प्रधानमन्त्री ने जब 15 अगस्त 2014 को अपने भाषण में स्वच्छ भारत के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई, तब से भारत में वाश क्षेत्र में क्या बदला? पेश है हाल में राजधानी के वाश सम्मेलन में एक प्रतिनिधि के तौर पर शामिल हुए हिमांशु उपाध्याय के कुछ नोट्सः-
25 फरवरी 2015-
हाल में शुरू किए गए स्वच्छ भारत अभियान पर चर्चा के लिए राजधानी में 16-18 फरवरी के बीच इण्डिया वाश (वाटर, सेनिटेशन और हाइजीन) के तीन दिवसीय सम्मेलन में विकास से जुड़े सैकड़ों प्रोफेशनल और सामाजिक कार्यकर्ता जमा हुए।
पानी, सफाई और स्वास्थ्य विज्ञान सम्बन्धी केन्द्र प्रायोजित कार्यक्रमों के बारे में भारत का लम्बा इतिहास है। यह 1999 के पूर्ण स्वच्छता अभियान से शुरू होकर 2012 के निर्मल भारत अभियान तक आता है। नई सरकार ने एक और विशेषण के साथ नई योजना शुरू की है। अब यह देखने की बात है कि क्या `निर्मल’ जैसे विशेषण की जगह पर `स्वच्छ’ विशेषण लगा देने से जमीनी स्थितियों में कोई परिवर्तन `आएगा’। हालांकि अभी तक जो बयान आए हैं अगर वे किसी बात का संकेत हैं तो लगता है कि लक्ष्य पाने और मील का पत्थर छूने पर जबरदस्त जोर है। केंद्र सरकार अगले पांच वर्षों में एक `स्वच्छ भारत’ को प्राप्त करना चाहती है।
वाश सम्मेलन के आरम्भिक सत्र में इस सवाल को पेश किया गया कि क्या पानी, स्वच्छता और स्वास्थ्य विज्ञान की चर्चा करते रहेंगे या हम स्वच्छ भारत के लिए समाधानों पर बहस और चर्चा की ओर बढ़ेंगे? वाटर एड के भारत के निदेशक नीरज जैन ने अपने स्वागत भाषण में इस सवाल को अहमियत के साथ पेश किया।
हालांकि उन्होंने अपने वक्तव्य को `उपभोक्ता’ शब्द के साथ समाप्त किया। उनके इस प्रयोग पर अन्य वक्ताओं ने सत्र के दौरान इस शब्द को रेखांकित किया और यह सवाल खड़े किए कि क्या स्वच्छ भारत मिशन कुल मिलाकर `सेवाएँ प्रदान करने’ का मामला है या यह पानी , स्वच्छता और स्वस्थ जीवन के बारे में है।यह आवाजें दो अलग-अलग राजनीतिक नजरिए से उठीं। मेरे दृष्टिकोण से इनमें पहली आवाज नरेंद्र मोदी की है जो अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में महात्मा गांधी के संदेश को बहुत मुखर और जोरदार ढंग से पेश कर रहे थे।
दूसरा नजरिया जयराम रमेश का है जिनका नाम `आरंभिक सत्र’ और दूसरे दिन के `सभी के लिए गरिमा और न्यायः मानवाधिकार और समान पहुँच के नजरिए से वाश को देखना’ वाले सत्र में वक्ता के तौर पर था। आरम्भिक सत्र (प्लेनरी सेशन)में रमेश का भाषण `सफाई का राजनीतिक अर्थशास्त्र और सफाई कार्यक्रम’ विषय पर था। लेकिन रमेश सम्मेलन में अनुपस्थित रहे।
समाजशास्त्री और जिन्दल स्कूल ऑफ गवर्नमेंट एण्ड पब्लिक पालिसी में पढ़ा रहे शिव विश्वनाथन ने अपना भाषण एक स्वीकारोक्ति के साथ शुरू कियाः उन्होंने कहा कि वे स्थानापन्न के तौर पर बोल रहे हैं और उन्होंने रमेश की भूमिका निभाने का फैसला किया है क्योंकि रमेश हॉकी खेलने गए हैं और शिखर सम्मेलन में नहीं आ पाए हैं।
