शौचालय निर्माण से होगा नए विश्व का निर्माण

वैष्णवी तिवारी व मुस्कान मेहता

‘एक बेहतर विश्व के निर्माण की इच्छा से सभी लबरेज हैं। एक ऐसे विश्व की जिसमें अस्वच्छता के कारण किसी बच्चे की मृत्यु नहीं होगी और जहां सभी लोग स्वस्थ एवं सम्मानपूर्वक जीवन जी सकेंगे। - बिल गेट्स, माइक्रासाॅफ्ट के संस्थापक, चेयरमैन।

नई दिल्ली के ताज पैलेस होटल में मार्च महीने के दूसरे पखवाड़े में 47 देशों के 700 से अधिक प्रतिनिधियों का एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें शौचालय सुविधा से वंचित ढाई अरब लोगों की समस्या विचार-विमर्श का मुख्य विषय थी।

आयोजन की सह-व्यवस्था भारत सरकार के जैव तकनीक विभाग ने शहरी विकास मंत्रालय के सहयोग से की थी। विशिष्ट आमंत्रितों में बिल ऐंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन के प्रतिनिधि मंडल, अगली पीढ़ी के शौचालय को विकसित करने के लिए चुने गए भारतीय अनुसंधानकर्ताओं और सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गेनाइजेशन के सदस्यों के अलावा सुलभ स्कूल, सेनिटेशन क्लब के सदस्यगण उपस्थित थे। शौचालय की विभिन्न डिजाइनों की प्रतिकृतियां प्रदर्शन की मुख्य विशेषता थी।

नवीन प्रयोग के लिए वित्तीय सहायता

फाउंडेशन ऑफ ग्लोबल डेवलपमेंट प्रोग्राम ने दुनिया के 16 अनुसंधान संगठनों को वित्तीय सहायता दी। फाउंडेशन का उद्देश्य यह था कि उन शौचालयों को नवीन रूप देना है जो जल, सीवर, बिजली से नहीं जुड़े हैं और जो गरीबों के लिए किफायती हैं। भारत में 6 नए अनुदानग्राही हैं, जो स्वच्छता की समस्या के हल के लिए आविष्कारी समाधान ढूंढ़ रहे हैं।

सुलभ इंटरनेशनल और सुलभ स्कूल सेनिटेशन क्लब को उस मेले में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया गया था। वह साक्षी था भारत के अनेक प्रदर्शनकर्ताओं का, जिन्होंने अपनी वर्तमान टेक्नोलॉजी और नीति तथा कार्यान्वयन संबंधी अभियान को प्रस्तुत किया था, इस अवसर पर अनेक देशों के प्रतिनिधियों ने सुलभ टेक्नोलॉजी की प्रशंसा की।
विकासशील देश भी शौचालय तकनीक से वंचित नेटवर्किंग सत्र में बोलते हुए सुलभ आंदोलन के संस्थापक डॉ. बिन्देश्वर पाठक ने सुलभ शौचालय के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, ‘यह तथ्य है कि विकासशील देशों के बहुत से लोगों को बेहतर शौचालय सुविधा उपलब्ध नहीं है। इस समस्या का एक कारण टेक्नोलॉजी से संबद्ध है। विकसित देशों में हम जल-प्रवाही और सीवर वाले शौचालयों का इस्तेमाल करते हैं, वे खर्चीले हैं।’ उन्होंने कहा कि दो गड्ढों वाले शौचालय पर्यावरण की दृष्टि से बेहतर हैं, ये अगली पीढ़ी के शौचालय हैं, जो गरीब लोगों की आवश्यकता पूरी करेंगे। डॉक्टर पाठक ने बिल ऐंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन को उनकी योजना और स्वच्छता पर ध्यान देने के लिए धन्यवाद दिया। फाउंडेशन लोगों को इस बात के लिए प्रोत्साहित कर रहा है कि वे परंपरागत विचारों से बाहर निकल कर साधारण शौचालय से निकलने वाले मल-जल को बिजली, ऊर्जा और ईंधन पैदा करने वाले लाभकारी स्रोत के रूप में पहचानें।

