मल निस्तारण

भारत में करीब 80 प्रतिशत लोग शौचालय का प्रयोग नहीं करते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में तो 97 प्रतिशत घरों में शौचालय ही नहीं है। यहाँ लोग शौच के लिए खेतों, नदी या तालाब के तट पर, जंगलों में, रेल लाइन या सड़क किनारे जाते हैं।

 

खेतों या अन्य खुले स्थानों में मल-मूत्र त्यागने से बीमारियाँ पैदा करने वाले कीटाणु जो मल में पनपते हैं पानी, मिट्टी, फल-सब्जी, मक्खियों आदि के माध्यम से संक्रमित व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति तक पहुँचते हैं। अतः सामुदायिक स्वास्थ्य की दृष्टि से सही ढंग से मल निस्तारण अति महत्वपूर्ण है।

 

सामाजिक दृष्टि से भी देखा जाए तो भी हम पाते हैं कि लोगों को और विशेष रूप से महिलाओं को शौचालय न होने से बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। सर्वप्रथम जंगल कटने के कारण शौच के लिए एकान्त स्थान नहीं मिल पाता है। अतः स्त्रियाँ सूर्योदय के बाद ही शौच के लिए जा पाती हैं। कई बार शौच लगने पर न जाने के कारण कब्ज, अपच जैसी स्वास्थ्य समस्याएँ जन्म ले लेती हैं। अंधेरे में बाहर शौच जाने पर साँप के डसने, कीड़े के काटने और ठोकर खाकर गिरने से चोट लगने का भय हमेशा बना रहता है।

 

असुरक्षित ढंग से मल निस्तारण

 

सुरक्षित ढंग से मल निस्तारण के लिए निम्न बातों पर ध्यान देना होगा

1. मल, मक्खियों, कीड़े-मकोड़ों या अन्य जानवरों की पहुँच के बाहर हो।

2. मल द्वारा जल का स्रोत दूषित न हो।

3. मल निस्तारण का तरीका सरल व सस्ता हो।

 

मल निस्तारण के कुछ तरीके

 

मल निस्तारण के विभिन्न तरीके हैं। लेकिन सब तरीके सब स्थानों के लिए उपयुक्त नहीं है।

 

(क) ट्रैन्च लैट्रीन (खाई नुमा शौचालय)

एक छिछला गड्ढा किया जाता है जोकि 2-3 फीट गहरा और 3-4 फीट चौड़ा होता है। यह गड्ढा आयताकार, वर्गाकार या वृत्ताकार हो सकता है। गड्ढे के ऊपर लकड़ी का एक छेद वाला पटरा बिछा दिया जाता है। इस गड्ढे में मल त्यागने के उपरान्त मिट्टी, घास या सूखे पत्ते डाल दिये जाते हैं। हर 5-6 महीने के उपरान्त ट्रैन्च लैट्रीन भर जाने के कारण इसका स्थान बदलना पड़ता है। खुले में शौच करने से बेहतर ट्रैन्च लैट्रीन का प्रयोग है। पर इसकी अपनी बहुत सी सीमाएँ हैं।

 

उदाहरण के तौर परः

1. हर छः महीने पर शौचालय का स्थान बदलना सम्भव नहीं है, विशेष रूप से जहाँ स्थान उपलब्ध न हो।

2. जिन स्थानों में भूमिगत जल का स्तर ऊँचा होता है वहाँ शौचालय के ढह जाने का भय बना रहता है।

3. इन गड्ढो में मच्छर व मक्खियों को पनपने से रोकना सम्भव नहीं है।

4. पथरीली जमीन में ऐसे गड्ढे खोदने में काफी खर्च आता है।

 

(ख) बोर होल शौचालय

एक 15 से 25 फुट गहरा गोल गड्ढा जिसका व्यास डेढ़ फुट हो ओगर से खोदा जाता है। जमीन को ढहने से रोकने के लिए बाँस या मिट्टी का छल्ला लगाते हैं। इसके ऊपर एक 36 इंच व्यास की 2 इंच मोटाई की सीमेन्ट की गोल बैठक लगा दी जाती है। यह 5-7 सदस्यों के परिवार के लिए एक साल तक अच्छी तरह काम दे सकता है। इस शौचालय का प्रयोग मेला या कैम्प में किया जा सकता है, जहाँ की बहुत समय तक स्थायी शौचालय की आवश्यकता नहीं।

 

यह विधि सरल एवं कम खर्चीली तो है लेकिन बहुत उपयुक्त नहीं है क्योंकि

1. इसके गिरने की समभावना बनी रहती है।

2. भूमिगत जल भी प्रदूषित हो सकता है।

3. इसमें मक्खियाँ और मच्छर भी पनप सकते हैं।

 

(ग) वाटर सील शौचालय

इस शौचालय के मुख्य अंग निम्नलिखित हैंः

1. पैन

2. ट्रैप

3. नाली

4. गड्ढा

 

(1) शौचालय का पैन

शौचालय के लिए एक 17 इंच लम्बा, आगे से 5 इंच चौड़ा और पीछे की ओर 13 इंच चौड़ा पैन लें। पैन में 25 डिग्री की ढाल हो ताकि मैला सरक कर ट्रैप में आसानी से गिरे और अधिक पानी का प्रयोग न करना पड़े।

 

(2) वाटर सील ट्रैप

पैन के साथ ट्रैप जोड़ते हैं। इस ट्रैप में तीन चौथाई इंच पानी रहता है। ट्रैप में जितना अधिक सील हो उतना ही अधिक पानी फ्लश करने के लिए डालना पड़ता है। वाटर सील ट्रैप बदबू फैलने एवं मक्खियों को पनपने से रोकता है।

