सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान में महिलाओं का योगदान

गोविन्द शर्मा

 

देश के अन्य राज्यों की तरह बिहार में भी सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान को सफल बनाने में सरकारी विभागों के अलावा गैर-सरकारी संस्थाओं की भी भागीदारी है। वैसे बिहार कई क्षेत्रों में अन्य राज्यों से पीछे है। लेकिन सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के क्षेत्र में बिहार की महिला समूह आगे बढ़कर काम का रही हैं। इसमें बिहार शिक्षा परियोजना द्वारा गठित्त महिला समाख्या समूह का योगदान सराहनीय है। महिला समाख्या समूह राज्य के बाहर की महिलाओं को भी इस अभियान में शामिल होने के लिए प्रेरित कर रही हैं। महिला समाख्या समूह की कई दक्ष महिलाएं मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जाकर वहाँ की महिलाओं को शौचालय बनाने का प्रशिक्षण दे रही हैं और सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान में शामिल होने के लिये तैयार कर रही हैं।

 

बिहार महिला समाख्या आन्दोलन ने शहरों की बात तो छोड़ दें, ग्रामीण महिलाओं को भी जगाने का काम किया हैं। उन्हें इस लायक बनाया कि वे अपनी आवश्यकता को समझें और उसे पूरा करने के लिये पुरुषों का सहारा छोड़ स्वयं आगे आएं। वैसे, महिला सशक्तिकरण के लिये सरकारी और गैरसरकारी स्तर पर कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। लेकिन बिहार महिला समाख्या समूह ने नारी सशक्तिकरण के लिये जो काम किया. उसे देखने बाहर के लोग आ रहे हैं।

 

महिला समाख्या के अन्तर्गत महिलाओं के स्वसहायता समूह बनाए गए। उन समूहों को राष्ट्रीयकृत बैंकों से जोड़ा गया। कई समूहों को अपना रोजगार करने के लिये बैंकों से लघु ऋण भी दिए गए। दूसरा सबसे बड़ा बीड़ा जो महिला समाख्या ने अपने समूह के माध्यम से उठाया. वह है सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान में भागीदारी। इसके लिये महिला समाख्या संगठन ने ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय बनाने का प्रशिक्षण दिया। प्रशिक्षण के बाद महिलाएं राजमिस्त्री बन गईं। फिर क्या था, महिला राजमिस्त्री का विश्वास जगा और वे घर-घर जाकर ग्रामीण महिलाओं को शौचालय की जरूरत बताने लगीं। इसी क्रम में बहुत से परिवार के लोग शौचालय बनवाने को तैयार भी हो जाते। महिला समूह की राजमिस्त्री उनके घरों में शौचालय तैयार कर देती। महिला समाख्या समूह की इन उपलब्धियों ने सरकार को भी सहयोग करने के लिए प्रेरित किया। इससे सामाजिक परम्परा के बन्धन टूटे। अनेक जरूरतमन्द महिलाओं को रोजगार मिला।

 

महिलाओं के रोजगार के नये क्षेत्र खुले। साथ ही स्वच्छता के प्रति ग्रामीण परिवारों की आस्था बढ़ी। उतरी बिहार के कई जिले बाढ़ ग्रस्त हैं। बाढ़ के दिनो में शौच के लिये बाहर जाना मुश्किल हो जाता है। महिलाओं को तो सामान्य दिनों में भी अन्धेरा होने का इन्तजार रहता है। महिला समाख्या समूह की सदस्या जब ग्रामीण महिलाओं को उस स्थिति की याद दिलाती हैं तो ग्रामीण महिलाएं परिवार के लोगों को घर में शौचालय बनवाने पर राजी कर लेती हैं। इस तरह इन महिला राजमिस्त्रियों के कारण घरों में शौचालय बनवाने का एक माहौल तैयार हो गया है। सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान की सफलता के लिये रास्ता साफ दिख रहा है।

 

आँकड़े बताते हैं कि राज्य में लोक स्वास्थ्य अभियन्त्रण विभाग ने भी अभियान के अंतर्गत गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करने वाले परिवारों को अनुदान स्वरूप दी गई राशि पर उनके घरों में शौचालय बनवाये जा रहे हैं। मगर महिला समाख्या समूह की उपलब्धियाँ इससे अधिक दिखाई पड़ रही हैं। उपलब्ध जानकारी के अनुसार, अकेले मुजफ्फरपुर जिले में 126 महिला राजमिस्त्रियों ने 3,457 से अधिक शौचालयों का निर्माण किया। वहीं रोहतास में 20 महिला राजमिस्त्रियों ने 622, गया में 49 ने 6,770, सीतामढ़ी में 31 ने 622, पश्चिम चम्पारण में 28 ने 194, कैमूर में 6 ने 77, दरभंगा में 16 ने 623, शिवहर में 12 ने 112, भोजपुर में 44 ने 1,093, वैशाली में 20 ने 154 अर्थात राज्य में कुल 352 महिला राजमिस्त्रियों ने 13,724 शौचालयों का निर्माण कर एक उल्लेखनीय कार्य किया। मुजफ्फरपुर जिला महिला समाख्या की जिला कार्यक्रम समन्वयक पूनम सिंह बताती हैं कि इस जिले के चार प्रखण्डों में सघन रूप से शौचालय निर्माण का काम चल रहा है। इसमें जिले का मुशहरी प्रखण्ड सबसे आगे है। यहाँ चार महिला स्वसहायता समूह की 50 महिलाएं इस काम में लगी हैं।

 

