सुलभ के वरीय सलाहकार श्री एस.पी. सिंह को उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए ‘सुलभ मैन आॅफ द ईयर-2009’ पुरस्कार दिया गया, जिसमें उन्हें एक स्वर्णपदक एवं प्रमाण-पत्र प्रदान किए गए।
पेशे से पत्रकार रहे श्री एस.पी. सिंह वर्ष 1986 में एक स्वयंसेवी कार्यकर्ता के रूप में जुड़कर पूरी निष्ठा से सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस आॅर्गनाइजेशन में अपनी सेवा दे रहे हैं।
पिछले पच्चीस वर्षों से सुलभ से जुड़े रहकर श्री सिंह ने अनेक विभागों में अपनी सेवाएँ दीं। उन्होंने शौचालयों की साफ-सफाई के प्रबन्धन से लेकर सुलभ के साहित्य-लेखन तक अनेक कार्य किए। उनके संपादन में ‘सुलभ इंडिया’ का अंग्रेजी संस्करण भी प्रकाशित हुआ था। उन्होंने कई किताबें भी लिखी हैं, जिनमें मुख्य हैं- ‘सुलभ सैनिटेशन मूवमेंट, ग्लिम्प्सेस् आॅफ यूरोप’ इत्यादि।
उनका जन्म उत्तर-प्रदेश राज्यांतर्गत जौनपुर जिला के तरियारी नामक गाँव में 9 सितम्बर, 1932 में हुआ। घर की प्रारम्भिक स्थिति ऐसी थी कि वे बचपन में बिना जूते-चप्पल पहने स्कूल गए। बाद में उन्होंने सन 1956 में इलाहाबाद-विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने सन 1968 में लखनऊ के ‘द पायनिअर’ (अंग्रेजी) अखबार से एक संवाददाता के रूप मे अपना करिअर शुरू किया था। फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और पत्रकारिता के क्षेत्र में आगे बढ़ते रहे। उन्होंने नई दिल्ली से प्रकाशित ’द स्टेट्समैन’ के साथ-साथ कई अन्य पत्रिकाओं में भी अपनी सेवाएँ दीं। उसके बाद 20 वर्षों तक ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में कार्य करने के पश्चात् वे सुलभ से जुड़े।
पिछले पच्चीस वर्षों से सुलभ से जुड़े रहकर श्री सिंह ने अनेक विभागों में अपनी सेवाएँ दीं। उन्होंने शौचालयों की साफ-सफाई के प्रबन्धन से लेकर सुलभ के साहित्य-लेखन तक अनेक कार्य किए। उनके संपादन में ‘सुलभ इंडिया’ का अंग्रेजी संस्करण भी प्रकाशित हुआ था। उन्होंने कई किताबें भी लिखी हैं, जिनमें मुख्य हैं- ‘सुलभ सैनिटेशन मूवमेंट, ग्लिम्प्सेस् आॅफ यूरोप’ इत्यादि।
श्री एस. पी. सिंह के महत् अवदान को देखते हुए उन्हें स्वतन्त्रता-दिवस के अवसर पर 15 अगस्त, 2010 को सुलभ प्रांगण में ध्वजारोहण करने का भी अवसर दिया गया था और उन्हें एक प्रशस्ति-पत्र भी प्रदान किया गया था। फिर उन्हें ‘सुलभ मैन आॅफ द ईयर-2009’ पुरस्कार देने का निर्णय लिया गया। इसी पुरस्कार-स्वरूप सुलभ महिला एवं बाल-कल्याण-संस्थान की अध्यक्ष श्रीमती अमोला पाठक ने 2 अप्रैल, 2011 के खुशनुमा माहौल में उन्हें स्वर्णपदक प्रदान किया और डाॅ. बिन्देश्वर पाठक ने प्रमाण-पत्र।
साभार : सुलभ इण्डिया मई 2011
/articles/laekhana-evan-patarakaaraitaa-sae-jaudae-sarai-esapai-sainha-kao-saulabha-maaina-opha-da