सुलभ की उपलब्धियों से अभिभूत हुईं कोटा-नगर-निगम की महापौर

सुलभ-परिसर में प्रायः देश-विदेश की महान  हस्तियों का आगमन होता रहता है। 17 अगस्त, 2012 को कोटा-नगर-निगम की माननीया महापौर डॉ. रत्ना जैन सुलभ-परिसर में पधारी थीं। उन्होंने डॉ. बिन्देश्वर पाठक और सुलभ से प्राप्त सम्मान से अभिभूत होकर माननीय डॉक्टर पाठक के चरण-स्पर्श किया।

अलवर एवं टोंक की मुक्त स्कैवेंजर महिलाओं ने भारतीय परम्परा के अनुरूप आरती उतारकर उनका स्वागत किया एवं उनके ललाट पर तिलक लगाया। इस अवसर पर माननीया महापौर ने भी रिवाज का पालन करते हुए उनकी थाली में कुछ रूपए रख दिए।

डॉ. पाठक के साथ चाय-पान के बाद उन्हें प्रार्थना-सभा में ले जाया गया, जहाँ उनका भव्य स्वागत किया गया। प्रार्थना के पश्चात उनके साथ आए अधिकारियों का भी स्वागत किया गया। इस अवसर पर माननीया महापौर को एक मान पत्र भी भेंट किया गया, जिसमें उल्लेख था- आप लब्धप्रतिष्ठ चिकित्सक, शिक्षाविद्, सामाजिक कार्यकर्त्री एवं महिला-कल्याण के लिए संवेदनशील व्यक्तित्व तथा कोटा-नगर-निगम, राजस्थान की माननीया महापौर हैं।

आपका जन्म 4 मार्च, 1962 को राजस्थान के उदयपुर शहर में हुआ। आप डॉ. अशोक जैन, एम.बी.बी.एस. की सुयोग्य जीवन-संगिनी हैं। डॉ. अपूर्व जैन, एम.बी.बी.एस. एवं आई. आई. टी. मुम्बई में बी. टेक के छात्र श्री आयुष जैन आपके सुयोग्य पुत्र हैं। आपने वर्ष 1979 में आर.एन.टी. मेडिकल कॉलेज, उदयपुर, राजस्थान में एम.बी.बी.एस. तथा वर्ष 1986 में प्रसूति एवं स्त्री-रोग-विज्ञान-विभाग में एम.एस की डिग्री प्राप्त की है।

आप चिकित्सा-जैसे मानव-सेवा के कार्यों में संलग्न रहती हुईं भी समाजसेवा के विभिन्न आयामों से जुड़ी रही हैं। आपको राजस्थान-सरकार ने राजस्थान-राज्य-प्रदूषण-नियंत्रण समिति का निदेशक नियुक्त किया है। आप विजन-2015, कोटा की मान्य सदस्या हैं। आपने कई राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय  मंचों से स्वच्छ जल एंव स्वच्छता स्वास्थ्य-रक्षा, एच.आई.वी. और एड्स, स्वस्थ, हरित एवं आकर्षक शहर-जैसे विषयों पर आयोजित कार्यशालाओं और संगोष्ठियों में भाग लेकर उल्लेखनीय योगदान दिया है। सम्प्रति आप मैत्री हॉस्पिटल एवं रत्ना नर्सिंग होम प्राइवेट लिमिटेड, कोटा की निदेशक हैं। यह आपके व्यक्तित्व की कुशलता का परिचायक है कि आप वर्ष 2009 में कोटा-नगर-निगम के चुनाव में काँग्रेस-प्रत्याशी के रूप में पार्षद बनीं और निगम की महापौर चुनी गईं।

माननीया डॉ. रत्ना जैन को उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए कई पुरस्कार प्रदान किए गए हैं, जिनमें महत्त्वपूर्ण है- राजस्थान मेडिकल एलम्नाइ एसोसिएशन इन्कॉर्पोरेटेड कन्वेंशन, न्यूयॉर्क-द्वारा रिकॉग्निशन अवार्ड फॉर विजन, डेडिकेशन, पैशन ऐंड कमिटमेंट टू द कम्यूनिटी।

डॉक्टर पाठक ने कहा, ‘सुलभ-तकनीक को राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय-स्तर की बड़ी सरकारी संस्थाओं और गैर-सरकारी एजेंसियों द्वारा मान्यता मिल गई है। यह संगठन अपने आरम्भिक काल से ही महात्मा गाँधी के अस्पृश्यता समाप्त करने और स्कैवेंजरों की खोई हुई मान-मर्यादा को पुनः वापस दिलाने के सपने को साकार करने में लगा है। उन्होंने कहा कि माननीया पूर्व प्रधानमन्त्री स्वर्गीया श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने बिहार के  तत्कालीन मुख्यमन्त्री को एक चिट्ठी लिखी थी और उसमें स्कैवेंजरों के संघर्ष की याद दिलाते हुए कहा था कि सुलभ-द्वारा जो आन्दोलन चलाया जा रहा है उसे प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।’

उन्होंने कहा कि उन्होंने अलवर और टोंक की स्कैवेंजर महिलाओं को सर पर मैला ढोने के गन्दे कार्य से मुक्त कराया है और उन्हें नए व्यवसायों में लगाया गया है। अब उनसे कोई नफरत नहीं करता, उनके प्रति अपनी नापसंदगी नहीं व्यक्त करता। जिन परिवारों में वे सर पर मैला ढोने का कार्य करती थीं, उसके सदस्य उन्हें अपने करीब लोने या उनसे दोस्ती करने के इच्छुक हैं। अब वे उन्हें अपने घर शादी-विवाह और अन्य कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए निमंत्रित भी करते हैं।

