ताकि पॉलिथिन मुक्त हो हरिद्वार

शिवशंकर जायसवाल

 

आजकल हरिद्वार जिला प्रशासन, खासकर पुलिस और नगर निगम की नींद हराम है। इसका कारण राष्ट्रीय हरित अधिकरण यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) का 2 जुलाई का एक आदेश है। इसमें उसने हरिद्वार और ऋषिकेश- इन दोनों तीर्थस्थलों में पॉलिथिन के लिफाफे-थैले, प्लास्टिक के डिब्बे-बोतल आदि के प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है। एक सप्ताह के भीतर दोनों ही शहरों को आदेश पालन की स्थिति पर एनजीटी को अपनी रिपोर्ट सौंपनी है। पॉलिथिन पर प्रतिबंध तो पहले भी लगाये गए, लेकिन वे शायद इस बार जितने सख्त नहीं थे। न ही उनको लागू करने के लिए इस प्रकार पुलिस, स्थानीय निकाय तथा राज्य के प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड को जिम्मेदार बनाया गया।

 

मुश्किल यह है कि इस आदेश को भी लोग उतनी गम्भीरता से नहीं ले रहे हैं। हरिद्वार नगर निगम की मुख्य नगर अधिकारी विप्रा त्रिवेदी कहती हैं कि यह लोग यह मान लेते हैं कि ऐसे आदेश तो आते ही रहते हैं। दो-चार दिनों में प्रशासन उसे भूलकर चुप बैठ जाता है। नए आदेश को लागू करने में सबसे बड़ी कठिनाई लोगों की यह प्रवृत्ति है। लेकिन क्या इसके लिए सिर्फ लोग ही जिम्मेदार हैं? प्रशासन जिस तरह आधे मन से आदेश निर्गत करता है और जिस अनियोजित तरीके से उसे लागू किया जाता है, क्या लोगों की इस आदत का उससे कोई लेना-देना नहीं है? लेकिन नगर निगम इस बार जैसी कोशिश कर रहा है, उससे उम्मीद बँधती है कि गंगा के घाटों पर गन्दगी का जो आलम अब तक रहता आया है, उसमें फर्क आयेगा। एनजीटी के आदेश का तात्कालिक कारण पर्यावरणविद् एम.सी. मेहता की गंगा प्रदूषण को लेकर की गई शिकायत को बताया गया। उसके बाद स्थानीय कमिश्नर शरीफ जैदी ने हरिद्वार और ऋषिकेश में अनेक स्थानों का निरीक्षण करने के बाद पिछले महीने एनजीटी को जो रिपोर्ट दी, उसमें इन शहरों, खासकर हर की पौड़ी क्षेत्र पर पॉलिथिन के धड़ल्ले से हो रहे इस्तेमाल के दुष्प्रभाव का जिक्र किया गया। गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के देशव्यापी अभियान की पृष्ठभूमि में देखें तो यह आदेश औपचारिक न होकर हरिद्वार और ऋषिकेश तीर्थों में गंगा की पवित्रता को बनाये रखने की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम होगा।

 

दबाव में ही सही, हरिद्वार-ऋषिकेश में पॉलिथिन पर रोक लग गई। अब कम-से-कम इन तीर्थ स्थानों पर तो गंगा साँस ले सकेगी। इसमें मुश्किल भी है। पर जागरुकता, जन सहयोग और प्रशासनिक सख्ती हो तो क्या नहीं हो सकता।

 

