टिकाऊ शहरी-विकास पर राष्ट्रीय फोकस ग्रुप की कार्यशाला

नई दिल्ली में 5 फरवरी, 2013 को भारत-सरकार के शहरी-विकास मन्त्रालय द्वारा स्वीडन दूतावास, स्वीडन-सरकार के अधिकारियों और इंटरनेशनल इन्वायरेनमेंटल तकनीकी को-ऑपरेशन के सहयोग से ‘निजी-सार्वजनिक सहभागिता सफल समाधानों के लिए साथ काम करना और निजी-सार्वजनिक सहभागिता के क्षेत्र में सफल प्रयोगों में हाथ बँटाना’ विषय पर विचार-गोष्ठी होटल शांग्रीला इरोज, नई दिल्ली में आयोजित की गयी।

 

बढ़ते हुए शहरीकरण और शहरों के सतत विकास में आधारभूत ढाँचे के विकास पर दृष्टि केन्द्रित करने के सन्दर्भ में यह सम्मेलन बड़ा महत्वपूर्ण तथा उपयोगी रहा। संसाधनों की दिक्कत और आबादी की वृद्धि के परिप्रेक्ष्य में शहरों के विकास तथा राजस्व और अन्य संसाधनों का सर्वाधिक उपयोग समय की आवश्यकता है। इसीलिए निजी-सार्वजनिक सहभागिता शहरों के बेहतर विकास के लिए एक बेहतर तरीके के रूप में काम रही है।

 

स्वीडन के दूतावास के मिशन के उप-प्रधान श्री डेनियल वोलवेन ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया। उसके बाद श्री अशोक सिंघवी का उद्घाटन भाषण हुआ जो भारत सरकार के नगर विकास मन्त्रालय में संयुक्त सचिव हैं।

 

उक्त गोलमेज सम्मेलन ने निजी और सरकारी क्षेत्र दोनों के मुख्य प्रतिभागियोें को एक मंच पर लाया। प्रतिभागियों ने आधारभूत ढाँचे से लेकर एक सक्षम यातायात और ऊर्जा व्यवस्था जैसे विषयों पर बातचीत की।

 

एक दिन की कार्यशाला में दो सत्र आयोजित किए गए। पहले सत्र में मैसूर और इस्किल सतुना शहरों में अपजल शोधन और कचड़ा प्रबन्धन व्यवस्था का प्रदर्शन हुआ। उसके बाद निजी-सार्वजनिक सहभागिता के लिए व्यापारिक मॉडल पर पैनल द्वारा विचार-विमर्श हुआ। वोल्वो बसों के भारतीय प्रतिनिधि ने भारत के सन्दर्भ में गतिशीलता सम्बन्धी दृष्टिकोण की बात की। उन्होंने कर्नाटक के अनुभवों की मिसाल दी।

 

कार्यशाला के दौरान दो कम्पनियाँ उपस्थित थीं -

1. फॉरटम - भारत में बिजली तथा शीतलीकरण के लिए ग्रामीण विद्युतीकरण का प्रयोग।

2. एक्जीम - लागत प्रभावी भविष्य के लिए नगर-विकास सहभागिता।

 

कार्यशाला के दौरान यह सुझाव दिया गया कि भारत के शहरीकरण के दौरान टिकाऊ शहरों के लिए मजबूत आधरभूत ढाँचे के विकास की आवश्यकता है। दूरगामी योजना, पर्यावरण सम्बन्धी संरक्षण और इसकी निगरानी के लिए राष्ट्रीय नीतियाँ और ढाँचे विकसित किए गए हैं। सिटी स्केप में अगला चरण होगा सर्वाधिक लाभ और उसके टिकाऊ बने रहने के लिए मार्गदर्शी निर्देशों को अमल में लाना।

 

यह बताया गया कि नगरों को जरूरत होगी अधिक चुस्त-दुरूस्त बनाने, खर्च कम करने और साधन जुटाने की, क्योंकि आबादी बढ़ रही है और संसाधन सीमित होते जा रहे हैं। प्रतिभागियों के बीच होने वाले विचार-विमर्श में बल दिया गया मुख्य निर्णय कर्ताओं और काम को अन्जाम देने वाले आधारभूत लोगों के साथ मिल कर काम करने पर।

