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अनिल अश्विनी शर्मा
बदलते मौसम और बढ़ते प्रदूषण को लेकर इन दिनों देशभर में बहस छिड़ी हुई है। पिछले दिनों जारी केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार राजधानी दिल्ली सहित देश के प्रमुख शहरों जैसे जयपुर, भोपाल, इन्दौर, रायपुर, अहमदाबाद, चेन्नई, कोलकाता आदि में वायु प्रदूषण का दायरा तेजी से बढ़ा है। इन मुद्दों पर पर्यावरणविद सुनीता नारायण से राजस्थान पत्रिका संवाददाता अनिल अश्विनी शर्मा ने बातचीत की। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश :-
इन दिनों पर्यावरण को लेकर देशभर में छिड़ी बहस का कारण क्या है?
प्रमुख कारण है बेमौसम बारिश। असामान्य मानसून से किसानों पर तो जैसे कहर टूट पड़ा है। कस्बा, शहर या महानगर का ऐसा कोई कोना नहीं, जहाँ कचरा न फैला हो। यह बहकर नदियों को प्रदूषित कर रहा है। यही नहीं, ठीक से कचरा प्रबंधन नहीं होने से वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। शहरों के लिए यह बड़ी समस्या है।
पर्यावरण के लिए इस समय सबसे बड़ा मुद्दा क्या है?
पहला सबसे बड़ा मुद्दा है जलवायु परिवर्तन। 1992 से विश्व में कार्बन डाई आक्साइड के उत्सर्जन पर औपचारिक कटौती शुरू हो गई थी। 24 साल बाद भी इसमें बड़ा परिवर्तन नहीं आया है। मौसम लगातार और अप्रत्याशित होता जा रहा है। बाढ़ आदि रोकने की पुरानी परम्पराएँ भुला दी गई हैं। दूसरी बड़ी समस्या है वायु प्रदूषण। दिल्ली में स्वच्छ वायु अभियान 1990 में शुरू हुआ था और इसके लिए सीएनजी का उपयोग शुरू किया गया था, लेकिन इसके बाद निजी वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ी और नतीजा वायु प्रदूषण के रूप में सामने आया है। यह देश में पाँचवें बड़े हत्यारे के रूप में माना जाता है।
हाल ही में प्रधानमन्त्री ने दस शहरों में वायु प्रदूषण मापक यन्त्र लगवाए, इसका कितना असर होगा?
जी हाँ, 6 अप्रैल को प्रधानमन्त्री ने देश का पहला राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक शुरू किया। पहले चरण में दिल्ली, अहमदाबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, फरीदाबाद सहित दस शहरों में यह लगाया। निश्चित तौर पर इसका अच्छा प्रभाव पड़ेगा। खराब होती वायु के प्रति जनता को जानकारी मुहैया कराने से जागरुकता आएगी।
जल्द दिल्ली मेट्रो दुनिया की सबसे लम्बी मेट्रो लाइन बनने जा रही है, लेकिन इसके बावजूद वायु प्रदूषण बढ़ रहा है?
इसका मुख्य कारण सड़कों पर वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ना है। इनकी संख्या घटाए बिना प्रदूषण कम नहीं किया जा सकता है। मेट्रो की पहुँच बढ़ना सराहनीय कदम है, लेकिन फिर भी हमें बहुत कुछ करने की जरूरत है। इसके लिए हमें मेट्रो से घर तक पहुँचने के लिए भी प्रणाली तैयार करनी होगी।
अक्षय ऊर्जा से प्रदूषण कम होता है लेकिन इस क्षेत्र में सरकार शोध के लिए पैसा कम देती है, ऐसा क्यों?
मुझे लगता है अब इस क्षेत्र में बदलाव आ रहा है और ऐसा जान पड़ता है कि वर्तमान सरकार इस क्षेत्र में काफी काम करने की कोशिश में है। यह अच्छा संकेत है।
साभार : राजस्थान पत्रिका 18 मई 2015
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