सरिता बरार
दुनियाभर के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले 2.5 बिलियन से ज्यादा लोग स्वच्छता की उचित सुविधाओं से वंचित हैं और एक बिलियन से ज्यादा लोग शौचालय न होने के कारण खुले मैं शौच करने के लिए विवश हैं। हमारे देश के हालात भी बेहतर नहीं हैं जहाँ आधी से ज्यादा आबादी खुले में शौच करती है।
यह सर्वविदित है कि जिन देशों में खुले में शौच किया जाता है, वे वही देश हैं जहाँ पाँच साल से कम आयु के बच्चों की मौत के मामले सर्वाधिक होते हैं, कुपोषण और गरीबी का स्तर शीर्ष पर है तथा धन के सम्बन्ध में बड़े पैमाने पर असमानताएँ हैं।
आबादी के बड़े हिस्से को स्वच्छता की सुविधाओं के अभाव के कारण होने वाली बीमारियों की चपेट में आने के खतरे को महसूस करते हुए भारत सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान के जरिए देश को खुले में शौच से मुक्त कराने का लक्ष्य 2022 से घटाकर 2019 निर्धारित कर दिया है। इत्तेफाक से यह साल महात्मा गाँधी का 150वीं जयंती वर्ष भी है, जिन्होंने स्वच्छत्ता को आजादी से भी ज्यादा अहमियत दी थी।
वर्ष 2019 तक खुले में शौच (ओडीएफ) से मुक्त कराने के सम्बन्ध में एक कार्ययोजना तैयार की जा चुकी है। इसके तहत व्यक्ति, सामूहिक और सामुदायिक शौचालयों का निर्माण करके तथा ग्राम पंचायतों के माध्यम से ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन के जरिए गाँवों को स्वच्छ रखा जाएगा। इसके तहत 2019 तक घरो में टैप कनेक्शन उपलब्ध कराने का भी लक्ष्य है।
कार्ययोजना में निम्नलिखित प्रमुख मसलों पर बल दिया गया है:
1. जरूरी बुनियादी ढाँचा तैयार करते हुए डिलीवरी व्यवस्था सशक्त बनाना।
2. स्वच्छ भारत अभियान को जन आन्दोलन बनाने के लिए सभी हितधारकों को शामिल करते हुए व्यापक जागरुकता कार्यक्रम शुरू करना।
नेशनल रीच आउट अभियान
खुले में शौच के आदी लोगों और तो और शौचालय युक्त घरों में रहने के बावजूद खुले में शौच के आदी लोगों की मानसिकता बदलना सबसे ज्यादा
महत्वपूर्ण है। ऐसे लोगों के व्यवहार में परिवर्तन लाना सरकार के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है। इस दिशा में एक नेशनल रीच आउट अभियान शुरू किया गया है।
इसके अंतर्गत निम्नलिखित उपायों का प्रस्ताव हैं :
पल्स पोलियो अभियान की तर्ज पर प्रत्येक ग्रामीण घर के साथ निरंतर सम्पर्क बनाना ताकि लोगों को शौचालय ड़स्तेमाल करने के महत्व तथा ऐसा नहीं करने के परिणामों सें अवगत कराया जा सके।
सन्देश के प्रसार के लिए श्रव्य. दृश्य, मोबाइल टेलीफोनी और स्थानीय आउटरीच कार्यक्रमों का इस्तेमाल करते हुए राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय मीडिया अभियान शुरू करना।
साफ-सफाई सम्बन्धी सन्देश में सामाजिक, स्थानीय, खेल अथवा सिनेमा की जानी-मानी हस्तियों को शामिल करना। जाने-माने क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर और बहुत से सिने अभिनेता इस अभियान से जुइ चुके हैं।
अभियान को जन आन्दोलन में परिवर्तित करने की दिशा में समुदाय को एकजुट करना एक महत्वपूर्ण कदम है। यह पहले की तरह सिर्फ आशा कार्यकर्ताओं, स्वसहायता समूहों और गैर-सरकारी संगठनों को शामिल करना भर नहीं है, बल्कि इसमें परिवारों को प्रभावित करने के लिए स्कूली बच्चों का इस्तेमाल किया जाता है। स्कूली बच्चों को चेंज ऑन वॉश- जल साफ-सफाई और स्वच्छता के सन्देश वाहक बनाना और कक्षा 10 तक स्कूल के पाठ्यक्रम में इसकी जानकारी शामिल करना। स्कूलों में साफ-सफाई के सन्देश का प्रसार करने के लिए स्वच्छता के लिए रैलियाँ, पद-यात्रा और दौड़ आयोजित करना, संगोष्ठियाँ, चित्रकला प्रतियोगिता और अन्य गतिविधियों का आयोजन करना।
चिकित्सकों, शिक्षकों, स्थानीय राजनीतिज्ञों और धार्मिक नेताओं को साफ-सफाई सम्बन्धी संचार में शामिल करना।
दरअसल, साफ-सफाई और पेयजल आपूर्ति से सम्बन्धित प्रचार सामग्री से युक्त वाहनों का इस्तेमाल, साफ-सफाई और अच्छी आदतों पर लघु फिल्में दिखाने सहित साफ-सफाई के सन्देश का प्रसार करने के लिए हरेक उपलब्ध साधन का इस्तेमाल करना।
ट्रक जैसे वाहन ट्विन पिट लेट्रीन, पी-ट्रेप वाले सेनिटरी पेन्स के मॉडल्स और जलापूर्ति योजनाओं के लिए मॉडल्स भी ले जा सकते हैं।
स्व-सहायता समूहों टूवारा साप्ताहिक हाटों/ बाजारों/ स्कूलों/ चौपालों के दौरान वॉल पेंटिग्स, शो का आयोजन। जागरूकता फैलाने के लिए लोकप्रिय लोक मीडिया जैसे कठपुतली शो, नुक्कइ नाटक का भी इस्तेमाल करना।
जनसंचार योजना में यूनीसेफ, डब्ल्यू एस पी, वाटरएड, डब्ल्यू एच ओ, एडीबी, रोटरी इण्डिया, सुलभ और स्वयंसेवियों का विशाल नेटवर्क और साथ ही साथ कारपोरेट क्षेत्रों आदि जैसे विभिन्न संगठनों को शामिल करना। इनमें से कुछ संस्थाओं की सहायता से पल्स पोलियों अभियान में सफलतापूर्वक उपयोग में लाई गई है।
कार्य योजना के एक अन्य महत्वपूर्ण कदम देश में 6,000 प्रखण्डों में से प्रत्येक में आईईसी माध्यम के रूप में कम-से-कम एक आदर्श समुदाय स्वच्छता परिसर की स्थापना करना है।
साभार : पसूका
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