राजु कुमार
शौचालय नहीं होने से ससुराल से वापस लौट जाने वाली नवविवाहिताओं की संख्या धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। कई युवतियाँ इस वजह से शादी से इनकार कर रही हैं क्योंकि उनके होने वाले ससुराल में शौचालय नहीं है। लेकिन इससे हटकर एक नई कहानी के सूत्रधार बने मध्यप्रदेश के हरदा जिले के बिच्छापुर गाँव के राजेश राठौर। राठौर ने तय कर लिया था कि जब तक घर में शौचालय नहीं बन जाएगा, तब तक वे शादी नहीं करेंगे। इस बीच उनका रिश्ता बैतूल जिले के एक परिवार में तय हो गया, पर उन्होंने कह दिया कि रिश्ता भले ही तय हो गया, पर शादी वे शौचालय बनाने के बाद ही करेंगे। आखिरकार जब शौचालय बना, तब उन्होंने सीमा राठौर से शादी की।
राठौर ने बिच्छापुर पंचायत में स्वच्छता दूत के रूप में भी काम किया। उनकी प्रतिबद्धता को देखते हुए ही पंचायत ने उन्हें स्वच्छता दूत बनाया। उन्होंने न केवल पहले अपने घर का शौचालय बनाया बल्कि स्थानीय जनप्रतिनिधियों एवं अधिकारियों के साथ मिलकर गाँव को खुले में शौच से मुक्त कराने में भी सफलता हासिल की। उनकी इस कामयाबी पर जिले के प्रभारी मन्त्री ने उन्हें सम्मानित भी किया। राठौर बताते हैं, ‘‘मेरे गाँव में दो ऐसे क्षेत्र थे, जहाँ लोग खुले में शौच जाते थे। मेरे घर के लोग भी शौच के लिए बाहर ही जाते थे। मैंने जब खुले में शौच जाने से होने वाले खतरे के बारे में सुना, तब निश्चय कर लिया कि मेरा पहला काम घर में शौचालय बनाना होगा। शौच के कारण होने वाली गन्दगी के कारण बीमारियों की सम्भावना एवं घर की महिलाओं की इज्जत के लिए शौचालय बहुत ही जरूरी है। इसी कारण मैंने तय किया कि पहले शौचालय बनवाऊँगा और उसके बाद शादी करूँगा।’’ राठौर को पंचायत से शौचालय बनाने के लिए पैसे मिलने में देरी हो रही थी, तो उन्होंने अनाज बेचकर पैसा जुटाया और उसके तुरन्त बाद ही शौचालय का निर्माण करवाया। उन्हें शासन से राशि तो मिली, पर उन्होंने बेहतर शौचालय बनाने के लिए ज्यादा पैसा लगाया। राठौर की पत्नी सीमा कहती हैं, ‘‘मेरे मायके में पहले से शौचालय था। मुझे चिन्ता थी कि ससुराल में शौचालय नहीं होगा, तो मैं क्या करूँगी। पर शादी से पहले शौचालय निर्माण हो जाने से मुझे बहुत ही खुशी हुई थी।’’
यूनिसेफ, मध्यप्रदेश के प्रमुख ट्रेवर डी. क्लार्क कहते हैं, ‘‘खुले में शौच बच्चों एवं महिलाओं के विकास में बड़ी बाधा है। महिलाओं की सामाजिक सुरक्षा एवं बच्चों की सेहत की सुरक्षा के लिए जरूरी है कि खुले में शौच से मुक्ति पाई जाए। गाँवों में युवा समुदाय इस बात के लिए आगे आ रहा है और वे अपने घरों में शौचालय बनाने के साथ-साथ गाँव को भी खुले में शौच से मुक्त बनाने में योगदान दे रहे हैं।’’
बिच्छापुर के पंचायत सचिव कहते हैं, ‘‘गाँव को खुले में शौच से मुक्त कराने में स्वच्छता दूत के विचार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गाँव में पानी की कोई समस्या नहीं है। यहाँ कुल 22 हैंडपम्प है, जिसमें भरपूर पानी आता है। इसलिए लोगों की सोच बदलते ही महज दो महीने में 146 घरों में शौचालय बन गए। इस तरह से सभी 477 परिवारों में शौचालय बनने के साथ ही गाँव खुले में शौच से मुक्त हो गया।’’
प्राथमिक शाला की 5वीं की छात्राएँ रानी एवं आसना बताती हैं कि उनके घरों में उनके जन्म से पहले ही शौचालय बन गए थे, पर कई सहेलियों के घरों में शौचालय नहीं होने से उन्हें बाहर जाना पड़ता था। जो शौच के लिए बाहर जाती थी, उन्हें स्कूल में शर्म आती थी, पर अब उन्हें भी अच्छा लगता है। हमारे स्कूल के सभी बच्चे शौचालय में ही शौच के लिए जाते हैं। 5वीं की छात्रा राधिका एवं फिजा बताती हैं कि उनके घर में शौचालय बन जाने से उन्हें अच्छा लगता है।
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