उन्होंने कहा कि यहां उपस्थित हम सभी का प्रारंभिक उद्देश्य होना चाहिए कि दुनिया के उन ढाई अरब लोगों के लिए सस्ती और सेवा-योग्य स्वच्छता की तरकीबों पर विचार करना, जो सुचितापूर्ण स्वच्छता विधि से वंचित हैं और जिन्हें संभव है कि तत्काल जल उपलब्ध न हो। डॉक्टर पाठक के भाषण पर बहुत देर तक तालियां बजती रहीं।

उद्घाटन सत्र के मध्य में फाउंडेशन के ग्लोबल डेवलपमेंट प्रोग्राम के अध्यक्ष श्री क्रिस डलियास ने कहा, ‘दिल्ली के सेमिनार में इकट्ठा हुए लोगों में बहुत उत्साह और कौतूहल टेक्नोलॉजी को लेकर देखा गया था। कारण यह कि वे यह महसूस करते हैं कि संभव है हम अंततः समस्याओं के समाधान का एक ऐसा समूह प्राप्त कर सकें, जिनका मापन उनती ही तेजी से हो सके, जितनी तेजी से वे बढ़े हैं।’

बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन के स्वच्छता और टेक्नोलॉजी के वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी डौलायी कोन ने कहा, ‘विचारों और टेक्नोलॉजी को उन तरकीबों में मिला देना आवश्यक लग रहा था, जो आसानी से मानव-मल का सुरक्षित ढंग से निपटान कर सकते हैं।’ उन्होंने आगे कहा, ‘मैं यह सोचकर स्वयं को बहुत आशान्वित पाता हूं कि हमारे प्रतिभागी आनेवाले दिनों में अरबों लोगों के स्वस्थ्य और जीवन को रूपांतरित करने के सही रास्ते पर हैं।’
बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन के जल, स्वच्छता और स्वास्थ्य के निदेशक ब्रायन आर्बोगेस्ट ने कहा, ‘हम अनुदान देने वाले के काम से प्रभावित हैं। हमारा उद्देश्य है विकास के संपूर्ण समाधानों को वित्तीय मदद देना, ऐसे समाधान जो किफायती हैं, जो कार्य-सक्षम हैं और जिन्हें लोग इस्तेमाल करना चाहते हैं। हम बहुत उत्साहित हैं, उनकी उस प्रगति को देखकर, जो अगस्त 2014 के प्रथम मेले में सामने आई है।’

बच्चों को भी इस विचार मुहिम से जोड़ें

सुलभ स्कूल सेनिटेशन क्लब के क्रियाकलापों पर नवीं कक्षा की एक छात्रा वैष्णवी तिवारी ने वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि पर्याप्त स्वच्छता का अभाव अभी भी अनेक स्कूली छात्राओं को शिक्षा, अच्छे स्वास्थ्य और एक सम्मानपूर्ण जीवन से वंचित कर देता है। शौचालयों, स्वच्छता कार्यक्रमों और परियोजनाओं के संबंध में बच्चों को बहुत कम ध्यान दिया जाता है। वयस्क लोग फैसलों में बच्चों को संलिप्त होने से प्रायः रोकते हैं।

शौचालय-मेले में सर्वाधिक मजाकिया नारा था, ‘क्या आप जाना चाहते हैं, उसके बाद हल्के से सिर को हिलाया जाता और शौचालय की ओर इशारा किया जाता था। एक पंक्ति के उस वाक्य के बाद लोग खिलखिला कर हंस पड़ते थे। शौचालय के पुनः आविष्कार का मुख्य उद्देश्य था सभी भारतीयों को भविष्य के लिए तैयार करना।

वह मेला एक विज्ञान-मेले की तरह था। इसमें जो चीजें प्रदर्शित थीं, वे आकर्षक थीं। कुछ को देखकर मन में यह भाव उठता था कि शौचालय क्या है, क्या वह शौचालय जो पानी का कोई इस्तेमाल नहीं करता, कचरे को ऊर्जा में बदल सकता है, क्या एक मशीन टनों  कचरे को छोटी मात्रा में उर्वरक में बदल सकती है। यह गरीबों की आवश्यकताओं के लिए व्यावहारिक प्रतिक्रिया थी, विशेषकर महिलाओं के लिए। वह दिन दूर नहीं, जब भविष्य में पुरानी चीजों से ऐसे वास्तविक उत्पाद बनेंगे, जो उन अरबों लोगों को सुरक्षित और बेहतर स्वास्थ्य की व्यवस्था करेंगे, जो आज स्वच्छता-सुविधा से वंचित हैं।

