लड़कियाँ स्वयं को सशक्त बनाएँ: प्रतिभा देवीसिंह पाटिल

अनीता झा


राष्ट्रपति-भवन का अशोक-हॉल सदैव खूबसूरत झाड़-फानूसों की बत्तियों से उजागर रहता है। यह देश-विदेश के विशिष्ट मेहमानों के अलावा केन्द्रिय मन्त्रीमण्डलों के सदस्यों केन्द्र सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों एवं राज्यपालों के सम्मिलन का भी साक्षी रहता है, उसी विशिष्ट अशोक हॉल में 17 जनवरी 2012 को राजधानी दिल्ली के विभिन्न स्कूलों की छात्र छात्रायें एवं उनके अध्यापक आस-पास के इलाकों में चल रही विभिन्न संस्थाओं के कार्यकर्तागण एवं पश्चिम बंगाल की कुछ बहादुर लड़कियां श्री प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के आमन्त्रण पर विशेष चर्चा के लिए पधारी थीं, जिन्होंने बाल-विवाह का विरोध किया था। इसमें सदियों से उपेक्षित बच्चों के समूह को भी शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई राष्ट्रपति भवन की विशेष कार्य अधिकारी श्रीमति अर्चना दत्ता ने। वह समूह था पूर्व स्केवैंजर महिलाओं की संतती का।

 

एक ओर राष्ट्र में 63वें गणतंत्र दिवस समारोह की तैयारी हो रही थी, प्रायः लोग राष्ट्रपति भवन के मुगल गार्डन में देश-विदेश से आए विशिष्ट मेहमानों के लिए प्रीति-भोज के आयोजन में व्यस्त थे, ऐसे समय में माननीया श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल विभिन्न क्षेत्रों से आए बच्चों के प्रश्नों से घिरी हुई थीं। यह उनके बहुआयामी व्यक्तित्व और उनकी समदृष्टि का परिचायक है। इस आयोजन का संचालन सी.एन.एन.-आई.बी.एन. चैनल की वरीय सम्पादक सुश्री अनुभा भोंसले कर रही थीं। यह आयोजन केवल अशोक-हॉल में बैठे दर्शकों तक ही सीमित नहीं था, बल्कि इस आयोजन में देश के विभिन्न भागों से आए बच्चे भी भाग ले रहे थे। बच्चों ने महामहिम राष्ट्रपति से कई प्रकार के प्रश्न पूछे, जो उनके बचपन से लेकर राष्ट्र के सर्वोच्च पद पर आसीन होने और जीवन के विविध क्षेत्रों से सम्बद्ध थे। ‘ऑल द प्रेसिडेंटस् चिल्ड्रेन’ नाम से 26 जनवरी, 2012 को सी.एन.एन.-आई.बी.एन. चैनल पर प्रसारित हुए इस आयोजन को देश-विदेश के लाखों लोगों ने देखा। आयोजन की संचालिका सुश्री अनुभा भोंसले के अनुसार, ऐसा ही एक आयोजन सन 2007 में पूर्व-राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे.अब्दुल कलाम के समय भी किया गया था। इस कार्यक्रम के आयोजन के लिए जब महामहिम राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल को प्रस्ताव भेजा गया तो उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार किया और राष्ट्रपति-भवन के सभी अधिकारी और कर्मचारिगण इस दिशा में क्रियाशील हो गए।


अशोक-हॉल में उपस्थित विद्यार्थियों ने तो राष्ट्रपति महोदया से प्रश्न पूछे ही, इसके अलावा उत्तर-प्रदेश, मणिपुर और जम्मू-कश्मीर इत्यादि राज्यों के बच्चों ने भी वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के द्वारा राष्ट्रपति से अपने प्रश्न पूछे।


संचालिका सुश्री अनुभा भोंसले के आरम्भिक शब्दों ‘दिल्ली नगर ऐतिहासिक संस्कृति की धरोहर है और यहाँ के बच्चे आज देश की राष्ट्रपति के सम्मुख बैठकर अपने एवं उनके जीवन पर चर्चा कर रहे हैं’ ने वातावरण को अगले एक घंटे के लिए उल्लास और जोश से भर दिया।


