डॉ. ललित वार्ष्नेय
हाल ही में भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र ने सीवेज ट्रीटमेंट पर नए तरीके ईजाद किए हैं। देश में प्रतिदिन हजारों करोड़ लीटर मल-जल पैदा होता है जिसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम जैसे पोषक तत्व भी भारी मात्रा में होते हैं और साथ ही जीवाणुओं और कीटाणुओं की एक बड़ी फौज भी होती है। अगर सीधे मल-जल का इस्तेमाल खेतों में होता है तो रोगवाहक कीटाणु भी पौधों के माध्यम से मानव तक पहुँचने लगते हैं। इसलिए जरूरी है कि हजारों करोड़ लीटर मल-जल को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से ट्रीट तो किया ही जाए साथ ही उसमें मौजूद सूक्ष्म जीवाणुओं को भी निष्क्रिय किया जाए। भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र द्वारा ईजाद एक नई तकनीक में विकिरण के माध्यम से सूक्ष्म जीवाणुओं को निष्क्रिय किया जाएगा। पढ़िए पूरी रिपोर्ट
महात्मा गाँधी के स्वच्छ भारत के सपने को पूरा करने के उद्देश्य से प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 02 अक्तूबर, 2014 को "स्वच्छ भारत अभियान" की शुरुआत की। उन्होंने कहा कि जन स्वास्थ्य और गरीब लोगों की आय की सुरक्षा में "स्वच्छ भारत अभियान" का व्यापक प्रभाव पड़ेगा और अंततः राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में इसका योगदान होगा।
अप्रैल, 2015 में भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र (बीएआरसी) ने अपनी वैज्ञानिक और तकनीकी सहायता के माध्यम से 100 टन प्रतिदिन गामा विकिरण स्लज हाइजीनाइजेशन सुविधा स्थापित करने के लिए अहमदाबाद नगर निगम के साथ एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं।
स्वच्छ भारत अभियान के हिस्से के रूप में विभिन्न मन्त्रालय और विभाग "स्वच्छ भारत अभियान" में योगदान के लिए अनेक कदम उठा रहे हैं। इसे ध्यान में रखते हुए हाल में अप्रैल, 2015 में भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र (बीएआरसी) ने अपनी वैज्ञानिक और तकनीकी सहायता के माध्यम से 100 टन प्रतिदिन गामा विकिरण स्लज हाइजीनाइजेशन सुविधा स्थापित करने के लिए अहमदाबाद नगर निगम के साथ एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। ऐसी विकिरण हाइजीनाइजेशन सुविधाओं से "स्वच्छ और स्वस्थ भारत" अभियान के लक्ष्यों तक पहुँचने में काफी योगदान मिलेगा।
घरेलू परिसरों से प्रवाहित गन्दा पानी सीवेज कहलाता है जो मुख्य रूप से मानवीय कचरा है। सीवेज में प्रायः 99.9 प्रतिशत से अधिक हिस्सा जल और 0.05 प्रतिशत ठोस अंश मौजूद रहता है। ठोस हिस्से के कारण गाद बनता है। मोटे तौर पर गाद का निपटारा असंगठित तरीके से किया जाता है, जिससे पर्यावरण प्रदूषित होता है और बीमारियाँ फैलती हैं। इस गाद में भारी मात्रा में सूक्ष्म जैवकीय पदार्थ रहते हैं और इस कारण से शहरी विकास से जुड़े प्राधिकरणों के लिए इसका निपटारा करना एक बड़ी चुनौती रही है। भारत के महानगरों और शहरों को मिलाकर एक अनुमान के अनुसार इनसे 3825.40 करोड़ लीटर प्रतिदिन गन्दा जल प्रवाहित होता है। यदि इसमें शामिल 0.05 प्रतिशत ठोस सामग्री के बारे में विचार करें तो इस गन्दे जल से कुल 19127 टन प्रतिदिन गाद बनने की सम्भावना है। "स्वच्छ भारत अभियान" और स्मार्ट सिटी के लक्ष्यों पर विचार करते हुए आगामी कई सीवेज उपचार संयंत्रों से और भी अधिक मात्रा में गाद तैयार होंगे।
विशेषकर बड़े महानगरों में संक्रामक सूक्ष्म जीवाणुओं की उपस्थिति की सम्भावना के कारण नगर निगम के गन्दे जल वाले गाद के निपटारे से लोगों के स्वास्थ्य को गम्भीर खतरा हो सकता है। मौजूदा दौर में गाद को निपटाने की जो प्रक्रिया है उसकी अपनी सीमाएँ हैं। उदाहरण के लिए समुद्र में निपटारे के लिए स्थान का चयन करना, दहन करने में अत्यधिक ऊर्जा लगना और खाईयों को भरने में गाद को काफी दूर ढोकर ले जाना पड़ता है, क्योंकि शहरी क्षेत्रों में जमीन की उपलब्धता कम होती है। दूसरी ओर ये गाद नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम, जस्ता, लोहा, ताम्बा आदि जैसे पोषक तत्वों का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
