शौचालय की माँग ने महिला को दिलाया पुरस्कार

मदन झा

 

गत दिनों पटना जिले के बिहटा प्रखण्ड के सदिशोपुर  गाँव में शौचालय की आवश्यकता को लेकर एक अनूठा मामला आया। श्रीमती पारो देवी अपने घर में शौचालय न होने की स्थिति में काफी कठिनाइयों का सामना कर रही थीं और वे पिछले 4-5 वर्षों से अपने पति श्री अलख निरन्जन महतो से शौचालय बनवाने का आग्रह कर रही थीं। उनके बार-बार के आग्रह पर भी जब घर में शौचालय नहीं बना तो श्रीमती पारो ने अपने पति से तलाक लेने का कठोर निर्णय ले लिया। ऐसा करना किसी भी व्यक्ति के लिए आसान नहीं होता है, किन्तु श्रीमती पारो के लिए स्वच्छता और शौचालय स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा तो है ही, उससे भी बढ़कर उनके मान-सम्मान का भी विषय बना। इस आशय की खबर जब समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई तो शौचालय और स्वच्छता के क्षेत्र में पिछले 44 वर्षों से कार्यरत सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गेनाईजेशन का ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ।

 

सुलभ इंटरनेशनल ने श्रीमती पारो देवी के साहसिक और दृढ़तापूर्व कदम का अभिनन्दन किया और उनके इस प्रेरणादायक कार्य के लिए उन्हें ‘सुलभ स्वछता सम्मान’ से सम्मानित किया। इसके अन्तर्गत उन्हें 1.50 लाख रुपए का चेक तथा तीन लाख रुपए उनके मकान के निर्माण के लिए देने की घोषणा की। यह सम्मान उन्हें पटना के रिपब्लिक होटल में 31 मई 2014 को दिन के 11:30 बजे एक समारोह में दिया गया। श्रीमती पारो देवी को यह सम्मान प्रदान किया प्रसिद्ध गाँधीवादी, समाजशास्त्री एवं समाज सुधारक आन्दोलन के संस्थापक डॉ. पाठक ने।

 

उपयुक्त शौचालय की व्यवस्था सुनिश्चित नहीं कर पाने वाले पति को छोड़ने का मन बना चुकी श्रीमती पारो देवी को सुलभ इंटरनेशनल ने कुल 4.30 लाख रुपए का पुरस्कार दिया,जिससे वह न केवल स्वच्छता के सन्देश का प्रसार करेंगी, बल्कि उसका गृहस्थ जीवन भी बच गया।

 

डॉ. बिन्देश्वर पाठक जब 30 मई, 2014 को सदिशोपुर गाँव गए, तभी उन्होंने श्री अलख निरन्जन को गृह-निर्माण तथा घर का सामान खरीदने के लिए तीन लाख रुपए देने की घोषणा की थी।

 

इस अवसर पर डॉ. पाठक ने कहा कि शौचालय के लिए एक महिला द्वारा उठाया गया यह सख्त कदम एक अद्भुत उदाहरण है। स्वच्छता के महत्वपूर्ण मुद्दे पर श्रीमती पारो ने जो कदम उठाए हैं, निश्चित तौर पर हमेशा से उपेक्षित रहे इस मुद्दे की ओर लोगों का विशेष ध्यान जाएगा।

 

उन्होंने इसे समाज के लिए आँखें खोल देने वाली बड़ी घटना करार देते हुए कहा कि खुले में शौच करना मानव-सम्मान के खिलाफ है और सरकार को इस समस्या का यथाशीघ्र समाधान करना चाहिए। बिहार की आबादी 10.5 करोड़ है, जिनमें से 2.19 करोड़ लोगों को शौचालय की सुविधा उपलब्ध नहीं है। केन्द्र सरकार ने राज्य में सन 2013 में 1.11 करोड़ शौचालय बनाने की योजना बनाई थी।

 

उपयुक्त शौचालय की व्यवस्था सुनिश्चित नहीं कर पाने वाले पति को छोड़ने का मन बना चुकी श्रीमती पारो देवी को सुलभ इंटरनेशनल ने कुल 4.30 लाख रुपए का पुरस्कार दिया,जिससे वह न केवल स्वच्छता के सन्देश का प्रसार करेंगी, बल्कि उसका गृहस्थ जीवन भी बच गया।

