विकासशील देशों में अपशिष्ट जल का विकेन्द्रीकृत शोधन और समाधान

इंडोनेशिया में सम्मेलन
 

इंडोनेशिया का सुरावाया-स्थित शेरेटन सुरावाया होटल, स्वच्छता से सम्बद्ध विषय पर विमर्श करने के लिए विश्व के विभिन्न भागों से आए लोगों के लिए केन्द्र बन गया था, क्योंकि 23 मार्च से 26 मार्च, 2010 तक यहाँ ‘विकेन्द्रित अपशिष्ट जल-शोधन और समाधान’ विषय पर सम्मेलन आयोजित था। अन्तरराष्ट्रीय जल-संघ, आइवा एवं ब्रेमेन विदेश-अनुसंधान और विकास-संघ (बोर्डा) और साथ के अन्य सहयोगी संगठनों-आर्थिक सहयोग और विकास का जर्मन संघ-मन्त्रालय, ब्रेमर का स्वतन्त्र हैन्सियाटिक नगर, जल एवं स्वच्छता-कार्यक्रम (डब्ल्यू.एस.पी.),एशियन विकास बैंक (ए.डी.बी.) और कुछ सहभागी संगठनों ने इस सम्मेलन का आयोजन किया था। इसका उद्देश्य दूषित जल-शोधन और स्वच्छता के शिर्ष विशेषज्ञों, सरकारों, उपभोगी निकायों एवं अन्तरराष्ट्रीय एजेंसियों को एक मंच पर लाकर अनुभवों तथा विशेष ज्ञान का आदान-प्रदान एवं उसपर विस्तृत चर्चा करनी थी। जिन प्रमुख क्षेत्रों पर विचार-विमर्श हुआ, उनमें तकनीकी विकेन्द्रीकृत विकल्प, सामुदायिक स्वच्छता-प्रबंधन-विकल्प-सर्वोत्कृष्ट-प्रयोग, स्वच्छता को बेहतर और एकीकृत करने जैसे विषय शामिल थे। उपयोग, समस्या, अध्ययन और सीखे गए अनुभवों के प्रस्तुतीकरण के साथ वैज्ञानिक विषयों पर भी प्रपत्र पढ़े गए।


इस कार्य के लिए सुरावाया शहर का चयन इसलिए किया गया था, क्योंकि दक्षिण-पूर्वी एशियाई क्षेत्रों से यहाँ पहुँचना आसान था और यह शहर कम खर्चीला भी है। दूसरा पक्ष यह भी रहा कि इससे आइवा सम्मेलन में क्षेत्रीय लोगों के भाग लेने और मूल्यवान संचार-सुविधाओं को प्राप्त करने तथा विभिन्न सत्रों की प्रस्तुतियों की सहूलियत प्राप्त करने में बहुत आसानी हुई।


सम्मेलन में आमन्त्रित सदस्यों द्वारा एक ही प्रकार की प्रस्तुतियाँ रखी गई, जो विकेन्द्रीकृत स्वच्छता के विशेषज्ञ थे और जिन्होंने स्वेच्छा से अपने विचारों के सारांश प्रस्तुत किए।


समारोह का प्रारम्भिक सत्र दिनांक : 23 मार्च,2010 को वहाँ के स्थानीय समयानुसार सायं 7:30 से 9:30 तक हुआ। इंडोनेशिया में अधिकतर सम्मेलनों और गोष्ठियों के आरम्भिक सत्र सायंकाल में ही होते हैं और मुख्य समारोह अगले दिन।


