‘स्वच्छता उतनी ही महत्वपूर्ण जितनी रक्षा’

डॉ. बिन्देश्वर पाठक

आज दुनिया में खुले में शौच करनेवालों में 60 प्रतिशत भारतीय हैं, जबकि हमारे यहां 700 मिलियन मोबाईल फोन हैं।- जयराम रमेश, वरिष्ठ नेता, कांग्रेस

‘जलापूर्ति तथा स्वच्छता में निवेश उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कि रक्षा में।’ ये बातें पूर्व माननीय मंत्री श्री जयराम रमेश ने 18 फरवरी, 2012 को नई दिल्ली में ईएससीएपी-रिपोर्ट का लोकार्पण करते हुए कही। संभवतः ये पहले केंद्रीय मंत्री हैं, जिन्होंने गांधी जी के बाद स्वच्छता को राष्ट्रीय स्तर पर लाने का कार्य किया, राष्ट्रपिता ने एक स्कैवेंजर बाला को भारत का गवर्नर-जनरल बनाने की इच्छा प्रकट की थी। वह कई दशक पहले की बात थी। सच्चाई तो यह है कि भारत में स्वच्छता एक नूतन धारणा है, जो 1991 से देश में डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस-शासन के दौरान आर्थिक प्रगति के फलस्वरूप प्रमुखता पा सकी। आर्थिक विकास का परिणाम यह हुआ कि शहरों और स्लमों की संख्या में वृद्धि होती चली गई। यही स्थिति उन्नीसवीं सदी में तत्कालीन प्रधान चार्लस डिकेन्स के समय में इंग्लैंड की थी, जहां औद्योगिक क्रांति हुई और यूरोप लगभग पूरी दुनिया का स्वामी बन बैठा। इतिहास अपने को दोहराता है, श्री रमेश से बेहतर इस बात को कौन जानेगा, जिन्होंने पाश्चात्य इतिहास और अर्थशास्त्र का गहन अध्ययन किया है? स्वच्छता पर बल देते हुए माननीय मंत्री महोदय ने एक बैठक में कहा, ‘आज दुनिया में खुले में शौच करनेवालों में 60 प्रतिशत भारतीय हैं, जबकि हमारे यहां 700 मिलियन मोबाईल फोन हैं।’ यह तुलना बहुत उपयुक्त नहीं भी कही जा सकती है, परंतु इसमें निहित सत्य निर्विवाद है, ऐसे में श्री जयराम रमेश के मंत्रालय का ‘संपूर्ण स्वच्छता-अभियान’ उपयुक्त ही तो है।

 दुनिया की आधी आबादी खुले में शौच करती है

दुनिया में खुले में शौच करने वाले लोगों की संख्या में लगभग एक तिहाई की कमी हुई है। सन् 1990 में 25 प्रतिशत से घटकर सन् 2000 में 21 प्रतिशत और सन् 2008 में 17 प्रतिशत।

दुनिया में खुले में शौच करने वाले लोगों की संख्या में लगभग एक तिहाई की कमी हुई है। सन् 1990 में 25 प्रतिशत से घटकर सन् 2000 में 21 प्रतिशत और सन् 2008 में 17 प्रतिशत। दुनिया में खुले में शौच करने वाले 1.1 बिलियन लोगों में से 8 प्रतिशत केवल भारत, चीन आदि 10 देशों में रहते हैं।

दुनिया में खुले में शौच करनेवाले 1.1 बिलियन लोगों में से 8 प्रतिशत केवल भारत, चीन आदि 10 देशों में रहते हैं। आंकड़े  मिलयन में कुछ इस प्रकार हैं- भारत (638), इंडोनेशिया (58), चीन (50), इथियोपिया (49), पाकिस्तान (48), नाइजीरिया (33), सूडान (17), नेपाल (15), ब्राजील (13) और नाइजर (12)। संयुक्त निगरानी-कार्यक्रम (युनिसेफ) के अनुमान के अनुसार, लगभग 638 मिलियन लोग भारत में खुले में शौच करते हैं, जो सबसे अधिक है। दुनिया में कुल आबादी के 55 प्रतिशत लोग खुले में शौच करते हैं। बहरहाल, भारत में खुले में शौच करनेवालों की संख्या में पर्याप्त कमी आई है। यानी 1990 और 2008 के बीच 19 मिलियन की कमी, जबकि इस दौर में आबादी में 139 मिलियन की वृद्धि हुई। इसे नीचे दी हुई तालिका द्वारा देखा जा सकता है-
 