उत्तराखण्ड पर्यावरण रक्षा एवं प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के सदस्य सचिव विनोद सिंघल इसी कारण इसे लागू करने में अधिक सक्रियता और तत्परता की जरूरत बता रहे हैं। एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतन्त्र कुमार की अध्यक्षता वाली बेंच ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि आदेश को लागू करने की जिम्मेदारी दोनों नगरों की पुलिस, वहाँ के स्थानीय निकाय तथा राज्य प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के उन क्षेत्रों के अधिकारियों की होगी। वे गंगा घाटों का निरीक्षण करेंगे जिससे नदी के समीप उसके प्रवाह क्षेत्र सहित घाटों पर पॉलिथिन या प्लास्टिक के किसी भी रूप में प्रयोग को रोका जा सके। खाद्य सामग्री परोसने या किसी चीज की पैकिंग में इनका प्रयोग पूर्णत प्रतिबन्धित करते हुए आदेश में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति प्लास्टिक/ पॉलिथिन का प्रयोग करता हुआ, उसे ले जाता हुआ अथवा उसे खरीदता-बेचता हुआ पाया जाता है, तो उस पर आदेश के उल्लंघन के कारण पर्यावरण को हो रही क्षति की भरपाई के रूप में हर बार 5000 रुपये आर्थिक दण्ड लगाया जाए। इसमें कहा गया है कि घाटों पर किसी भी स्थिति में ठोस कूड़ा-कचरा या जानवरों का मल-मूत्र न दिखाई दे। उनकी चौबीसों घंटे सफाई हो। दुकानों के निकट और घाटों पर कूड़ेदान रखने और यह सुनिश्चित करने का आदेश भी दिया गया है कि लोग कूड़ा उनमें ही फेंके। बाद में कूड़े को उठाकर यथास्थान ले जाया जाए एवं उसका नियमानुसार निस्तारण किया जाए।

 

नगर निगम हरिद्वार के अधिकारी कहते हैं कि वे इस सिलसिले में पूरी तत्परता से काम करना चाहते हैं लेकिन सबसे बड़ी कठिनाई आर्थिक है। कूड़े-कचरे को डालने के लिए न जगह है, न उसे ढोने और निस्तारण के लिए साधन। शहर के ठोस कूड़े के निस्तारण के लिए उसे 9 करोड़ रुपये की आवश्यकता है। नगर निगम के पास फिलहाल अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए भी पर्याप्त धन नहीं है और महीनों का उनका वेतन दिया जाना बाकी है। महापौर मनोज गर्ग मानते हैं कि काम कठिन है। कुछ कठिनाई यात्रियों के कारण भी आएगी जो पॉलिथिन में पैक किया हुआ भोजन लाते हैं और गंगा के किनारे बैठकर खाते हैं। ऐसे में बड़े पैमाने पर जागरुकता अभियान चलाये जाने की आवश्यकता है।

 

किन्तु विप्रा त्रिवेदी लोगों की प्रवृत्ति को ज्यादा बड़ा कारण मानती हैं, जागरुकता के अभाव को कम। दुकानदारों और पॉलिथिन के व्यापार में लगे लोगों के स्वार्थ भी आदेश पालन में आड़े आते हैं। सामान्य जन भी सफाई के हित में अपनी छोटी-मोटी सुविधाओं का त्याग करने को राजी नहीं होते। इसके बावजूद नगर निगम, पुलिस तथा अन्य सम्बन्धित अधिकारी पिछले एक हफ्ते से आदेश का पालन कराने में लगे हुए हैं। इसका सबसे बड़ा कारण एनजीटी आदेश की सख्ती है। विप्रा त्रिवेदी ने कहा कि लोगों में सख्ती के साथ यह सन्देश जाना जरूरी है कि उनके सामने नियमों के पालन के अलावा कोई विकल्प नहीं है। प्लास्टिक या पॉलिथिन के अनेक विकल्प मौजूद हैं। लेकिन वे उन्हें तभी दिखाई देंगे जब सख्ती होगी। ऋषिकेश नगर पालिका परिषद के अधिशासी अधिकारी वीपीएस चौहान से बातचीत में लगा कि नगर पालिका एनजीटी आदेश के पालन को लेकर आश्वस्त है। उन्होंने बताया कि नमामि गंगे योजना के अंतर्गत इसकी अनेक बातें आती हैं और उनके क्रियान्वयन का काम चल रहा है। उन्होंने जनता के सहयोग और जागरुकता को लेकर भी कोई शिकायत नहीं की। ठोस कचरे के निस्तारण के लिए अलबत्ता आवश्यक जमीन सहित अन्य साधनों के लिए धन की कमी बताई और कहा कि उसके लिए सरकार को लिखा जा रहा है।

 

साभार : यथावत 1-15 अगस्त 2015

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