परेशान हैं महिलाएँ

शिवानी गौरव चतुर्वेदी

महिलाओं के लिए सार्वजनिक स्थानों में पर्याप्त संख्या में कारगर शौचालयों की कमी ऐसी समस्या है जिसका सामना हमें मेट्रो शहरों में भी करना पड़ रहा है। चेन्नई में ऐसे बहुत कम सार्वजनिक शौचालय हैं जिनका हम इस्तेमाल कर सकें। इनमें ज्यादातर गन्दे रहते हैं। फेरी वाले, विक्रेता, निर्माण मजदूर और पुलिसकर्मी के रूप में पूरा दिन घर से बाहर सड़क पर बिताने वाली महिलाओं को कोई शौचालय सुविधा उपलब्ध नहीं होती। सचिवालय जैसे सरकारी कार्यालयों में सार्वजनिक शौचालय बदबूदार और इतने खराब हाल में हैं कि कोई उसके इस्तेमाल के बारे में सोच भी नहीं सकता। अगर इसका इस्तेमाल किया भी जाता है तो संक्रमण जैसी स्वास्थ्य समस्याओं की पूरी-पूरी आशंका बनी रहती है।

चेन्नई उपनगरीय रेलवे नेटवर्क को सम्भालने वाले स्थानीय रेलवे स्टेशनों की बात करें तो कई स्टेशनों पर शौचालय सुविधा ही नहीं है। ये उपनगरीय रेल सेवाएँ चेन्नई में हजारों यात्रियों के परिवहन की प्रमुख प्रणाली है। रोज सैकड़ों महिला यात्री लोकल ट्रेनों से यात्रा करती हैं, लेकिन स्टेशनों पर शौचालय सुविधा जैसी बुनियादी चीज नदारद है।

हजारों स्कूलों में टॉयलेट नहीं हैं और 8-9 घंटे की पढ़ाई के बीच लड़कियों के लिए स्कूल में रहना मुश्किल हो जाता है। कई लड़कियाँ इस वजह से स्कूल छोड़ देती हैं। महानगरों में भी टॉयलेट्स की भारी कमी है। अभी तक इस मसले पर किसी सरकार ने गम्भीरता से सोचा ही नहीं, लेकिन अब लगता है की हालत बदलेंगे।- विवेक ओबेरॉय

 

19 जून, 2012 की `टाइम’ पत्रिका के अंक में स्वास्थ्य सम्बन्धी उन विस्तृत मुद्दों को उठाया गया था जिनसे महिलाएँ सार्वजनिक शौचालयों के अभाव में जूझती हैं। इसमें कहा गया, `मूत्र त्याग न कर पाने पर वे अक्सर इसे रोके रहती हैं जिसका नतीजा होता है मूत्र-मार्ग में संक्रमण और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं।’ ज्यादातर महिलाएँ ऐसा ही करती हैं। हम कम से कम पाँच घंटे के लिए घर से बाहर रहती हैं। सार्वजनिक स्थानों में उचित शौचालय सुविधा न होने की वजह से कई बार हम पर्याप्त मात्रा में पानी पीने से भी बचती हैं।

चूंकि `पेड टॉयलेट’ (भुगतान शौचालय) की सुविधाएँ आम नहीं हैं, इसलिए महिलाओं के लिए किसी रेस्त्राँ में जाना या किसी पेट्रोल पम्प पर रुकना ही वैकल्पिक सुविधाएँ होती हैं। हम रेस्त्राँ तलाशती हैं, एक कप चाय पीती हैं और वहाँ उपलब्ध शौचालय की सुविधा का लाभ उठाती हैं। अगर कोई महिला किसी कार या टू-व्हीलर से जा रही है और पेट्रोल भरवाने के लिए रूकती है तो वह वहाँ ज्यादा समय लगाती है और अधिकतर पेट्रोल पम्पों पर उपलब्ध शौचालय सुविधाओं का इस्तेमाल करती हैं।

`चेन्नई कॉरपोरेशन’ ने शहरभर के 348 स्थानों में विशेष `शी टॉयलेट’ (महिलाओं का शौचालय) स्थापित करने की योजना बनाई है। इन्हें वर्ष के अन्त तक खोल दिया जाएगा। ये शहर के पहले `ई-टॉयलेट’ (इलेक्ट्रॉनिक, पूरी तरह से स्वचालित शौचालय) होंगे। शौचालयों में सैनेटरी नैपकिन वेंडिग मशीन और इन्हें जलाने की व्यवस्था होगी। बताया जाता है कि इन शौचालयों को बस स्टैंड, बाजार और खुली जगहों में खोला जाएगा। ई-टॉयलेट की सबसे आकर्षक विशेषता यह है कि शौचालय के इस्तेमाल के बाद यह अपने आप पानी चला देता है, भले ही कोई ऐसा करना भूल जाए। किसी तरह की तोड़-फोड़ और अतिक्रमण से बचाने के लिए इन विशेष शौचालयों में `जीपीआरएस’ उपकरण होंगे। `केरल स्टेट वूमेन्स डेवलपमेंट कॉरपोरेशन’ ने हाल ही में इन शौचालयों के बारे में जानकारी दी है।

अगर चेन्नई निगम की योजना आकार लेती है, तो यह शहर में महिला समाज के लिए एक बड़ी राहत की बात होगी। ग्रामीण क्षेत्रों में हर घर में निर्मित किए जाने वाले शौचालय एक स्वागत योग्य कदम हैं, लेकिन शहरों में भी सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के लिए कारगर शौचालयों की जरूरत है। यह हमारे लिए न केवल सम्मान और स्वास्थ्य का, बल्कि सुरक्षा का भी विषय है।

shivani@governancenow.com

साभार : गवर्नेंस नाउ 1-15 सितम्बर 2014

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