समारोह का शुभारम्भ श्री पाल राइटर, कार्यकारी निदेशक, आइवा के स्वागत-भाषण से हुआ। अपने भाषण में उन्होंने कहा कि निम्न आय वाले देशों में अपशिष्ट जल-शोधन के केन्द्रीयकृत प्रयोग घरेलू मल-विसर्जन और अपशिष्ट जल-निपटान को पूरी तरह निष्पादित करने में सफल नहीं हो पाए हैं। अत: यह आश्चर्यजनक नहीं है कि भलीभाँति प्रचलित और सस्ती अपशिष्ट जल-शोधन-प्रणाली की माँग अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती जा रही है, विशेषकर उन क्षेत्रों में, जहाँ अपशिष्ट जल-शोधन-प्रणाली अस्तित्व में नहीं है और अनियन्त्रित दूषित जल का निष्कासन पर्यावरण-स्वास्थ्य और जल स्रोतों को प्रदूषित कर रहा है।


श्री राइटर ने कहा की ‘इस सम्मेलन का केन्द्र बिन्दु मात्र विकेन्द्रीकृत प्रणाली के लिए तकनीकी एवं अभियान्त्रिकी अवयवों पर नहीं है, बल्कि सामाजिक, संस्थागत और वित्तीय तथ्यों पर भी है और यह सामयिक है तथा इसकी अधिक माँग है। इस अवसर पर डॉ. एस प्रीयतना, आधारभूत संरचना उप-मन्त्री, बापेनास ने अपने आरम्भिक भाषण में विकासशील देशों में विकेन्द्रीकृत अपशिष्ट जल-शोधन और समाधान पर जोर दिया। इस विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित श्री आई.आर.बुडी यूवोनो, महानिदेशक, मानवीय पुनर्वास एवं लोक-निर्माण ने भी अपना वक्तव्य दिया।


श्री ऐन्डियास उलरिच, निदेशक, बोर्डा ने ‘कार्यान्वयन के मार्ग-दर्शन के मापदण्ड: मुख्यधारा की विकेन्द्रीकृत स्वच्छता के मार्ग में चुनौतियाँ’ विषय पर अपने मुख्य भाषण में कहा की इस गहराती सम्भावना के बावजूद जल की स्वच्छता के सहस्राब्दी-विकास-लक्ष्य पूरे नहीं हो पाएँगे। शहरी क्षेत्रों में स्वच्छता-मूल-संरचना, विशेष रूप से केन्द्रीयकृत मल-निस्तारण-प्रणाली एवं अपशिष्ट जल-शोधन-संयंत्र तथा गरीब, शहरी एवं ग्रामीण इलाकों में तत्स्थानीय स्वच्छता-प्रणाली पर बड़े स्तर पर पूँजी निवेश किया गया है, जबकि महँगी लागत और सेवा उपलब्ध कराने की धीमी गति से इसके अपेक्षित प्रभाव पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।



श्री उलरिच ने कहा कि सामुदायिक कार्यक्रम-द्वारा स्वच्छता-अभियान के अंतर्गत इंडोनेशिया के बहु-उद्देशीय स्वतन्त्र-सेवा-प्रदाताओं, राष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं, नगरपालिका-कार्यकर्ताओं और सामुदायिक प्रतिनिधियों ने सफलतापूर्वक यह दिखाया है कि केन्द्रीकृत और तत्स्थानीय निपटान-सेवा के अलावा विकेन्द्रीकृत निपटान और स्वच्छता-सेवाएँ तीसरा विकल्प हो सकती हैं।


प्रोफेसर क्रिस बकले, क्वाजुलू नेटाल विश्वविद्यालय, डरबन, दक्षिणी अफ्रीका एवं श्री अलमुद बीत्ज, क्षेत्रीय दल-निदेशक, डब्ल्यू.एस.पी.ई.ए.पी.-द्वारा भी भाषण दिए गए। उनके भाषण का मुख्य विषय था- ‘डेवाट्स’ (डी.ई.डब्ल्यू.ए.टी.एस.) : राष्ट्रीय शहरी स्वच्छता-रणनीति का एक महत्वपूर्ण अंग। इसके बाद सम्मेलन के प्रथम दिन की कार्यवाही समाप्त हुई।