 

वर्ष

ग्रामीण

शहरी

कुल योग

1990

90

28

74

2000

79

22

63

2008

69

18

54

 

शौचालय: बीते शताब्दी की सबसे बड़ी खोज

बहरहाल, स्वच्छता का मतलब केवल स्वास्थ्य से लगाया जाना ठीक नहीं है। वह अर्थव्यवस्था से भी ताल्लुक रखती है। सन् 2008 में विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि अपर्याप्त स्वच्छता भारत के सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 6.4 प्रतिशत के बराबर है यानी 53.8 बिलियन (2.4 ट्रिलियन), तबसे स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन इतना काफी नहीं कि स्वच्छता के क्षेत्र में आए खालीपन को भरा जा सके।

ई.पू. 50 के दशक में प्राचीन रोम में पौम्पे टाइबर नदी के किनारे सीजर से युद्ध हार गया। कारण था हैजा, जो गंदगी के कारण सैनिक शिविरों में फैल गया था। सिपाही उसके शिकार होने के बाद लड़ने लायक नहीं रह गए थे। मध्य-युग के ब्यूवोनिक प्लेग और हैजे ने पश्चिमी सम्यता को लगभग समाप्त कर दिया था। इसका एक मात्र कारण गंदगी थी।

इसके पहले स्वच्छता के महत्व को रेखांकित करने के लिए अमेरिका की ‘टाइम मैगजीन’ ने अपनी रिपोर्ट में एक पूर्व सहस्त्राब्दि जनमत-संग्रह का उदाहरण देते हुए कहा था कि लोगों ने शौचालय को पिछली शताब्दी का सर्वाधिक महत्वपूर्ण आविष्कार माना, यानी एटमबम, अंतरिक्ष-यान, जीवन-रक्षक दवाइयों और हजारों हजार अन्य आविष्कारों से भी अधिक महत्वपूर्ण, जिन्होंने मानव-जीवन को बहुत भिन्न और बेहतर बनाया। शौचालय एकमात्र निष्कर्ष ऐसा सामान्य आविष्कार है, जिसने लोगों को सभ्य बनाया और जो एटमों को विघटित करने से लेकर जिन्सों को जोड़ने भेड़ों का कृन्तकीकरण, प्लास्टिक का आविष्कार, रडार, सिलिकॉन चिप्स, टेलीविजन, सैटेलाइट, टेलीफोन और हर अन्य आविष्कृत चीज तक सबसे अधिक महत्वपूर्ण साबित हुआ, जिसने हमारे समय को ऐसे बदल दिया है कि उसे पहचान पाना कठिन है। शौचालय मानव-जाति की उच्चतम उपलब्धि है।
 
मल का अनुचित निस्तारण भूजल प्रदूषण को बढ़ावा देता है

मोटे तौर पर मल का निस्तारण पर्यावरण-संबंधी स्वच्छता का एक महत्वपूर्ण अंग है। श्री जयराम रमेश, कुछ दिनों पहले तक उसी विभाग के मंत्री थे। मानव-मल-प्रवाह के स्रोतों का होना और गंदा निस्तारण भू-जल को प्रदूषित करना तथा संरक्षण देना है। यह मक्खियों को आश्रय देता है। मक्खियां मल पर बैठती हैं, फिर उड़कर मनुष्यों के शरीर पर बैठती हैं और कीटाणुओं-विषाणु के संक्रमण का प्रसार करती है। मल-जनित बीमारियां और उनके कीट मृत्यु के कारण बनते हैं। वे उस समुदाय में मृत्यु के अनुपात को बढ़ाते हैं, जहां लोग खुले में शौच के लिए जाते हैं। अच्छी स्वच्छता के जरिए और जल के उचित निस्तारण से तमाम बीमारियों से मुक्ति पाई जा सकती है। इस प्रकार स्वच्छता एक व्यापक अवधारणा का रेखांकन करती है। वास्तव में वह ‘जीवन का एक ढंग’ है, जिसकी अभिव्यक्ति स्वच्छ घर, सामुदायिक संरचनाओं और सुरक्षित पर्यावरण में होती है। वास्तव में अच्छे रहन-सहन के स्तर का महत्वपूर्ण सूचक सुरक्षित स्वच्छता-व्यवहार है।

