डॉ. राजीव कुमार
प्लास्टिक थैलियों के बढ़ते प्रचलन से सफाई व्यवस्था में जबर्दस्त अवरोध पैदा हो रहा है। लोगों द्वारा घरों आदि का कूड़ा-करकट प्लास्टिक की थैलियों में बन्द कर फेंक दिया जाता है। ये पॉलीथीन की थैलियाँ नाले-नालियों और सीवर लाइनों में पहुँचकर उन्हें अवरुद्ध कर देती हैं। एक अनुमान के अनुसार एक महानगर में प्रतिदिन पाँच हजार किलों पॉलीथीन का प्रयोग होता है और उसे प्रयोग के बाद फेंक दिया जाता है। यह पॉलीथीन कूड़े के साथ नाली-नालों के पानी में बह जाता है। नालों में पानी के साथ बहकर आया पॉलीथीन उनकी ऊपरी सतह पर जमा हो जाता है और पानी के बहाव को रोक देता है। नाली-नालों को अवरुद्ध करने के साथ-साथ पॉलीथीन सीवर लाइन के अन्दर पहुँचकर उसे भी जाम कर देता है। कहीं-कहीं नालों का पानी सीवर में ले जाने के लिए सीवर जाली लगाई जाती है। नाली-नालों के पानी में बहकर आया पॉलीथीन सीवर जाली के मुँह पर पहुँचकर उसे पूरी तरह से बन्द कर देता है जिसे दिन में कई-कई बार साफ करने की आवश्यकता पड़ती है। जिन स्थानों पर सीवर जालियाँ नहीं है अथवा टूटी हुई हैं वहाँ तो पानी के साथ पॉलीथीन सीवर के अन्दर चला जाता है और उसे बन्द कर देता है। अवरुद्ध सीवर लाइनों की सफाई कराने पर उनमें सबसे अधिक पॉलीथीन ही निकलता है।
बाजार से पॉलीथीन की थैली में सामान लाने के बाद खाली थैली को प्रायः कूड़े की बाल्टी में डाल दिया जाता है और कूड़े के साथ उसे सड़क पर फेंक दिया जाता है। प्रायः हरी साग-सब्जियों के छिलके एवं अन्य बेकार खाद्य पदार्थ भी पॉलीथीन की थैली में फेंक दिए जाते हैं। इस तरह फेंके गए पॉलीथीन और उनमें भरा सामान पशुओं की मौत का कारण बन जाता है। पॉलीथीन को पशु छिलकों आदि के साथ खा जाते हैं। यह पॉलीथीन पशुओं के पेट में जाकर कभी-कभी आँतों में फँस जाता है। इससे पशु मर भी सकता है।
कूड़े के साथ पॉलीथीन खेतों तक भी पहुँच जाता है। चूँकि पॉलीथीन गलता नहीं है अतः वह कृषि भूमि पर जहाँ कहीं भी जाकर मिट्टी में दब जाता है वहाँ कोई पौधा नहीं उग पाता है। इस प्रकार पॉलीथीन कृषि-योग्य भूमि को भी बेकार कर देता है।
विगत कुछ वर्षों में देश में प्लास्टिक (पॉलीथीन) की थैलियों का प्रचलन तेजी से बढ़ा है। सामग्री को रखकर ले जाने में सुविधाजनक ये प्लास्टिक थैलियाँ प्रदूषण को बढ़ाने में कितनी सहायक सिद्ध हो रही हैं, यह कम ही लोग जानते हैं। जहाँ ये प्लास्टिक की थैलियाँ नगरों की सफाई व्यवस्था के लिए एक चुनौती बनी हुई हैं वहीं ये कृषि उपज को भी प्रभावित कर रही हैं। लेखक का कहना है कि ये प्लास्टिक थैलियाँ न केवल पशुओं की मौत का कारण बन रही हैं बल्कि मानव के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रही हैं।
