राजु कुमार
देश में स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) को गति देने के लिए सी.एल.टी.एस. (समुदाय आधारित स्वच्छता) पर जोर दिया जा रहा है। सी.एल.टी.एस. की विभिन्न तकनीकों का उपयोग कर स्थानीय परिप्रेक्ष्य में स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) को गति देना आसान है। इसमें स्थानीय समुदाय की भागीदारी बहुत ही महत्वपूर्ण है, जिसमें बच्चे, महिला समूह, युवा समूह, बुजुर्ग सभी की राय एवं नवाचारी बातों को समाहित करते हुए स्वच्छता अभियान पर जोर दिया जा रहा है। समुदाय से निकले प्रेरकों की भूमिका भी इसमें महत्वपूर्ण होती है।
मध्यप्रदेश के हरदा जिले में ‘ऑपरेशन मलयुद्ध’ नाम से समुदाय आधारित स्वच्छता अभियान को चलाया जा रहा है। प्रथम चरण में मई 2014 में 24 ग्राम पंचायतों को लिया गया था। सुबह और शाम को सभी गाँवों में अधिकारी निगरानी के लिए जाते थे, जिसमें समुदाय के लोग भी शामिल होते थे। राजमिस्त्रियों का प्रशिक्षण, समुदाय के साथ ट्रिगरिंग और पंचायतों को विशेष प्रोत्साहन दिए जाने से सफलता की राह आसान रही। क्लीन फल-सब्जी, ओडीएफ मछली ब्राण्ड, पवित्र गाय का दूध, अनाज उपार्जन में प्रोत्साहन राशि आदि के माध्यम से समुदाय को प्रेरित करने का विचार स्थानीय परिप्रेक्ष्य में समुदाय के साथ संवाद से ही निकलकर आया। हरदा जिले को दिसम्बर 2016 तक खुले में शौच से मुक्त जिला बनाने का संकल्प लिया गया है।
वे 40 किलोमीटर दूर तक सुबह-सुबह ग्रामीण इलाके का भ्रमण करती थी। वे कहती हैं कि जब शौच मुक्त गाँव होंगे, तभी स्वर्णिम मध्यप्रदेश की बात की जा सकती है। गाँवों में महिलाओं ने शौचालय के लिए किचन हड़ताल की, जिसकी वजह से उनके परिवार वाले शौचालय बनाने के लिए मजबूर हो गए। इसके साथ ही वे जमीनी समस्याओं के समाधान के लिए अधिकारियों से भी नियमित संवाद करती रहीं।
बीकानेर में संचालित समुदाय आधारित स्वच्छता अभियान को ‘बंको बीकानो’ नाम दिया गया। बीकानेर में इस भ्रम को भी तोड़ा गया कि बुजुर्गों को व्यवहार बदलाव के लिए प्रेरित नहीं किया जा सकता। अभियान में महिलाओं के सम्मान और अस्मिता को केन्द्र में रखा गया। शौचालय निर्माण के साथ-साथ समुदाय के व्यवहार बदलाव पर जोर दिया गया। थार मरुस्थल के बीच इस बड़े जिले में अप्रैल 2013 में जिले में स्वच्छता कवरेज महज 30 फीसदी था, पर अगस्त 2014 में जिले के 80 फीसदी ग्राम पंचायत खुले में शौच से मुक्त हो गए।
पश्चिम बंगाल के नादिया जिले में ‘सबर शौचागार’ नाम से स्वच्छता अभियान को चलाया गया। 2 अक्टूबर 2013 को नादिया जिले को खुले में शौच से मुक्त बनाने के लिए शपथ लेकर 187 पंचायतों में इसकी शुरुआत की गई। अभियान में 2.17 लाख लोगों की मानव श्रृंखला बनाकर रिकॉर्ड स्थापित किया गया। हॉट बैलून के माध्यम से संदेश भेजे गए। ईंट भट्ठों पर शौचालय बनाने के लिए उसके ठेकेदारों के सामने शर्ते रखी गई। 30 अप्रैल 2015 को पश्चिम बंगाल की मुख्यमन्त्री सुश्री ममता बनर्जी ने नादिया जिले को खुले में शौच से मुक्त जिला घोषित किया।
प्रेरकों को लेकर मध्यप्रदेश में अनूठा प्रयोग किया गया। यहाँ किन्नर समुदाय को भी इस अभियान से जोड़ा गया। मध्यप्रदेश में सागर की पूर्व महापौर किन्नर कमला बुआ ने बताया कि समुदाय को उनके सम्मान के साथ जोड़कर संवाद करना सार्थक रहा। जब वे गाँव जाती थी, तो फ्रेश होने के लिए शौचालय के बारे में पूछती थी और नहीं होने पर कहती थी कि जब पूरे गाँव में शौचालय बन जाएगा, तभी वह दुबारा आएंगी। वे 40 किलोमीटर दूर तक सुबह-सुबह ग्रामीण इलाके का भ्रमण करती थी। वे कहती हैं कि जब शौच मुक्त गाँव होंगे, तभी स्वर्णिम मध्यप्रदेश की बात की जा सकती है। गाँवों में महिलाओं ने शौचालय के लिए किचन हड़ताल की, जिसकी वजह से उनके परिवार वाले शौचालय बनाने के लिए मजबूर हो गए। इसके साथ ही वे जमीनी समस्याओं के समाधान के लिए अधिकारियों से भी नियमित संवाद करती रहीं।
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