सफाई जनांदोलन बने तो बनेगी बात

तवलीन सिंह

किसी भी देश में साफ-सफाई का मसला वहां के राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिणाम होती है। अस्वच्छता का सबसे दुखद पहलु यह है कि 90 फीसदी से ज्यादा बीमारियां इस देश में गंदगी के कारण ही पैदा होती हैं। नवजात शिशुओं की मौत के पीछे भी एक बड़ा कारण उनके पेट में पलने से लेकर पैदा होने तक और उसके बाद भी पालन-पोषण में साफ-सफाई का ख्याल तो दूर गंदगी से परहेज तक का ख्याल नहीं रखा जाता है।

क्या बताऊं आपको कितना अच्छा लगा मुझे जब दशहरे की सुबह अखबारों में हाथों में झाड़ू लिए हुए प्रधानमंत्री की तस्वीरें देखी। सुबह ही वतन लौटी थी और हमेशा की तरह मुंबई शहर की गंदी गलियां और बेहाल बस्तियों को देखकर मायूसी छा गई थी। इस बार मायूसी ज्यादा महसूस हुई क्योंकि न्यूयार्क में प्रधानमंत्री का स्वागत देखकर और वाशिंगटन में उद्योगपतियों को संबोधित करते सुनकर एक नई उम्मीद पैदा हो गई थी दिल में तो वापस आकर यथार्थ का सामना ज्यादा मुश्किल था। लेकिन  ‘स्वच्छ भारत अभियान’  का पहला कदम देख कर उम्मीद फिर से जग गई है।

भारत में गंदगी एक गंभीर राजनीतिक समस्या है जो पूरी तरह से जातिवाद से जुड़ी हुई है। हमारी बदकिस्मती है कि जातिवाद की जड़ें इतनी गहरी हैं कि आज भी आपको मुंबई और दिल्ली के तकरीबन हर रसोईघर में उसके निशान मिलेंगे। शिक्षित, समझदार, नेक भारतीय परिवारों के रसोईघरों में भी दिखते हैं। अलग बर्तन जो इस्तेमाल करते हैं सिर्फ वे लोग जो सफाई का काम करने आते हैं। शहरों में फिर भी जातिवाद के नियम इतने कठोर नहीं हैं जितने गांवों में हैं। आज भी शायद ही कोई गांव होगा देश भर में जहां ऊंच-नीच की परपराएं न हो रिहायशी और सामाजिक तौर पर। यहां तक कि कई स्कूलों में अध्यापक ऐसे मिलेंगे जिन्हें जरा भी संकोच नहीं होता उन बच्चों को सफाई का काम सौंपने में जो पिछड़ी जातियों से आते हैं।

इन परंपराओं का नतीजा यह है कि भारत सबसे गंदे देशों में गिना जाता है। ऐसा क्यों न हो जब शिक्षित सवर्ण भारतीय भी मानते हैं कि सफाई करना उनका काम नहीं, किसी और का है। यकीन मानिए, मैंने ऐसे कई आलीशान घर देखें हैं दिल्ली और मुंबई में जहां टॉयलेट गंदे रहते हैं जब तक ‘मेहतर’ उन्हें साफ करने नहीं आती। उसके बाद जब उन्हें चाय दी जाती है तब उनकी प्याली अलग होती है और घर के दूसरे काम करने वाले नौकर उनसे भी बहुत बुरा व्यवहार करते हैं।

शर्मनाक परंपराओं को हम सामाजिक समस्याओं की श्रेणी में डालना पसंद करते हैं लेकिन वास्तव में यह राजनीतिक है। राजनीतिक इसलिए क्योंकि महात्मा गांधी के बाद कोई भी राजनेता नहीं रहा है इस देश में जिसने इनका सामना करने की कोशिश की हो। दलितों के भी बड़े नेताओं ने इन परंपराओं का सिर्फ चुनाव के समय इस्तेमाल किया है। इन्हें हटाने की कोशिश नहीं की है।

इन शर्मनाक परंपराओं को हम सामाजिक समस्याओं की श्रेणी में डालना पसंद करते हैं लेकिन वास्तव में यह राजनीतिक समस्या है। राजनीतिक इसलिए क्योंकि महात्मा गांधी के बाद कोई भी राजनेता नहीं रहा है इस देश में जिसने इनका सामना करने की कोशिश की हो। दलितों के भी बड़े नेताओं ने इन परंपराओं का सिर्फ चुनाव के समय इस्तेमाल किया है। इन्हें हटाने की कोशिश नहीं की है। सो बहुत बड़ी बात है कि नरेंद्र मोदी ने खुद झाड़ू अपने हाथों में लेकर साबित करने की कोशिश की है कि उनकी नजरों में न सफाई करना नीच काम है और न ही सफाई करने वालों को नीच माना जाना चाहिए।

