सुलभ संवाददाता
पालम (नई दिल्ली) स्थित सुलभ परिसर में 5 मार्च, 2014 को बहुत उत्साह और प्रसन्नता के साथ सुलभ स्थापना दिवस का आयोजन किया गया। आज के ही दिन 1970 को पटना (बिहार) में सुलभ शौचालय संस्थान का जन्म हुआ और बाद के दिनों में यह विकसित होकर सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गेनाइजेशन के नाम से मशहूर हुआ। एक गैर-सरकारी संगठन के रूप में इसने अपनी अन्तरराष्ट्रीय पहचान बनाई है। मानव कल्याण को समर्पित इस संस्था को कई राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार और सम्मान भी मिले हैं।
समारोह सुलभ परिसर के हरी घास वाले अहाते में सुबह साढ़े दस बजे शुरू हुआ, जिसमें संगठन के साहचर्य सदस्य, सुलभ पब्लिक स्कूल के छात्र और शिक्षक, सुलभ व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्र के प्रशिक्षक, अलवर एवं टोंक (राजस्थान), मेवात (हरियाणा), नेकपुर (गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश) और वृन्दावन की विधवाएँ सभी सुनहरी धूप का आनन्द उठाते हुए प्रसन्नता से परिपूर्ण समारोह का इन्तजार कर रहे थे। स्वच्छता आन्दोलन के संस्थापक डॉ बिन्देश्वर पाठक अपनी धर्मपत्नी श्रीमती अमोला पाठक के साथ कार्यक्रमों का दिशा-निर्देश कर रहे थे। वहाँ उपस्थित छात्रों को छाते दिए गए, जबकि स्त्रियों के हाथों में कनस्तर थे। धीरे-धीरे प्रदर्शन अपने देश की स्वच्छता परिदृश्य को जीवन्त रूप में साकार करने लगा। जगह-जगह मैदानों में बैठे हुए बच्चे एवं महिलाएँ, उनके हाथों में खुले हुए छाते थे, वे अपनी गोपनीयता को छिपाने के लिए विविध दिशाओं मे छाते को घुमा रहे थे। दूसरा दृश्य था, उन मुक्त स्त्रियों का, जो कनस्तर में मानव-मल ढोकर ले जा रही थीं। पेशेवर फोटोग्राफर पूरे कार्यक्रम के फोटो खींचते गए एवं मीडिया द्वारा लगातार वीडियोग्राफी होती रही। लॉन से स्त्रियों और पुरूषों ने डॉ. बिन्देश्वर पाठक और श्रीमती अमोला पाठक के नेतृत्व में सभागार की ओर प्रस्थान किया। दोनों ने महात्मा गाँधी और डॉ. बी. आर. अम्बेडकर की मूर्तियों को माला पहनाई। उसके बाद सुलभ के कार्यकर्ताओं ने श्रद्धांजलि अर्पित की। सभा-कक्ष के भीतर और बाहर गुब्बारे लगाए गए थे। सुलभ की संगीत टीम द्वारा जन्मदिन के गीत से पूरा सभागार प्रतिध्वनित हो रहा था। समारोह में सुलभ कार्यकर्ताओं के साथ सिएटल तथा नॉर्थ ईस्टर्न विश्वविद्यालय, अमेरिका की छात्राएँ भी उपस्थित थीं।
सभागार में कार्यक्रम का प्रारम्भ डॉ. बिन्देश्वर पाठक द्वारा मथुरा के माननीय जिला प्रोबेशन अधिकारी श्री ओम प्रकाश यादव के स्वागत द्वारा किया गया। उन्हें शॉल एवं माला पहनाई गई और सुलभ सम्मान का प्रशस्ति-पत्र कलात्मक ढंग से शीशे में मढ़वाकर दिया गया। इसके बाद श्रीमती अन्नू तमोली (टोंक) तथा श्रीमती लक्ष्मी और कल्पना को उनकी कविता और गीत के लिए सम्मान स्वरूप पाँच-पाँच हजार रुपए के पुरस्कार प्रदान किए गए।
एक दशक पूर्व के सर्वेक्षण के अनुसार देश में स्कैवेंजरों की संख्या अनुमानत: 40 लाख है, यह बेल्जियम की आबादी के बराबर है। सुलभ तकनीक और उसके साथ-साथ शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण तथा पूर्व स्कैवेंजरों के पुनर्वासन ने सामाजिक ढाँचे को बदल दिया है
