नेपाल में सुलभ का प्रवेश

सुलभ ब्यूरो

पशुपतिनाथ-मन्दिर में शिवलिंग की प्राप्ति

कहते हैं कि समस्त कामनाओं की पूर्ति करनेवाली कामधेनु ने चंद्रावन पहाड़ की गुफा में शरण ली थी। प्रतिदिन कामधेनु नीचे उस स्थान पर जाती, जहाँ मिट्टी के नीचे शिवलिंग धँसा हुआ था और मिट्टी के ऊपर अपना दूध उड़ेल देती थी। दस हजार वर्षों के पश्चात् कुछ लोगों ने कामधेनु को प्रतिदिन उसी स्थान पर दूध उड़ेलते हुए देखा और अचंभित होकर सोचने लगे कि वहाँ क्या होगा! अतः उन्होंने वहाँ की मिट्टी हटाई और उन्हंे चमकता हुआ खूबसूरत शिवलिंग मिला। उसपर एक सुंदर दृष्टि डालने के साथ ही वे सब शिवलिंग में विलुप्त हो गए और पाप तथा पुनर्जन्म के बंधन से मुक्त हो गए और भी अधिक व्यक्ति शिवलिंग देखने आए और वे सभी शिवलिंग में विलुप्त हो गए।

विश्व में भगवान् शंकर के लाखों मन्दिरों में विशेष मन्दिर होने का दर्जा कुछ गिने-चुने मन्दिरों को ही प्राप्त है और उनमें से एक है काठमाण्डु, नेपाल-स्थित पशुपतिनाथ-मन्दिर, जो काठमाण्डु के उत्तर में वागमती नदी के किनारे स्थित है। इस मन्दिर में विश्वभर से भक्तजन भगवान् शिव का दर्शन करने आते हैं। महाशिवरात्रि के अवसर पर यहाँ आनेवाले भक्तजनों की संख्या सात लाख से भी अधिक है। हिमालय पर्वत-द्वारा सब ओर से ढके इस स्थान को यूनेस्को-द्वारा वर्ल्ड हैरिटेज साइट् (वैश्विक विरासत-स्थल) के रूप में मान्यता दी गई है।

 

स्थान की पवित्रता के विपरीत मन्दिर के भीतर और आस-पास समुचित सफाई की व्यवस्था नहीं है, जो यहाँ आनेवाले पर्यटकों को खटकती रहती है।

 

हालाँकि मन्दिर के प्रशासन को, जिनमें मन्दिर के पुजारी आदि भी शामिल हैं, मन्दिर एवं इसके आस-पास की अस्वच्छता के विषय में जानकारी है, किन्तु मन्दिर में आनेवाले भक्तजनों की संख्या इतनी अधिक है कि वे इस ओर अधिक ध्यान नहीं दे पाते, किन्तु जो अस्वच्छ वातावरण मन्दिर के भीतर एवं बाहर है तथा जो बदबू वहाँ आनेवाले भक्तजनों को आती है, वह अब आनेवाले समय में नहीं रहेगी। क्योंकि गैर सरकारी संस्था सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन अपने संस्थापक डॉ. बिन्देश्वर पाठक के नेतृत्व में मन्दिर के प्रांगण और इसके आस-पास के क्षेत्र की स्वच्छता का ख्याल रखेगी।

 

भारत में अनेक स्थानों पर स्वच्छता-सुविधाएँ मुहैया कराने वाली संस्था सुलभ इंटरनेशनल ने निश्चय किया है कि सार्वजनिक शौचालय-निर्माण का कार्य अब नेपाल में भी करेगी। शुक्रवार, 25 अप्रैल, 2014 को संस्था ने जांेटा क्लब, काठमाण्डु के साथ सार्वजनिक शौचालय, जो ‘सुलभ शौचालय’ के नाम से विख्यात है, के निर्माण के सम्बन्ध में अनुबन्ध-पत्र पर हस्ताक्षर किया, जिसकी शुरुआत पशुपतिनाथ-मन्दिर तथा गुह्येश्वरी-मन्दिर से होगी।

सुलभ-संस्थापक डॉ. बिन्देश्वर पाठक का कहना था कि सार्वजनिक शौचालयों से सम्बद्ध उनकी तकनीक विश्व को भारत की ओर से एक उपहार/देन है, ‘आज हमें अवसर मिला है कि हम नेपाल को अल्पव्ययी शौचालयों का तोहफा दे सकंे।’ उन्होंने आगे कहा, ‘हमें खुशी है कि हम अपनी परियोजना की शुरुआत विश्वविख्यात पवित्र पशुपतिनाथ-मन्दिर से कर रहे हैं।’

