डॉ. मंजू पांडे
हमारा देश आज विकसित देशों की दौड़ में शामिल होने की कोशिश में है और कई क्षेत्रों में देश को सफलता भी मिली है। परंतु कुछ क्षेत्र आज भी ऐसे हैं, जो विकास के कई पहलुओं से अछूते हैं। भारत के आजाद होने के 66 वर्षों के बाद भी स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ है और देश में अभी भी प्राथमिक आवश्यकताओं की कमी है, अगर शौचालयों की बात करें तो भारत के बहुत से घर इस मूलभूत सुविधा से वंचित हैं। यह स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों में और भी बुरी है। महिलाएं तो इन सुविधाओं को हासिल करने की पंक्ति में सबसे पीछे खड़ी मालूम पड़ती हैं।
खुले में शौच करना प्रथा की तरह
आज भी लोगों मे खुले में शौच करने की प्रथा बड़े पैमाने पर है। भारत के अधिकतर में घरों में शौचालय नहीं हैं। करोड़ों घर ऐसे हैं, जिनमें पक्के शौचालय नहीं हैं, जिनसे बीमारी और गंदगी फैलती हैं। इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों के स्वास्थय पर पड़ता है, जिसके कारण बड़ी संख्या में बच्चे हर साल जलाभाव और खुले में शौच की वजह से पैदा होने वाली बीमारियों के कारण मौत के शिकार हो जाते हैं।
स्वच्छता का वैश्विक परिदृश्य हमारे देश में चिंतनीय है। तथ्य स्वयं बोल रहे हैं कि विश्वभर में करोड़ों लोग प्लास्टिक की थैलियों, बाल्टियों और अपने आसपास के खुले गड्ढों, खेतों अथवा मैदानों में शौच करते हैं और आज भी स्थिति मे बहुत अधिक परिवर्तन नहीं हो पाया है। इसके लिए बड़े पैमाने पर जन-जागरण की आवश्यकता है।
देश की यह स्थिति केवल शहरों की नहीं है, बल्कि गांवों के हालात तो और भी बदतर हैं। भारत की 60 प्रतिशत से ज्यादा जनता गांवों में रहती हैं, परंतु सरकारी आंकड़े बताते हैं कि वहां अभी भी बड़े पैमाने पर मल-निस्तारण की कोई सुविधा नहीं है। उत्तर से लेकर दक्षिण, पूर्व से पश्चिम तक सभी जगह मूलतः स्थिति एक जैसी ही बनी हुई है।
उत्तर प्रदेश: दो करोड़ घरों में शौचालय नहीं
देश के सबसे बड़े भाग उत्तर प्रदेश में आज भी लगभग 2 करोड़ घरों में किसी भी तरह के शौचालय नहीं है और उन्हें शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है। इस गंभीर समस्या का स्थाई समाधान नहीं कर पाई है। यह समस्या केवल देश के एक हिस्से की नहीं है, बल्कि कमोबेश सभी राज्यों में यही स्थिति है।
अगर हम सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें तो बिहार के 1.37 करोड़ घरों में, मध्य प्रदेश में 96.12 लाख, राजस्थान में 75.80 लाख, महाराष्ट्र में 72.62 लाख और पश्चिम बंगाल में 70.37 लाख घरों में आज भी शौचालयों की व्यवस्था नहीं है। यदि हम देश के उन हिस्सों की बात करें, जहां हमारा अधिकतर आदिवासी समाज बसता है तो वहां के गांवों और शहरों में और भी बुरे हालात हैं। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में आज भी 37.33 लाख घरों में रहने वाले लोग खुले में शौच कर रहे हैं, झारखंड 42.95 लाख एवं ओडिशा में 68.96 लाख घरों में शौचालयों की सुविधा नहीं हैं।
पहाड़ी राज्यों में शौचालय की हालात ठीक नहीं हैं
उत्तराखंड में करीब 6.73 लाख, हिमाचल में 4.26 लाख और जम्मू-कश्मीर में 8.73 लाख घरों में यह समस्या है।
बिहार के 1.37 करोड़ घरों में, मध्य प्रदेश में 96.12 लाख, राजस्थान में 75.80 लाख, महाराष्ट्र में 72.62 लाख और पश्चिम बंगाल में 70.37 लाख घरों में आज भी शौचालयों की व्यवस्था नहीं है।यदि हम देश के उन हिस्सों की बात करें, जहां हमारा अधिकतर आदिवासी समाज बसता है तो वहां के गांवों और शहरों में और भी बुरे हालात हैं। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में आज भी 37.33 लाख घरों में रहने वाले लोग खुले में शौच कर रहे हैं, झारखंड 42.95 लाख एवं ओडिशा में 68.96 लाख घरों में शौचालयों की सुविधा नहीं हैं।।
इसी प्रकार आंध्र प्रदेश में 92.77 लाख, कर्नाटक में 53.56 लाख, तमिलनाडु में 70 लाख और केरल में 2.29 लाख घर ऐसे हैं, जहां के लोग आज भी खुले में शौच करते हैं। अब अगर पूर्वोत्तर राज्यों की बात करें तो वहां के आठ राज्य भी इस समस्या से अछूते नहीं हैं। असम के अधिकतर घरों लगभग 20.66 लाख ऐसे हैं, जहां अभी भी शौचालयों की समुचित व्यवस्था नहीं है। यह संख्या मेघालय में 1.81 लाख, त्रिपुरा में 93,600, अरुणाचल प्रदेश में 86,600, नागालैंड में 63,000, मणिपुर में 41,000, सिक्किम में 13,700 और मिजोरम में 13,000 है।