विश्वनाथन ने अपने छोटे लेकिन सारगर्भित सन्देश में श्रोताओं को यह याद दिलाया कि स्वच्छता खास तौर पर लोकतंत्र और नागरिकता के लिए है। उन्होंने स्वच्छता के लिए ऊपर से दिए जा रहे हुक्म के खिलाफ सचेत किया और कहा कि `स्वच्छता’ और `सफाया’ अभियान के अर्थविज्ञान में फर्क है और विशेष तौर पर उस शासन के तहत जिसका आधार बाद वाले पर निर्भर है।
विश्वनाथन ने `भागीदारी’ के शब्द की भी परीक्षा की और अपने श्रोताओं से कहा कि वे इस शब्द से प्यार करते हैं क्योंकि इसमें `पूरी पारदर्शिता के साथ विश्व बैंक की महक’ मौजूद है। जबकि सामाजिक आंदोलन `सशक्तीकरण’ शब्द को पसंद करते हैं।
भोजन के अधिकार अभियान के सुप्रीम कोर्ट के कमिश्नर ब्रिज पटनायक ने विश्वनाथन की टिप्पणियों से सूत्र पकड़ते हुए इस सवाल को दोहराया कि ``क्या यह शिखर सम्मेलन सफाई के अधिकार की मांग कर रहा है?’’ उन्होंने सहभागियों से कहा कि वे `व्यवहार परिवर्तन संवाद’ की आरती न गाएं और इस बात पर जोर दिया कि वाश की राजनीति नैतिकता और सौंदर्य दोनों की होनी चाहिए।
सकारात्मक आशावाद की इन आवाजों के बावजूद तीन दिन के शिखर सम्मेलन में कभी कभी तकनीकी परचे पेश किए गए जो कि शब्द संक्षेप और शब्दाडंबरों से भरे हुए थे।
प्लेनरी सत्र के अन्त तक आते-आते मैं यह सोचने लगा कि क्या हमें अंग्रेजी भाषा के अलावा किसी और भाषा में प्रस्तुति सुनने को मिलेगी या ग्रामीण कार्यकर्ता भी अपनी कहानी कहने मंच पर आएंगे।
पर हमें ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा और लंच के बाद वाले सत्र में `सफाई और जल सुरक्षा’ विषय पर तरुण भारत संघ के राजेंद्र सिंह ने सिर्फ हिन्दी में बोलने का फैसला किया। अगले दिन ` वाश को प्रभावित करने वाली लैंगिक असमानता का खुलासा’ विषय पर अपनी बात कहने के लिए कमला भसीन ने कोड-मिक्सिंग और कोड-स्विचिंग यानी सूत्रों को मिलाने और उन्हें बदलने का काम किया। ऐसे कई सत्र थे जहाँ पर ग्रामीण पुरुषों और स्त्रियों ने मंच पर आकर गीत गाकर और घेरा बनाकर अपने विचार रखे जो कि आंकड़ों और शब्दाडंबरों से बोझिल परचों से अलग थे।
मुझे उन निश्छल बच्चों को सुनने की बहुत उत्सुकता था जिन्होंने यह संकेत करने का साहस दिखाया कि राजा नंगा है और मैंने उनके जैसे दूसरे लोगों को बातें सुनने का इंतजार किया जिन्होंने विकास का आदर्श बताए जा रहे राज्य में संपूर्ण स्वच्छता अभियान के खराब रिकार्ड की याद दिलाई।
यह सन्देश बहुत महत्त्वपूर्ण था क्योंकि 11 नवम्बर 2014 से यानी स्वच्छ भारत अभियान लागू किए जाने के एक महीने बाद ही गुजरात में संपूर्ण स्वच्छता अभियान लागू की क्रियान्वयन समीक्षा ने राज्य सरकार को इस बात के लिए कटघरे में खड़ा किया कि वह अभियान के उद्देश्य को पाने में विफल रही है।(सम्बन्धित सन्दर्भ नीचे है)।
