स्वस्थ भारत की ओर बढ़ा स्वच्छ कदम

सुभाष सिंह

 

नई दिल्ली। एक अंग्रेजी अखबार के ताजा सर्वे में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान की मेगा योजना को उनकी सभी योजनाओं में सबसे अधिक पसन्द किया गया। सर्वाधिक 48 फीसदी लोगों को यह योजना अच्छी लगी। जाहिर है कि भारत में जनमानस का बड़ा हिस्सा गन्दगी, शुष्क शौचालय, मैला ढोने की प्रथा और खुले में शौच के खिलाफ है। दो अक्टूबर 2014 को जब मोदी ने राजधानी से इस अभियान की शुरुआत खुद सफाई कर की तो देश ने उसे हाथोंहाथ लिया।

 

आखिर ऐसा हो भी क्यों नहीं? भारत में आमजन की बीमारियों की सभी प्रकार की वजहों में एक बड़ी वजह गन्दगी है। देश के अधिकांश स्कूलों में शौचालय की व्यवस्था नहीं है। शहरों में गरीबी की मार झेल रहे दो जून की रोटी कमाने वालों के लिए जब आशियाना ही नहीं तो शौचालय की बात तो दूर की कौड़ी है। झुग्गी बस्तियाँ और अधिकांश गाँवों में शौचालय और सफाई के कोई इंतजाम नहीं हैं। ग्राम पंचायतें भी इस पर उदासीन दिख रही हैं।

 

1. जनभागीदारी और जनसहभागिता पर जोर। 2. दो लाख करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान। 3. गाँवों में 11 करोड़ पक्के टॉयलेट बनेंगे। 4. शहरों में 5.1 लाख पब्लिक टॉयलेट बनेंगे। 5. अब तक 50 लाख से अधिक शौचालय बने।

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक साफ-सफाई न होने के चलते भारत में प्रति व्यक्ति औसतन 6,500 रुपए सालाना जाया हो जाते हैं। इस मेगा योजना पर 1.96 लाख करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। इसमें से 1.34 लाख करोड़ गाँवों में 11 करोड़ पक्का टॉयलेट बनवाने पर खर्च होंगे। 62 हजार करोड़ खर्च कर शहरी इलाकों में 5.1 लाख पब्लिक टॉयलेट भी बनने हैं। अभी तक 50 लाख से अधिक शौचालय बनाये जा सके हैं।

 

केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के मुताबिक शहरी लोग रोज करीब 1.3 लाख टन ठोस कचरा पैदा करते हैं यानी साल में 4.70 करोड़ टन। यह आँकड़ा सिर्फ 70 फीसदी शहरी इलाकों का है जहाँ नगर निगम या स्थानीय निकाय काम करते हैं। बाकी शहरी इलाकों को भी शामिल कर लें तो 6.80 करोड़ टन कचरा हर साल शहरी लोग पैदा करते हैं। शहरों में जितना कचरा पैदा होता है, उसका एक-तिहाई ही उठाया जाता है। इनमें से केवल 18 फीसदी को ही रीसाइकिल किया जाता है। बाकी कचरा ऐसे ही खुले में डाल दिया जाता है।

 

इसीलिए प्रधानमन्त्री ने इसके उद्घाटन के अवसर पर कहा था कि स्वच्छ भारत अभियान को एक जन आन्दोलन का रूप देना होगा। जब तक सोच नहीं बदलेगी, तब तक यह अभियान अधूरा ही रहेगा। इसके केन्द्रीय प्रचार अभियान में भी यह कहकर इसे फोकस किया गया है कि जहाँ सोच, वहाँ शौचालय। प्रधानमन्त्री ने इस अभियान को राष्ट्रपति महात्मा गाँधी को समर्पित किया है। गाँधीजी ने भारत छोड़ो और स्वच्छ भारत का नारा दिया था। अंग्रेज तो चले गये। स्वच्छ भारत गाँधीजी का सपना पूरा करने का एक बड़ा अभियान है। प्रधानमन्त्री ने इसे जनता से जोड़ दिया है ताकि जनभागीदारी और जनसहभागिता से इसे पूरा किया जा सके। यह अभियान पाँच साल का है।

 

साभार : नेशनल दुनिया 17 मई 2015

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