कार्यक्रम आरम्भ होने से पहले राष्ट्रपति सभी बच्चों से मिलीं, ताकि प्रश्नोत्तर के समय बच्चे सहज रह सकें। केवल 8 दिन बाद गणतंत्र-दिवस आने वाला था, इसलिए बहुत-से बच्चों ने अपने गालों पर तिरंगा बना रखा था।


एक छात्र ने महामहिम राष्ट्रपति से प्रश्न किया, ‘जब आप हमारी उम्र के बराबर थीं, उस वक्त आप भविष्य में क्या बनना चाहती थीं?’ उसके उत्तर में राष्ट्रपति महोदया ने उत्तर दिया, ‘ऐसा ही प्रश्न उनके पिता जी-द्वारा उनसे पूछा गया था। सच कहूँ तो मुझे मालूम नहीं था कि मैं क्या जवाब दूँ? मेरे पिता जी ने मुझे सलाह दी कि मैं राज्यपाल अथवा कलक्टर बनने का प्रयास करूँ! मैंने उनसे पूछा कि इनमें से बड़ा ओहदा क्या होता है? तो उन्होंने कहा कि एक राज्यपाल किसी अधिकारी के अधीन नहीं होता है। फिर मैंने जवाब दिया, राज्यपाल।’  उन्होंने आगे कहा कि ‘राष्ट्रपति के पद से पूर्व जब मुझे राज्यपाल बनाया गया तो, तब मैं अपने पिता जी को याद कर रही थी।’


जब उनसे पूछा गया कि सन 2020 में वे भारत को कहाँ देखना चाहती हैं, उन्होंने जवाब दिया, ‘मुझे भावी-पीढ़ी से अनेक आशाएँ हैं। उच्च विचारों और विकास के द्वारा हम प्रत्येक क्षेत्र में अग्रणी रह सकते हैं। हम इससे देश के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी के सपने को भी पूरा कर सकेंगे।’ अपनी बात को और अधिक स्पष्ट करते हुए उन्होंने एक पतंग का उदाहरण देते हुए कहा, ‘यदि हवा में उड़ती पतंग को नियन्त्रित करने वाला धागा ढीला छोड़ दिया जाए तो इसकी अधिक आशंका है कि वह धरा पर आ गिरेगी, किन्तु यदि उसी धागे को सन्तुलन और सख्ती से पकड़कर संचालित किया जाए तो वही पतंग हवा में और ऊँची उठती जाएगी। इसी प्रकार जब भी हम कोई कार्य करते हैं तो उसमें आलस्य का कोई स्थान नहीं रहना चाहिए।’ उनसे दूसरा प्रश्न यह पूछा गया कि वह एक महिला होकर देश के सर्वोच्च पद को सुशोभित कर रही हैं, उन्हें कैसा लगता है, इसपर वे बोलीं, ‘यह भारत की सभी महिलाओं के लिए गर्व का विषय है कि एक महिला देश के सर्वोच्च पद पर प्रतिष्ठित है। यह समाज में महिलाओं की भागीदारी का भी सम्मान है।’


‘क्या कश्मीर की एक महिला भारत की राष्ट्रपति बन सकती है?’ श्रीनगर की एक बच्ची ने प्रश्न किया। माननीय राष्ट्रपति का उत्तर था-’प्रत्येक महिला, जो 35 वर्ष की आयु से अधिक है, देश के इस पद पर बैठ सकती है। जिस देश में लिंग-भेद नहीं है, वहाँ सभी नागरिक बराबर हैं। कश्मीर की महिलाओं को भी देश की अन्य महिलाओं के समान ही अधिकार हैं।’ माननीय राष्ट्रपति जी से पुनः पूछा गया कि ‘क्या राष्ट्रपति के रूप में आपने स्वयं को कभी असहाय महसूस किया है?’ उन्होंने कहा, ‘असहाय होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता है। यह एक संवैधानिक पद है और आपको संविधान-द्वारा प्रदान की गई व्यवस्था के अनुसार ही कार्य करना पड़ता है।’


