सामुदायिक शौचालय निर्माण: वृद्ध दम्पत्ति का स्तुत्य प्रयास

 

मदन झा

 

माननीय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा साल 2019 तक गांधी जी के 150वीं जयंती समारोह के पूर्व सबके लिए शौचालय सुविधा उपलब्ध कराने की घोषणा के बाद से भारत में शौचालय सर्व-जन की पुकार बन गई हैइसमें आश्चर्य नहीं की प्रधानमन्त्री के आह्वान की जोरदार प्रतिक्रिया होनी ही थी, क्योंकि हमारे देश में आधी से अधिक आबादी इतनी गरीब है कि वह अपने घर में एक शौचालय बनवाने में भी असमर्थ है, जिसके फलस्वरूप उन्हें खुले में शौच जाना पड़ता हैसम्बद्ध सरकारी विभागों के प्रयास से अब हर व्यक्ति, चाहे अमीर हो या गरीब सबके घर में शौचालय निर्माण हेतु सरकार, गैर-सरकारी संस्थाओं और व्यक्तिगत स्टार पर उपाय किए जा रहे हैं।

 

देश के ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय की अत्यधिक आवश्यकता है, गरीबी रेखा से ऊपर या नीचे निवास करने वाला प्रत्येक ग्रामीण अब निकट भविष्य में शौचालय उपलब्धि की आस लगा रहा हैसभी के लिए शौचालय हो, इसके लिए बिहार के मधुबनी जिला के एक दम्पत्ति तरफ से एक प्रशंसनीय पहल की है। इस दम्पत्ति ने अपनी वृद्धावस्था पेंशन को शौचालय निर्माण के लिए दान देनी की इच्छा व्यक्त की है। उनका यह कदम उन्हें दूसरों से अलग इस मायने में करता है की यह पेंशन मात्र 200 रुपए है। इस दम्पत्ति की कोई संतान नहीं है और न ही इनके पास जीविका चलाने के लिए कोई स्थायी साधन ही। यही नहीं, महिला के पति को कुष्ठ रोग भी है।

 

श्रीमती सुमित्रा देवी जब कुछ साल पहले दिल्ली आई थीं तो यहाँ उन्होंने एक सार्वजनिक शौचालय देखा, जिसे एक संस्था चलाती है। वह इसे देखकर काफी प्रसन्न हुईं और उन्होंने अपने गाँव के लिए भी ऐसे शौचालय की ईश्वर से कामना की, ताकि गरीब व्यक्तियों को सुबह शौच के लिए खेतों में न जाना पड़े और वे भी स्वच्छ जीवन अपना सकें।

 

श्रीमती सुमित्रा देवी ने कुछ साल पहले मधुबनी के कलेक्टर को एक पत्र लिखते हुए कहा था कि उनके गाँव में सार्वजनिक शौचालय बनवाया जाए, जैसा की देश के अन्य भागों में बनाया गया है, जिससे उन्हें और उनके जैसे लोगों को शौच के लिए खुले में ना जाना पड़े। कुछ समय बीतने के बाद कोई आशाजनक सफलता नहीं देख इस दम्पत्ति ने अपने पास मौजूद कुछ पैसे और अपने परिचितों से चंदा एकत्र करके अपने घर में एक अस्थायी शौचालय बनवाया। उनका शौचालय छत-रहित चारों ओर से टाट से घिरा हुआ है। उसके बाद उन्होने सभी से अनुरोध किया कि वे खुले में शौच ना जाएँ। यह वयोवृद्ध दम्पत्ति प्रत्येक सुबह खुले में शौच जाने के लिए विवश विक्लांगों, भिखारियों के अतिरिक्त युवतियों एवं वृद्ध महिलाओं की लम्बी कतारों का दृश्य देखकर निराश और हैरान है। वे अपने गाँव को स्वच्छ भारत का हिस्सा बनाने के लिए अपनी आजीविका का साधन पेन्शन राशि भी देने को तैयार हैं।

 

श्रीमती सुमित्रा देवी कहती हैं की जब उन्हें अपने यहाँ पर कोई शादी-ब्याह के लिए बुलाता है तो उन्हे वह जरूर बताती हैं कि जिन घरों में शादी हो, वहाँ पहले शौचालय बनाया जाए। लेकिन इस वजह से लोग उन्हें अपने यहाँ आयोजनों में बुलाने से कतराते हैं। वह चाहती हैं कि सभी के घर में शौचालय हो, जिससे किसी को शर्मिंदगी ना झेलनी पड़े।

साभार : सुलभ इण्डिया नवम्बर 2014

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