स्वच्छ भारत मिशन का जनाजा निकाल रहे हैं अधिकारी

कुमार कृष्णन

 

स्वच्छता के मकसद से चलाया गया स्वच्छ भारत मिशन एक महत्वपूर्ण अभियान है। कई जगहों पर इस दिशा में काम हो रहा है लेकिन कहीं-कहीं यह जमीन पर उतारा तक नहीं गया है। यह एक कड़वी सच्चाई है कि करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद इसके सार्थक परिणाम सामने नहीं आ रहे हैं। जगह-जगह लगे होर्डिंग्स और प्रचार माध्यमों में तो यह अभियान नजर आता है लेकिन जमीनी स्तर पर लोगों में अभी जागरूकता नहीं आई है। इसके प्रति न तो अधिकारी गम्भीरता दिखते हैं, न ही इस अभियान को अंजाम देने में लगे स्वयंसेवी संगठन। नतीजतन यह अपने लक्ष्य में पिछड़ रहा है।

 

हाल ही में इस अभियान की सफलता के लिए कार्यक्रम आयोजित किए गए। लेकिन अभी भी लोगों को यह नहीं पता कि आखिर यह अभियान क्या है? जाहिर है अभियान के क्रियान्वयन में या तो खानापूर्ती की जा रही है या फिर ठोस पहल का अभाव है। इस परिप्रेक्ष्य में यदि हम बिहार के मुंगेर की बात करें तो मुंगेर में निर्धारित लक्ष्य भी हासिल नहीं हो पाया है। हालाँकि स्वच्छता व्यक्तिगत व्यवहारों को अपनाकर स्वस्थ्य रहने का, जिंदगी जीने का तरीका है। साथ ही यह उत्तम स्वास्थ्य, आयु, पोषण और जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि करने का भी साधन है।

 

इस अभियान के महत्वपूर्ण अवयवों में लोगों को खुले में शौच की प्रवृति से मुक्ति दिलाना शामिल है। पंचायत चुनाव में शौचालय को अनिवार्य हिस्सा बनाया गया। यानी वही व्यक्ति पंचायत चुनाव लड़ पाएँगें जिनके यहाँ शौचालय होगा। इस अभियान को अंजाम देने के लिए हर प्रखंड में उत्प्रेरक लगाए गए हैं। यदि मुंगेर की बात करें तो चालू वित्तीय वर्ष 2015 में जिले में 53 हजार 834 शौचालयों का निर्माण करवा लोगों को खुले में शौच करने की प्रवृति से मुक्ति दिलाने की ओर कदम बढ़ाना था। लेकिन इस वित्तीय वर्ष के आठ माह बीत गए लेकिन मात्र 1981 शौचालयों का ही ​निर्माण लोगों को उत्प्रेरित कर करवाया जा सका है। इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि योजनाओं के क्रियान्वयन की रफ्तार क्या है? लक्ष्य क्यों नहीं हासिल हो रहा है, इस सवाल पर लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के कार्यपालक अभियंता सरयुग राम कहते हैं कि प्रखंडों में उत्प्रेरकों की कमी है। जिले के नौ प्रखंडों में से तीन में उत्प्रेरक नहीं हैं। मुंगेर के सदर प्रखंड, असरगंज और धरहरा में उत्प्रेरकों के पद रिक्त हैं। लिहाजा जिस हिसाब से लोगों को उत्प्रेरित किया जाना था, वह काम नहीं हो सका और यही कारण है कि लक्ष्य हासिल करने में हम काफी पीछे हैं।

 

हाल में इस अभियान को गति देने के लिए मुंगेर के कलेक्टर ईश्वरचंद्र शर्मा तथा सदर अनुमंडलाधिकारी ने नौ रथ ग्रामीण क्षेत्रों में रवाना किए हैं। इस अभियान को जन-जन से वाकिफ कराने की जिम्मेदारी तीन स्वयंसेवी संगठनों जनकल्याण जागृति संस्थान, शांति मानव कल्याण और जागृति सेवा संस्थान को दी गयी है। ये स्वयंसेवी संगठन वैयक्तिक शौचालयों के निर्माण में अपनी भूमिका अदा करेंगे। साथ ही जिले के हर पंचायत को कवर कर ग्राम सभा, स्कूलों के माध्यम से इस संदेश को लोगों को तक पहुँचाएगे। यह त्रासदी है कि इनके द्वारा चलाए जा रहे अभियान की जानकारी आम लोगों को नहीं है। इससे सहज ही यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि अभियान किस तरह चल रहा है।

 

यह बात सर्वविदित है कि खुले में शौच की प्रवृति के कारण सामाजिक परिवेश विषाक्त हो रहा है। इसके कारण चारो ओर गंदगी और बदबू फैलती है। लोग तरह-तरह की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। बीमारी के कारण लोगों के कार्यदिवस कम होते हैं। आय में कमी होती है। साथ ही बीमारी के खर्चे बढ़ते हैं। इसका एकमात्र उपाय है कि शौचालयों का निर्माण कराया जाये और बीमारियों से मुक्ति पाई जाए। इस दिशा में सरकार की ओर से दस हजार रुपये और बारह ​हजार रूपये दिए जाते हैं। बावजूद इसके प्रशासन की भूमिका के कारण मुंगेर अपने लक्ष्य को हासिल करने में पीछे है।

 

मुंगेर के प्रमंडलीय आयुक्त लियान कुंगा कहते हैं कि उन्होंने इस अभियान के सन्दर्भ में केन्द्र और राज्य सरकार के मिले दिशा-निर्देश से सभी जिला पदाधिकारियों को पहले ही वा​किफ करा दिया गया था। साथ ही इसके बेहतर क्रियान्वयन के निर्देश दिए गए थे। विधानसभा चुनावों तथा पर्व त्यौहार के कारण हो सकता है कि काम कुछ स्तर तक प्रभावित हुआ हो। वे स्वयं इस मामले की समीक्षा जिला पदाधिकारियों के साथ करेंगें और निश्चित रूप से  अभियान में तेजी आएगी। उन्होंने कहा कि एनजीओ को तो लगाया गया है, लेकिन पूरा कार्यक्रम पर्यवेक्षण जिला जल स्वच्छता समिति को करना है। इसके अध्यक्ष जिला पदाधिकारी होते हैं और कार्यपालक अभियंता सदस्य सचिव होते हैं। उनका यह प्रयास होगा कि जिस भी स्तर पर लापरवाही बरती जा रही है, उस पर लगाम लगाकर स्वच्छ भारत मिशन के लक्ष्यों को हासिल किया जा सके। उन्होंने स्पष्ट किया कि स्वच्छता में सिर्फ शौचालय नहीं आता बल्कि पूरे सामाजिक परिवेश की स्वच्छता आती है।

 

यह आम धारणा बन गई है कि एक जगह का कचरा दूसरी जगह रख दो। इसके लिए मानसिकता में बदलाव के साथ-साथ नागरिक दायित्वबोध का होना भी आवश्यक है। पूर्वोत्तर क्षेत्र और बिहार की ​स्थिति भिन्न है। वहाँ लोग श्रमदान करके भी वातावरण को स्वच्छ रखते हैं। यदि हम इस तरह की संस्कृति बिहार में विकसित करते हैं तो स्वच्छ भारत मिशन का लक्ष्य हासिल करने में हम कामयाब हो जाएँगे।

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