‘जब महिलाएँ प्रत्येक क्षेत्र में विकास कर रही हैं, फिर पंजाब और हरियाणा में इनकी स्थिति बद-से-बदतर क्यों होती जा रही है? इन राज्यों में भ्रूण-हत्या, बाल-विवाह, प्रतिष्ठा के लिए हत्या साधारण-सी बात है। हर प्रकार से महिलाओं को ही प्रताड़ित किया जाता है, जैसे कि उनके पास कोई अधिकार ही न हो। उन्हें बचाने वाला कोई नहीं है। सरकार इसके लिए क्यों नहीं कुछ कर रही है?’ ये प्रश्न थे चंडीगढ़ की दो छात्राओं के। इन प्रश्नों के उत्तर में राष्ट्रपति जी ने कहा, ‘महिलाओं द्वारा झेली जानेवाली सभी यातनाओं का कानूनी इलाज है। प्रत्येक लड़की को यह मानना चाहिए कि वह अपनी रक्षा स्वयं कर सकती है और जीवन में अपने दम पर आगे बढ़ सकती है। लड़कियों को चाहिए कि वे अपनी समस्याओं को अपने बड़े-बुजुर्गों से एवं विद्यालयों में अपनी शिक्षिकाओं को बताएँ। सामाजिक बुराइयों, जैसे-दहेज-प्रथा, कन्या-भ्रूण-हत्या, बाल-विवाह इत्यादि को समाप्त करना है। सबसे महत्वपूर्ण है कि महिलाएँ वर्तमान कानून के साथ सामाजिक बुराइयों से लड़े और स्वयं को सशक्त बनाएँ एवं अपना लक्ष्य प्राप्त करें। भविष्य उनका ही है।’


‘जब आप पढ़ाई कर रही थीं, तब क्या पढ़ाई में आपका मन लगता था?’ भीड़ में बैठे एक बच्चे ने प्रश्न किया। उनका उत्तर था, ‘हाँ, क्यों नहीं? मैं पूरा ध्यान देती थी, किन्तु गणित में मुझे परेशानी रहती थी। एक बार जब मैंने गृह-कार्य नहीं किया था तो मेरी टीचर (अध्यापिका-अध्यापक) ने मेरे हाथों पर छड़ी से पिचाई की थी। मुझे पड़ी वह मार आज भी याद है।’


जब किसी ने उनसे पूछा कि ‘आपका पसंदीदा विषय कौन-सा था?’ तो वे बोलीं, ‘सिविक्स’ (नागरिक-शास्त्र)। एक अन्य छात्र ने पूछा, ‘एक महिला होकर आपने राष्ट्रपति का पद सुशोभित किया, इससे आप एक आदर्श महिला के रूप में देखी जाती हैं, किन्तु आपका आदर्श कौन रहा है?’ इस प्रश्न के उत्तर में वे बोलीं, ‘मैं उन सभी महिलाओं की प्रशंसा करती हूँ एवं उन्हें सलाम करती हूँ, जिन्होंने भारत के स्वतन्त्रता-संग्राम में अपना सहयोग दिया है। वे सभी मेरी आदर्श रही हैं।’


माननीया राष्ट्रपति का ध्यान सुलभ आन्दोलन द्वारा मुक्त कराए गए स्कैवेंजर परिवार की बच्चियों की ओर आकर्षित करते हुए संचालिका ने दलित-विकास की भी कहानी बताई।


