संस्थागत स्वच्छता का अभाव

राजु कुमार

 

देश भर में जोर-शोर से चलाए जा रहे स्वच्छता अभियान के बीच स्थिति यह है कि व्यक्तिगत स्वच्छता पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। दूसरी ओर यदि संस्थागत स्वच्छता को देखा जाए, तो स्थिति बहुत ही खराब नजर आती है। मध्यप्रदेश उन राज्यों में से है, जहाँ अधिकांश पंचायतों के अपने भवन बन गए हैं, पर इसका दूसरा पहलू यह है कि इनमें से अधिकतम पंचायतों में शौचालय की व्यवस्था नहीं है। स्वच्छता अभियान की जिम्मेदारी पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की है, पर पंचायतों में शौचालयों के नहीं होने से इस अभियान की गति का अंदाजा लगाया जा सकता है। कुछ इलाकों में नए बन रहे पंचायत भवनों में शौचालय की व्यवस्था की जा रही है, पर पंचायत की बैठकों में जरूरत पड़ने पर उसका उपयोग सभी ग्रामीण कर सके, ऐसी व्यवस्था नहीं दिखती।

 

पंचायतों में शौचालयों का न होना एक गम्भीर समस्या है। एक ओर इस विभाग के माध्यम से स्वच्छता अभियान चलाया जा रहा है, तो दूसरी ओर इस विभाग की महत्वपूर्ण इकाई में शौचालय नहीं है। इन परिस्थितियों में जब हम पंचायतों एवं ग्राम सभाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की बात करते हैं, तब इस तरह की समस्याएँ बड़ी बाधा के रूप में सामने आती है।

 

दूरदराज एवं आदिवासी इलाकों में स्थिति ज्यादा गम्भीर हैं। वहाँ जिन भवनों में पंचायत की बैठक या ग्राम सभा आयोजित की जाती है, वहाँ शौचालय की व्यवस्था नहीं है। श्योपुर के कराहल विकासखण्ड में स्वच्छता के मुद्दे पर कार्यरत महात्मा गाँधी सेवा आश्रम के अनिल गुप्ता ने अपने कार्य क्षेत्र के सभी 16 पंचायतों का अवलोकन करने के बाद देखा कि किसी भी पंचायत में शौचालय की व्यवस्था नहीं है। उनके अनुसार प्रदेश के कई अन्य इलाकों में कार्यरत साथी संस्थाओं ने देखा है कि पंचायतों में शौचालय की व्यवस्था नहीं है। कुछ पंचायतों में शौचालय के लिए जगह छोड़ी गई है, पर शौचालय बनाए नहीं गए हैं। इसी तरह गिनती के जिन जगहों पर शौचालय हैं, वहाँ पानी के अभाव में वे चालू नहीं हैं।

 

पंचायतों में शौचालयों का न होना एक गम्भीर समस्या है। एक ओर इस विभाग के माध्यम से स्वच्छता अभियान चलाया जा रहा है, तो दूसरी ओर इस विभाग की महत्वपूर्ण इकाई में शौचालय नहीं है। इन परिस्थितियों में जब हम पंचायतों एवं ग्राम सभाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की बात करते हैं, तब इस तरह की समस्याएँ बड़ी बाधा के रूप में सामने आती है। इस समस्या के कारण भी बहुत सी महिलाएँ पंचायत की बैठकों में जाने से परहेज करती है। किसी भी सार्वजनिक स्थान पर शौचालय या स्वच्छता के लिए अन्य सुविधा का अभाव महिलाओं को वहाँ जाने से हतोत्साहित करता है।

 

ऐसी ही स्थिति कम उम्र की बालिकाओं के मामले में पाठशालाओं में देखने को मिलती है। संविधान की धारा 21 (ए) के तहत 14 साल की उम्र तक बच्चों के लिए शिक्षा का अनिवार्य और निःशुल्क मौलिक अधिकार दिया गया है। जब तक राज्य द्वारा मूलभूत ढाँचे का निर्माण नहीं होता, तब तक इस मौलिक अधिकार को जमीन पर नहीं उतारा जा सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए हमने 11 अक्टूबर, 2011 को राज्यों को आदेश जारी किया कि विद्यालयों में छात्रों और खासकर छात्राओं के लिए शौचालय की व्यवस्था की जाए। अनेक सर्वेक्षणों से यह बात सामने आ रही है कि “जिन विद्यालयों में छात्रों और खासकर छात्राओं के लिए शौचालय की व्यवस्था नहीं है, वहाँ अभिभावक अपने बच्चों को विद्यालय भेजने में झिझकते हैं।” यह टिप्पणी सर्वोच्च न्यायालय की है। सर्वोच्च न्यायालय की इस टिप्पणी से समझा जा सकता है कि संस्थागत शौचालय महिलाओं एवं बालिकाओं के लिए कितने मायने रखते हैं।

