नई दिल्ली (भाषा)। कुल 1200 निवासियों वाले, शौचालय रहित एक गाँव में प्रत्येक निवासी को प्रदूषित भोजन के जरिए रोजाना एक दूसरे के अपशिष्टों के लगभग तीन ग्राम (मल-मूत्र) का सेवन करना पड़ता है। यह बात एक सरकारी रिपोर्ट में कही गई है।
पंचायती राज मन्त्रालय द्वारा लाई गई ‘एलीमेन्ट्री बुक ऑन सेनिटेशन इन ग्राम पंचायत्स’ यह चेतावनी देती है कि इन गाँवों में उपलब्ध भोजन और पेय पदार्थ कम से कम एक प्रतिशत अपशिष्ट पदार्थों से दूषित होते हैं। पाँच वर्षों में सभी को शौचालय उपलब्ध करवाने का महत्वाकांक्षी अभियान शुरू करने वाली सरकार का कहना है कि देश में लगभग 65 प्रतिशत ग्रामीण लोग खुले में शौच जाते हैं जिसके कारण मानवीय अपशिष्ट (मल-मूत्र) खुले में पड़े रहते हैं और पर्यावरण में प्रदूषण फैलाते हैं।
किताब कहती है- “ऐसा आकलन है कि 1200 लोग वाले और शौचालय एक गायन में प्रतिदिन औसतन 300 किलोग्राम मानवीय अपशिष्ट पैदा होता है।” किताब कहती है- “आसपास के पर्यावरण और पानी मे पैदा होने वाले उस प्रदूषण के स्तर का अंदाजा लगाइए, जो बिना शोधन के पड़े अपशिष्ट पदार्थों के कारण फैलता है।” इसमें आगे कहा गया है- “यदि हम मान लें कि ग्रामीणों द्वारा खाए-पिए जाने वाले भोजन और पेय पदार्थ 300 किलोग्राम अपशिष्ट पदार्थों का एक प्रतिशत भी है तो भी वे अप्रत्यक्ष तौर पर इस संदूषित भोजन के जरिए, एक दूसरे के अपशिष्ट पदार्थों का लगभग तीन ग्राम (एक चॉकलेट के बराबर) प्रतिदिन खा जाते हैं।”
यह किताब गाँवों को स्वच्छ रखने, खुले में शौच की प्रथा को खत्म करने, पर्यावरण के अनुकूल ढंग से द्रव और ठोस कचरे का निपटान करने, लोगों में स्वच्छता वाली आदतों को प्रोत्साहित करने और स्कूलों एवं आंगनवाड़ियों में स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिए जाने के उद्देश्य से ग्राम पंचायतों के चयनित प्रतिनिधियों और अधिकारियों की मदद करने के लिए है।
किताब के अनुसार, मानवीय अपशिष्टों में बीमारियाँ फैलाने वाले रोगाणु बड़ी संख्या में होते हैं, जो हवा, मक्खियों, तरल पदार्थ, पैरों की उँगलियों, खेतों, जानवरों और वाहनों के जरिए मानव तन्त्र में और भोजन में प्रवेश कर जाते हैं।
साभार : राष्ट्रीय सहारा 5 जनवरी 2015
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