 

कार्यशाला के उद्देश्य थे स्थानीय स्तर पर राष्ट्रीय उद्देश्यों के कार्यान्वयन हेतु विमर्श करना तथा योजना बनाना, भारतीय सन्दर्भ में उनक सार्थकता को समझना। शहर के स्तर पर सम्भाव्य बिजनेस मॉडल की जरूरतों को समझने पर भी बल दिया गया।

 

सुलभ स्वच्छता आन्दोलन के संस्थापक डॉ. बिन्देश्वर पाठक विशेष अतिथि के रूप में आमन्त्रित किए गए थे। विचार-विमर्श के दौरान श्री डेनियल वोलवेन ने उनसे आग्रह किया कि वे स्वच्छता के क्षेत्र में स्वयं द्वारा विकसित तकनीकी के बारे में विस्तार से अपने अनुभवों के साथ बताएँ।

 

3. एक सार्वजनिक शौचालय से लिए हुए जल के एक फ्लास्क को सुलभ एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट द्वारा शोधन के बाद दिखाते हुए डॉ. पाठक ने कहा कि यदि जल शोधन की इस विकेन्द्रित तकनीकी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो तब नदियों-तालाबों में पानी में गन्दगी नहीं आएगी। भारी मात्रा में अपजल रोज उनमें बहा दिया जाता है। उन्होंने कहा कि भारत में सिर्फ 160 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट हैं, वर्तमान गति से 7933 कस्बों और नगरों में सीवेज सिस्टम को ठीक करने में 3000 साल लग जाएँगे। इसीलिए सुलभ की विकेन्द्रित शोधन तकनीकी आदर्श है। उस से नदियों का प्रदूषण समाप्त हो जाएगा।

 

लोगों के रूढि़वादी दृष्टिकोण की मिसाल देते हुए डॉक्टर पाठक ने कहा, जब हमने मानव मल आधारित बायोगैस से बिजली पैदा करने वाली तकनीक का विकास किया तो शुरूआत पटना की सड़कों से की गयी। पटना के महापौर ने हमसे कहा कि वह उनके घर पर बिजली की आपूर्ति करें। लेकिन जब उन्होंने यह बात अपनी माता जी को बताई तो उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि चूँकि वह बिजली मानव-मल से आती है अतः हर बार स्विच दबाने के बाद उन्हें अपने हाथ धोने पडेंगे। वह राजी नही हुईं। गर्मियों के दिनों में कुछ दिनों बाद पटना में बिजली की कमी हो गई। तब उन महिला ने अपने मेयर पुत्र से कहा कि वह बिजली की लाइन लगवाए ताकि वह अपने हाथ धो सकें। इस कथा के जरिए मैं यह बताना चाहता हूँ कि परिवर्तन में समय लगता है, लेकिन परिवर्तन निश्चित रूप में होता ही है।

 

भारत में हमारे पास तकनीकी है, हमारे पास हर चीज उपलब्ध है। लोग भुगतान करने के लिए भी तैयार हैं। आज का भारत सन 1947 का भारत नही हैं। यदि आप किसी भी क्षेत्र में सेवा प्रदान करते हैं तो लोग उसकी कीमत देने को तैयार हैं, डॉक्टर पाठक ने कहा।

 

स्वीडन सरकार के प्रतिनिधियों ने के साधन के रूप में योजनाओं पर चर्चा की। समन्वयन तथा स्वीडन मॉडल पर प्रकाश डाला एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट की निदेशक, सुश्री मिली मजुमदार ने ‘भारत के शहरी विकास का नीतिगत ढाँचा : चुनौतियाँ और अवसर’ पर अपने विचार प्रस्तुत किए।

 

कार्यशाला के उद्देश्य थे स्थानीय स्तर पर राष्ट्रीय उद्देश्यों के कार्यान्वयन के तरीकों पर बातचीत करना और उनका स्वरूप निर्धारण और भारतीय सन्दर्भ में उनकी सार्थकता को समझना। फोकस इस बात को समझने पर भी था कि नगर स्तर पर मजबूत बिजनेस मॉडल कैसे हों।

 

साभार : सुलभ इण्डिया फरवरी 2013

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