राजस्थान के अलवर में सुलभ-द्वारा स्कैवेंजिंग के कार्यों से मुक्त एवं पुनर्वासित करवाई गईं महिला श्रीमती उषा चौमड़ की पुत्री सुश्री अमन चौमड़ ने माननीया महामहिम से प्रश्न रखते हुए कहा कि आपसे मिलकर मैं अति प्रसन्न हूँ। माननीया का आशीर्वाद उसकी माँ श्रीमती उषा चौमड़ को भी मिल चुका है। राष्ट्रपति से आशीर्वाद लेने के बाद श्रीमती उषा चौमड़ अन्य पुनर्वासित स्कैवेंजर महिलाओं के साथ न्यूयॉर्क गई थीं। सुश्री अमन ने पूछा, ‘राष्ट्रपिता महोदया! हम सामाजिक न्याय की बात कैसे कर सकते हैं, जबकि देश में अभी भी स्कैवेंजिग की प्रथा चल रही है?’ राष्ट्रपति जी ने उत्तर दिया, ‘सरकार-द्वारा सामाजिक परिवर्तन लाने का हर सम्भव प्रयास किया जा रहा है और अब तो कई क्षेत्रों में स्कैवेंजिग की प्रथा में कमी आई है।’ इसपर सुश्री अमन ने कहा कि ‘जबसे सुलभ द्वारा हमें पुनर्वासित किया गया है, हमारे जीवन-स्तर में व्यापक परिवर्तन आया है। यदि पाठक सर (डॉ. बिन्देश्वर पाठक, संस्थापक, सुलभ-स्वच्छता एवं सामाजिक सुधार-आन्दोलन) ने मेरी माँ श्रीमती उषा चौमड़ को पुनर्वासित नहीं किया होता तो सम्भव है कि आज मैं भी स्कैवेंजिंग के घिनौने कार्य में लगी होती एवं जीवन-पर्यंत लोगों की घृणा का पात्र बनी रहती।’ सुश्री अमन चौमड़ के इन शब्दों पर संचालिका सुश्री अनुभा भोंसले ने कहा, ‘यह लड़की देश में हो रहे सामाजिक परिवर्तन का एक अनुपम उदाहरण है।’ वहाँ उपस्थित सभी लोगों ने अमन चौमड़ के लिए तालियाँ बजाईं।


राष्ट्रपति महोदया से जब यह पूछा गया कि ‘वह अपने राजनीतिक और निजी जीवन में सामंजस्य किस प्रकार बिठाती हैं?’ तो महामहिम ने उत्तर दिया, ‘उनमें कभी कोई परेशानी नहीं आई। मैं प्रयास करती हूँ कि जो भी करूँ, कुशलतापूर्वक ही करूँ। मैं आमतौर पर गोष्ठियाँ, सेमिनार एवं अन्य कार्यकर्मों में, जहाँ मुझे बुलाया जाता है, व्यस्त रहती हूँ। इसमें मेरा बहुत-सा समय चला जाता है, किन्तु ऐसा पूरे साल-भर नहीं चलता।’


‘क्या आपको कुछ अटपटा नहीं लगता, जब एक राष्ट्रपति के नाते आपसे कुछ ऐसा करने को कहा जाता है, जो आमतौर पर एक पुरुष द्वारा किया जाता है?’ जवाब में महामहिम ने मुस्कराते हुए कहा, ‘नहीं, मैं प्रत्येक कार्य को अपने जीवन का अंग मानती हूं। सुखोई, जो एक लड़ाकू विमान है, उसमें बैठकर उड़ान भरने में भी मेरे मन में कोई डर नहीं था। ऊँचे आसमान में उड़ते हुए मैं स्वयं को एक चिड़िया-सा महसूस कर रही थी। मैं उन पलों में रोमांच से भर गई थी।’


एक अन्य प्रश्न के उत्तर में राष्ट्रपति ने जवाब दिया, ‘एक विद्यार्थी के रूप में मुझे खेलों से बेहद लगाव था और मैं टेबल टेनिस खेला करती थी, हालांकि टेबल टेनिस को अपनी जीविका बनाने का विचार कभी नहीं किया।’ उन्होंने कहा कि इस खेल को वे आज भी पसंद करती हैं, किन्तु बढ़ती उम्र के कारण अब वे खेल नहीं सकतीं। जब उनसे पूछा गया कि ‘आज के नौजवानों को आप क्या सन्देश देना चाहेंगी?’ तो वे बोलीं, ‘वह ईमानदारी, मेहनत एवं समर्पण ही हैं, जो सभी के लिए आवश्यक हैं। ये तीनों तत्व किसी व्यक्ति को देशभक्त एवं किसी देश को महान् बनाते हैं।’


