भारत के ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा बिहार के नालन्दा जिले के राजगीर ब्लॉक के सीमा गाँव ने ढाँचागत स्वच्छता में अपनी रूचि दिखाई है। खुले में शौच जाने के कारण गाँव वालों की कमाई का एक बड़ा हिस्सा बीमारियों पर खर्च होता था। कुछ ही ग्रामीणों को यह बात पता थी कि परम्परा में बदलाव करना आसान नहीं होगा।
ग्लोबल सेनिटेशन फण्ड (जीएसएफ) और एनआरएमसी ने सीमा को शौच मुक्त बनाने के लिए अपना सहयोग प्रदान किया। जैसे ही ग्रामीणों का चुनाव और उनकी मूल समस्या का पता चला, गाँव के बुजुर्गों, प्रभावशाली व्यक्तियों को स्वच्छता के विषय में जागरुक किया गया और उन्हें सामुदाय आधारित स्वच्छता के जरिये स्वच्छता सम्बन्धी आदतों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
विषयगत बैठकों और नुक्कड़ नाटक के द्वारा स्थानीय लोगों का समर्थन जुटाने का प्रयास किया गया। गाँव वालों ने खुले में शौच से मुक्त के पोस्टर जगह-जगह चिपकाए जिससे लोगों में भय व शर्म की भावना उत्पन्न हो सके। पंचायत नेताओं, महिलाओं और बच्चों को स्वच्छता दूत बनाया गया जिससे स्वच्छता सम्बन्धी आदतों को सभी के मन में उतारा जा सके ताकि वे शौचालय उपयोग करने के लिए अपना मन बना सकें। ग्राम सभा द्वारा अपने गाँव से खुले में शौच को खत्म करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया।
एक निगरानी समिति द्वारा इस बात को सुनिश्चित किया गया कि यदि ग्रामीण खुले में शौच करने के लिए जाते हैं तो वे अपने मल पर स्वयं राख या मिट्टी डालेंगे। जैसे ही शौचालयों का निर्माण हो जाएगा, यही समिति इस बात पर निगरानी रखेगी कि सभी लोग उनका इस्तेमाल करें न कि सड़क या खाली प्लॉट पर शौच के लिए जाएँ। चार महीनों में ग्रामीणों और नेताओं के साथ किए गए दौरों और बैठकों द्वारा सकारात्मक परिणाम सामने आए। निवासियों ने स्वयं अपने घरों में बढ़-चढ़कर शौचालय बनवाएँ।
गाँव वासियों को शौचालय बनवाने के लिए किसी भी प्रकार की सब्सिडी नहीं दी गई। हालाँकि नालन्दा जिले की पेयजल और स्वच्छता समिति और जीएसएफ ने तकनीकी सहायता प्रदान की। स्वामित्व की भावना शौचालय के दीर्घकालिक उपयोग के लिए उपयोगकर्ताओं के मन में होना बेहद महत्वपूर्ण है। राजगीर की शान खुले में शौच मुक्त सीमा और उसके निवासी अब स्वस्थ और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील हो गए हैं।
इस सम्पूर्ण प्रक्रिया के विषय में अधिक जानकारी के लिए कृपया नीचे दिए गए पीडीएफ को डाउनलोड करें
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