सम्मेलन का दूसरा दिन दो भागों में विभाजित था- एक तकनीकी पक्ष और दूसरा प्रबन्धन। इन दोनों भागों में सुलभ का प्रतिनिधित्व संस्था की वरीय उपाध्यक्ष श्रीमती अनीता झा एवं तकनीकी परामर्शी डॉ. पी.के.झा ने किया। डॉ. झा ने अपना भाषण ‘प्रभावी विकेन्द्रीकृत अपशिष्ट जल-शोधन-प्रणाली के लिए उपलब्ध तकनीकी-विकल्पों’ पर दिया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि केन्द्रीकृत अपशिष्ट-जल शोधन-प्रणाली के लिए उच्च संचालन और लागत अपेक्षित है। इसके लिए अत्यधिक अनुभवी तकनीकी-विशेषज्ञों की भी आवश्यकता है, जो इस प्रणाली को कार्यान्वित और प्रचलित कर सकें। अत्यधिक उच्च विद्युत-शक्ति की आवश्यकता के कारण यह प्रणाली उन स्थानों पर कार्य नहीं कर सकती, जहाँ यह सुविधा उपलब्ध नहीं है। मल या अपशिष्ट जल का निस्तारण या पुन: प्रयोग कई भारी तत्वों एवं अन्य विषाक्त यौगिकों के कारण एक बड़ी समस्या है। वे सभी विषैले तत्व मिलकर भूमि एवं कृषि-उत्पादों पर भी हानिकारक प्रभाव डालते हैं। यह प्रणाली पर्यावरणीय दृष्टि से विकसित देशों के लिए भी अस्वीकार्य है। डॉ झा ने सुलभ के विकेन्द्रीकृत अपशिष्ट शोधन-प्रणाली को विस्तार से समझाते हुए कहा कि सुलभ इंटरनेशनल ने बोर्डा के साथ सन 1994 में इसपर एक अनुसंधान एवं प्रदर्शन-परियोजना शुरू की थी। इस परियोजना के अंतर्गत सुलभ ने विभिन्न डिजाइनों में छह संयंत्रों को घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट जल-शोधन के लिए कार्यान्वित किया। इससे प्राप्त अनुभवों के आधार पर सुलभ ने 1998 में डेवाट्स (डी.ई.डब्ल्यू.टी.एस.) पर बोर्डा की एक प्रायोगिक पुस्तिका प्रकाशित की, जिसमें विभिन्न प्रकार की जल-शोधन-प्रणालियों, उनके प्रचालन और डिजाइन के बारे में विस्तार से बताया गया था।


सुलभ की द्वितीय प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित वरीय उपाध्यक्ष श्रीमती अनीता झा ने भी अपना वक्तव्य दिया। उनके भाषण का विषय था- ‘सुलभ की तकनीक-शहरी गरीबों के लिए विकेन्द्रीकृत स्वच्छता-समाधान का उन्नयन : चुनौतियाँ और बेहतर स्वच्छता की कुंजी।’ अपने प्रस्तुतीकरण में उन्होंने कहा कि ‘किसी भी सतत और टिकाऊ स्वच्छता-तकनीक पर विचार करते समय सामाजिक स्वीकृति, आर्थिक व्यवहार्यता एवं पर्यावरणीय हित को ध्यान में रखना होगा। भारत जैसे विकासशील देश में, जहाँ सामाजिक और आर्थिक विभिन्नताएँ हैं, वहाँ व्यवहारिक दृष्टि से समझना अधिक महत्वपूर्ण है।’ उन्होंने ध्यान दिलाया कि स्वच्छता के क्षेत्र में डॉ. बिन्देश्वर पाठक, संस्थापक, सुलभ-स्वच्छता एवं सामाजिक सुधार-आन्दोलन की एक बड़ी उपलब्धि, ‘ट्विन-पिट पोर-फ्लश’ शौचालय की तकनीक है, जो सन 1970 में विकसित की गई।


