शौचालय की समस्या

सुधीर कुमार

शौचालय हर परिवार की बुनियादी जरूरतों में सबसे पहले आता है। लेकिन भारत जैसे कुछ विकासशील देशों की यह विडम्बना रही है कि यहाँ न सरकार और न ही जनता में शौचालय निर्माण को लेकर प्रतिबद्धता रही। नतीजा, हमारा देश शौचालयों की कमी से जूझ रहा है।

हाल ही के सामने आए यूनिसेफ के आँकड़ों के अनुसार झारखण्ड, बिहार, मध्य प्रदेश और ओडिशा जैसे राज्यों के लगभग 70 प्रतिशत से अधिक घरों में शौचालय नहीं हैं। आर्थिक रूप से विपन्नता, विपरीत मानसिकता और जागरूकता का अभाव इन प्रदेशों में शौचालयों की महत्ता को दोयम दर्जे की चीज बना देता है।

यूं तो खुले में शौच से हर कोई खुद को असहज महसूस करता ही है लेकिन इस मामले में घर की महिलाओं और बच्चियों को अपेक्षाकृत अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। उन्हें हमेशा अनहोनी का डर सताता रहता है।

हाल ही में बलात्कार और यौन प्रताड़ना की घटनाएँ घटीं तो खुले में शौच जाना ही प्रमुख कारण बनकर उभरा है। ऐसे में डर होना स्वभाविक है। दूसरी तरफ, खुले में शौच के कारण ही दर्जनों संक्रामक बीमारियाँ महिलाओं को प्रभावित करती हैं। लेकिन यह सुकूनदेय है कि अब महिलाएँ खुद जागरूक होकर अपने मायके या ससुराल में शौचालय निर्माण की आवाज को बुलन्द कर रही हैं। कुछ महिलाएँ तो शौचालय न होने पर ससुराल को छोड़ने तक की हिम्मत दिखा चुकी हैं। ऐसी महिलाओं की बहादुरी तारीफ के काबिल है। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार मल-मूत्र का आभास होते ही उसका त्याग करना चाहिए। लेकिन घर में शौचालय न होने के कारण दिन में ऐसा कर पाना महिलाओं के लिए असम्भव हो जाता है। उम्मीद है कि शौचालय की माँग को लेकर महिलाएँ और मुखर होंगी जिससे हालात बदलेंगे।

साभार : राष्ट्रीय सहारा 23 फरवरी 2015

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