कचरे से तैयार करने वाले बिजली उपकरणों की प्रदर्शनी

वाशिंगटन आधारित एक कंपनी जैनिकी इंडस्ट्रीज ने एक बिजली-घर का पावर-प्लांट प्रदर्शित किया, जो एक छोटे शहर के कचरे से 150 किलोवाट बिजली पैदा कर सकता था, जो हजारों घरों को रोशनी देने के लिए काफी है। कोलोरैडो विश्वविद्यालय की एक दूसरी टीम बोल्डर ने एक ऐसी विधि प्रस्तुत की, जो सौर ऊर्जा से फाइबर ऑप्टिक केबल के माध्यम से कचरे को 300 डिग्री सेंटीग्रेड तक गर्म कर सकती थी। पैथेजन को मारने के साथ ही यह प्रक्रिया कोलतार की तरह का एक उत्पाद बनाती है, जिसे वायोचार कहते हैं, वह रसोई-ईंधन और उर्वरक के रूप में उपयोगी है।

एराम साइंटिफिक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) अनवर सदाथ ने इस अवसर पर कहा, ‘हमने पाया कि लोग शौचालयों के गंदे फर्श आदि से थक चुके हैं। अतः हमने फर्श की धुलाई की एक स्वतः संचालित व्यवस्था आरंभ की, जिसके प्रयोग के लिए मानव-श्रम  की आवश्यकता नहीं पड़ती। एराम के सार्वजनिक शौचालयों में सिम-कार्ड भी होता है, उसे इंटरनेट से भी जोड़ा जा सकता है, जिससे कभी आवश्यकता पड़ने पर जब शौचालय बिगड़ जाए तो दूर बैठकर उसकी देख-रेख भी की जा सकती है।

कैलटेक इनोवेशन, अमेरिका की कंपनी काह्लर के साथ मिलकर शौचालय में कम-से-कम जल-प्रयोग और कचरे के उचित ढंग से निस्तारण की विधि पर कार्य कर रही है। इस अवसर पर बिल ऐंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन की वरिष्ठ प्रोग्राम ऑफिसर (जल एवं स्वच्छता) डौलायी कोन का कहना था कि हमारे पास सैकड़ों योजनाएं एवं सामाजिक प्रेरणाएं हैं, किंतु हम आज भी किसी उचित हल पर नहीं पहुंचे हैं।

दुनिया भर में अभी भी लगभग ढाई अरब लोग खुले में शौच का निपटान कर रहे हैं। हालांकि इस काम को मुहिम और अभियान के तौर विभिन्न देश की सरकारों ने अपनाया है। इस काम में दुनिया की बड़ी कॉरपोरेट कंपनियां भी खुले दिल से सहयोग कर रही हैं।

हम समस्या के एक भाग का हल निकालने का प्रयास कर रहे हैं। आपको यह समझना ही होगा कि आप ऐसा नहीं कर सकते कि स्वयं तो अपने घर में साफ-सुथरे शौचालय का प्रयोग करें और गरीब वर्ग को गंदे और बदबूदार शौचालय प्रयोग करने के लिए छोड़ दें।
सुलभ के स्टॉल पर भारी भीड़ थी। भारत सरकार के माननीय ग्रामीण विकास-मंत्री श्री जयराम रमेश, बायोटेक्नोलॉजी-विभाग के प्रो. विजय राघवन, विश्व-शौचालय-संस्थान के श्री जैक सिम, भारत-सरकार के पेय-जलापूर्ति-विभाग के सचिव श्री पंकज जैन सुलभ के स्टॉल पर आए। इनके अलावा बिल ऐंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन के अधिकारी, यूनिसेफ, यू.एस.एड्. तथा वाटर एड्. के अधिकारियों ने भी सुलभ के स्टॉल पर आकर जानकारी प्राप्त की।

 

