स्वच्छता में स्वास्थ्य की कसौटी

आशुतोष कुमार सिंह

मानव अपनी उत्पत्ति के समय से ही निरोगी काया के लिए प्रयासरत रहा है। मानव से मेरा अभिप्राय पुरूष-स्त्री दोनों से है। मानव ने जिस क्रम से अपनी विकास-यात्रा को आगे बढ़ाया है, उसी क्रम में उसे तमाम तरह की बीमारियों से सामना करना पड़ा है। मानव की उत्पत्ति प्रकृति की गोद में हुई है। जिस तरह से एक माँ अपने नवजात शिशु की परवरिश के लिए यथासम्भव साधनों को जुटाने का प्रयास करती है, ठीक उसी तरह प्रकृति ने हमें निरोगी काया के साथ जीने के लिए तमाम सुविधाएँ दी हुई हैं। क्षीति-जल-पावक-गगन-समीरा अर्थात धरती, पानी, आग, हवा व आकाश तत्व से मिलकर इस शरीर की रचना हुई है। जब तक इन तत्वों का मिश्रण सही अनुपात में है, तब तक हम स्वस्थ हैं, जैसे ही इनका अनुपात गड़बड़ होता है, हमारा स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है।

स्त्री-पुरूष की शारीरिक बनावट के कारण भी कुछ रोग महिलाओं को जल्द ग्रसित करते हैं तो कुछ पुरूषों को। यहाँ पर हम चर्चा करेंगे आधी आबादी के स्वास्थ्य की यानी महिला स्वास्थ्य की।

महिलाओं का स्वास्थ्य शुरू से चिन्तनीय प्रश्न रहा है। एक तो भारत की महिलाओं में स्वास्थ्य के प्रति कम जागरूकता रही है, और दूसरी की स्वास्थ्य सुविधाएँ उस रफ्तार में नहीं बढ़ी हैं, जिस रफ्तार में स्वास्थ्य की समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। हमारा वातावरण दूषित हुआ है। हम गन्दगी फैलाने के आदि हो गए हैं। लखनऊ में महिलाओं के लिए काम कर रही ऋचा सिंह ने महिलाओं की समस्याओं को बहुत नजदीक से देखा है। मेडिकल प्रोफेशन से जुड़ी ऋचा सिंह बताती हैं कि स्वच्छता का नाता महिलाओं की पूरी जीवन चर्या से है। उनका कहना है कि चाहे यूटीआई इन्फेक्शन की बात हो, या फिर ल्यूकोरिया की। सबका नाता स्वच्छता से ही है। अनहाइजेनिक डाइट के कारण भी महिलाओं को कई तरह की बीमारियाँ होती हैं। उनका तो यहाँ तक मानना है कि महिलाओं में बढ़ रहे ट्यूबरक्लोसिस के मामले का भी सम्बन्ध स्वच्छता से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ता है। कॉन्वेंट स्कूलों का हवाला देते हुए वो कहती हैं कि वहाँ पर पढ़ने वाली लड़कियों को शारीरिक बदलाव के बारे में दिशा-निर्देशित किया जाता है, उन्हें मासिक धर्म सम्बन्धित जानकारी दी जाती है लेकिन देश के बाकी स्कूलों में शायद ऐसी व्यवस्था नहीं है।

ग्रामीण इलाकों में प्रसव के बाद महिलाओं को जिन अस्वच्छ परिस्थितियों में रखा जाता है उससे कई बार प्रसूता की जान भी चली जाती है। घर-घर शौचालय की हिमायत करती हुई ऋचा सिंह कहती हैं कि सामाजिक सुरक्षा के दृष्टिकोण से व स्वास्थ्य के लिहाज से महिलाओं के लिए शौचालय का होना बहुत जरूरी है। उनका कहना है कि बाहर शौच को जाने वाली महिलाएँ एक तो सामाजिक रूप से असुरक्षित रहती हैं, दूसरी बात यह कि कई बार उन्हें शौच जाने के लिए अन्धेरा होने का इन्तजार करना पड़ता है, जिससे कई अन्य बीमारियों की वह शिकार होती हैं।

सच्चाई तो यह है कि स्वच्छता का हमारे स्वास्थ्य से गहरा रिश्ता है। खासतौर से महिला स्वास्थ्य से तो स्वच्छता का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है।

साभार : सोपान स्टेप नवम्बर 2014

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