आरसी झा
दक्षिण एशिया ने पिछले 21 वर्षों में काफी प्रगति की है। वर्ष 1990 से 2011 तक उन्नत स्वच्छता सुविधाओं का उपयोग करने वाले लोगों की संख्या में 18 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। इसी अवधि में ‘खुले में शौच’ के अभ्यस्त व्यक्तियों के अनुपात में 27 प्रतिशत कमी हुई, हालांकि विश्वभर में खुले में शौच करने वालों के लगभग 65 प्रतिशत भाग दक्षिण एशिया के हैं।
‘यह अत्यंत कटु सत्य है कि आज भी इस क्षेत्र में रहने वाले लगभग 63 करोड़ व्यक्ति खुले में शौच करते हैं, जो संपूर्ण विश्व में खुले में शौच करने वाले व्यक्तियों का दो तिहाई भाग है। इनमें से अधिकतर लोग गरीब और हाशिए पर रहने वाले वर्ग के हैं,जिनकी आवाज शायद ही सुनी जाती है। इस प्रकार के अस्वीकार्य एवं भेदभाव से भरे सामाजिक ढांचे को, जिसमें पांच वर्ष की आयु से कम वे बच्चे भी हैं, जिन्हें ज्यादा से ज्यादा प्यार एवं देखभाल की जरूरत है, संभालना तथा इसकी देखभाल करना हम सब की प्राथमिकता होनी चाहिए।’ - परमानंद झा, उप-राष्ट्रपति, नेपाल
साउथ एशियन कांफ्रेंस ऑन सैनिटेशन (सैकोसैन) सम्मेलन, जिसका आयोजन सार्क के सदस्य देशों में प्रत्येक दो वर्षों के अंतराल पर किया जाता है, जल एवं स्वच्छता पर विचार-विनिमय का मंच प्रस्तुत करता है। वर्ष 2003 में प्रथम सम्मेलन का आयोजन बांग्लादेश में किया गया, दूसरा सम्मेलन पाकिस्तान में वर्ष 2006 में, वर्ष 2008 में तीसरे सम्मेलन का आयोजन भारत में, वर्ष 2011 में श्रीलंका में चैथा तथा पांचवें सम्मेलन का आयोजन वर्ष 2013 में 22-24 अक्टूबर तक नेपाल में ‘स्वच्छता सभी के लिए, सभी स्वच्छता के लिए’ नारे के साथ किया गया।
22 अक्टूबर को पांचवें सैकोसैन सम्मेलन का औपचारिक उद्घाटन नेपाल के माननीय उप-राष्ट्रपति श्री परमानंद झा के कर-कमलो द्वारा हुआ। उद्घाटन के पश्चात् माननीय उप-राष्ट्रपति महोदय को वहां लगाई गई फोटो प्रदर्शनी दिखाई गई, जिसे उन्होंने बेहद सराहा। इन तस्वीरों में न केवल नेपाल की, बल्कि सैकोसैन के अन्य प्रतिभागी देशों की स्वच्छता संबंधी तस्वीरें भी थीं।
उद्घाटन समारोह में अपना वक्तव्य देते हुए माननीय उप-राष्ट्रपति महोदय ने कहा कि दक्षिण एशिया के समृद्ध संस्कृति एवं धार्मिक परंपराओं का हमारे व्यक्तिगत स्वच्छता एवं स्वास्थ्य पर काफी प्रभाव पड़ा है। ये मूल्य साधारणतः सभी देशों में लगभग एक समान हैं और यही हमारी शक्ति है। इसके बाद माननीय उप-राष्ट्रपति महोदय ने स्वच्छता के महत्व के बारे में समागत लोगों को बताया कि ‘यह अत्यंत कटु सत्य है कि आज भी इस क्षेत्र में रहने वाले लगभग 63 करोड़ व्यक्ति खुले में शौच करते हैं, जो संपूर्ण विश्व में खुले में शौच करने वाले व्यक्तियों का दो तिहाई भाग है। इनमें से अधिकतर लोग गरीब और हाशिए पर रहने वाले वर्ग के हैं,जिनकी आवाज शायद ही सुनी जाती है। इस प्रकार के अस्वीकार्य एवं भेदभाव से भरे सामाजिक ढांचे को, जिसमें पांच वर्ष की आयु से कम वे बच्चे भी हैं, जिन्हें ज्यादा से ज्यादा प्यार एवं देखभाल की जरूरत है, संभालना तथा इसकी देखभाल करना हम सब की प्राथमिकता होनी चाहिए।’