 

सन 2010 की यूनाइटेड नेशंस (यू.एन.) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लोग शौचालय से ज्यादा मोबाईल फोन का इस्तेमाल करते हैं। 36 करोड़, 60 लाख लोग शौचालयों का उपयोग करते हैं, जबकि 54 करोड़, 50 लाख लोग मोबाईल फोन का इस्तेमाल करते हैं। यू.एन. की रिपोर्ट के प्रकाशित होने और सन 2011 की जनगणना के बाद लगभग वैसी ही स्थिति पाए जाने पर भारत सरकार के तत्कालीन ग्रामीण विकास मन्त्री श्री जयराम रमेश ने स्लोगन दिया था-’शौचालय नहीं तो वधू नहीं।’ उन्होंने माता-पिताओं से भी आग्रह किया कि वे ऐसे परिवार में बेटी न दें, जिस घर में शौचालय न हो। इसी मुद्दे पर वर्तमान प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने गत वर्ष नई दिल्ली की एक सभा में छात्रों के बीच कहा था कि ‘पहले शौचालय, फिर देवालय।’

 

यूनिसेफ के अनुसार, भारत में सन 2007 में 3 लाख, 86 हजार, 600 बच्चे डायरिया से मर गए, जो विश्व में सबसे ज्यादा है। हाल ही में विश्व बैंक के डीन स्पीयर्स के अध्ययन में भी यह बात सामने आई कि खुले में शौच का असर बच्चों और महिलाओं की सेहत पर बहुत बुरा पड़ता है।

 

भारत सरकार ने सन 1986 में केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम शुरू किया था। सन 1999 में इसका नाम बदल कर निर्मल भारत अभियान कर दिया गया। अनुमान है कि ‘पिछले साल सरकार ने गाँवों में लगभग 50 लाख शौचालय बनवाए। इसके बावजूद अब भी गाँवों के अधिकतर घरों में शौचालय नहीं है।’


शहरों में भी स्वच्छता एक समस्या है। भारत के 7,935 शहरों में से सिर्फ 160 शहरों में सीवर लाइन है और जिस रफ्तार से इसकी व्यवस्था की जा रही है, ऐसे में सैकड़ों वर्ष लग जाएँगे। निर्मल भारत अभियान के तहत सरकार हर ग्रामीण परिवार को शौचालय बनवाने के लिए 10 हजार रुपए देती है।

 

पारो देवी उस वक्त चर्चा में आई थी, जब उसने अपने पति को तलाक देने में मदद दिलाने के लिए एक महिला हेल्पलाइन से सम्पर्क किया था। पारो देवी 2012 में ससुराल छोड़ आई थीं, क्योंकि ससुराल वालों ने घर में शौचालय की उनकी माँग पूरी नहीं की थी।


भारत सरकार के तत्कालीन ग्रामीण विकास मन्त्री श्री जयराम रमेश ने स्लोगन दिया था-’शौचालय नहीं तो वधू नहीं।’ उन्होंने माता-पिताओं से भी आग्रह किया कि वे ऐसे परिवार में बेटी न दें, जिस घर में शौचालय न हो। इसी मुद्दे पर वर्तमान प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने गत वर्ष नई दिल्ली की एक सभा में छात्रों के बीच कहा था कि ‘पहले शौचालय, फिर देवालय।’

 

पुरस्कार ग्रहण करने के बाद अपने वक्तव्य में श्रीमती पारो देवी ने कहा, ‘2009 से ही मेरे पति शौचालय बनवाने का वादा करते रहे और आश्वासन देते रहे थे, लेकिन अभी तक इसे नहीं बनवाया जा सका था। जब कभी मैं उन्हें इसके लिए दबाव देती थी तो वह मेरे साथ अभद्र व्यवहार करते थे। उसके बाद मैंने उनसे अलग रहने का मन बना लिया था।’

 