ये आंकड़े केवल देश के पिछड़े हिस्सों के नहीं हैं, बल्कि उन प्रदेशों की स्थिति भी ऐसी ही है, जिन्हें हम संपन्न मानते हैं। उदाहरणार्थ गुजरात को ही लें, यहां आज भी 44.50 लाख घरों में शौचालय नहीं हैं।
शौचालय के मामले में दिल्ली भी दूर है
अपने देश की राजधानी दिल्ली, जिसे हम एक विकसित शहर मानते हैं, वहां के भी लगभग 10,600 घरों में शौचालय न होने से लोग खुले में शौच कर रहे हैं और इसके लिए सरकार द्वारा कोई प्रयास भी नहीं हो रहा है। यह स्थिति चंडीगढ़ जैसे पूर्ण विकसित शहर के भी हैं, वहां भी 386 घर ऐसे हैं, जिनमें पक्के शौचालय नहीं है।
उपर्युक्त आंकड़े एक ओर जहां हमें यह सूचित करते हैं कि देश में शौचालय संबंधी समस्या अत्यंत गंभीर है, वहीं दूसरी तरफ देश के कुछ हिस्सों में स्थिति अच्छी भी है। सबसे पहले हम देश के उन शहरों की बात करते हैं, जहां स्वच्छता (शौचालयों की उपलब्धता) का प्रतिशत सबसे अच्छा है। शौचालय की उपलब्धता में सबसे पहला स्थान केरल का है। यहां के 94 प्रतिशत घरों में शौचालय है। दिल्ली में 86 प्रतिशत, पंजाब में 71 प्रतिशत, हिमाचल में 67 प्रतिशत, असम में 61 प्रतिशत, हरियाणा में 57 प्रतिशत और उत्तराखंड में ये 54 प्रतिशत हैं, परंतु इन आंकड़ों से यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि संपूर्ण देश की स्थिति ही ऐसी है।
देश के कुछ राज्य ऐसे भी हैं, जहां स्वच्छता के नाम पर कोई कार्य ही नहीं हो रहा है। गुजरात और आंध्र प्रदेश में यह आंकड़ा 34 प्रतिशत है। कर्नाटक में 31 प्रतिशत, तमिलनाडु में 26 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 22 प्रतिशत, राजस्थान में 20 प्रतिशत, बिहार में 18 प्रतिशत, उड़ीसा में 15 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 14 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 13 प्रतिशत और झारखंड में 8 प्रतिशत है। अब अगर हम पूर्वोत्तर राज्यों की बात करें तो वहां की स्थिति अन्य प्रदेशों से थोड़ी बेहतर है, मणिपुर और मिजोरम में 87 प्रतिशत, सिक्किम तथा त्रिपुरा में 85 प्रतिशत और नागालैंड में यह 77 प्रतिशत है।
सरकार भी जोर लगा रही है
ऐसा नहीं है कि सरकार इस समस्या के समाधान के लिए कुछ नहीं कर रही है। 12वीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत सरकार ने ‘निर्मल भारत अभियान’ की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य भारत के अधिकतर गांवों में शौचालयों का निर्माण कर एक स्वच्छ भारत का सपना साकार करना है। यह योजना देश के लगभग 600 जिलों में लागू है। इस योजना के तहत वह निर्मल ग्राम की स्थापना करना चाहती है, जिससे देश के प्रत्येक गांव में शौचालय हो और शौच-निस्तारण की उचित व्यवस्था हो। 12वीं पंचवर्षीय योजना में सरकार द्वारा 34,377 करोड़ रुपए ग्रामीण क्षेत्रों के लिए निर्धारित किये हैं, जिसमें से 3,437 करोड़ रुपए आदिवासी क्षेत्रों में व्यय किए जाएंगे।
जागरूकता अभियान की है जरूरत
एक सरकारी सर्वे से यह पता चला है कि इस संदर्भ में लोगों में जागरूकता की कमी है। एतदर्थ उनका मानना है कि खुले में शौच जाने मे कोई समस्या नहीं होती, पक्का शौचालय होना कोई आवश्यक नहीं है। गरीबी के कारण बहुत से लोग शौचालय बनाने का खर्च वहन नहीं कर सकते। रोचक तथ्य यह है कि जो संपन्न लोग हैं और अपने घरों में शौचालय बनवा सकते हैं, वे भी इसमें रुचि नहीं लेते, क्योंकि उनका सोचना है कि खुले में शौच जाना कोई समस्या ही नहीं है। यह हमारे देश की एक गंभीर समस्या है, इससे देश के शहर और गांव दोनों ही त्रस्त हैं। इसके निवारण के लिए हमारी सरकार, जनता, सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं को मिलकर कार्य करना होगा।
साभार : सुलभ इंडिया, जुलाई 2013
/articles/nairamala-bhaarata-abhaiyaana-sae-savacacha-bhaarata-abhaiyaana-taka