गौरव चंद्रा एवं मदन झा
दक्षिण अफ्रीका-शौचालय-संगठन विश्व-शौचालय-संगठन का भाग है, जिसके द्वारा वार्षिक विश्व-शौचालय-शिखर सम्मेलन का आयोजन किया जाता है। वर्ष 2012 में यह दक्षिण अफ्रीका के डरबन शहर में दिसंबर के पहले सप्ताह में आयोजित हुआ था। यह अवसर होता है दुनिया-भर के स्वच्छता-विशेषज्ञों के एकत्र होने और इस विषय के विभिन्न पहलुओं की समीक्षा करने और संबद्ध समस्याओं का निदान ढूंढने का। सम्मेलन में डॉ. बिन्देश्वर पाठक को प्रमुख वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया था। डॉक्टर पाठक ने भारत के राजस्थान राज्य के अलवर तथा टोंक की तीन मुक्त तथा पुनर्वासित पूर्व स्कैवेंजर महिलाओं के साथ सम्मेलन में भाग लिया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने जिस स्थान से जातिवाद तथा अस्पृश्यता के विरुद्ध अपना अभियान प्रारंभ किया, वहां की यात्रा इन महिलाओं के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण अनुभव था- अस्पृश्यता की समाप्ति का गांधी जी का सपना उनमें चरितार्थ हो रहा था।
सम्मेलन के उद्घाटन-समारोह में दक्षिण अफ्रिका-के शौचालय-संगठन के संस्थापक श्री अल्फि हीगर ने अपने संबोधन में कहा, ‘आपकी प्रतिभागिता इस बात का प्रमाण है कि हम सभी के अनुभव एवं लक्ष्य समान रहे हैं, जो दुनिया के 2.6 बिलियन लोगों के लिए स्वच्छता की समस्या और उसके समाधान से संबद्ध हैं। इनमें से एक बड़ा भाग अफ्रिका महादेश के निवासी हैं। हमारी सामूहिक क्रियाशीलता ही इसके लिए सार्थक हो सकती है। मेरा अनुरोध है कि इस दिशा में हम एक साथ अपने साधन और प्रयास जुटाएं। तीन दिनों के इस सम्मेलन में हम इस विषय से संबद्ध सभी विषयों पर चर्चा करेंगे तथा प्रयास करेंगे कि सबके हित में हमारे सामूहिक प्रयासों और मिशन को परिभाषित किया जा सके और सार्थक दिशा दी जा सके।’ भाषण के बाद श्री हीगर ने उपस्थित लोगों को विश्व-शौचालय-संगठन के संस्थापक श्री जैक सिम का परिचय दिया और बताया कि विश्व-शौचालय-शिखर-सम्मेलन विश्व शौचालय संगठन की स्थापना के बाद प्रारंभ हुआ, जिसे विश्व की मीडिया ने भी यथोचित प्राथमिकता दी। हम सभी एक समान लक्ष्य की ओर आगे बढ़ें, जिसके तहत हर जगह हर किसी को सुरक्षित स्वच्छता के साधन उपलब्ध हो।
कार्यक्रम के उद्घाटन-समारोह में दक्षिण अफ्रीका-सरकार के वरीय पदाधिकारी माननीया श्रीमती जुओ कोटा-फ्रेडेरिक्स, उपमंत्री, मानव-व्यवस्थापन, श्री जेम्स एनक्सुमालो, डरबन के मेयर तथा श्रीमती नोम्हले दमबुजा, अध्यक्षा, पोर्टफोलियो कमिटी ऑफ ह्यूमन सेट्लमेन्ट्स ने भी भाग लिया।
समारोह के दौरान स्वच्छता के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए पुरस्कार भी प्रदान किए गए। हॉल ऑफ फेम पुरस्कार के विजेता थे
1. श्री पीयर्स क्रॉस, जलापूर्ति तथा स्वच्छता-क्षेत्र में अंतराष्ट्रीय प्रवक्ता तथा स्टैटेजिस्ट।
2. इंडोनेशिया गणराज्य का पर्यटन तथा सर्जनात्मक इकोनॉमी मंत्रालय।
3. श्री जॉन लेन, कार्यपालक निदेशक, डब्ल्यूएसएससीसी।
डॉ. बिन्देश्वर पाठक, संस्थापक, सुलभ-स्चच्छता-आंदोलन ने अपना भाषण प्रारंभ करते हुए अलवर और टोंक (राजस्थान, भारत) की तीन महिलाओं का परिचय दिया, जो मंच पर विराजमान थीं और बताया कि ‘अपनी मुक्ति और पुनर्वास के पूर्व ये स्कैवेंजिंग का कार्य करती थीं। यह सौभाग्य की बात है कि यह शिखर-सम्मेलन डरबन में हो रहा है, जहां महात्मा गांधी वर्षों रहे थे और जहां उन्होंने मानव-मल की सफाई का अपने फीनिक्स आश्रम में प्रबंध किया था और ट्रेंच शौचालय की व्यवस्था की थी।’ उन्होंने कहा, ‘मेरी आयु मात्र 25 वर्ष थी, जब मैंने स्वच्छता के क्षेत्र में कार्य आरंभ किया।
दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में आयोजित हुए एक अधिवेशन में दुनिया में खुले में शौच करने वालों की संख्या 2.6 बिलियन बताई गई थी, यह आंकड़ा 2.5 तथा 2.4 तक बाद में गया, परंतु पुनः यह संख्या 2.6 हो गई है, इस तरह 2002 से 2012 तक की अवधि में पूरे विश्व में स्थिति पूर्ववत् बनी रही।
