शौचालय, स्वच्छता और…

शौचालय, तकनीक, स्कैवेंजिंग, शिक्षा, प्रशिक्षण-इन्हें उचित एवं सही क्रम में व्यवस्थित करना कठिन है। यदि हम ऐतिहासिक तथ्यों को ध्यान में रखें तो निश्चय ही स्कैवेंजिंग सबसे पुराना है। अस्तित्व में आने के बाद से ही शौचालय की सफाई स्कैवेंजरों द्वारा की जाती रही है। परिणामतः स्कैवेंजर नामक एक नया वर्ग हामरे समाज के सम्मुुख उपस्थित हुआ। इन्हें इनके अमानवीय और घृणित कार्य से निकालने तथा स्वच्छता, पर्यावरण और जीवन से जुड़ी परिस्थितियों में सुधार के लिए उचित तकनीक की आवश्यकता थी। इस परिप्रेक्ष्य में सुलभ-संस्थापक-द्वारा आविष्कृत और विकसित दो गड्ढेवाली तकनीक ने कमाऊ शौचालयों को एक ऐसी प्रणाली में तब्दील कर दिया, जिससे मानव-मल का स्थल पर ही निपटान हो जाता है और इसके लिए स्कैवेंजर की जरूरत नहीं पड़ती।

अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुका विश्व शौचालय दिवस अब संपूर्ण विश्व में उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। यह हमारी सभ्यता के लिए आवश्यक स्वच्छ शौचालय के महत्व पर बल देता है। यह समारोह स्वच्छ भारत के निर्माण की ओर एक कदम है, जो महात्मा गाँधी भी चाहते थे। महात्मा गाँधी ने कहा था- ‘मैं स्वच्छ भारत की कामना पहले करता हूँ और स्वतन्त्र भारत की बाद में।’


स्वच्छ  भारत से अभिप्राय सिर्फ स्वच्छ शौचालय अथवा स्वच्छ पर्यावरण ही नहीं है, बल्कि इसमें सांस्कृतिक क्रांति भी शामिल है, जिससे लोगों के विचार और व्यवहार में परिवर्तन आए, ताकि लोग आपस में प्रेमपूर्वक रहते हुए अपने आस-पास के क्षेत्रों और राष्ट्र को साफ-सुथरा रख सकें। इस देश के लोगों के व्यवहार में महत्त्वपूर्ण बदलाव लाने और राष्ट्र की स्वच्छता-नीति में सुधार लागू करने के लिए प्रयास होने चाहिए।


सुलभ-स्वच्छता-आंदोलन के संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक ने सिंगापुर में संपन्न वर्ल्ड ट्वॉयलेट सम्मिट में भारत की पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गाँधी के जन्म-दिन अर्थात् 19 नवम्बर को विश्व शौचालय दिवस के रूप में मनाने का सुझाव दिया, जिसे सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया।


इस वर्ष 19 नवम्बर को नई दिल्ली के फिक्की सभागार में सुलभ-द्वारा आयोजित कार्यक्रम में दृढ़तापूर्वक इस अवसर के महत्त्व को प्रस्तुत किया गया। इसमें एक विशाल शौच-पात्र तथा मूत्र-पात्र के आकार का केक, जिसका वजन 250 कि.ग्रा. था, का अनावरण किया गया। इस केक के चारो ओर बनाई गई मानव-श्रृंखला में पूर्व-स्कैवेंजर, उनके बच्चे एवं अन्य विद्यालयों से आए बच्चे भी शामिल थे।



सुलभ पब्लिक स्कूल के द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित किए जानेवाले वार्षिकोत्सव से यह स्पष्ट है कि इन बच्चों के माता-पिता को उनके द्वारा किए जानेवाले अमानवीय कार्य से जो मुक्ति मिली है, वह निश्चित ही इन्हें एक सुनहरे भविष्य की ओर ले जाएगी, परंतु यहीं इस यात्रा का अंत नहीं हो जाता।


यह सुलभ इंटरनेशनल के सार्थक प्रयासों का ही परिणाम है कि आज स्वच्छता के विषय को सामाजिक जीवन के एक महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में पहचान मिली है एवं अपेक्षित विषय के रूप में इसपर इसकी आवश्यकता और महत्ता पर विचार किया जाता है।


स्कैवेंजरों के उद्धार एवं स्वच्छता के विषय को जनता एवं सरकार की आवाज बनाने के लिए सुलभ के प्रयासों को मान्यता मिली है और इसी का फल है कि माननीय उच्चतम न्यायालय-द्वारा नाल्सा (राष्ट्रीय विधिक सेवा-प्राधिकरण) से पूछा गया कि क्या सुलभ वृंदावन में बदहाल स्थिति में रह रही विधवाओं की सहायता कर सकता है?


सुलभ-संस्थान तत्काल ही इस विषय पर आगे आया और आज उन विधवाओं की पूर्णरूपेण देखभाल कर रहा है। वृंदावन की ये विधवाएँ भी इस विश्व शौचालय दिवस में भाग लेकर प्रसन्न थीं।


‘विश्व-शौचालय-दिवस’ का आयोजन तभी सार्थक होगा, जब स्वच्छता को एक सामाजिक विषय बनाने के लिए सुलभ के आह्वान को समाजशास्त्र के अंतर्गत लाया जाएगा। स्वच्छता को व्यक्ति, समाज और पर्यावरण के स्तर पर अपनाकर नए दर्शन की घोषणा की जाएगी और फिर सबके घर में कम-से-कम एक अदद शौचालय होगा। अस्वच्छता, स्कैवेंजर तथा बीमारी-रहित मानव-समाज होगा। अस्पृश्यता की समस्या दूर होगी मानव और मानव के मध्य और घृणा-मुक्त मानव-समाज होगा।

साभार : सुलभ इण्डिया, नवम्बर 2013

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