मल-जल उपचार संयंत्र के संचालकों के साथ-साथ किसानों के बीच भी खेती के काम में गाद के इस्तेमाल में रूचि बढ़ी है। कृषक समुदाय ने यह महसूस किया है कि खेती के काम में अधिक समय तक रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक इस्तेमाल होने वाला नहीं है। मल-जल के सूखे गाद का लाभदायक इस्तेमाल करके फसलों को पोषक तत्वों की आपूर्ति की जा सकती है और मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाई जा सकती है। इससे फसल की उत्पादकता बढ़ने के साथ-साथ मिट्टी की उर्वरता भी कायम रहेगी। सीवेज उपचार संचालकों के लिए भी यह लाभकारी हो सकता है, क्योंकि जहाँ ऐसे कचरे के निपटारे में परेशानी होती है, वहीं इनके इस प्रकार इस्तेमाल से पर्यावरण सम्बन्धी चिन्ताओं के दूर होने के साथ-साथ देश के आर्थिक नुकसान में कमी आती है। इस प्रकार सीवेज के गाद का रिसाइकलिंग करने और खेती में इसका इस्तेमाल होने से यह एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में उभर सकता है और पर्यावरण की सुरक्षा होने के साथ-साथ मानव और पशुधन के स्वास्थ्य की भी रक्षा हो पाएगी।
सीवेज में प्रायः 99.9 प्रतिशत से अधिक हिस्सा जल और 0.05 प्रतिशत ठोस अंश मौजूद रहता है। ठोस हिस्से के कारण गाद बनता है। मोटे तौर पर गाद का निपटारा असंगठित तरीके से किया जाता है, जिससे पर्यावरण प्रदूषित होता है और बीमारियाँ फैलती हैं। इस गाद में भारी मात्रा में सूक्ष्म जैवकीय पदार्थ रहते हैं और इस कारण से शहरी विकास से जुड़े प्राधिकरणों के लिए इसका निपटारा करना एक बड़ी चुनौती रही है।
सीवेज उपचार संयंत्रों में ऐसे गाद के पारम्परिक उपचार के बाद इसमें सूक्ष्म जैवकीय पदार्थ की अत्यधिक मात्रा कायम रहती है और स्वास्थ्य पर होने वाले नुकसान को रोकने के लिए खेती के काम में इसके इस्तेमाल से पहले इसे स्वस्थ बनाना जरूरी है। इसके लिए ऐसी प्रौद्योगिकी विकसित करना जरूरी है, जिससे इस गाद को विश्वसनीय, प्रभावकारी और किफायती तरीके से स्वस्थ बनाया जा सके। पूरे विश्व में गाद के निपटारे के लिए मिश्रित प्रक्रियाएँ अपनाई जाती हैं, जिसमें कृषि के लिए इसका 40 से 50 प्रतिशत इस्तेमाल होना शामिल है। खेती के काम में गाद के इस्तेमाल के लिए कुछ तरीके हैं, जिनमें चूना द्वारा उपचार करना, ताप द्वारा कीटाणु मुक्त करना और कम्पोस्ट बनाना शामिल हैं। सामान्य रूप से गाद के निपटारे के लिए अलग-अलग देशों में अलग-अलग तरीके अपनाए जा रहे हैं।
उच्च ऊर्जा वाले विकिरण से इन सीवेज गाद में मौजूद सूक्ष्म जीवाणुओं को निष्क्रिय करने की बेजोड़ क्षमता है, जो सरल, कारगर और विश्वसनीय है। कोबाल्ट-60 जैसे विकिरण स्रोत द्वारा उत्सर्जित आयोनाइजिंग विकिरण गाद में मौजूद डीएनए और प्रोटीन जैसे महत्वपूर्ण अणुओं के सम्पर्क में आता है, जिससे पैथोजन निष्क्रिय हो जाते हैं। अप्रत्यक्ष रूप से जल में मौजूद रेडियोलिटिक उत्पाद भी इस उपचार को सूक्ष्म जीवाणुओं के लिए और भी अधिक विनाशकारी बनाते हैं। इस गुण के कारण, विकिरण प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल पूरे विश्व में चिकित्सा उत्पादों को जीवाणु मुक्त करने में किया जाता है। इस समय भारत में कोबाल्ट-60 पर आधारित गामा विकिरण के 18 संयंत्र मौजूद हैं और विश्वभर में इसकी संख्या 400 से अधिक है।
किसी मानकीकृत सीवेज उपचार संयंत्र का अन्तिम उत्पाद सूखा गाद है, जिसमें लगभग 75-80 प्रतिशत ठोस मात्रा मौजूद रहती है और 20-25 प्रतिशत जल मौजूद रहता है। इसकी विशेष सीमा इन कारणों से अधिक नहीं होनी चाहिए :