हालांकि निरन्जन ने पुरस्कार ग्रहण करने के बाद के अपने वक्तव्य में कहा कि ‘मैंने आश्वासन दिया था कि जल्द ही शौचालय बनवा दूँगा, किन्तु वित्तीय समस्याओं के कारण मैं शौचालय बनवाने में असफल रहा।’

 

इस मामले की जानकारी होने के बाद डॉक्टर पाठक ने घोषणा की थी कि सुलभ निरन्जन के घर पर एक आधुनिक शौचालय का निर्माण कराएगा, ताकि इसकी कमी दम्पति के सुखी विवाहित जीवन के रास्ते में रोड़ा न अटकाए। ज्ञात हो कि संस्था द्वारा उनके घर आधुनिक शौचालय बनवा दिया गया है।


डॉ. पाठक ने इस अवसर पर शौचालय की उपयोगिता दर्शाने के लिए उत्तर प्रदेश के बदायूँ की उस घटना का जिक्र भी किया, जिसमें खेत में शौच करने गईं दो बहनों को मारकर पेड़ से लटका दिया गया था। उन्होंने कहा कि अगर देश में ज्यादा शौचालय होंगे तो बलात्कार जैसी घटनाओं पर अंकुश लगेगा।

 

इससे पहले भी सुलभ ने मध्य प्रदेश के बैतूल जिले की आदिवासी बहू श्रीमती अनीता बाई नर्रे को सम्मानित किया था। अनीता की शादी सन 2011 में हुई थी। ससुराल में शौचालय नहीं होने का विरोध करते हुए उसने ससुराल लौटने से मना कर दिया था।

 

मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने राज्य में जून 2012 में कमजोर तबके के लोगों के लिए शौचालय निर्माण के वास्ते ‘मर्यादा योजना’ शुरू की थी। जिसकी ब्रैन्ड ऐम्बसडर कोई और नहीं, बल्कि अनीता बाई नर्रे ही थी।

 

इसी तरह का कदम उठाने वाली उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले की सुश्री प्रियंका भारती को भी सुलभ ने सम्मानित किया था। वह सुलभ के प्रेरक के तौर पर तो कार्य करती ही हैं, वे स्वच्छता अभियान में बॉलीवुड अभिनेत्री विद्या बालन के साथ अभिनय भी कर चुकी हैं।

 

इस सम्मान समारोह में सुश्री प्रियंका भारती के अलावा उत्तर प्रदेश के कुशीनगर की प्रियंका राय और बहराइच की श्रीमती मनोरानी यादव भी उपस्थित थीं। श्रीमती मनोरानी यादव ने सार्वजनिक शौचालय बनवाने के लिए अपनी वह जमीन भी सौंप दी थी, जो उनकी आजीविका का एकमात्र साधन थी।

 

डॉ. पाठक ने कहा कि ‘पारो का मामला कोई अनूठा नहीं है। रूढ़िवादी समाज व्यवस्था के बीच रहने वाली बिहार की सुदूर गाँवों की महिलाएँ भी अब घर में शौचालय होने की माँग उठा रही हैं और माँग पूरी न होने पर ससुराल छोड़ रही हैं। उन्होंने कहा कि वह बिहार और उत्तर प्रदेश में खुले में शौच करने की परम्परा को समाप्त करने की दिशा में ध्यान देंगे। उन्होंने इन सभी महिलाओं को आज के जमाने की असली नायिकाएँ बताते हुए कहा कि शौचालय की महत्ता के बारे में लोगों को अवगत कराने के लिए इन्हें देश के दूसरे भागों में भी भेजा जाएगा।


महिलाएँ जहाँ शौच के लिए जाती हैं, वे जगहें अक्सर उनके घर से बहुत दूर होती हैं। इसके अलावा खुले में शौच की वजह से उन्हें कई तरह की बीमारियों का खतरा तो रहता ही है, साथ ही यह मानवीय मर्यादा के भी विरुद्ध है।’

 

साभार : सुलभ इंडिया मई 2014

Path Alias

/articles/saaucaalaya-kai-maanga-nae-mahailaa-kao-dailaayaa-paurasakaara

Post By: iwpsuperadmin
×