उन्होंने कहा कि एक खास वजह से वे बच्चों के बीच हमेशा प्रसन्न रहते हैं। बच्चे हमेशा खेल से जीवन का आनन्द उठाया करते  हैं। वे अतीत या भविष्य की चिन्ता नहीं करते। सारा ध्यान वर्तमान पर केन्द्रित करते हैं।

अपने स्वागत का उत्तर देती हुई माननीया महापौर डॉ. रत्ना जैन ने कहा कि ‘डॉ पाठक ने उनके बारे में प्रशंसा के जो शब्द कहे, उससे मैं काफी अभिभूत हुई हूँ। मैंने सुलभ और उसके द्वारा किए जा रहे अच्छे-अच्छे कार्यों के बारे में सुना था। मैं बहुत दिनों से डॉक्टर पाठक से मिलना चाहती थी, उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहती थी। इस परिसर में और यहाँ वातावरण में जो सौमनस्य है, उससे बहुत प्रसन्न हूँ। जाति और नस्ल का कोई प्रश्न नहीं। यदि डॉक्टर पाठक अनुमति देंगे तो मैं यहाँ दोबारा आना चाहूँगी। मैं डॉक्टर पाठक को पुनः प्रणाम करती हूँ।’

माननीया महापौर ने कहा कि सुलभ कोटा में अच्छा कार्य कर रहा है। दरअसल यह संगठन स्वच्छता का पयार्य बन गया है। सरकारी एजेंसियों द्वारा भी काफी अच्छा कार्य किया जा रहा है। लेकिन मैं चाहती हूँ कि सुलभ सरकार से कदम-से-कदम मिलाते हुए कार्य करे।

सुलभ की प्रशंसा में कही गई बातों के प्रत्युत्तर देने के लिए सुलभ-संस्थापक पुनः अपनी बात कहने का मोह संवरण नहीं कर पाए और सुलभ की प्रशंसा के लिए डॉक्टर जैन को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि उद्देश्यों की प्राप्ति में कठिन परिश्रम और त्याग की अत्यन्त आवश्यकता है। उन्होंने बहुमूूल्य धातु सोने का जिक्र किया और कहा कि वह लोगों को आकर्षित करना तब शुरू करता है, जब वह आग में तप कर शुद्ध हो चुका होता है।

उसके बाद डॉक्टर जैन को डॉ पाठक सुलभ पब्लिक स्कूल दिखाने के लिए ले गए। छात्रों को, जिनमें गरीब स्कैवेंजर परिवारों के बच्चों की संख्या अधिक थी, देखकर वह अत्यन्त प्रसन्न हुईं। यह जानकर वे दंग रह गई कि उनका स्वागत छात्राओं ने संस्कृत में किया। व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्र में यह देखकर वे खुश हुईं कि छात्राएँ सैनिटरी नैपकिन बना रही हैं।

उन्हें विदा देने के लिए स्कूल के छात्र बाहर के खुले मैदान में एकत्र हो गए थे। डॉ. रत्ना जैन ने उन्हें संबोधित करते हुए कहा, ‘तुम्हें अपने उद्देश्यों को ऊँचा रखते हुए कठिन मेहनत करनी चाहिए।’ तत्पश्चात उन्हें सुलभ-शौचालय के विविध नमूने दिखाने ले जाया गया, जहां विभिन्न भौगोलिक प्रदेशों और लोगों की आय के अनुकूल शौचालय की विभिन्न डिजाइनें बनी हुईं थीं। वह यह जानकर दंग रह गईं कि सुलभ ने कितनी मेहनत से उन शौचालयों की डिजायन प्रस्तुत की हैं, जो आदिकाल से लेकर अब-तक के दौर में मनुष्य इस्तेमाल करता रहा है। ज्यादातर आगंतुकों की तरह डॉ. जैन ने बायोगैस-आधारित चूल्हे पर पापड़ तला। ज्ञात हो कि इस बायोगैस का स्रोत है सुलभ-सार्वजनिक शौचालय-परिसर का मानव-मल जो सुलभ भवन  परिसर में ही सड़क के किनारे बना है।

जब माननीया महापौर डॉ पाठक के पास बैठी थीं तो अलवर एवं टोंक की स्कैवेंजर महिलाओं ने अपनी प्रसन्नता  व्यक्त करते हुए एक गीत गाया-

इस तरह तेरे मिल चुके हम

जिस तरह कोई मिलता नहीं है

किस तरह हमने खाए हैं धोखे

कोई मिलने आता नहीं है

इसे सुनकर माननीय महापौर प्रसन्न हुई। उन्होंने अपने साथी से उन्हें धन्यवाद देने के लिए कहा। साथी ने जो गीत गाया, उससे सुलभ के लोग बहुत प्रभावित हुए और गाना शुरू कर दिया, ‘हम होंगे कामयाब एक दिन, होंगे कामयाब एक दिन’ और इस प्रकार अन्त हुआ सुलभ-परिसर में एक ऐसा आगमन, जो वर्षों तक याद किया जाता रहेगा।

साभार : सुलभ इण्डिया, सितम्बर 2012

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