जब महात्मा गांधी भारत आए, तब देश के सामने बहुत सारी समस्याएं थीं, जिनमें दो स्वच्छता से संबद्ध थीं-खुले में शौच और स्कैवेंजरों द्वारा मानव-मल की सफाई। गांधी जी की महती इच्छा थी की इस समस्या का समाधान करने की, उन्होंने यथासंभव ट्रेंच लैट्रिन के इस्तेमाल का सुझाव दिया, जिसका प्रयोग उन्होंने डरबन में किया था, डॉक्टर पाठक ने आगे कहा, इस दिशा में मेरा सार्थक योगदान रहा है। मैंने केंद्रीकृत मानव-मल के निबटान की जगह जो सीवेज व्यवस्था में होता है, विकेंद्रित व्यवस्था के प्रावधान का आविष्कार और विकास किया। सीवेज व्यवस्था सर्वप्रथम लंदन में 1850 और भारत में 1870 में कार्यान्वित की गई। एक ओर हमलोग शिक्षा और प्रेरणा की बात करते हैं, परंतु उतना ही महत्त्वपूर्ण है सर्वोत्कृष्ट व्यवस्था या प्रैक्टिस जैसा कि माननीय मेयर महोदय ने अपने भाषण में उल्लेख किया, इसके बगैर निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो सकती। वर्ष 2002 में इसी देश के जोहान्सबर्ग में हुए अधिवेशन में खुले में शौच करने वालों की संख्या 2.6 बिलियन बताई गई थी, यह आंकड़ा 2.5 तथा 2.4 तक बाद में गया, परंतु पुनः यह संख्या 2.6 हो गई है, इस तरह 2002 से 2012 तक की अवधि में पूरे विश्व में स्थिति पूर्ववत् बनी रही।
डॉक्टर पाठक ने आगे बताया कि भारत में सीवेज व्यवस्था 1870 में कलकता (अब कोलकाता) में सर्वप्रथम शुरू की गई। 1870 से 2012 तक 7932 शहरों में से मात्र 162 में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट हैं। इस गति से भारत में पूरे देश को आच्छादित करने में 3000 साल लग जाएंगे। साथ ही अफ्रीका, एशिया तथा लैटिन अमेरिका के तीन महादेशों में सीवेज व्यवस्था का प्रावधान करना दुष्कर लगता है क्योंकि इसका निर्माण और संधारण अत्यंत खर्चीला है, साथ ही फ्लशिंग के लिए भारी परिमाण में पानी की आवश्यकता होती है। इसलिए मौलिक प्रश्न उठता है कि दुनिया के विभिन्न देशों के लिए अनुकरणीय सर्वोत्कृष्ट व्यवस्था क्या है। मैंने दो प्रकार के मॉडल विकसित किए हैं-एक निजी घरों के लिए और दूसरा सार्वजनिक स्थानों के लिए।
अलवर तथा टोंक (राजस्थान) की महिलाओं के साथ डॉ. बिन्देश्वर पाठक डरबन में अवस्थित फीनिक्स आश्रम भी गए। श्रीमती उषा चैमर, मानद अध्यक्ष, सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन ने आश्रम देखने के अपने अनुभव के बारे में कहा कि हमारे लिए यह एक सपने के साकार होने की तरह है, महात्मा गांधी के आश्रम आना, जहां उन्होंने अस्पृश्यता के विरुद्ध अपना संघर्ष आरंभ किया था। सबने आश्रम में गांधी जी की मूर्ति के सामने उनका प्रिय भजन ‘रघुपति राघव राजा राम..’ गाया। वहां के सूचना अधिकारी मि. मथेमु बो ने आगंतुकों के भ्रमण को महत्त्वपूर्ण बताया। क्योंकि छुआछूत और जाति-भेद की प्रथा दक्षिण अफ्रीका में भारत की तरह ही व्याप्त थी, विशेष रूप से उपर्युक्त महिलाओं के आने से जैसे आशा की किरण दिखी हो डॉ. बिन्देश्वर पाठक ने इस भ्रमण को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रति श्रद्धांजलि का प्रतीक बताया जिन्होंने इसी स्थान से अपना आंदोलन प्रारंभ किया था। उन्होंने गांधी आश्रम के अधिकारियों से भेंट की और उन्हें आश्वासन दिया कि फीनिक्स सेटलमेंट में रहनेवाले स्थानीय लोगों के लिए सुलभ इंटरनेशनल एक व्यावसायिक प्रशिक्षण-केंद्र स्थापित करेगा, इसके लिए भारत तथा दक्षिण अफ्रीका की सरकार से अनुमति के लिए कार्रवाई की जाएगी।
डॉ. बिन्देश्वर पाठक सस्ंथापक, सुलभ-स्वच्छता-आंदोलन ने अपना भाषण प्रारंभ करते हुए अलवर और टोंक (राजस्थान, भारत) की तीन महिलाओं का परिचय दिया, जो मंच पर विराजमान थीं और बताया कि ‘अपनी मुक्ति और पुनर्वास के पूर्व ये स्कैवेंजिंग का कार्य करती थीं।
साभार : सुलभ इंडिया, दिसंबर 2012
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