शुरुआत अच्छी है लेकिन जब अगला कदम उठाने जाएंगे प्रधानमंत्री तो उन्हें याद रखना चाहिए कि अन्य देशों के शहर-गांव अगर साफ हैं तो इसलिए कि यह काम आधुनिक तरीकों से किए जाते हैं। न्यूयार्क में मेडिसन स्क्वायर के विशाल जलसे को संबोधित करते हुए उन्होंने याद दिलाया था अपने समर्थकों को कि अगर भारत मंगल तक जा सकता है तो देश को साफ भी कर सकता है। लेकिन यह काम पुराने तरीकों से अगर हम करते रहेंगे तो कई दशक और गंदगी में गुजारने होंगे। यह काम सौंपने होंगे उन कंपनियों को जिनके पास सफाई के आधुनिक साधन हैं।

भारत में ऐसा कर सकते थे हम बहुत पहले। ऐसा हुआ नहीं अगर तो कुछ दोष दलित सगठनों का भी है जिन्होंने मुंबई जैसे महानगरों में सफाई मशीनों से सड़कें साफ इसलिए नहीं होने दी कि उनके आने से मजदूरों की नौकरियों को खतरा होगा।

प्रधानमंत्री खुद कई बार कह चुके हैं कि विकास को जनांदोलन बनाना चाहिए क्योंकि विकास का पूरा ठेका कोई भी सरकार नहीं ले सकती। यही बात उन्हें कहनी पड़ेगी स्वच्छ भारत अभियान के बारे में ताकि इस देश के आम आदमी को मालूम पड़े कि जब तक वह खुद इस अभियान का हिस्सा नहीं बनेगा तब तक यह देश गंदा ही रहेगा और इस देश के बच्चे उन बीमारियों से मरते रहेंगे ।

सफाई राजनीतिक समस्या इसलिए भी है क्योंकि 90 फीसद से ज्यादा बीमारियां इस देश में पैदा होती हैं गंदगी के कारण। समस्या इतनी गंभीर है कि नवजात शिशुओं के मरने के मुख्य कारण हैं ऐसी बीमारियां जो सिर्फ गंदगी की वजह से होती हैं। इसलिए स्वच्छ भारत अभियान का अहम हिस्सा होना चाहिए। टीवी पर एक ऐसा सफाई अभियान जिसके द्वारा आम, अर्द्धशिक्षित भारतीयों को भी अहसास दिलाया जाए कि सफाई का उनका और उनके बच्चों की सेहत से कितना गहरा रिश्ता है।

आंदोलन, अभियान को शुरू करना बेशक राजनेताओं का काम हो लेकिन इसकी सफलता पूरी तरह निर्भर है आम जनता पर। प्रधानमंत्री खुद कई बार कह चुके हैं कि विकास को जनांदोलन बनाना चाहिए क्योंकि विकास का पूरा ठेका कोई भी सरकार नहीं ले सकती। यही बात उन्हें कहनी पड़ेगी स्वच्छ भारत अभियान के बारे में ताकि इस देश के आम आदमी को मालूम पड़े कि जब तक वह खुद इस अभियान का हिस्सा नहीं बनेगा तब तक यह देश गंदा ही रहेगा और इस देश के बच्चे उन बीमारियों से मरते रहेंगे जो गायब हो चुकी है कब की उन देशों में जहां सफाई की अहमियत आम लोग समझ चुके हैं।

यहां यह भी कहना चाहूंगी कि इस स्वच्छ भारत का पहला कदम अच्छा रहा है। बहुत अच्छा लगा प्रधानमंत्री को सड़कें साफ करते देखकर। बहुत अच्छा लगा उनके मंत्रियों के हाथों में झाड़ू देखकर। अब इस अभियान को आगे बढ़ाना जनता का काम है वरना वह दिन दूर नहीं जब भारत माता एक विशाल गंदी बस्ती में तब्दील हो जाएगी।

साभार : जनसत्ता, 5 अक्टूबर 2014

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