स्वच्छता: महिला सशक्तीकरण का सबसे प्रभावी साधन

महिला विकास और सभ्यता की प्रतीक होती है, यदि आप जानना चाहते हैं कि समाज कितना अच्छा है तो रास्ते में चलने वाली किसी महिला से बात करें और आपको बिना किसी अर्थशास्त्री की मदद के उत्तर मिल जाएगा। महिला विकास, सुन्दरता, निर्मलता और उन सभी चीजों की प्रतीक होती है, जो जीवन को सार्थक बनाती है, ‘सुलभ-स्वच्छता-आन्दोलन’ के संस्थापक पद्मभूषण डॉ. बिन्देश्वर पाठक ने उदयपुर में एक राष्ट्रीय सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए यह बात कही। सम्मेलन का आयोजन ‘महिला-सशक्तीकरण-स्थिति और भूमिका पर उभरता हुआ परिदृश्य’ विषय पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सहयोग से मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर के समाजशास्त्र-विभाग द्वारा 26 फरवरी, 2013 को आयोजित किया गया था। इस अवसर पर महिला-सशक्तीकरण के जीवन्त विषय पर प्रतिष्ठित विद्वानों और समाजशास्त्रियों ने भाग लिया।

 

इस कार्यक्रम में डॉ. बिन्देश्वर पाठक मुख्य अतिथि के रूप में आमन्त्रित किए गए थे। उनका स्वागत करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आई.वी त्रिवेदी ने कहा कि वर्ष 1962 में दक्षिण राजस्थान में उच्च शिक्षा के उद्देश्य से मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सहयोग से स्थापित महिला-अध्ययन-केन्द्र का महिला-सशक्तीकरण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

डॉ. बिन्देश्वर पाठक ने सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए समकालीन परिदृश्य के बारे में बताया और कहा कि विकासशील देशों में महिलाओं की स्थिति असन्तोषप्रद रही है। यूरोप और अमेरिका में भी उन्हें मतदान का अधिकार पिछली सदी के पूर्वार्ध में मिला, शिक्षा के प्रचार और रसोईघर के उपकरणों से उन्हें मतदान के अधिकार से अधिक शक्ति मिली। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद स्थिति सुधरी। भारत और अन्य विकासशील दुर्दशा में उनकी दशा के लिए कारण रहे हैं गलत परम्पराएँ और सामाजिक कुरीतियाँ। पर्दे के पीछे धार्मिक धारणा रही है और अशिक्षा के चलते वे मर्दों की बराबरी में आगे नहीं बढ़ पाई हैं। सामाजिक रूढि़यों ने उनके पतिधर्म को ऐसे मान से जोड़ा, जिसके चलते राजस्थान में रानी पद्मावती को अन्य महिलाओं के साथ जौहर में मरना पड़ा, वहीं मर्दों के पत्नीधर्म की कहीं कोई बात नहीं आई।

डॉक्टर पाठक ने आगे बताया कि अधिकतर विकासशील देशों में सामाजिक और लिंग-भेदभाव ने महिलाओं को दूसरे स्तर का नागरिक बना दिया है जीवविज्ञान के अनुसार, मर्दों से अधिक शक्तिवान होती हुईं भी लड़कियों की भारत में लड़कों की तुलना अधिक मृत्यु होती है (प्रतिवर्ष 3 लाख)। राष्ट्रीय अनुसंधान और प्रशिक्षण की राष्ट्रीय काउंसिल के अनुसार, प्रतिवर्ष जन्म लेने वाली 12 मिलियन बच्चियों में से 25 प्रतिशत अपना 15वाँ जन्मदिन नहीं देख पातीं। एक वैश्विक सर्वेक्षण के अनुसार (2013), 128 देशों में महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण के क्षेत्र में भारत का स्थान 115वाँ है। चोटी पर जो देश हैं, वे हैं ऑस्ट्रेलिया, नॉर्वे, स्वीडन और फिनलैंड। सबसे नीचे हैं यमन, पाकिस्तान और सूडान। भारत में स्कैवेंजिंग करने वाले लोग अस्पृश्य माने जाते हैं, वे गरीबी और जाति के सबसे निचले पायदान पर होते हैं। लगभग 7 लाख स्कैवेंजरों में 70 प्रतिशत महिलाएँ हैं। सुलभ ने महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए अपनी तरह से कदम उठाए हैं। कमाऊ शौचालय की जगह सुलभ शौचालय-तकनीक से स्कैवेंजर महिलाओं को उनके पेशे से मुक्त कराया गया है। विभिन्न व्यावसायों में प्रशिक्षण-द्वारा उन्हें जीविका अर्जित करने का प्रतिष्ठित रास्ता दिखलाया गया। राजस्थान के अलवर और टोंक के इस कार्यक्रम ने इन महिलाओं को नई राजकुमारियाँ बनाया है।

 

