शौचालय का अभाव बच्चों के लिए खतरा एक शर्मनाक किस्सा

समुदाय में शौचालय के बारे में जब भी बात की जाती है तो उसके होने से स्वास्थ्य में लाभ को सर्वोच्च महत्ता दी जाती है। परन्तु शौचालय के अभाव से और भी कुछ ऐसे खतरनाक दुष्प्रभाव हैं जिनकी चर्चा कभी नहीं की जाती।


उनमें से ऐसा ही एक दुष्प्रभाव है नारी एवं बच्चों के साथ छेड़खानी और यौन उत्पीड़न। इस देश में जहाँ आज भी नारी अपने बड़ों से पर्दा करती है वहाँ नारी खुले में शौच करते वक्त चाह कर भी अपनी नग्नता को छुपा नहीं पाती। और उस समय वह बुरी नजर से देखने वाले आदमियों का शिकार भी बन जाती है। लोकलज्जा और समाज के डर से वह न तो इन घटनाओं के बारे में किसी को बता सकती है और न ही उन असामाजिक तत्वों के बारे में कुछ कर सकती है। यह चुप्पी उन्हें बहुत महंगी पड़ती है। औरत को डर की जिन्दगी जीनी पड़ती है और दोषियों की हिम्मत और बढ़ जाती है।


महिलाएं तो असुरक्षित हैं ही परन्तु उनसे भी ज्यादा असुरक्षित हैं छोटी-छोटी बच्चियाँ। एक महिला शायद इन यौन उत्पीड़नकर्ताओं से लड़ सकती है परन्तु एक बच्ची स्वयं को कैसे बचा पाएगी? यही कारण है कि आज बच्चियों के साथ यौन उत्पीड़न की घटनाएं बहुत बढ़ गई हैं। ऐसी ही एक घटना दिल्ली की वार्ड 144 में स्थित हरिजन बस्ती में कुछ समय पहले हुआ।


6 वर्षीय लता बहुत प्यारी बच्ची है। वह अपनी मम्मी पापा के साथ उस स्लम में रहती है। उसका परिवार बहुत ही गरीब है। उसकी मम्मी घर पर ही रहती है परन्तु उसे डिप्रेशन की बिमारी है। इस कारण वह बच्चों की और घर की देख-रेख में ज्यादा ध्यान नहीं दे पाती। उसके पापा का पक्का काम नहीं है। कभी-कभी उन्हें मजदूरी का काम मिल जाता है। घर का खर्च बहुत मुश्किल से निकलता है। फिर भी उसके पापा को शराब पीने की आदत है। अधिकांश समय वह पीकर कहीं गिरा पड़ा मिलता है।


लता के घर में शौचालय नहीं है। वह सब शौच के लिए पास के जंगल में जाते हैं। जंगल में अक्सर शौच करते वक्त उन्हें कीड़े काट लेते हैं या कांटों से चोट लग जाती है। वह सब उसके अब आदी हो चुके हैं। गत अक्टूबर में एक दिन लता स्लम के बच्चों के साथ खेल रही थी। करीब 11 बजे उसे शौच करने की जरूरत हुई। वह घर गई एक बोतल पानी उठाया और भागकर जंगल की तरफ गई। उनके पड़ोस में रहने वाला एक लड़का विशाल यह देख रहा था। अपने पास बैठे दोस्तों को बहाना करके वह उठ गया। वह लता के पीछे-पीछे जंगल की तरफ गया। लता अपने दोस्तों के बीच से होते हुए और उन्हें उसका इन्तजार करने का कहते हुए जंगल में चली गई। कुछ मिनट रूककर विशाल भी उसके पीछे छुपते हुए चला गया।


जैसे ही लता रूकी, विशाल ने उसे पकड़ लिया। लता बेचारी को तो पहले समझ ही नहीं आया कि वह ऐसा क्यों कर रहा था। उसने सोचा कि शायद विशाल उसे किसी कीड़े से बचाने के लिए यह कर रहा था। इससे पहले की वह विशाल से कुछ पूछती, विशाल ने उसे जोर से थप्पड़ मारा और बहुत बुरी तरह से उसके कपड़े उतारने शुरू कर दिए। वह एक हट्टा-कट्टा 18 वर्ष का नौजवान था। लता ने भागने की कोशिश की पर विशाल के सामने बेचारी छोटी सी, कमजोर लता क्या करती? विशाल ने एक हाथ से उसका मुँह भी बन्द कर रखा था।


जब विशाल लता की पजामी उतारने के लिए झुका तो उसका हाथ लता के मुँह से हट गया और लता को उसने एक बार फिर से मारा। लता जोर से चीखी।


संयोग से उसी समय लता का एक और पड़ोसी, 14 वर्षीय कमल भी जंगल में आ रहा था। वह चीख सुनकर उस तरफ चिल्लाता हुआ, हाथ में एक भारी लकड़ी पकड़कर भागा। कमल की आवाज से विशाल हड़बड़ा गया। उसने लता को छोड़ा और वहाँ से भाग गया। परन्तु कमल ने उसे देख लिया था।


लता को घर ले जाया गया। वह गुमसुम सी, डरी हुई चारपाई पर बैठी थी। आसपास की औरतें उसे हिम्मत दिला रही थीं और उसके माँ-बाप को डांट रही थीं कि उन्होंने एक छोटी सी बच्ची को जंगल में अकेले जाने कैसे दिया। पुलिस में एफआईआर दर्ज की गई। कमल और लता की गवाही पर विशाल को पुलिस पकड़कर ले गई। पर कोर्ट में विशाल का स्कूल सर्टिफिकेट न होने के कारण उसके माँ-बाप का बयान कि वह 14 साल का था, स्वीकार किया गया। कुछ महीने जुवेनाईल होम में रहकर विशाल घर वापस आ गया।


ऐसी कितनी ही लताएं देशभर की गरीब बस्तियों में रहती हैं। केवल एक शौचालय न होने के कारण वह रोज इस खतरे से जूझती हैं। जिस बच्ची के साथ ऐसा कोई हादसा होता है वह अपना बचपन खोकर जीवन-भर के लिए डर के साथ जीती है। सजा शोषण करने वाले को नहीं, शोषित को मिलती है।


क्यों एक औरत को पूजने वाला समाज उसकी इज्जत बचाने के लिए एक शौचालय बनाने को प्राथमिकता नहीं देता? परिवार और समाज को सर्वस्व मानने वाला यह देश क्यों अपनी बच्चियों के लिए सुरक्षित शौचालय नहीं बनाता?


लता को देखने के बाद हमारी एनजीओ-फोर्स ने यह प्रण लिया कि हम हर सम्भव प्रयास करेंगे कि ऐसी कहानी फिर न बने।


साभार : ब्लू टाइम्स अंक-5 दिसम्बर 2013 (त्रैमासिक न्यूजलेटर, फोर्स)

                       

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