 

अनेक सर्वेक्षणों से यह बात सामने आ रही है कि “जिन विद्यालयों में छात्रों और खासकर छात्राओं के लिए शौचालय की व्यवस्था नहीं है, वहाँ अभिभावक अपने बच्चों को विद्यालय भेजने में झिझकते हैं।” यह टिप्पणी सर्वोच्च न्यायालय की है। सर्वोच्च न्यायालय की इस टिप्पणी से समझा जा सकता है कि संस्थागत शौचालय महिलाओं एवं बालिकाओं के लिए कितने मायने रखते हैं।

 

अफसोसजनक स्थिति यह है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लगातार टिप्पणी किए जाने और समय सीमा निर्धारित किए जाने के बाद भी सभी पाठशालाओं में शौचालय की सही व्यवस्था नहीं है। आज भी अधिकांश शालाओं में बालिकाओं के लिए अलग से शौचालय नहीं है। पिछले दिनों मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि प्रदेश में नये शिक्षण सत्र से सभी शासकीय शालाओं में शौचालय की व्यवस्था हो जाएगी। उन्होंने बताया कि शौचालयों के निर्माण में स्कूल शिक्षा विभाग के साथ आदिम जाति कल्याण, नगरीय विकास, सार्वजनिक उपक्रम, मण्डी बोर्ड, लघु वनोपज संघ, केन्द्र के सार्वजनिक उपक्रम वित्तीय सहयोग कर रहे हैं। इसमें जन भागीदारी को भी प्रोत्साहित किया जाएगा। सांसद और विधायक निधि का सहयोग लिया जाएगा। मुख्यमन्त्री ने शौचालय निर्माण के काम को तेजी से जारी रखने तथा शौचालयों के वार्षिक रख-रखाव के लिए संस्थागत व्यवस्था करने की आवश्यकता बतलाई। यह अनुमान लगाया गया कि करीब 50 हजार शौचालयों का निर्माण जून 2015 तक हो जाएगा।

 

सरकार द्वारा यह स्वीकार करना कि अभी भी बच्चों को स्वच्छ वातावरण नहीं मिल रहा है, जो उनका अधिकार है, यह दर्शाता है कि स्वच्छता के मामले में हमें अभी लम्बा सफर तय करना है। प्रदेश के जिन शालाओं में शौचालय बने हुए हैं, वहाँ की स्थिति देखने पर पता चलता है कि उसका सही तरीके से रख-रखाव नहीं किया जा रहा है। कई शालाओं में शौचालय बनाए गए हैं, पर उनका उपयोग नहीं किया जा रहा है। कई जगहों पर सिर्फ शिक्षक ही उपयोग कर रहे हैं। कई जगहों पर पानी की कमी के कारण उपयोग नहीं किया जा रहा है। ऐसे में शालाओं में बने हुए शौचालय सिर्फ गिनती के ही काम आ सकते हैं।

 

पंचायतों एवं शालाओं जैसे महत्वपूर्ण संस्थाओं के अलावा ग्रामीण इलाकों में स्थित उप-स्वास्थ्य केन्द्रों, आँगनवाड़ी, सामुदायिक भवनों में भी स्वच्छता सुविधाओं का अभाव है। स्वच्छता अभियान को सिर्फ व्यक्तिगत स्वच्छता पर केन्द्रित करने के बजाय संस्थागत स्वच्छता की ओर भी ध्यान देने की जरूरत है। शालाएँ स्वच्छता सम्बन्धी आदतों को बदलने के लिए प्राथमिक इकाई के रूप में काम करती हैं, इसलिए यहाँ शौचालयों की बेहतर व्यवस्था होनी चाहिए। शासन को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि इसके अभाव में बालिकाएँ शिक्षा से वंचित न हो जाए। इसी तरह पंचायतों में शौचालय की व्यवस्था नहीं होने से पूरे पंचायत में स्वच्छता के प्रति नकारात्मक संदेश जाता है। ऐसे में शौचालय विहीन पंचायतों में समय सीमा के भीतर शौचालय निर्माण कराए जाने की जरूरत है। उल्लेखनीय है कि खुले में शौच से मुक्त अधिकांश गाँवों में संस्थागत शौचालय बेहतर स्थिति में हैं।

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