स्टॉल पर आनेवाले लोगों को सुलभ की गांव-गांव, शहर-शहर तक पहुंच के बारे में विस्तार से बताया गया। लोगों को दिखाने के लिए सार्वजनिक एवं निजी शौचालयों के विभिन्न मॉडल वहां रखे गए थे। स्टॉल पर आनेवाले लोगों के लिए बायोगैस एवं सेट-तकनीक भी काफी रुचिकर लगी।
सुलभ-स्टॉल पर आने पर बिल ऐंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन के वाटर, सेनिटेशन ऐंड हाईजीन-टीम के निदेशक श्री ब्रायन आर्बोघास्ट ने कहा कि विकासशील देशों में स्वच्छता-व्यवस्था बनाए रखना अत्यंत कठिन कार्य है। फ्लश शौचालय सदा ही एक विकल्प के तौर पर नहीं होता। बहुत से ऐसे समुदाय हैं, जो ऐसे स्थानों पर रहते हैं, जहां पानी की बहुत कमी है। कुछ ऐसे स्थानों पर रहते हैं, जहां सीवेज के पाईप अथवा जल-शोधक-संयत्रों की कमी है। सुलभ-द्वारा अपनाई गई तकनीकें वास्तव में मददगार सिद्ध हो सकती हैं।

सुलभ के सदस्यों ने सरल भाषा में सुलभ की गतिविधियों और दो गड्ढों वाले शौचालय-तकनीक के बारे में विस्तार से बताया। ऐसे कई विदेशी आगंतुक थे, जो सुलभ-तकनीक की प्रतिकृति अपने देश ले जाना चहते थे। श्री जैक सिम ने इस अवसर पर कहा, ‘मेरा मानना है कि विकसशील देशों में स्वच्छता-संबंधी समस्याओं का हल सुलभ-तकनीक में है और शायद इस संस्थान से सहयोग करना और विकासशील देशों में उचित प्रशिक्षण देना अधिक लाभ देनेवाला सिद्ध होगा।’

इस भव्य शौचालय फेयर के उद्घाटन के पश्चात् लोगों के पास अवसर था कि वे प्रतिभागियों से जाकर मिलें। सुलभ स्कूल सेनिटेशन क्लब के लिए इससे बेहतर स्थिति नहीं हो सकती थी और वे लोग अपने स्टॉल पर 1,000 से भी अधिक लोगों की भीड़ देखकर प्रसन्न थे। कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी के अंतर्गत विभिन्न व्यापारिक समूहों द्वारा स्कूल में में स्ट्रुअल हाईजीन-कार्यक्रम के लिए देश के विभिन्न भागों में सुलभ सेनिटेशन क्लब की गतिविधियों को सहायता देने की पेशकश भी की गई, जो शौचालय-मेले की एक बड़ी कामयाबी थी, किंतु उससे भी बढ़कर सुलभ स्कूल सेनिटेशन क्लब के सदस्यों का जो लोगों से मिलना-जुलना हुआ, वह वास्तव में महत्वपूर्ण था।
यह मेला बच्चों के स्वास्थ्य-सुधार एवं स्वच्छता-तकनीकों में विकास कर इस क्षेत्र की चुनौतियों का सामना करने में भारत के नेतृत्व और वचनबद्धता को दर्शाने का महत्त्वपूर्ण अवसर था।

भारत-सरकार के बायो टेक्नोलॉजी-विभाग के सचिव प्रो. के. विजय राघवन ने कहा, ‘आज हम विज्ञान एवं नई नकनीक में तालमेल देखते हैं। समाज में विभिन्न समस्याओं के प्रभावी समाधान निकाले जा सकते हैं। एक समूह के रूप में हम बड़ी-से-बड़ी रुकावट को पार कर सकते हैं और कुछ भी असंभव नहीं रह जाता है।’

जैसा कि बिल गेट्स ने कहा था, ‘एक बेहतर विश्व के निर्माण की इच्छा से सभी प्रतिभागी एक हुए हैं-जिसमें अस्वच्छता के कारण किसी बच्चे की मृत्यु नहीं होगी और जहां सभी लोग स्वस्थ एवं सम्मानपूर्वक जीवन जी सकेंगे।’

साभार : सुलभ इंडिया

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