सबसे अन्त में उनसे प्रश्न पूछनेवालों में वे लड़कियां थीं, जो पश्चिम बंगाल से आई थीं और जिन्होंने बाल-विवाह का विरोध किया था। उनमें से कुछ तो पूर्व में ही राष्ट्रपति जी से पुरस्कार प्राप्त कर चुकी थीं। राष्ट्रपति जी ने पुनः उनकी बहादुरी की प्रशंसा की। वे सभी दोबारा वहाँ आकर अत्यन्त प्रसन्न थीं। उस समूह की लड़कियों ने धनी वर्ग की लड़कियों को बाल-विवाह से होनेवाले नुकसान के विषय में बताया। कमजोर वर्ग के कुछ बच्चों के पास राष्ट्रपति जी और अन्य बच्चों को बताने की अपनी-अपनी तरह-तरह की कहानियाँ थीं। सभी बच्चे आपस में मिल-जुलकर बैठे थे।


बाल-विवाह का विरोध करनेवाली एक छात्रा सुश्री अफसाना खातून ने, जो राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित की जा चुकी है, ने कहा, ‘मेरे माता-पिता ने अपने बच्चों को पालने-पोसने में पैसे अथवा किसी अन्य प्रकार से कोई कसर नहीं छोड़ी, किन्तु कम उम्र में ही बच्चों की शादी कर देने पर वे सदा तैयार रहते थे।’ इसपर राष्ट्रपति ने कहा, ‘सरकार-द्वारा इस विषय पर सामाजिक परिवर्तन लाने के भरपूर प्रयास किए जा रहे हैं। देश में प्रत्येक व्यक्ति को मुफ्त एवं आवश्यक शिक्षा मिलने का अधिकार है। लड़कियों को चाहिए कि पूर्व में चल रहे गलत रीति-रिवाजों से स्वयं को मुक्त करें। यदि बच्चे, शिक्षक एवं स्वयंसेवी संस्थाएं मिलकर महिलाओं की भलाई का कार्य करें तो अपेक्षित परिणाम की प्राप्ति में कोई दुविधा नहीं आएगी। महिला-सशक्तीकरण के लिए कार्य करनेवालों का लक्ष्य होना चाहिए ‘शिक्षा-द्वारा जागरूकता’।’


हालाँकि सुरक्षा के मद्देनजर बच्चों को राष्ट्रपति-भवन के भीतर कैमरा आदि ले जाने की मनाही थी, किन्तु राष्ट्रपति-सचिवालय-द्वारा फोटोग्राफर का इंतजाम था। राष्ट्रपति-भवन से बाहर आने पर बच्चों के फोटो इस प्रकार से खींचे गए कि उनके पीछे राष्ट्रपति-भवन स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है।


राष्ट्रपति के साथ बच्चों की एक घंटे से अधिक चली इस चर्चा का प्रत्येक पल उन बच्चों के लिए गर्व का था और उन्होंने उस समय के प्रत्येक पल का आनंद लिया। प्रश्न पूछने में लड़कियाँ लड़कों से आगे रहीं। ऐसा शायद इसलिए भी रहा कि वे एक महिला राष्ट्रपति के सम्मुख थीं। कार्यक्रम समाप्त होने पर बच्चों ने राष्ट्रपति के लिए लाए उपहार उन्हें भेंट किए। सभी के चेहरों पर अपार प्रसन्नता थी।


आयोजित कार्यक्रम केवल जानकारी प्रदान करनेवाला ही नहीं, बल्कि देखने में भी मनोरंजक था।


सुलभ से जुड़ी अलवर से आई हुई बच्चियाँ भी इस आयोजन का हिस्सा बनकर बेहद उत्साहित थीं। श्रोता-दीर्घा में बैठे हम सभी ने इस कार्यक्रम का बहुत आनन्द लिया। संचालिका सुश्री अनुभा भोंसले ने इस कार्यक्रम की सफलता के लिए कड़ी मेहनत की। निश्चय ही, उनके द्वारा संचालित इस कार्यक्रम के द्वारा बच्चों को अपने देश और राष्ट्रपति के विषय में और अधिक जानकारी मिली।

 

साभार : सुलभ इण्डिया फरवरी 2012

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