1. दूषित पदार्थों (आर्सेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, ताम्बा, लेड, पारा, निकल, सेलेनियम और जस्ता) की मौजूदगी। घरेलू दूषित जल में इन धातुओं की अधिक मात्रा में मौजूदगी की सम्भावना नहीं होती है। शहरी विकास मन्त्रालय और अमरीकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (यूएसईपीए) ने भी इसकी समान सीमाएँ निर्धारित की हैं। विकिरण की प्रक्रिया में भारी धातुओं की अधिक मात्रा में कोई बदलाव नहीं किया जाता है।
2. पैथोजनों (जैसे बैक्टीरिया, वायरस, पैरासाइट) की उपस्थिति।
3. दूषित जल के गाद की ओर चूहा, गिलहरी जैसे कुतरने वाले जीव-जन्तु, मक्खियाँ, मच्छर और चिड़ियाँ आदि आकर्षित होते हैं, जिससे पैथोजनों का अन्य स्थानों और लोगों तक स्थानांतरण हो सकता है। सीवेज उपचार संयंत्र की प्रक्रिया द्वारा इसमें कमी लाई जाती है।
उपरोक्त शर्तों को पूरा करने के बाद खेती के काम में सूखे गाद का सुरक्षित इस्तेमाल किया जा सकता है। अमरीकी सीवेज उपचार एजेंसियों और शहरी विकास मन्त्रालय ने गामा और इलेक्ट्रॉन विकिरण को बैक्टीरिया, वायरस, प्रोटोजोआ श्रेणी के कीटाणुओं, हैल्मिंथ आदि में अतिरिक्त कमी लाने के प्रभावकारी तरीकों में से एक बताया है।
गुजरात के वडोदरा स्थित स्लज हाइजीनाइजेशन रिसर्च इरेडियेटर (एसएचआरआई) में प्राप्त अनुभवों से यह प्रमाणित होता है कि किसानों के लाभ के लिए इसका इस्तेमाल हो सकता है। इस संयंत्र में तरल स्लज विकिरण प्रक्रिया (96 प्रतिशत जल और 4 प्रतिशत ठोस) जारी है। सूखे गाद का विकिरण करना अधिक किफायती, विश्वसनीय और व्यापक तौर पर स्लज हाइजीनाइजेशन के लिए मापनयोग्य है। अन्य ठोस कचरे को भी सूखे गाद के विकिरण की प्रक्रिया के इस्तेमाल से रोगाणुमुक्त किया जा सकता है। रोगाणुमुक्त गाद को राइजोबियम, एजोटोबैक्टर और फास्फेट आधारित बैक्टीरिया के साथ सम्पर्क में लाने पर बिना उपचार वाले गाद की तुलना में 100-1000 गुना अधिक वृद्धि देखी गई है और इस कारण से यह एक मूल्य-संवर्द्धित जैव उर्वरक बन गया है।
गुजरात में कृषि विज्ञान केन्द्रों (आईसीएआर) और स्थानीय किसानों द्वारा विकिरण द्वारा उपचारित गाद के इस्तेमाल से किये गये क्षेत्रीय परीक्षणों के परिणाम निम्नानुसार हैं –
1. फसल की पैदावार में वृद्धि से किसानों को प्रत्यक्ष लाभ। मृदा संरक्षण और उर्वरा शक्ति कायम रखने में सफलता।
2. गाद से सम्बन्धित स्वास्थ्य सम्बन्धी जोखिमों में कमी होना, जिससे देश के अस्पतालों पर सम्भावित दबाव में कमी।
3. गाद में जल को धारण करने की अधिक क्षमता होने के कारण जल की माँग में कमी।
4. बेकार समझे जाने वाले गाद को रिसाइकिल करके उसमें मौजूद पोषक तत्वों से आर्थिक लाभ की प्राप्ति होना।
5. कुल मिलाकर जीवन की गुणवत्ता में सुधार।
इस प्रकार, ऐसे विकिरण हाइजिनाइजेशन सुविधाओं का इस्तेमाल देश के अन्य भागों में भी किया जा सकता है और भारत को स्वच्छ, स्वस्थ बनाने के साथ ही देश के लोगों के जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने में वास्तविक योगदान हो सकता है।
डॉ. ललित वार्ष्नेय भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र (बीएआरसी), मुम्बई के विकिरण प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख हैं।
सन्दर्भ –
1. सीवरेज और सीवेज उपचार प्रणाली पर पुस्तक, शहरी विकास मन्त्रालय, भाग-ए, नवम्बर, 2013, नई दिल्ली (http://moud.gov.in)
2. इरेडिएटिड सीवेज स्लज फॉर एप्लीकेशन टू क्रॉपलैंड, आईएईए-टीईसीडीओसी- 1317, इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (अक्टूबर, 2002) पृष्ठ - 1-3
3. यूनाइटेड स्टे्टस एनवायरमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी (यूएस, ईपीए), 40 सीएफआर पार्ट-503, बायोसोलिड रूल्स।
साभार : पत्र सूचना कार्यालय (PIB)
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