जोंटा क्लब, काठमाण्डु एवं सुलभ इंटरनेशनल के मध्य अनुबन्ध के अवसर पर जांेटा क्लब की संस्थापक-अध्यक्षा सुश्री प्रमिला आचार्य रीजल ने कहा कि दक्षिण एशिया में सुलभ-तकनीक अपनाने वाला नेपाल दूसरा राष्ट्र है। नेपाल में स्वच्छता-सम्बन्धी समस्याएँ हमेशा ही चिन्ता का विषय रही हैं। सुलभ शौचालय-तकनीक किफायती और भारत में सांस्कृतिक दृष्टि से स्वीकार्य है। नेपाल के लिए भी यह अच्छी रहेगी। उन्होंने सरकार से भी इस परियोजना में सहायता करने का आग्रह किया।

इस अवसर पर नेपाल में भारत के माननीय राजदूत श्री रणजीत राय ने कहा, ‘नेपाल की तरह विकासशील देशों में शौचालय बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने पुरानी परियोजना में सहायता देने की अपनी इच्छा व्यक्त की। इसी तरह ‘पशुपति-क्षेत्र-विकास-ट्रस्ट’ के सदस्य-सचिव श्री गोविन्द टंडन ने कहा कि स्वच्छता-तकनीक पशुपतिनाथ आने वाले तीर्थयात्रियों और श्रद्धालुओं के लिए एक बड़ी सुविधा होगी। हालाँकि पारम्परिक किस्म के कुछ शौचालयों को विकसित किया गया है, लेकिन यहाँ के तीर्थयात्रियों की आवश्यकता को देखते हुए यह पर्याप्त नहीं हैं। क्षेत्र-विकास-न्यास ने इन शौचालयों के निर्माण के लिए भूमि भी आवंटित की है।

नेपाल-सरकार के शहरी विकास-मंत्रालय के माननीय सचिव श्री किशोर थापा ने कहा, ‘स्वच्छता सरकार की उच्च प्राथमिकताओं में से एक है, लेकिन इस क्षेत्र में अभी बहुत कुछ किया जाना है।’ उन्होंने कहा कि सरकार ने सुलभ शौचालयों के निर्माण के लिए आठ नगरपालिकाओं की पहचान कर ली है। संगठन के लिए शौचालयों के प्रति जनता को जागरूक करने और सार्वजनिक स्थलों पर उनका निर्माण करना एक चुनौती है। हमारा उद्देश्य है पवित्र मन्दिरों, बस-अड्डों से निर्माण-कार्य शुरू कर उसे अन्य सार्वजनिक जगहों पर ले जाना।

पशुपतिनाथ-मन्दिर की स्थापत्य-कला

मन्दिर की स्थापत्य-कला नेपाली पॅगोडा-शैली में है। इसमें इस शैली की सभी विशेषताएँ द्रष्टव्य हैं, जैसे-क्यूबिक संरचना तथा लकडि़यों पर खूबसूरत नक्काशी, जिनपर वे टिके हैं। इसके दो शिखर ताँबे के हैं, जिनपर सोने का आवरण है।

मन्दिर में चार प्रमुख दरवाजे हैं, जिनपर चाँदी की परतें हैं। इस मन्दिर में सोने का एक शिखर है, जो धार्मिक विचारों का प्रतीक है। पश्चिमी दरवाजे पर सांड या नंदी की विशाल मूर्ति है, जिसपर काँसे की परत है। देवता की मूर्ति काले पत्थरों से निर्मित है, जिसकी ऊँचाई लगभग 6 फीट है और इसकी परिधि भी लगभग इतनी ही है। पशुपतिनाथ के पूर्व में वासुकिनाथ-मन्दिर स्थित है।

पशुपतिनाथ-मन्दिर का निर्माण नए सिरे से 17 वीं शताब्दी में राजा भूपेंद्र मल-द्वारा कराया गया था, क्योंकि पुराना भवन जर्जर हो गया था। इस दो मंजिले मन्दिर के इर्द-गिर्द अनेक मन्दिर निर्माण कराए गए। इनमें शामिल हैं, वैष्णव-मन्दिर-परिसर और 14 वीं शताब्दी का राम-मन्दिर और गुह्येश्वरी-मन्दिर, जिनका जिक्र 11 वीं शताब्दी के धर्मग्रंथों में है। पिछले 350 वर्षों से इस मन्दिर की सेवा दक्षिण भारत के कर्नाटक-मूल के पुरोहित कर रहे हैं।

पशुपतिनाथ का मन्दिर काठमाण्डु में सबसे पुराना है। यह निश्चित नहीं है कि इस मन्दिर की स्थापना कब हुई, किन्तु नेपाल-माहात्म्य तथा हिमवतखण्ड आलेखों के अनुसार, पुरा काल में जो देवता सर्वाधिक पूज्य थे, वे पशुपतिनाथ थे, जो सभी जीवों के ईश्वर हैं।

साभार : सुलभ इण्डिया अप्रैल 2014

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