पर्यावरणीय स्वच्छता पर यूनिसेफ की किताब

पर्यावरणीय स्वच्छता का अर्थ

 

स्वच्छता स्वास्थ्य, पर्यावरण स्वच्छता और सुरक्षित पेयजल के लिए निर्धारक है। इसमें घर की सफाई के साथ-साथ ठोस, तरल और मानव मल के अपशिष्ट का सुरक्षित निपटान शामिल है। स्वच्छता सुरक्षित स्वास्थ्य, पर्यावरण और समाज के समग्र विकास को सुनिश्चित करने के लिए मूलभूत आवश्यकता है। जब तक स्वच्छता व्यवहारों को अपनी जीवन शैली में लागू नहीं किया जाएगा तब तक सभी को पानी और स्वच्छता से सम्बन्धित बीमारियाँ होती रहेंगी।

 

​हाल के वर्षों में विकास के मुद्दों जैसे कि स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि और गरीबी उन्मूलन के साथ स्वच्छता को जोड़ा गया है। इससे स्पष्ट है कि इन सभी मुद्दों का कहीं न कहीं स्वच्छता से जुड़ाव अवश्य है। एक परिणाम के रूप, स्वच्छता इसी वजह से संयुक्त राष्ट्र ने अपने सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों में स्वच्छता को अपनी प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में जगह दी है।

 

भारत में स्वच्छता का परिदृश्य तब से बदला है जब से सरकार ने स्वच्छता के क्षेत्र में दिलचस्पी लेनी शुरू की है। 1980 तक स्वच्छता की पहुँच महज 1 प्रतिशत थी लेकिन सरकारी प्रयासों के कारण अब यह बढ़कर 73 प्रतिशत हो गई है।

 

पर्यावरणीय स्वच्छता

 

पर्यावरणीय स्वच्छता इन तीन बातों पर आधारित होती है- 1. पूर्व प्रदूषण को रोकना न कि उसे बाद प्रदूषित करने के बाद रोकने की कोशिश करना, 2. मल-मूत्र में से खाद का निर्माण करना 3. इस खाद का प्रयोग उपयोग खेती के लिए करना। इस प्रक्रिया को पुनर्चक्रण (रिसाइकिल) और साफ सुथरा बनाना कहते हैं। पानी और ऊर्जा की बचत और पर्यावरण के प्रदूषण को कम करना ही पर्यावरणीय स्वच्छता का उद्देश्य है। मल-मूत्र के पुनर्चक्रण से भू-जल, नदियों और पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है।

 

इकोसैन शौचालय डिजाइन

 

इकोसैन शौचालय या शुष्क शौचालय मल-मूत्र और पानी को अलग-अलग करने की प्रक्रिया को आसान बनाते हैं। मल को इकट्ठा करने या डिकम्पोज करने और पैथोजन को निष्क्रिय करने के लिए इन शौचालयों में एक चैम्बर या अनेक चैम्बर हो सकते हैं। मूत्र और पानी को इकट्ठा करने के लिए इन्हें खासतौर से डिजाइन किया जाता हैं। मूत्र को एक टैंक में जमा किया जाता है वहीं पानी को पेड़-पौधे को सिंचित करने के लिए या सोक पिट में चला जाता है। भारतीयों को शौच के बाद पानी की जरूरत होती है इसलिए इकोसैन शौचालय के डिजाइन में पानी की निकासी को भी ध्यान में रखना पड़ता है। ये शौचालय हर जलवायु, मौसम, क्षेत्र, उपभोक्ता की जरूरत आदि के हिसाब से बनाए जा सकते हैं।

 

इकोसैन शौचालय की योजना, डिजाइन, तकनीक, रखरखाव, उपयोग, खेती में योगदान आदि जानने के लिए कृप्या नीचे दी गई किताब डाउनलोड करें।

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