हर साल 26 लाख लोग स्वच्छता के अभाव में मरते हैं

खराब स्वच्छता के कारण हर साल 2.6 मिलियन लोगों की मृत्यु होती है। यह आंकड़ा विश्व-स्वास्थ्य-संगठन के हाल ही में जारी किए गए एक अध्ययन निष्कर्ष के रूप में सामने आया है। तथ्य बहुत चैंकाने वाला है। इसके कारण हैं- जल-जनित बीमारियां, यथा कॉलरा, टाइफाइड और दस्त तथा कीटाणु-जनित रोग, यथा-मलेरिया, डेंगू, चिकेनगुनिया, इनसेफलाइटिस और दूसरे वाइरल रोग। पिछले साल केरल में 15,000 से अधिक लोगों को चिकेनगुनिया का शिकार होने के कारण अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। उसका भी कारण गंदी स्थितियां थीं। पर्यावरण के दो महत्वपूर्ण पक्ष जल और कचरा-निष्पादन अन्य दूसरी समस्याओं की तुलना में अधिक आसानी से सुधार किए जा सकते हैं।
 
बच्चों के स्वास्थ्य पर सर्वाधिक बुरा असर

खराब शुचिता से सर्वाधिक प्रभावित बच्चे हैं, यहां पर बच्चों की मृत्युदर प्रति एक हजार जन्म में 47 है। दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका के अनेक देशों के मुकाबले यह अधिक है। इसका कारण अस्वच्छता है। स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ देने वालों की गति में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है, खासतौर से लड़कियों में, वह भी उस दौर में, जब वे हाई स्कूल में प्रवेश करती हैं। उसका कारण है शौचालय-सुविधाओं की अनुपलब्धता एवं खुला और अनियंत्रित दुर्गंधपूर्ण कचरा, जिसमें प्रायः ज्वलनशील तथा जहरीले पदार्थ होते हैं। वे कूड़े से काम की चीजें उठाने वाले लड़के-लड़कियों के स्वास्थ्य पर खतरा उत्पन्न करते हैं। पारंपरकि ढंग से, हम निजी शुचिता को गहराई से देखते हैं, लेकिन दुःख की बात यह है कि हममें नागरिक भाव की कमी है। व्यक्तिगत ढंग से हम साफ-सुथरे लोग हैं, लेकिन एक समुदाय के रूप में नहीं। इसके लिए तुरंत एक जन-अभियान चलाने की आवश्यकता है।

हैजा के चलते सीजर से हार गया था पौम्पे

देश में गंदगी या खराब स्वच्छता की स्थिति से मंत्री महोदय स्वयं चिंतित हैं। ई.पू. 50 के दशक में प्राचीन रोम में पौम्पे टाइबर नदी के किनारे सीजर से युद्ध हार गया। कारण था हैजा, जो गंदगी के कारण सैनिक शिविरों में फैल गया था। सिपाही उसके शिकार होने के बाद लड़ने लायक नहीं रह गए थे। मध्य-युग के ब्यूवोनिक प्लेग और हैजे ने पश्चिमी सम्यता को लगभग समाप्त कर दिया था। इसका एक मात्र कारण गंदगी थी।

शौचालय नहीं तो शादी नहीं

आज के समय में सर्वाधिक दुःखदायी स्थिति यह है कि एक महिला शौच जाने के लिए सूर्योदय के पूर्व और सूर्यास्त के बाद के समय का इंतजार करती है। आश्चर्य नहीं कि मध्य प्रदेश के बैतूल जिले की झीटूढाना गांव की एक 20 वर्षीया नव विवाहिता ने अपने पति के घर में रहने से इनकार कर दिया, क्योंकि वहां शौचालय नहीं था। श्रीमती अनीता आज सुलभ इंटरनेशनल की ब्रांड एम्बैसडर हैं, जो स्वच्छता को बढ़ावा दे रही हैं। श्री रमेश निरंतर भ्रमणशील सर्वगुण-संपन्न और प्रतिभाशाली व्यक्ति हैं, वह वचनबद्ध है विल्सन के विश्ववादी और गांधी के मानवतावादी विचारों के प्रति। वे रूसो के रमणीय विश्व की स्मृतियों को भुला नहीं पाए हैं। इनमें से किसी की भी उपलब्धि संभवतः हम अपने जीवन-काल में नहीं कर सकते। स्पष्ट है कि श्री जयराम रमेश एक ऐसे मंत्री हैं, जिनका यह मिशन है, जिसमें हम एक अधिक साफ-सुथरी दुनिया और स्वस्थ जीवन की आशा कर सकते हैं।

साभार : सुलभ इंडिया, अप्रैल 2012

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