इस आयोजन में श्रीलंका के माननीय जल, सीवर और जल निष्कासन मंत्री श्री दिनेश गुणावर्द्धने, माननीय शहरी विकास मंत्री श्री छबिराज पांता एवं उनके मंत्रालय के माननीय सचिव श्री किशोर थापा एवं वाटर एड के उप-कार्यकारी निदेशक श्री गिरीश मेनन एवं नागरिक समाज के प्रतिनिधि श्री रामीसेट्टी मुरली भी उपस्थित थे। इन सभी ने अपने-अपने वक्तव्यों में स्वच्छता की वर्तमान स्थिति पर चिंता व्यक्त करने हुए अपने विचार दिए। आयोजन में हटेमाल संचार यूथ थिएटर ग्रुप द्वारा ‘एकता द्वारा हम जीतते हैं’ विषय पर जबरदस्त कार्यक्रम का प्रदर्शन किया, जिसमें दक्षिण एशिया के बच्चों द्वारा स्वच्छता संबंधी चुनौतियों को दर्शाया गया था।
स्वच्छता चुनौतियों पर विश्लेषण
विशेषज्ञों के प्रस्तुतीकरण के दौरान विश्वभर से आए विशेषज्ञों में से तीन विशेषज्ञों द्वारा स्वच्छता संबंधी महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की गई। बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के डॉ. रोशन राज श्रेष्ठ ने शहरी स्वच्छता से जुड़ी उलझनों के साथ अपशिष्ट प्रबंधन एवं वर्षा जल संचयन पर तो अपनी बात कही ही, साथ ही उन्होंने मानव-मल के निपटान की अल्पव्ययी व्यवस्था की आवश्यकता पर भी जानकारी दी।
यूनिसेफ रोजा की सुश्री फुओंग टी. गुयेंन ने विद्यालयों में ‘वॉश’ विषय पर अपनी बात कही। उन्होंने कहा, हालांकि दक्षिण एशिया के 70 प्रतिशत विद्यालयों में शौचालय उपलब्ध है, फिर भी कुछ चिंताजनक विषय हैं, जैसे शौचालय होने के बावजूद उनका प्रयोग न किया जाना अथवा उन पर ताला लगा होना अथवा उनका राष्ट्रीय मानकों के आधार पर न बना होना या लड़कियों की स्वच्छता संबंधी आवश्यकताओं को पूरा न कर पाना। फिर भी पिछले दो वर्षों में इस दिशा में सरकार एवं विद्यालयों द्वारा काफी सुधार किया गया है।
अंत में वाटर एड, साउथ एशिया के रबिनलाल श्रेष्ठ ने सैकोसैन के पिछले सम्मेलन में किए गए वायदो को पुनः दोहराया, जिनमें समयबद्ध योजना, स्वच्छता का अधिकार, विद्यालय में स्वच्छता कास्तरोन्नयन, एक राष्ट्रीय समन्वयक समिति की स्थापना एवं आपसी ज्ञान और विचारों का आदान-प्रदान शामिल थे। उन्होंने भविष्य की संभावित योजनाओं का भी जिक्र किया, विशेषकर गरीब वर्ग एवं हाशिए पर रहने वाले लोगों के लिए पारदर्शी योजनाएं, जिनमें स्पष्ट नीतियां हों और स्वच्छता के पैमाने भी।
दक्षिण एशिया के 70 प्रतिशत विद्यालयों में शौचालय उपलब्ध है। फिर भी कुछ चिंताजनक विषय हैं, जैसे शौचालय होने के बावजूद उनका प्रयोग न किया जाना अथवा उन पर ताला लगा होना अथवा उनका राष्ट्रीय मानकों के आधार पर न बना होना या लड़कियों की स्वच्छता संबंधी आवश्यकताओं को पूरा न कर पाना। फिर भी पिछले दो वर्षों में इस दिशा में सरकार एवं विद्यालयों द्वारा काफी सुधार किया गया है।
इस अवसर पर भारत सरकार के माननीय पेयजल एवं स्वच्छता राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री भरत सिंह सोलंकी ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि दक्षिण एशिया ने पिछले 21 वर्षों में काफी प्रगति की है। वर्ष 1990 से 2011 तक उन्नतस्वच्छता सुविधाओं का उपयोग करने वाले लोगों की संख्या में 18 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई (दुनिया में अन्यत्र यह 15 प्रतिशत है)। इसी अवधि में ‘खुले में शौच’ के अभ्यस्त व्यक्तियों के अनुपात में 27 प्रतिशत कमी हुई, हालांकि विश्वभर में खुले में शौच करने वालों के लगभग 65 प्रतिशत भाग दक्षिण एशिया के हैं। उन्होंने आगे कहा कि खुले में शौच-क्रिया अभी भी ग्रामीण भारत के विभिन्न सामाजिक एवं आर्थिक समूहों में प्रचलित है यहां खुले में शौच की प्रथा ने गहराई तक अपनी जड़ें जमा ली हैं, जिसमें सुधार की आवश्यकता है। ग्रामीण स्वच्छता से संबद्ध कुछ चुनौतियों, जिनके निवारण हेतु भारत प्रयत्नशील है, में शौचालय का निरंतर प्रयोग, कुछ राज्यों के अपर्याप्त प्रदर्शन में सुधार तथा बढ़ती आबादी के साथ तालमेल बैठाने के लिए कार्यक्रम में तेजी बनाए रखना शामिल हैं।