सीएजी की आडिट रपट ने भी राज्य सरकार को इस बात के लिए दोषी ठहराया कि वह ‘हाथ से मैला साफ करने वालों की नियुक्ति और शुष्क शौचालय निर्माण (निषेध) अधिनियम 1993’ लागू करने में विफल रही है।
सम्मेलन के तकरीबन एक हफ्ते पहले, 10 फरवरी 2015 को गुजरात हाई कोर्ट ने गुजरात सरकार को निर्देश दिया कि वह लगातार इनकार के रवैए से बाहर निकले और हाथ से मैला साफ करने वाले के बारे में बने कानून को लागू करे व इस आचरण को मिटाने वाले सभी आवश्यक कदम उठाए व 1993 के कानून में मैला उठाने वालों के पुनर्वास के बारे में किए गए संकल्प को पूरा करे।
सम्मेलन में श्रोताओं की तरफ से उठने वाली आवाजों में यह ध्यान दिलाया गया कि भारत में `खुले में शौच’ के अलावा हमें बन्धुआ मजदूरी के तौर पर मौजूद सिर पर मैला उठाने की प्रथा की तरफ भी ध्यान देना होगा। इस बात पर जोर दिया गया कि जब हम अगले साल वाश के सम्मेलन के लिए इकट्ठा हों तो हम हाथ से मैला उठाने की कुप्रथा को मिटाने के लिए `व्यवहार परिवर्तन संवाद’ की आवश्यकता पर जोर देने के लिए मुल्क राज आनंद के साथ गाँधी को भी पढ़ कर आएंगे।
भारत के नियंत्रक और लेखा महापरीक्षक ने सन 2003 की उपलब्धि समीक्षा में हाथ से मैला उठाने की प्रथा समाप्त करने के लिए एक कार्यक्रम पेश किया और देश को याद दिलाया कि 1993 में पास किए गए कानून के आधार पर जो वादा किया गया था वह पूरा किया जाना चाहिए। उपलब्धि समीक्षा के कारण यह बात लोगों की निगाह में आ गई कि किस तरह ` नेशनल स्कीम आफ लिबरेशन एंड रिहैबिलेशन आफ स्कैवेंजर एण्ड देयर डिपेंडेंट्स’ जैसी एक केंद्रीय योजना के लक्ष्य और समय सीमा को प्राप्त नहीं किया जा सका।
हालांकि तीन दिनों की कार्रवाई के दौरान हम व्यर्थ ही इस बात का इंतजार करते रहे कि सम्मेलन के आयोजक इंडियन अकाउंट्स एण्ड आडिट सर्विसेज (आइएएएस) के उन अधिकारियों की तरफ कोई ध्यान देंगे या उनकी आवाजों को सुनेंगे जिन्होंने तकरीबन एक दशक पहले वह आडिट रपट लिखी थी। स्पष्ट तौर पर हम अभी तक उस तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं।
सन्दर्भ—
नेशनल स्कीम आफ लिबरेशन एण्ड रिहैबिलिटेशन आफ स्कैवेंजर्स एण्ड देयर डिपेंडेंट्स(2003) का सीएजी परफारमेंस रिव्यू
सीएजी टेक्स `ए स्वच्छ गुजरात’ टू द टास्क, द टाइम्स आफ इण्डिया 12 नवम्बर 2014
मैनुअल स्कैवेंजिंग ऑन इन गुजरात डिस्पाइट बीइंग प्रोहिबिटेडःसीएजी, जी न्यूज,
एचसी डाइरेक्ट्स स्ट्रिक्ट इंप्लीमेंटेशन ऑफ ला आन मैनुअल स्कैवेंजिंग, द इण्डियन एक्सप्रेस, 10 फरवरी 2015,
दी सीएजी आफ इण्डियाज परफारमेंस रिव्यू आफ इंप्लीमेंटेशन आफ टोटल सैनिटेशन कैंपेन इन गुजरात (देखें अध्याय 2, आडिट पैरा 2.2)
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