श्रीमती झा ने कहा कि सुलभ की उक्त तकनीकी की सफलता के मुख्य कारण हैं- सामाजिक रूप से उसकी स्वीकार्यता, तकनीकी उपयुक्तता, कम खर्चीला होना, व्यक्तिगत आवश्यकतानुसार बने डिजाइन, निर्माण के लिए स्थानीय उपलब्ध सामग्री, प्रचालन एवं रख-रखाव के लिए कम लागत, किसी भी स्तर पर मानव-मल के निपटान के लिए हाथ का प्रयोग नहीं, विभिन्न प्रयोजनों के लिए बायोगैस के अलावा सामुदायिक स्तर पर पूर्ण पर्यावरणीय स्वच्छता का प्रावधान, मानव-मल-विसर्जन की सुरक्षित और स्वच्छ-विधि, मल-निस्तारण (फ्लश हेतु) के लिए अन्य शौचालयों से अपेक्षाकृत कम जल की आवश्यकता इत्यादि हैं। इस प्रकार जल की कमी वाले क्षेत्रों में सुलभ-तकनीक को अपनाना तर्कसंगत जान पड़ता है और इसी कारण ‘यूनिसेफ’, ‘विश्व बैंक’, ‘यू.एन.डी.पी’, ‘विश्व-स्वास्थ्य-संगठन’ ‘डब्ल्यू.एस.एस.सी.सी’, ‘यू.एन.सी.एच.हैबिटाट’, ‘डब्ल्यू.ई.डी.सी.’-जैसे अन्तरराष्ट्रीय संगठनों एवं भारत-सरकार और विभिन्न विकासशील देशों ने सुलभ की इस तकनीक को स्वीकृति दी है।


25 मार्च के प्रस्तुतीकरण विकेन्द्रीकृत प्रणालियों पर केन्द्रित थे। सम्मेलन का समापन सभी प्रतिनिधियों के विचार प्रस्तुत करने के बाद संयोजन-सत्र के साथ हुआ। 23 मार्च से 26 मार्च के बीच सम्मेलन में उपस्थित प्रतिनिधिगण तीन विकेन्द्रीकृत अपशिष्ट जल-शोधन-तकनीकी-केन्द्रों, यथा-सानीमास बालोंगसारी, मोजोकरतो और आई.पी.एल.टी मोजोकरतो तथा बाकालन पसुरुआन को देखने गए। इन स्थलों पर सामुदायिक स्वच्छता-विकल्प तथा एनजीओ- संचालित प्रणालियाँ, जिनमें सार्वजनिक शौचालय से नि:सृत अपशिष्ट जल, छोटी सीवरेज-प्रणालियाँ एवं बायोगैस-प्रणाली भी शामिल थीं, लोगों को देखने का अवसर मिला। इसके अतिरिक्त प्रतिनिधियों ने मध्यम आकार के शहरों के मल-संशोधन-संयंत्रों का भी अवलोकन किया। इसके अलावा उन्हें सामुदायिक सुविधा-प्रदाताओं, समुदाय-आधारित-संगठनों, स्थानीय एवं प्रादेशिक सरकारी प्राधिकारियों तथा सुविधाप्रदायी गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के साथ विस्तार से चर्चा करने का भी अवसर मिला।


सम्मेलन में एक प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया था, जो सभी स्वच्छता एवं अपशिष्ट जल-प्रचालकों, संयोजकों और अन्तरराष्ट्रीय सहभागी एजेंसियों के लिए खुला था। इससे सम्मेलन में भाग लेने वालों को अपने-अपने विशेष ज्ञान और उत्पादों का आदान-प्रदान करने, नवीन आविष्कारों का प्रदर्शन एवं नए सहभागी बनाने का स्वर्णिम अवसर प्राप्त हुआ।

 

साभार : सुलभ इण्डिया जून 2010

Path Alias

/articles/vaikaasasaila-daesaon-maen-apasaisata-jala-kaa-vaikaenadaraikarta-saodhana-aura

Post By: iwpsuperadmin
×