आश्रम है। वहाँ मैंने महात्मा गाँधी से कहा, ‘बापू, वह समय निकट है, जब आप का स्पप्न सच होनेवाला है।’ उन्होंने आगे कहा कि अपने जीवन में उनका अधिकतर समय रोते हुए बीता है, लेकिन जबसे हम सुलभ से जुड़े हैं, हमारी जिंदगी खुशियों से भरी-पूरी हो गई है।
अन्त में सुलभ के वरिष्ठ संरक्षण श्री अरूण पाठक ने अपने धन्यवाद वक्तव्य में कहा कि सचिन ने क्रिकेट से रिटायर होते हुए कहा था कि किस तरह उनका जीवन 22 गज की पिच तक सिमटा हुआ था। सुलभ ने 43 वर्ष पूरे कर लिए हैं, लेकिन वह अभी भी बालक है। उन्होंने कहा सचिन रिटायर हो गए है, लेकिन सुलभ कभी रिटायर नहीं होगा।
भाषणों के बाद जो सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए, उनका केंन्द्र स्वच्छता की आए दिन की समस्या थी। उनमें नाटक प्रहसन, नृत्य एवं कव्वाली भी थे। सुश्री प्रियंका चेटर्जी ने एक सुंदर नृत्य प्रस्तुत किया। डॉ. शैलेश कुमार-द्वारा गाए गीत को लोगों ने बहुत पसंद किया।
इसी दिन सुलभ के वरिष्ठ कार्यकर्ता श्री वाई. पी. सिंह का जन्म-दिन भी था। अतः उन्हें मंच पर आमंत्रित किया गया और उन्होंने केक काटा। सुलभ के अनेक साहचर्य सदस्यों ने उन्हें शुभकामना और गुलदस्ते दिए। डॉक्टर पाठक ने बिहार का एक क्षेत्रीय गीत गाया और उस गीत पर लोगों ने खूब तालियाँ बजाईं। उसके बाद राष्ट्रगीत-गायन के साथ समारोह की समाप्ति हुई। कार्यक्रम के पश्चात् लोगों ने दोपहर का भोजन ग्रहण किया।
साभार : सुलभ इण्डिया, नवम्बर 2013
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