शौचालय से सामाजिक परिवर्तन लाए हैं

साक्षात्कार: डॉ. बिन्देश्वर पाठक

डॉ. बिन्देश्वर पाठक एक ऐसे भारतीय समाजशास्त्री हैं, जो भारत और दूसरे देशों में शौचालयों के निर्माण में अपने योगदान के लिए विख्यात हैं। उनका संगठन सुलभ इंटरनेशनल मानवाधिकारों को प्रोन्नत करने, पर्यावरण-सम्बन्धी स्वच्छता, ऊर्जा के गैर परम्परागत स्रोतों, कचरा-प्रबन्धन और शिक्षा के माध्यम से सामाजिक सुधार के क्षेत्र में क्रियाशील है। संगठन ने अब-तक 1.3 मिलियन घरेलू शौचालय और 8,000 सामुदायिक शौचालय-परिसरों का निर्माण किया है।

वर्तमान में सुलभ शौचालयों का इस्तेमाल प्रतिदिन 20 मिलियन लोग कर रहे हैं। खासतौर से स्वच्छता और शुचिता के क्षेत्र में डॉक्टर पाठक को सामाजिक सुधार के क्षेत्र में अग्रणी माना जाता है। बृहस्पतिवार को समिक खरेल ने डॉक्टर पाठक से समाज में शौचालयों के माध्यम से लाए गए रूपांतरण के बारे में बातचीत की। प्रस्तुत हैं उसके कुछ अंश!

इस बार नेपाल आने के आकर्षण का कारण ?

काठमाण्डु का जोंटा क्लब, स्वच्छता-कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने में संलिप्त है। उसने नेपाल में सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण और उन्हें प्रोन्नत करने में दिलचस्पी दिखाई है। चूँकि मैं सुलभ शौचालय का संस्थापक हूँ, अतः मुझे उसी तरह के शौचालयों के निर्माण में अपनी विशेषज्ञता के बारे में विचार-विनिमय के लिए यहाँ आमन्त्रित किया गया। इसमें क्लब, स्कूलों, घरों और सार्वजनिक स्थलों पर शौचालयों के निर्माण में मदद करना शामिल होगा।

क्या नेपाल में यह आपका पहला कार्य है ? यदि हाँ, तो आप अपनी योजना को किस रूप में आगे बढ़ाना चाहते हैं ?

नेपाल मंे अनेक संगठनों ने इसके पहले भी सार्वजनिक शौचालयांे के निर्माण और स्वच्छता की स्थिति को बेहतर बनाने के सिलसिले में दिलचस्पी दिखाई थी, लेकिन कोेई भी परियोजना कार्य रूप नहीं ले सकी, अब हम नेपाल में संगठनों और दिलचस्पी लेने वालों से स्पष्ट संकेत देख रहे हैं। इसमें हमारा पहला कार्य पशुपतिनाथ-क्षेत्र में उपयुक्त सार्वजनिक शौचालय बनवाना होगा। पिछली बार जब मैं यहाँ आया था तो मैंने पशुपतिनाथ-मन्दिर-परिसर-स्थित शौचालय की स्थिति बहुत खराब देखी थी। मेरे मन में शुरू से ही यह सपना था कि इस क्षेत्र में एक परियोजना शुरू हो। चूँकि यह एक पवित्र हिन्दू-मन्दिर है और यहाँ बडे़-बड़े लोग आते रहते हैं, अतः यह परियोजना शुरू करने की एक बड़ी जगह होगी।

शौचालयों सम्बन्धी आपकी धारणा दूसरों से किस तरह भिन्न हैं ?

भारत में सुलभ शौचालयों में नहाने-धोने से लेकर लॉकरों में अपना सामान सुरक्षित रखने की समुचित सुविधाएँ हैं। उनमें कुछ तो वातानुकूलित हैं। उनकी देखभाल चौबीसों घंटे की जाती है, जो सार्वजनिक शौचालयों के प्रबन्धन का महत्त्वपूर्ण पक्ष है। शौचालय-निर्माण की हमारी लागत हजारों से लेकर लाखों रुपयों तक की है। उन्हें लोगों के खर्च कर सकने की क्षमता के अनुसार बनाया जाता है। प्रमाण के लिए शिरडी में हमने एक ऐसा परिसर बनाया है, जिसमें 150 शौचालय और स्नानघर हैं। उसमें तीर्थ-यात्रियों के लिए 5,000 लॉकरों की व्यवस्था है। उसी तरह भारत-सरकार के सहयोग से हमने उन्हीं सुविधाओं के साथ काबुल में 5 शौचालय-परिसर बनवाए हैं।

आप हमेशा यह पैरवी करते रहे हैं कि शौचालय सामाजिक परिवर्तन के लिए महत्तवपूर्ण हैं। शौचालयों द्वारा लाए जानेवाले रूपांतरण के बारे में कुछ विस्तार से बताएँगे ?

भारत मंे पहले भी माना जाता था कि अस्पृश्य लोग मानव-मल की सफाई करते हैं। इस प्रकार लोगों में एक प्रकार की असमानता थी। सन 1934 में गाँधी जी ने तथाकथित उच्च वर्ग के लोगों और अस्पृश्यों को एक साथ भोजन के लिए आमन्त्रित किया गया था। बहरहाल, उनमें से अधिकतर लोगों ने इनकार कर दिया था। बाद में गाँधी जी ने लिखा कि भारतीय लोग अंग्रेजों की गोलियाँ खाने के लिए तैयार रहते हैं, लेकिन वे अछूतों से घबराते हैं। बहरहाल, अब स्थितियाँ बदली हुई हैं। ऐसे शौचालय बन रहे हैं, जिनमें स्कैवेंजरों की सेवा की बिलकुल जरूरत नहीं होती। शौचालयों से जो आमदनी होती है, उसका इस्तेमाल अन्य व्यावसायिक प्रशिक्षणों के लिए किया जा रहा है। वह लोगों को अपनी रोजी-रोटी कमाने में मदद करता है। उसी तरह से शौचालयों ने डायरिया और पेचिश-जैसी बीमारियों को कम करने में सहायता की है। अब लोग मर्यादापूर्वक शौचालयों का इस्तेमाल कर सकते हैं। महिलाएँ भी अपने को सुरक्षित महसूस करती हैं।

आप शौचालय से बायोगैस पैदा करते रहे हैं। उसने किस प्रकार लोगों और समाज की सहायता की है ?

 

सुलभ शौचालयों से निःसृत मानव-मल-आधारित बायोगैस ऊर्जा का एक किफायती साधन है। अपनी अधिकतर परियोजनाओं में हम मानव-मल को बायोगैस-टैंक में भेजत हैं और उसे ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं। इस ऊर्जा से हमने सफलतापूर्वक स्ट्रीट लैंप लगाए हैं। जनता ने अपने घरों में उसका इस्तेमाल रोशनी करने तथा खाना बनाने के लिए किया है। इन शौचालयों से निकला हुआ जल भी सुलभ-तकनीक से शुद्ध कर खेती के काम के लिए उपयुक्त बनाया गया है। शुद्ध किया हुआ यह जल नदियों में बहाया जा सकता है। हमने बायोगैस तथा जल-शोधन-सुविधा को लेकर भी अपनी पशुपति-परियोजना का विचार बनाया है।

साभार : सुलभ इण्डिया अप्रैल 2014

द काठमाण्डू पोस्ट 24 अप्रैल 2014

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