स्वच्छ भारत ऊर्जा मन्त्रालय

प्रमोद मक्कड़

 

भारत के माननीय प्रधानमन्त्री द्वारा 2 अक्टूबर 2014 स्वच्छ भारत का आह्वान करने के बाद से सभी मन्त्रालय एवं सरकारी विभाग इस दिशा में स्वीकारात्मक कदम उठा रहे हैं।

ऊर्जा मन्त्रालय ने नई दिल्ली के श्रमशक्ति भवन में ‘स्वच्छता पर प्रेरक वार्ता’ पर एक सेमिनार का आयोजन किया। सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन के संस्थापक डॉ. बिन्देश्वर पाठक इस सेमिनार में अपने जीवन के अनुभवों को साझा करने के लिए विशेष रूप से आमन्त्रित थे। डॉ. पाठक स्वच्छता के क्षेत्र में एक जाने माने निष्ठावान व्यक्ति हैं, जिनका संगठन देश के 26 राज्यों में कार्यरत है।

सचिव श्री पी.के सिन्हा, अपर सचिव श्री देवेन्द्र चौधरी, संयुक्त सचिव श्री सतीश कुमार और मन्त्रालय के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने गर्मजोशी से डॉ. पाठक का स्वागत किया एवं उन्हें कॉंन्फ्रेंस हॉल में ले गए, जहाँ वीडियो कॉंन्फ्रेंसिंग की सुविधा थी। अपने प्रारम्भिक अनुभवों में से एक का वर्णन करते हुए डॉ. पाठक ने कहा कि जब उन्होंने शौचालयों पर कार्य करना आरम्भ किया तो उनके ससुर ने उनसे कहा, ‘आप जाति से ब्राह्मण हैं, यह गन्दा कार्य क्यों कर रहे हैं? आपके पास रोजगार के कई विकल्प मौजूद हैं।’ डॉ. पाठक का जवाब था, ‘या तो मैं इतिहास बदल दूँगा या फिर उसी में पूरी तरह खो जाऊँगा।’ उन्होंने कहा कि महात्मा गाँधी स्वच्छ भारत पहले और स्वतन्त्रता बाद में चाहते थे। वह स्वच्छता एवं शौचालय निर्माण को लेकर काफी चिन्तित थे। उनके आश्रम में शौचालय की सफाई सबके लिए अनिवार्य थी।

डॉ. पाठक ने कहा कि पहले एक उद्देश्य तय करें और फिर आजीवन इसे पूर्ण करने का लक्ष्य रखें, तभी सफलता हासिल हो सकती है। उन्होंने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन केनेडी का उद्धरण देकर कहा, ‘यह न पूछें कि आपके देश ने आपके लिए क्या है, बल्कि यह पूछें कि आपने अपने देश के लिए क्या किया है।’ डॉ मुल्कराज आनन्द के उपन्यास ‘अछूत’ की भूमिका में ई.एम. फोर्स्टर ने लिखा है, ‘अस्पृश्यों को मैला ढोने की कुप्रथा से निकालने के लिए न कोई भगवान चाहिए, न कोई त्याग तपस्या, सिर्फ एक फ्लश शौचालय चाहिए।’ सन 1870 में कोलकाता विश्व में तीसरा शहर था, जहाँ सीवर प्रणाली का आरम्भ किया गया था। डॉ. पाठक ने कहा कि अब तक 7,965 शहरों में से केवल 160 शहरों में सीवर प्रणाली उपलब्ध हैं।

सुलभ तकनीक

डॉ. पाठक ने कहा, जब मैंने इस कार्यक्षेत्र में पदार्पण किया तो भारत की स्थिति ऐसी थी। मैंनी ऐसी तकनीक का विकास किया, जो उपयुक्त, सस्ती, स्वदेशी और सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य है। सुलभ ने 12 लाख से भी अधिक घरेलू एवं 8,500 से अधिक सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण किया है। मार्च 2014 में बीबीसी होराइजन्स द्वारा घोषित दुनिया के पाँच महत्वपूर्ण आविष्कारों में एक नाम सुलभ शौचालय का भी है। हमने शिरडी में विश्व के विशालतम शौचालय परिसरों में से एक का निर्माण किया है। हमने काबुल (अफगानिस्तान) में भी पाँच सार्वजनिक शौचालय परिसरों का निर्माण किया है, जो बायोगैस संयंत्र से संयोजित हैं।

