सर्जन, भागीदारी और नूतन प्रवर्तन का मंच

डॉ रूपक राय चौधरी

 

वे तुम्हें बताते हैं कि संगीत की सीमा-रेखा होती है, पर कला को सीमित कैसे किया जा सकता है?’

 

एक प्रसिद्ध संगीतकार ने बहुत पहले ऐसा कहा था। आज हमारी प्रतिदिन की जिन्दगी सीमाओं और नियमों से भरी हुई है। शायद पूरे विश्व में एक ही जगह ऐसी है, जहाँ कोई नियम या प्रतिबन्ध नहीं है और वह है संगीत और नृत्य की दुनिया। इवोक के छात्रों से अपेक्षा होती है कि वे अपने विचार व्यक्त कर सकें, कुछ समय के लिए ही सही, वे अपनी दुनिया में जी सकें, वे जान सकें कि अन्दर से वे किस प्रकार के व्यक्ति हैं। एक समय में एक स्कूल को सम्बोधित कर और छात्रों को ज्ञान, मूलभूत कौशल और शिक्षा से सशक्त कर हम स्कूल में  स्वच्छता के वातावरण को बेहतर बनाना शुरू कर सकते हैं। स्वच्छता, रजोधर्म से सम्बद्ध स्वास्थ्य-ज्ञान, शौचालय तथा असुरक्षि पेयजल और विशेषतः बालिकाओं की शिक्षा और स्वास्थ्य पर इन सबके प्रभाव की ओर अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता फैलाने की हमारी योजना है। हम विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों, शहरी स्लमों, शरणार्थी शिविरों और अनाथालयों में रहने वालों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहते हैं। जागरूकता-अभियान के साथ ही हम यह भी सुनिश्चित करना चाहते हैं कि इन मुद्दों से निबटने के लिए छात्र-समुदाय सशक्त हों।

 

कार्यक्रम में अपना उद्घाटन-भाषण देते हुए सुलभ-संस्थापक डॉ बिन्देश्वर पाठक ने कहा कि शिक्षा बच्चे को दी गई सूचना मात्र नहीं है, जो उसके दिमाग में अधपची पड़ी रहे। इसके लिए मन की एकाग्रता अपेक्षित होती है।आदर्श स्कूल बच्चे के व्यक्तित्व का दर्पण होना चाहिए, जो उसके आन्तरिक व्यक्तित्व का हिस्सा बने। प्रयोग तथा परस्पर सक्रिय और विकसित कार्य-कलाप एवं आधुनिक जानकारी तथा सूचना के साथ पारम्परिक मूल्यों के समन्वयन से बच्चों का सर्वतोमुखी विकास होगा उन्होंने कहा, इवोक-3 कलात्मक कार्यक्रम वह अवसर प्रदान करता है, जो बच्चों में सर्जनात्मक शक्ति जागृत करता है और उन्हें समाज से जोड़ने में मदद करता है।

 

11 अगस्त, 2014 को सुलभ-सभागर में इवोक-3 के आयोजन के अवसर पर विभिन्न स्कूलों की छात्र-छात्राओं ने सुन्दर नृत्य और व्याख्यान प्रस्तुत किए, जिनमें हमारे समाज के चिंतनीय विषयों को उजागर किया गया। स्कूलों के सेनिटेशन क्लबों के सदस्य छात्र-छात्राओं द्वारा प्रस्तुत सांस्कृतिक कार्यक्रम बेहद मनोरंजक थे। ओडिशी नृत्य से प्रारम्भ प्रस्तुति के बाद कत्थक तथा भरतनाट्यम् एवं कन्या-जन्म-आतंकवाद तथा स्त्री-सशक्तीकरण पर नाटकीय दृश्य प्रस्तुत किए गए। पाश्चात्य वेश-भूषा में बालिकाओं ने मनोरंजक फैशन-शो से सबके मन मोह लिए।

 

इस अवसर पर द्वारका इंटनेशनल स्कूल के शिक्षक सुजन दास ने कहा, भारत के लोकनृत्य भारत की विविध संस्कृतियों और परंपराओं को दर्शाते हैं, जिनसे देश के बहुल संप्रदाय, उनकी परम्पराएँ तथा उनकी आस्था मुखरित होती हैं। द्वारका-स्थित सी आर.पी.एफ. स्कूल के शिक्षक श्री शशि कांत नायक ने कहा, निभिन्न पारिवारिक पृष्ठभूमि से आए बच्चों और युवाओं को अपनी रचनात्मकता, समाज से लगाव और उसमें अपने योगदान के अवसर विकसित करने के अवसर उपलब्ध होने चाहिए।

 

जनकपुरी-स्थित रेनबो इंग्लिश सीनियर सेकंडरी स्कूल की छात्रा सुश्री साक्षी शर्मा ने कहा, सभी बच्चों और युवाओं को सांस्कृतिक कार्य-कलाप में भाग लेने के अवसर मिलने चाहिए। न्यू डेल्ही पब्लिक स्कूल,विकासपुरी की शिक्षिका श्रीमती मोहिनी गोस्वामी ने कहा, इवोक-3 में भारत के विभिन्न आयामों का सशक्त प्रदर्शन हुआ, जो उत्कृष्ट कोटि के कार्यक्रमों के साथ किया गया। पूसा पब्लिक स्कूल, विकासपुरी की छात्रा सुश्री मनजीत कौर ने कहा, अच्छे शिक्षक विद्यार्थी जो जानते हैं, और आगे जो जानने की उनकी जरूरत है, इनके बीच तारतम्य बनाने में सहायता करते हैं, अच्छे शिक्षण का सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से निरन्तर लगाव होता है।

 

शिव वाणी स्कूल की छात्रा सुश्री वैष्णवी तिवारी ने कहा, आज के स्कूल-शिक्षण का एक कमजोर पक्ष यह है कि बच्चों की सीखने की विशिष्ट जरूरतों का ख्याल नहीं रखा जाता। इवोक-3 उन्हें एक ऐसा मंच उपलब्ध कराता है, जहाँ वे अपना कौशल प्रतिभा विभिन्न प्रकार से प्रदर्शित कर सकें। जे.एम, इंटरनेशनल स्कूल, द्वारका की छात्रा हिमांशी ने कहा, छात्रों को थोड़ी विश्रांति की जरूरत होती है, जिससे उनकी शक्ति पुनर्जाग्रत हो और वे बेहतर कार्य-सम्पादन कर सकें। इवोक-3 ऐसे ही अवसर उपलब्ध कराता है। इन्दिरा आइडियल स्कूल जनकपुरी की श्रीमती ज्योति रतन ने कहा, मुझे विश्वास है कि सुलभ स्कूल सेनिटेशन क्लब की गतिविधियाँ युवा-वर्ग को उनके आने वाले जीवन के लिए सही ढंग से तैयार करेंगी, जिससे वे परिवार समाज, राष्ट्र और स्वयं के लिए सार्थक योगदान कर सकें।

 

सुलभ स्कूल सेनिटेशन क्लब में हमारा विश्वास है कि हर छात्र सीखने के लिए उत्सुक एवं उद्यत होता है। शिक्षक के रूप में हमारा यह कर्तव्य है कि सीखने वालों को हम उत्प्रेरित करते रहें और छात्रों की प्रतिभा को समृद्ध करने के लिए सतत प्रयासरत रहें।


साभार : सुलभ इण्डिया अगस्त 2014

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