अपने संबोधन में उन्होंने आगे कहा कि उनके मंत्रालय ने स्वास्थ्य व्यवस्था से वंचित क्षेत्रों में सुधार के लिए अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम, जिसे पहले ‘संपूर्ण स्वच्छता अभियान’ कहते थे, को वर्ष 2012 में निर्मल भारत अभियान में परिवर्तित कर दिया गया, जिसका उद्देश्य जनसमुदाय को केंद्र में रखते हुए घरों, विद्यालयों एवं स्वच्छ वातावरण के लिए स्वच्छता सुविधाओं के प्रति जागरूकता सृजन तथा युवा-पीढ़ी की स्वच्छता संबंधी मांग को पूरा करना शामिल है।
भारत ने अधिकतर जनसंख्या को शौचालय की सुविधा प्रदान कर इस मार्ग में महत्वपूर्ण तरक्की की है। वर्ष 2008 में शौचालय के उपयोगकर्ता 38 करोड़ थे, वहीं अब उनकी संख्या 62 करोड़ है। अंत में उन्होंने कहा कि भारत बेहतर स्वच्छता सुविधाओं के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए ठोस कार्रवाई करने हेतु प्रतिबद्ध है। हम न केवल भारत को, अपितु दक्षिण एशिया को खुले में शौच करने की प्रथा से मुक्ति दिलाने हेतु प्रतिबद्ध हैं।
विभिन्न राष्ट्रों द्वारा स्वच्छता तकनीकों का आदान-प्रदान
22 अक्टूबर को सैकोसैन सम्मेलन में स्वच्छता के विषय पर विभिन्न देशों से आए प्रतिनिधियों ने अपना प्रस्तुतीकरण दिया।
सभी वक्ताओं ने अपने-अपने देश में स्वच्छता के परिवेश के विवरण में वहां के संस्थागत वातावरण, वहां की नीतियों, प्रयास, व्यवहार एवं भविष्यत् योजनाओ के बारे में बताया। कुछ देशों के प्रतिनिधियों ने अपने यहां चल रहे स्वच्छता-अभियानों के बारे में बताया, जिनमें अफगानिस्तान में टेलीविजन पर चल रहे एक कार्यक्रम के बारे में जानकारी दी गई एवं भारत में चल रहे ‘निर्मल भारत-अभियान’ और ‘निर्मल भारत-यात्रा’ के बारे में बताया गया, जिससे स्वच्छता एवं स्वच्छता विज्ञान के संदेश के प्रसार में मदद मिली है। इसके अलावा वक्ताओं ने बंग्लादेश सरकार द्वारा चलाई जा रही प्रेरक योजना का भी जिक्र किया, जिसमें किसी क्षेत्र विशेष में 100 प्रतिशत स्वच्छता लाने वाले स्थानीय नेता को पारितोषिक दिया जाता है। श्रीलंका एवं पाकिस्तान के वक्ताओं के वक्तव्य के बाद उनके देश में स्वच्छता व्यवस्था पर बनी लघु फिल्में भी दिखाई गईं।
सैकोसैन का एक अन्य आकर्षण था सुलभ इंटरनेशनल का स्टॉल, जिसमें मानव-मल के निपटान की अल्पव्ययी व्यवस्था एवं मानव-मल से वैकल्पिक ऊर्जा प्राप्त करने की जानकारी दी गई थी। इसमें कम लागत में सुलभवाली तकनीकों, जिनमें मौके पर ही मानव-मल के निपटान का समुचित एवं वैज्ञानिक तकनीक तथा मानव-अपशिष्ट द्वारा बायोगैस उत्पादन की वैकल्पिक ऊर्जा प्रणाली की प्रदर्शनी लगाई गई थी। जिज्ञासु अतिथियों ने इस विषय पर अनेक प्रश्न किए, जिनका जवाब सुलभ कार्यकर्ताओं ने भलीभांति दिया। नेपाल के माननीय उप-राष्ट्रपति श्री परमानंद झा ने स्टॉल का अवलोकन किया तथा स्वच्छता एवं स्वास्थ्य व्यवस्था के क्षेत्र में सुलभ के पहल की सराहना की।
साभार : सुलभ इंडिया, अक्टूबर 2013
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