श्री ओम प्रकाश यादव ने अपने भाषण में सुलभ और उसके संस्थापक डॉ. बिन्देश्वर पाठक के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की, उस सम्मान के लिए जो उन्हें दिया गया था। जब राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण ने संगठन से पूछा कि उच्चतम न्यायालय की पृच्छा के अनुसार क्या सुलभ वृन्दावन की निराश्रित विधवाओं को मदद देगा, तो डॉ. पाठक बिना कोई समय गवाएँ उस स्थान पर गए और विभिन्न आश्रमों में रहने वाली महिलाओं से मिले और उनके लिए योजनाओं आदि की पर्याप्त व्यवस्था की। उन्हें दी जाने वाली सेवाओं में नियमित मासिक मानदेय, एम्बुलेंस, टेलीविजन सेट, रेफ्रीजरेटर इत्यादि शामिल थे। श्री यादव ने कहा कि विधवाओं की जिन्दगी में इस तरह की बेहतरी ऐतिहासिक भी थी और उल्लेखनीय भी। उन्होंने अपने को सरकारी सेवा प्रदान करने वाले की जगह मानवीय कार्यकलापों का एक भाग माना।
सुलभ के एक वरिष्ठ सदस्य, श्री नरसिंह बैठा ने डॉ. बिन्देश्वर पाठक की उपलब्धियों पर लिखी अपनी एक कविता पढ़ी। जिसने यह याद दिलाया कि किस तरह अपने कामकाज को आगे बढ़ाने के लिए श्री पाठक ने अपनी धर्म पत्नी के आभूषण तक बेच डाले थे। यह सामाजिक कार्य के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है।
इस अवसर पर टोंक की श्रीमती गीता ने कहा कि पूर्व स्कैवेंजर स्त्रियों के साथ-साथ उनकी अपनी जिन्दगी बदल गई। जो लक्ष्मी उनके घर में शौचालय की सफाई करती थी, अब उसके साथ वह अपने परिवार के सदस्य की तरह पेश आ रही हैं।
सुलभ इंटरनेशनल के अध्यक्ष श्री एस. पी. सिंह ने कहा कि सुलभ ने जो कुछ किया है उसका वर्णन शब्दों में कर पाना असम्भव है। अत्यन्त साधारण ढंग से शुरू किए जानेवाले कार्य से बढ़ते-बढ़ते संगठन ने अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की। अब स्वच्छता और सामाजिक सुधार का काम प्राथमिकता की दृष्टि से पहले स्थान पर है। एक दशक पूर्व के सर्वेक्षण के अनुसार देश में स्कैवेंजरों की संख्या अनुमानत: 40 लाख है, यह बेल्जियम की आबादी के बराबर है। सुलभ तकनीक और उसके साथ-साथ शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण तथा पूर्व स्कैवेंजरों के पुनर्वासन ने सामाजिक ढाँचे को बदल दिया है। श्री सिंह ने कहा कि यह महाभारत के युद्ध की तरह है धर्म और अधर्म, सही और गलत के बीच का युद्ध।
प्रतिष्ठित समाजशास्त्री और अध्येता प्रोफेसर सत्येन्द्र त्रिपाठी ने कहा कि उन्होंने सुलभ में एक दशक से अधिक समय तक कार्य किया है। उनका दावा था कि उनकी दो कर्मभूमि है बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय और सुलभ। समाज की बेहतरी के लिए आवश्यकता है श्रुति, स्मृति और अनुभव की। सुलभ के मामले में तकनीक द्वारा रूपान्तरण हुए। उसे प्रशिक्षण और पुनर्वासन ने और भी सशक्त किया। इसका प्रयोग सिर्फ स्कैवेंजरों के लिए ही नहीं, बल्कि वृन्दावन की विधवाओं एवं उन स्त्रियों के लिए भी किया गया, जिन्हें सम्पत्ति में हिस्सा लेने के अधिकार से वंचित कर दिया गया था। प्रो. त्रिपाठी ने आगे कहा कि विचारधारा तथा रूपान्तरण के प्रतिनिधियों ने सुलभ-आन्दोलन को आश्चर्यजनक परिणाम दिए।
उपस्थित लोगों को सम्बोधित करते हुए डॉ. पाठक ने कहा कि सुलभ का जन्म पटना में एक छोटे से घर में सन 1970 में हुआ था। सन 1965 में उनका विवाह हुआ और वह 1968 में बिहार गाँधी जन्म शताब्दी समारोह समिति से जुड़े। उन्होंने कहा कि उनकी धर्मपत्नी यह कहती थीं कि मैं बच्चों की बहुत फिक्र नहीं करता। यह सही था, कारण यह कि सुलभ का जन्म उनके बच्चों के पहले ही हुआ। सुलभ उनके पूरे समय की चिन्ता रही है। उन्होंने गन्दगी की समस्या का समाधान एक नई तकनीक के जरिए ढूँढा। स्कैवेंजरों और उनके साथ वृन्दावन और वाराणसी की विधवाओं के जीवन में भी परिवर्तन आया। ऐसा मानवीय नजरिए के कारण, खुद में परिवर्तन और सहयोग और साथ ही सरकार की सहायता द्वारा सम्भव हुआ। सुलभ निरन्तर अपने कार्यक्रमों का विस्तार कर रहा है। डॉ पाठक ने कहा कि हमें आपस में प्रेम करना चाहिए। हमारा तो सिद्धान्त यही है कि ‘जो भी प्यार से मिला, हम उसी के हो लिए।’ एक अमेरिकी महिला ने डॉ. पाठक से पूछा कि सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध अपनी शिकायत के लिए उन्होंने कितने दिनों का उपवास किया, तो उन्होंने कहा कि मैंने उपवास कभी नहीं किया। एक दिलचस्प कहानी सुनाते हुए डॉ.पाठक ने कहा, एक छोटी सी लड़की आइसक्रीम खरीदने गई। उसने इसकी कीमत पूछी। दुकानदार ने कहा कि दो तरह की आइसक्रीम है। एक पन्द्रह रुपए की और दूसरी बारह रुपए की। उसने बारह रुपए की आइसक्रीम ले ली। उसके दुकान छोड़ने के बाद दुकानदार ने देखा कि लड़की ने तीन रुपए वहीं छोड़ दिए थे। वह रोने लगा यह सोचकर कि लड़की ने वे रुपए उसके लिए छोड़े हैं। यदि किसी व्यक्ति को सड़क पर एक खोया हुआ बच्चा रोते हुए दिखे तो क्या उस व्यक्ति को उसे अपनी बाँहों में नहीं ले लेना चाहिए, क्या उसे बहलाना फुसलाना नहीं चाहिए, उसे खाने के लिए कुछ नहीं देना चाहिए और यह पता नहीं करना चाहिए कि उसके माँ बाप कहाँ है, बजाय यह पूछने के कि वह किस धर्म का है?
भारत सरकार के पेयजल और स्वच्छता विभाग ने सफाई सम्बन्धी कल्याणकारी कार्य के लिए कॉरपोरेट जिम्मेदारी के अन्तर्गत 21 संगठनों को चुना। कॉरपोरेट सेक्टर द्वारा आय का 2 प्रतिशत कल्याण कार्यक्रमों को दिया जाएगा। सैनिटरी मिशन के चुनाव में सुलभ को 100 में 100 अंक मिले हैं यानी शत-प्रतिशत।
इस अवसर पर सुलभ के मुख्य संरक्षक श्री अरुण पाठक ने धन्यवाद देते हुए कहा कि समय के साथ-साथ मनुष्य बूढ़ा हो जाता है, लेकिन सुलभ युवा होता जा रहा है। इसके प्रदर्शन में प्रतीक स्वरूप एक महिला के सर पर झाड़ू और कनस्तर रखकर उसे निषेधात्मक प्रतीक दिया गया है। झाड़ू की यात्रा मन्त्रित्व पर आकर समाप्त हुई और कनस्तर वालों (स्कैवेंजरों) में से एक आज सुलभ की प्रेसिडेन्ट हैं।
अगला कार्यक्रम था सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शृंखलाओं का, जिसका प्रारम्भ गणेश वन्दना से हुआ। सुलभ पब्लिक स्कूल की सातवीं कक्षा की छात्रा कुमारी कीर्ति और टोंक की कुमारी अन्नू तमोली में कविताएँ पढ़ीं। स्कूल की छात्राओं ने नृत्य किया। उनका साथ दिया सुलभ व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्र की प्रशिक्षणार्थियों ने। सुलभ की मानद प्रेसिडेन्ट श्रीमती उषा चौमड़ के नेतृत्व में अलवर की स्त्रियों ने गीत गाए।
नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के छात्रों की एक टीम ने एक प्रभावशाली नाटिका प्रस्तुत की, जिसमें स्कूल का एक परिदृश्य था। एक शिक्षक ने बच्चों से पूछा कि वह चीज क्या है जिसे देखा तो जा सकता है, लेकिन उसका स्पर्श नहीं किया जा सकता। बच्चों ने कहा, वह सूर्य हो सकता है, चाँद या सितारे। असपृश्य वर्ग के एक लड़के ने कहा, वह मेरे जैसा हो सकता है, जिसे कोई नहीं छूएगा। सभी लड़कों ने उसे छुआ और यह घोषणा की कि कोई भी अस्पृश्य नहीं है। इस नाटक का निर्देशन किया श्रीमती निशा त्रिवेदी, श्री लोकेन्द्र त्रिवेदी एवं श्री सुधीर ओखदे संगीत ने।
कार्यक्रम का अन्त राष्ट्रीय-गान से हुआ। इस अवसर पर उपस्थित लोगों के लिए भोजन की भी व्यवस्था थी।
साभार : सुलभ इण्डिया मार्च 2014
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