पॉलीथीन की थैलियों के बढ़ते प्रचलन के कारण मानव के स्वास्थ्य पर भी हानिकारक प्रभाव पड़ रहा है। रंगीन पॉलीथीन में हानिकारक रंगों का प्रयोग किया जाता है। पॉलीथीन की थैली में तरल खाद्य पदार्थ यथा- दही, दूध, फलों का रस आदि लाए जाते हैं जिनके सम्पर्क में आकर पॉलीथीन बैग का रंग छूटकर उनमें मिल जाता है जिसका मनुष्य के स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त कबाड़ बीनने के काम में लगे बच्चे, स्त्रियाँ आदि सड़कों, कूड़े के ढेरों आदि पर फेंकी गई पॉलीथीन थैलियों को पुनः एकत्र कर बेच देते हैं जिनसे प्रोसेसिंग के बाद दोबारा पॉलीथीन की थैलियाँ तैयार कर दी जाती हैं। इन दोबारा तैयार की गई पॉलीथीन की थैलियों में लाई गई खाद्य सामग्री के सेवन से मानव के स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव पड़ता है।
पॉलीथीन के अनेक हानिकारक प्रभावों की जानकारी के बाद भी इसके प्रयोग पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया गया है। इसका प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी एक रिपोर्ट में इसके दुष्प्रभावों की ओर इंगित करते हुए इसके प्रयोग पर तुरन्त प्रतिबन्ध लगाने की बात कही थी किन्तु भारत सरकार ने अभी इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया है। कुछ राज्य सरकारें प्रतिबन्ध के बारे में अवश्य सोच रही हैं। पॉलीथीन के प्रयोग को सीमित करने के साथ-साथ उसके पुनः प्रयोग को नियन्त्रित किया जाना भी बहुत आवश्यक है। कुछ पर्वतीय पर्यटन क्षेत्रों में स्थानीय प्रशासन द्वारा पॉलीथीन के प्रयोग को नियन्त्रित किया जाना एक सराहनीय कदम है। नैनीताल के मनोरम तल्लीताल में पॉलीथीन थैली आदि फेंकना प्रतिबन्धित है। इस ताल के पानी को शुद्ध करके क्षेत्र में पीने के पानी की आपूर्ति भी की जाती है।
यह सन्तोष का विषय है कि पॉलीथीन थैलियों के हानिरहित विकल्प के रूप में पूरी तरह से जैव क्षय होने वाले प्लास्टिक का विकास किया गया है जिसकी थैलियों के इस वर्ष अन्त तक बाजार में आने की सम्भावना है। पर्यावरण ऊर्जा टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार इस प्रकार की प्लास्टिक को स्टार्च एवं कम घनत्व वाले पोली इथीलीन को मिलाकर बनाया गया है। यह प्लास्टिक आवश्यकतानुसार मजबूत है तथा जमीन में गाड़ने के दो महीने के अन्दर ही इसका पूरी तरह क्षय हो जाता है। राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम इस प्लास्टिक के व्यावसायिक उत्पादन के प्रोजेक्ट पर कार्य कर रहा है। 10-40 प्रतिशत स्टार्च से बने दाने तथा कम घनत्व वाले पोली इथीलीन को मिलाकर तैयार की गई इस प्लास्टिक की पन्नी का आविष्कार दो वर्ष पूर्व डॉ. एस.के. नन्दा ने किया था। आशा है यह नई प्रकार की प्लास्टिक पूरी तरह सफल रहेगी तथा बाजार में वर्तमान में प्रचलित पॉलीथीन थैलियों का स्थान ले सकेंगी। जिससे पर्यावरण की प्रचलित प्लास्टिक थैलियों से होने वाले भारी नुकसान से बचाया जा सकेगा।
लेखक अलीगढ़ के एक महाविद्यालय में प्राध्यापक हैं।
साभार : योजना नवम्बर 1998
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