श्रेया पारीक
भारत की सफाई समस्याओं पर आगे बढ़कर काम करने से लेकर विशिष्ट व नए समाधान देने वाले ये गुमनाम नायक भारत को एक स्वस्थ और स्वच्छ भविष्य की ओर ले जा रहे हैं। आइए इन पाँच चकित करने वाले उपायों पर विचार करें जो खामोशी और दृढ़ता से भारत की स्वच्छता को सुधार रहे हैं।
1. नमिता बांका- ‘बायो लू’ को भारत के हर कोने में ले जाने का प्रयास
नमिता बांका और उनकी बांका बायोलू की टीम इस बात के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं कि इको फ्रैण्डली टॉयलट भारत के ज्यादातर घरों तक पहुँचे जिससे खराब स्वच्छता और खुले में शौच जैसी भारत की दो प्रमुख दिक्कतें असरदार ढंग से दूर कर ली जाएं।
यह टीम घरों, सार्वजनिक स्थलों, सामुदायिक इलाकों, स्कूलों और संस्थाओं के लिए बायो टॉयलट बना रही है, इण्डियन रेलवे और दूसरे ग्राहकों के लिए बायो टैंक बना रही है, बायो टॉयलट और बायोटैंक के लिए बायो डाइजेस्टर (द बैक्टीरियल कल्चर) तैयार रही है और सेप्टिक टैंक को बायो टैंक के रूप में संवर्धित कर रही है। वे बायो टॉयलट को सर्विस देते हैं और सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने रेलवे जोन और दूसरी कॉरपोरेट इकाइयों से बायो टॉयलट काम करने लायक बनाए रखने के लिए संविदा भी की है। आइए उस टीम को बधाई दें जो प्रकृति की पुकार को प्रकृति के ज्याद अनुकूल बना रही है।
2. इराम साइंटिफिक- भारत का पहला मानव (संचालक) रहित शौचालय बनाने वाले
इराम साइंटिफिक सोल्यूशन्स प्राइवेट लिमिटेड की तरफ से तैयार की गई टॉयलट की वैज्ञानिक डिजाइन भारत की सफाई समस्या को ज्यादा अनुकूल प्रौद्योगिकी के साथ हल कर रही है। यह टॉयलट सेंसर आधारित प्रौद्योगिकी पर काम करते हैं। स्वतः सफाई और जलसंरक्षण प्रक्रिया के कारण यह टॉयलट अपने आप में विशिष्ट हैं। प्रयोग करने वाले को शौचालय खोलने के लिए एक सिक्के का प्रयोग करना होता है और जैसे ही वह उसमें घुसता है तो सेंसर आधारित विद्युत व्यवस्था अपने आप चालू हो जाती है। यह सिस्टम स्वतः स्फूर्त आदेशों के तहत प्रयोग करने वाले की मदद भी करता रहता है।
इन स्मार्ट टॉयलटों में यह व्यवस्था है कि वे तीन मिनट के प्रयोग के बाद 1.5 लीटर पानी से फ्लश करते हैं और अगर प्रयोग का समय लम्बा है तो 4.5 लीटर पानी का प्रयोग करते हैं। हर पाँच या दस लोगों के प्रयोग के बाद टॉयलट प्लेटफार्म को अपने आप साफ करता है। इससे सफाई और स्वच्छता के बड़े मुद्दों का समाधान अपने आप हो जाता है।
3. अतुल भिड़े- अकेले आदमी की पलटन
मुम्बई के अतुल भिड़े ग्रामीण भारत को एक स्वस्थ भविष्य की ओर ले जा रहे हैं, जिसका नारा है एक बार में एक शौचालय। जब उन्होंने महाराष्ट्र में सफाई की खराब स्थितियों को देखा तो ठाणे हिल के रोटरी क्लब के फण्ड से दस शौचालय बनवाए, क्योंकि वे क्लब के अध्यक्ष थे। उसके बाद उन्होंने महाराष्ट्र के सोलगाव में दो सौ शौचालय बनवाए। हर शौचालय में सोख्ते के दो गड्ढे होते हैं, जिनके भीतर मधुमक्खी के छत्ते जैसे ईंट के काम होते हैं। वे गंध मुक्त होते हैं और उन्हें किसी प्रकार के अलग ड्रेनेज (मल व्ययन) प्रणाली की जरूरत नहीं होती है।
4. स्वप्निल चतुर्वेदी- छी-छी वाले
आइए स्वप्निल चतुर्वेदी उर्फ छी-छी वाले से मिलें। जब उनकी बेटी ने शिकायत की कि उनके स्कूल में साफ शौचालय नहीं है तो उन्होंने शहरी गरीबों को चौंकाने वाली सफाई सेवा देने के लिए समग्र की शुरुआत की। वे अपने को `चीफ टॉयलट क्लीनर’ कहते हैं। उनका कहना है कि अगर शौचालय हैं भी और साफ नहीं हैं तो लोग उनका इस्तेमाल करना पसन्द नहीं करेंगे। यह उनके प्रयासो का फल है कि शहरी गरीब विशेषकर किशोरियाँ अब ज्यादा गरिमापूर्ण जीवन जीती हैं।
5. डॉ. मापुस्कर और ग्रामीण भारत में उनके चकित करने वाले शौचालय
डॉ. मापुस्कर ग्रामीण स्वच्छता के क्षेत्र में पिछले 50 सालों से काम कर रहे हैं। दस शौचालय बनाने का उनका पहला प्रयास विफल हो गया क्योंकि वे बरसात में गिर गए। लेकिन उन्होंने प्रयास बन्द नहीं किए और अप्पासाहेब पटवर्धन द्वारा विकसित बायोगैस टॉयलट के माध्यम से ज्यादा बेहतर प्रौद्योगिकी का प्रोत्साहन शुरू किया। आज गाँव में ऐसे 75 बायोगैस टॉयलट काम कर रहे हैं , यह उन 1000 शौचालयों के अलावा हैं, जिनके कारण गाँव खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैं। पिछले पाँच सालों में डॉ. मापुस्कर ने मूल डिजाइन में सुधार किया और मलप्रभा बायो गैस टॉयलट का विकास किया।
क्या यह अपने आप में प्रेरणाप्रद नहीं है? एक व्यक्ति या छोटा-सा समूह किस प्रकार के परिवर्तन कर सकता है। आइए उन नायकों को सलाम करें जिन्होंने स्वच्छ भारत का निर्माण करने के लिए अपने हाथ गन्दे किए हैं।
साभार : बेटर इण्डिया वेबसाइट
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