सुलभ स्कैवेंजिंग समाप्त करने, स्कैवेंजरों के मानवाधिकार लौटाने और स्वच्छता की एक नूतन व्यवस्था स्थापित करने की दिशा में निरन्तर कार्यरत रहा है। संस्था के महिला तथा बाल-विकास-प्रभाग ने उनके पुर्नस्थापन तथा विकास-कार्यों में उनकी भागीदारी तथा विभिन्न स्तरों पर उनके लिए समर्थन तथा प्रोत्साहन की दिशा में कार्य किया है। सुलभ ने स्वच्छता-कार्यक्रमों में महिलाओं की पूरी भागीदारी की वकालत की है। उनकी शिक्षा, स्लमों में स्वास्थ्य तथा सफाई के बारे में जागरूकता-अभियान से समुदाय तथा पर्यावरण में स्पष्ट सुधार परिलक्षित होता है। दिल्ली के स्लमों में सुलभ द्वारा 3000 से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया है। ये महिलाएँ अब स्वास्थ्य, स्वच्छता तथा सामाजिक परिवर्तन की दूत के रूप में कार्यशील रही हैं। इसका प्रभाव घरों के सभी सदस्यों पर स्वास्थ्यकर रूप से पड़ा है।

‘यह स्पष्ट है, ‘डाक्टर पाठक ने आगे बताया कि स्वच्छ सुविधाओं तथा साफ-सुथरे पर्यावरण का, अच्छे पोषण एवं स्वास्थ्य की देखभाल का प्रत्येक महिला तथा बच्चे का अधिकार है। सुलभ शौचालय तथा स्नान-परिसरों में महिलाओं के लिए अलग व्यवस्था रहती है। इनका संचालन भुगतान तथा उपयोग आधार पर होता है। जून 1996 में इस्तांबुल में आयोजित सिटी सम्मिट, हैबिटाट-II कॉन्फ्रेंस में स्वच्छता के क्षेत्र में सुलभ की उद्घोषणा ‘बेस्ट प्रैक्टिस’ के रूप में की गई। संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक तथा सामाजिक कॉन्सिल द्वारा सुलभ को स्पेशल कन्सल्टेटिव स्टेटस प्रदान किया गया, बाद में जेनरल कन्सल्टेटिव स्टेटस प्रदान किया गया है।’

डॉक्टर पाठक ने बताया कि ‘नई दिशा’ नाम से अलवर तथा टोंक (राजस्थान) में व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित किए गए हैं। जहाँ भूतपूर्व स्कैवेंजर महिलाओं को प्रशिक्षित किया जाता है, अपना पुराना पेशा छोड़ने के बाद इस प्रकार उन्हें जीविकोपार्जन का प्रतिष्ठित तरीका उपलब्ध कराया जाता है। इस प्रशिक्षण के आयाम विविध प्रकार के हैं, जिनमें पढ़ना-लिखना, खाद्य-सामग्री बनाना, सिलाई-कढ़ाई, सौन्दर्य-प्रसाधन इत्यादि शामिल हैं। यहाँ इन लोगों का नियमित मेडिकल चेकअप भी होता है। अलवर में 115, टोंक में 280 तथा गाजियाबाद, नेगपुर में 21 स्कैवेंजर पुनर्वासित हुए हैं।

इस प्रकार हुए सामाजिक रूपांतरण का अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वही समाज, जो इन स्कैवेंजरों को छूने से भी बचना चाहता था, अब इनके बनाए खाने के सामान खरीदने लगा है। इन महिलाओं ने स्वयं-सहायता दल बनाए हैं, ये अपने

बैंक एकाउंट रखती हैं और वहाँ से ऋण लेकर अपना कारोबार चलाती हैं। सम्मेलन को सम्बोधित करती हुई भूतपूर्व स्कैवेंजर श्रीमती उषा चौमड़ (अब मानद अध्यक्ष, सुलभ इंटरनेशनल) ने बताया, हमलोग अस्पृश्य स्कैवेंजर थे। सुलभ ने पूरी तरह हमारी जिन्दगी बदल दी है। अब हमें उन्हीं लोगों द्वारा उनके यहाँ होने वाले कार्यक्रमों में बुलाया जाता है जिनके शौचालय हम साफ किया करती थीं। फाउंडर सर (डॉक्टर पाठक) हमें अलवर, नाथद्वारा तथा वाराणसी के मन्दिरों में ले गए। हमें देश के राष्ट्रपति, मन्त्रिगण के यहाँ और संयुक्त राष्ट्र की बैठक में न्यूयॉर्क ले जाया गया।

 

डॉ. बिन्देश्वर पाठक के अभिभाषण और समाज के नीचे के पायदानों पर छोड़ दी गई महिलाओं के उत्थान और सम्मान की दिशा में उनके द्वारा किए गए ऐतिहासिक कार्यों पर सभी प्रतिष्ठित विद्वानों और समाजशास्त्रियों ने प्रसन्नता प्रकट की। इस अवसर पर मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आई.वी. त्रिवेदी-द्वारा एक शील्ड भेंट कर डॉक्टर पाठक का सम्मान किया गया।

 

साभार : सुलभ इण्डिया 2013

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