 

(3) नाली

ट्रैप को गड्ढे से जोड़ने के लिए ईंट की नाली बनाएँ जिसे गोलाई में सीमेंट से प्लास्टर कर दें। यह Y के आकार की नाली दो गड्ढों में जाकर खुलती है।

 

(4) गड्ढा

इस शौचालय में दो गड्ढे होते हैं। प्रत्येक गड्ढे का व्यास एक मीटर और गहराई 1 मीटर होनी चाहिए। गोल गड्ढे चौरस या लम्बे चौरस गड्ढों से अधिक टिकाऊ होते हैं। दोनों गड्ढों के बीच में कम से कम एक मीटर की दूरी होनी चाहिए। यदि स्थान के अभाव में यह सम्भव नहीं है तो दोनों गड्ढों के बीच अछेदनीय अवरोध बना देना चाहिए।

 

गड्ढों को ढहने से रोकने के लिए ईंटों से लाईनिंग करवाना आवश्यक है। लाईनिंग में 50 मिमी. चौड़े छेद होने चाहिए जोकि ईंटों को 50 मिमी. की दूरी पर लगाकर किया जा सकता है। ध्यान रहे गड्ढे में जहाँ नाली खुलती है वहाँ छेद न हो।

 

(घ) वाटर सील शौचालय को कैसे प्रयोग करें

1. शौचालय के बाहर हमेशा पानी भरा घड़ा रखना चाहिए, जिसे शौच के लिए एवं शौचालय साफ रखने के लिये प्रयोग करना चाहिए।

2. मल त्यागने से पूर्व पैन को थोड़ा सा पानी डालकर गीला कर देना चाहिए। यह मल को पैन से चिपकने से रोकता है।

3. मल त्यागते समय ध्यान दें कि मल पैन पर ही गिरे।

4. मल त्यागने के उपरांत 2 लीटर पानी से मल को बहा दें।

5. शौच के बाद अपने हाथ साबुन और पानी से धोएँ।

6. दिन में पैन को एक बार ब्रश या झाड़ू से धोना चाहिए। बेहतर रहेगा यदि साबुन के पाउडर का प्रयोग किया जाए।

7. शौचालय में कचड़ा या पत्थर न डालें। इससे नाली बन्द हो जाती है।

8. एक वक्त पर एक ही गड्ढा प्रयोग करें। जब एक भर जाए तो बहाव को दूसरे गड्ढे की ओर मोड़ देना चाहिए।

9. भरे गड्ढे को डेढ़-दो वर्ष बाद साफ करना चाहिए।

 

(ड) सेप्टिक टैंक शौचालय

अधिकांश शहरों में जहाँ भूमिगत गटर नहीं है वहाँ शौचालयों, अस्पतालों, स्कूलों, रसोई घरों आदि का मैला पानी सेप्टिक टैंक में शुद्ध किया जाता है। 15 प्रतिशत शहरी आबादी को ही यह सुविधा प्राप्त है।

 

सेप्टिक टैंक बड़े पैमाने पर बनाए जाते हैं। इसके लिए पानी अधिक मात्रा में चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति पर 20 से 25 गैलन पानी प्रतिदिन प्रयोग किया जाता है। इसमें प्रथम चरण में मैला पानी का रासायनिक और एन-एरोबिक-प्रक्रिया से शुद्धिकरण होता है। दूसरे चरण में सेप्टिक टैंक के बाहर ऑक्सीकरण की प्रक्रिया होती है। उपरोक्त दो प्रक्रियाएँ मैला पानी के शुद्धिकरण में मदद करते हैं।

 

मल निस्तारण के इस तरीके की कुछ सीमाएँ हैंः

1. यह काफी खर्चीला तरीका है।

2. इसके लिए अधिक स्थान की आवश्यकता पड़ती है।

3. समय-समय पर इसकी सफाई करवानी पड़ती है, जिसके लिए सफाई कर्मचारी को बुलाना पड़ता है।

4. गैस पाइप से अक्सर दुर्गन्ध आती है।

5. इसमें अधिक पानी की आवश्यकता पड़ती है।

 

(च) सीवरेज

सम्पूर्ण देश के करीब 200 से अधिक शहरों के कुछ ही क्षेत्रों में मल निष्पादन (निपटान) की यह सुविधा उपलब्ध है। इस प्रणाली के अन्तर्गत शहर में आपस में जुड़ी हुई भूमिगत नालियों का जाल बिछा होता है। घर के अन्दर का सीवर गली के सीवर से जोड़ दिया जाता है। गली के सीवर मुख्य सड़कों के सीवर से जाकर मिलते हैं। इस प्रकार सारे शहर का गन्दा पानी एक एकत्रण स्थान पर पहुँचता है जहाँ कि वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में पानी का शुद्धिकरण किया जाता है।

 

यह तरीका बहुत कारगर सिद्ध नहीं हुआ क्योंकिः

1. यह तरीका काफी खर्चीला है।

2. कभी-कभी नालियों में कचरा फँस जाने के कारण नालियाँ बन्द हो जाती हैं।

3. नगरपालिका या नगर निगम अक्सर नालियों की सफाई के प्रति उदासीन रहती है जिससे पर्यावरण अस्वच्छता की समस्या और बढ़ जाती है।

4. सीवरेज प्रणाली को क्रियान्वित करने के लिए योजना तैयार करना, निर्माण कार्य करवाना एवं रख-रखाव करना बहुत कठिन कार्य है।

 

साभार : स्वच्छता कार्यकर्ता सहायक पुस्तिका

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