पटना में बायोगैस संयंत्र की मदद से बेली रोड में हमने अपने प्रयोग को साबित करने के लिए प्रथम बार विद्युत उत्पादन किया। यह प्रयोग सात वर्षों तक चला। हमारी दो गड्ढे वाली तकनीक सेप्टिक टैंक से कहीं अधिक उपयुक्त है। सेप्टिक टैंक सर्द जलवायु वाले क्षेत्रों के लिए अनुकूल है।

स्कैवेंजरों को समाज की मुख्यधारा मे शामिल करने हेतु अपने प्रयासों का जिक्र करते हुए डॉ. पाठक ने कहा, महात्मा गाँधी किसी महिला स्कैवेंजर को भारत का राष्ट्रपति बनते हुए देखना चाहते थे। मेरे पास उन्हें भारत का राष्ट्रपति बनाने का समर्थ्य तो नहीं है, लेकिन मैं उनमें से एक स्कैवेंजर को सुलभ का प्रेजिडेंट तो बना ही सकता हूँ। मैंने श्रीमती उषा चौमड़ को सुलभ की मानद प्रेसिडेंट बनाया, जो सन 2003 तक सर पर मैला ढोने का कार्य करती थीं। मैं इन मुक्त हुई स्कैवेंजर महिलाओं को न्यूयॉर्क ले गया, जहाँ उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में अन्तरराष्ट्रीय मॉडलों के साथ रैम्प पर चहलकदमी की। नई दिल्ली में हमने अंग्रेजी माध्यम के एक विद्यालय की स्थापना की और इस विद्यालय के शौचालयों की सफाई शिक्षक एवं छात्र स्वयं करते हैं।

निराश्रित विधवाओं को सुलभ की तरफ से प्रदत्त सहायता के विषय में बताते हुए डॉ. पाठक ने कहा, माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण ने सुलभ से यह प्रश्न किया की क्या वह वृंदावन के आश्रमों में रहने वाली विधवाओं की बेहतरी के लिए कुछ कर सकता है? हमने उनका प्रस्ताव स्वीकार किया और उनकी सहायता हेतू वृन्दावन पहुँच गए। आज हम वृन्दावन एवं वाराणसी की लगभग 1,000 विधवाओं की देखभाल कर रहे हैं। हम इन सभी महिलाओं को भोजन के लिए 2,000 रुपए का मासिक स्टाइपेंड भी देते हैं। हम इनके स्वास्थ्य एवं अन्य बुनियादी आवश्यकताओं का भी ख्याल रखते हैं।

सुलभ विधवाओं का गाँव कहे जाने वाले उत्तराखण्ड के दिवली भनीग्राम की विधवाओं को भी सहायता प्रदान कर रहा है, जहाँ केदारनाथ घाटी में आए जल-प्रलय के कारण 57 व्यक्तियों की मौत हो गई, जिस कारण 32 महिलाएँ विधवा हो गईं है। सुलभ ने इन विधवाओं को भी स्टाइपेंड देना प्रारम्भ किया और वहाँ एक व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना की, जिससे इनका जीवन एक बार फिर सम्भल सके।

डॉ. पाठक ने कहा कि भारत में 63.80 करोड़ घरों में शौचालय नहीं है। उन्होंने कहा कि पाँच वर्षों में इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु उन्हें 50,000 युवक एवं युवतियों की आवश्यकता है। भारत में 6,38,588 गाँव हैं। जब हमारे पास 6 लाख गाँवों में कार्य करने हेतू 50,000 प्रशिक्षित कर्मी होंगे तो एक व्यक्ति 12 गाँवों की देखभाल कर सकेगा। 12 गाँवों के लिए पाँच वर्ष का समय पर्याप्त है। आर्थिक मदद के लिए ऋण लिया जा सकता है और इस प्रकार इस समस्या को हल किया जा सकता है।

साभार : सुलभ इण्डिया नवम्बर 2014

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