शौचालय की सामग्री निर्माण में स्वसहायता समूह की सावित्री, तारा और विभा दक्ष मानी जाती हैं। सावित्री का कहना है कि अब जिलों में लोग राजबाड़ा स्वसहायता समूह द्वारा बनाई गई शौचालय बनाने की सामग्री पसन्द करने लगे हैं। इससे समूह की महिलाओं को महीने में 1,500 से 4,500 रुपये की आमदनी हो जाती है। इसे देखते हुए गाँव की पढ़ी-लिखी लड़कियां भी इस काम में आगे आने लगी हैं। मुशहरी के मुखिया संजय कुमार मानते हैं कि प्रखण्ड के ग्रामीण क्षेत्रों में एक बदलाव आ गया है। एक नयी क्रान्ति आ रही है। लगता है मुशहरी एक बार फिर नक्सली आन्दोलन के लिये नहीं, बल्कि सम्पूर्ण स्वच्छता के लिये चर्चा में आ जाएगा।

 

महिला सशक्तिकरण की चर्चा करते हुए पूनम कहती हैं कि मुशहरी प्रखण्ड के अलावा जिले के अन्य प्रखण्डों में भी महिला स्वसहायता समूह का गठन महिला समाख्या की स्वयंसेविकाओं के नेतृत्व में हो रहा है। केवल चार प्रखण्डों में एक हजार से अधिक महिला स्वसहायता समूह का गठन हो चुका है। 20 हजार ग्रामीण महिलाएं इनकी सदस्य बन चुकी हैं। लगभग 500 स्वसहायता समूहों को विभिन्न बैंक शाखाओं से जोड़ दिया गया है। इस क्षेत्र में सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि इन स्वसहायता समूहों के जरिये न केवल आमदनी बढ़ाने का प्रयास हो रहा है, बल्कि महिलाओं में बचत करने की आदत भी डाली जा रही है। इसी का परिणाम है कि इस जिला की महिला स्वसहायता समूह की ओर से अब तक 2 करोड़ रुपये बैंकों के बचत खाते में जमा कराए गए हैं। महिलाओं में बचत का यह अनोखा उदाहरण है। इससे महिलाओं में आत्मविश्वास जगा है। स्वसहायता समूह की हर महिला अब कुछ न कुछ करने के लिये संकल्पबद्ध हैं।

 

यह पूछने पर कि शौचालय बनाने की तकनीकी जानकारी महिलाओं को कैसे मिली, जिला कार्यक्रम समन्वयक ने बताया कि पहले कुछ महिलाओं को प्रशिक्षण के लिये ईश्वर भाई के सफाई विद्यालय अहमदाबाद भेजा गया। वहाँ से प्रशिक्षण लेकर लौटी महिलाओं ने दूसरी महिलाओं को राजमिस्त्री का प्रशिक्षण दिया। प्रशिक्षित महिला राजमिस्त्री तारा बताती हैं कि एक बार बता देने के बाद महिलाएं शौचालय बनाने में जुट जाती हैं। इस काम से एक सामाजिक परिवर्तन आया है। अब कुछ परिवारों में पुरुष बच्चों की देखभाल करते हैं और महिला राजमिस्त्री दूसरे गाँवों में शौचालय बनाने जाती हैं। कुछ पुरुष अपनी राजमिस्त्री पत्नी को स्वयं कार्यस्थल पर पहुँचाने का काम करते हैं। इस प्रकार स्वच्छता अभियान के कारण सामाजिक परिवर्तन को तो बल मिल ही रहा है, पुरुषों की नजर में महिलाओं का मान भी बढ़ा है।

 

सचमुच बिहार में महिलाओं ने स्वच्छता के लिये एक मजबूत वातावरण तैयार किया है। अब गाँवों में लोग शौचालय की आवश्यकता को महसूस करने लगे हैं। तभी तो कई महिला गैर-सरकारी संगठनों ने शौचालय निर्माण के जरिये स्वच्छता को अपनी संस्था का प्रमुख कार्यक्रम मान लिया है। इसी क्रम में मुजफ्फरपुर जिला के कुरहनी प्रखण्ड के हनुमान प्रसाद ग्रामीण विकास सेवा दल ने अपने प्रयास से प्रखण्ड की सकरी सरैया पंचायत को ‘निर्मल ग्राम’ घोषित कराया। इसके लिये पंचायत सहित इस स्वयंसेवी संस्था को इसी वर्ष नयी दिल्ली में राष्ट्रपति ने सम्मानित किया। इस संस्था की कार्यक्रम प्रभारी उषा सिंह बताती हैं कि हमारी संस्था ने कुरहनी प्रखण्ड को ‘निर्मल प्रखण्ड’ बनाने का कार्यक्रम बनाया है। इसके लिये पूरे प्रखण्ड के गाँवों में शौचालय निर्माण का काम महिला राजमिस्त्रियों द्वारा हो रहा है। हालांकि कुछ गाँवों में लोक स्वास्थ्य अभियन्त्रण विभाग द्वारा भी शौचालय बनवाए जा रहे हैं। लेकिन गाँव की महिलाएं चाहती हैं कि महिला राजमिस्त्री ही उनके घरों में शौचालय का निर्माण करें।

 

अब विश्वास हो चला है कि और कुछ हो या न हो अन्य क्रान्तियों की तरह सम्पूर्ण स्वच्छता क्रान्ति की अगुआई बिहार की महिलाओं के हाथ में रहेगी। तभी तो कई राज्यों से नेतृत्व और प्रशिक्षण के लिये बिहार की महिला राजमिस्त्रियों को बुलावा आ रहा है। इससे सामाजिक बदलाव तो आ ही रहा है, इसके साथ-साथ महिलाओं से जुड़े कई मिथक टूट रहे हैं। आशा करनी चाहिए कि बिहार सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान में महिलाओं के कारण आगे रहेगा।

 

लेखक मीडियाकर्मी है।

 

साभार : योजना नवम्बर 2007

 
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